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नोबेल शांति पुरस्कार: इस साल के तीन विजेता कौन हैं और उन्होंने क्या-क्या काम किए हैं
07-Oct-2022 8:05 PM
नोबेल शांति पुरस्कार: इस साल के तीन विजेता कौन हैं और उन्होंने क्या-क्या काम किए हैं

साल 2022 के नोबेल शांति पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है.

इस साल ये पुरस्कार संयुक्त रूप से बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बिआलियात्स्की, रूस के मानवाधिकार संगठन 'मेमोरियल' और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन 'सिविल लिबर्टीज़' को देने का एलान किया गया है.

नोबेल शांति सम्मान की घोषणा के साथ नोबेल प्राइज़ कमेटी ने अपने बयान में कहा, "पीस प्राइज़ से सम्मानित व्यक्ति और संस्थाएं अपने-अपने देशों में सिविल सोसायटी का प्रतिनिधित्व करती हैं. उन्होंने सालों तक सत्ता की आलोचना के अधिकार और नागरिकों के बुनियादी अधिकारों के संरक्षण के लिए काम किया है."

कमेटी ने कहा, "उन्होंने युद्ध अपराधों और सत्ता के दुरुपयोग के मामलों के डॉक्युमेंटेशन के लिए बेहतरीन काम किया है. वे शांति और लोकतंत्र के लिए सिविल सोसायटी की अहमियत को दिखाते हैं."

बेलारूस ने बिआलियात्स्की को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की है. बेलारूस के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने सोशल मीडिया में एक पोस्ट कर लिखा कि इस सम्मानित पुरस्कार की स्थापना करने वाले आज इस फ़ैसले से बेचैन हो रहे होंगे.

यूक्रेनी राष्ट्रपति के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ ने सेंटर फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ को पुरस्कार मिलने की घोषणा का स्वागत किया है और सोशल मीडिया पर लिखा है कि यूक्रेनी नागरिक 'शांति के मुख्य आर्किटेक्ट' रहे हैं.

विजेताओं को क्या मिलता है?

एक नोबेल डिप्लोमा जो एक अनोखा आर्ट वर्क होता है.

एक नोबेल मेडल जिनके अलग-अलग डिज़ाइन होते हैं.

कैश पुरस्कार - 10 मिलियन स्वीडिश क्रोना यानी 9,11,000 डॉलर.

एक ही कैटेगरी में अगर एक से ज़्यादा विजेता हों तो इनाम की राशि बंट जाती है.

पुरस्कार 10 दिसंबर को दिए जाते हैं, इसी दिन अल्फ़्रेड नोबेल का देहांत हुआ था.

25 सितंबर 1962 को रूस के कारेलिया में जन्मे एलेस बिआलियात्स्की असल में बेलारूस मूल के हैं.

उनके माता-पिता बेलारूस से थे, लेकिन अच्छी नौकरी की तलाश में रूस चले गए थे. उनका परिवार 1964 को बेलारूस लौटा और स्वेतलाहोर्स्क में बस गया. बिआलियात्स्की की पढ़ाई बेलारूस में ही हुई.

1984 में उन्हें रूस के स्वेरदोलोव्स्क इलाक़े में सेना में काम करने के लिए बुलाया गया, जहां उन्होंने एंटी टैंक बटालियन में काम किया. सेना में कुछ वक्त काम करने के बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी.

1980 के मध्य से बिआलियात्स्की बेलारूस में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और सिविल सोसायटी के महत्व के लिए अहिंसक अभियान चलाते रहे हैं.

वो राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार अभियानों के सक्रिय सदस्य रहे हैं जिसके कारण उन्हें कई बार गिरफ़्तार किया गया. उन्हें साल 2011 में पोलैंड और लिथुआनिया ने बेलारूस के उन नागरिकों की लिस्ट सौंपी जिनके अकाउंट उनके बैंकों में हैं. इसके बाद बिआलियात्स्की को गिरफ़्तार किया गया, उन्हें 4 साल 5 महीनों की सज़ा हुई.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन के अनुसार, बिआलियात्स्की एक राजनीतिक बंदी हैं जिन्हें 14 जुलाई 2021 को गिरफ्तार किया गया था. उन पर टैक्स चोरी का आरोप लगाया गया.

जुलाई 2022 में अदालत ने उन पर लगे आपराधिक टैक्स चोरी के आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन उन्हें कस्टडी से नहीं छोड़ा गया क्योंकि उन पर सीमा पार अवैध तस्करी का भी आरोप लगाया गया था.

साल 2020 में देश में चुनावों में धांधली को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि लुकाशेन्को को सत्ता में बनाए रखने के लिए चुनावों में धांधली की गई. इसके बाद बिआलियात्स्की को हिरासत में लिया गया.

साल 1996 में कुछ और लोगों के साथ मिलकर बिआलियात्स्की ने वियास्ना नाम के मानव अधिकार संगठन की स्थापना की. इस संगठन का मुख्यालय मिंस्क में है और बेलारूस के कई शहरों में इसकी शाखाएं हैं. इस संगठन का उद्देश्य देश में सिविल सोसाइटी का विकास, मानवाधिकार की स्थिति में सुधार लाना और बेलारूस ने जिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समझौतों पर सहमति जताई है, उनके पालन में मदद करना है.

बेलारूस को 'यूरोप की आख़िरी तानाशाह हुकूमत' कहा जाता है. राइट लाइवलीहुड के अनुसार, राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडजर लुकाशेंको के दौर में चुनावों में धांधली, विपक्ष की आवाज़ को दबाने और सिविल सोसायटी पर पाबंदियां लगाने जैसे आरोप लगाए गए. लुकाशेन्को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के क़रीबी माने जाते हैं.

उन्होंने 'लिटरेचर एंट नेशन' और 'जॉगिंग अलॉन्ग लेक जेनेवा शोर' जैसी किताबें लिखी हैं.

एलेस बिआलियात्स्की को इससे पहले दो बार, 2006 और 2007 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था.

मेमोरियल रूस के सबसे पुराने नागरिक अधिकार से जुड़े संगठनों में से एक है. इसके बंद होने के एक साल बाद इसे नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया है.

जब दिसंबर 2021 में इसे बंद किया गया तो इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई.

स्तालिन की सत्ता के दौर में हुए अपराधों और गुलाग के श्रमिक कैंपों में हुई लोगों की मौतों के बारे में जिन संगठनों ने रिपोर्टें लिखीं उनमें से मेमोरियल एक था. हालांकि अधिकारियों का आरोप था कि संगठन ने सरकारी आदेशों की अवमानना की है.

अधिकारियों का कहना था कि संगठन ने सोशल मीडिया पर किए कुछ पोस्ट में "विदेशी एजेंट" डिस्क्लेमर नहीं लगाया, जो उसके लिए क़ानूनी बाध्यता थी.

ये संगठन क़रीब तीन दशकों तक सोवियत दौर के राजनीतिक दमन के दौरान पीड़ितों की कहानियां सामने लाता रहा था. अधिकारियों ने इसे साल 2006 में और 2014 में चेतावनी भी दी थी और इसे "विदेशी एजेंटों" की उस सूची में शामिल किया जिन पर विदेश से पैसा लेने के आरोप थे.

साल 1987 में जिस वक्त मिखाइल गोर्बाचोफ़ की पेरेस्त्रोइका देश में बड़े पैमेना पर सुधार कार्यक्रमों को लागू कर रही थी उस वक्त आंद्रे सख़ारोफ़ नाम के एक वैज्ञानिक ने मेमोरियल की स्थापना की.

उनका और इस काम में उनके सहयोगियों का उद्देश्य 1929 से लेकर 1953 तक सोवियत संघ के नेता रहे जोसेफ़ स्टालिन के दौर में हुए दमन की सही तस्वीर सामने लाना था.

साल 1990 में मेमोरियल की एक टीम ने उस दौरान गुलाग में बनाए गए श्रमिक कैंपों का दौरा किया जहां हज़ारों लोगों से जबरन मज़दूरी कराई गई थी. वहां से वो उस घटना की याद दिलाने के लिए एक पत्थर (सोलोवेत्स्की स्टोन) लाए जिसे मॉस्को के लुब्यांका चौराहे में रखा गया. उनका कहना था कि ये पत्थर लोगों को रूस के दर्द भरे इतिहास की याद दिलाएगा.

हाल के महीनों में ये संगठन रूस में मानवाधिकारों के हनन के मामलों की जांच करने के काम में लगा था. इसके लिए 1991 में संगठन ने अलग से सेंटर फ़ॉर ह्यूमन राइट्स नाम की एक संस्था की स्थापना की. ये संस्था देश में राजनीतिक बंदियों और उनके परिवारों को क़ानूनी मदद देने का काम करने लगी थी.

यूक्रेन का मानवाधिकार संगठन 'सेंटर फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़'
संगठन सेंटर फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ 30 मई 2007 में अस्तित्व में आया. सोवियत रूस से अलग हुए नौ देशों के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मिलकर ये संगठन बनाया था. इस संगठन का मुख्यालय कीएव में है.

ये संगठन यूक्रेन और यूरेशिया में मानवाधिकारों की रक्षा, गणतंत्र और भाईचारा बढ़ाने का काम करता है.

संगठन की प्रमुख अलेक्सेन्ड्रा मात्विएचुक ने एक फ़ेसबुक पोस्ट कर कहा कि हमारे इलाके़ से मानवाधिकारों के हक़ में आवाज़ उठाने वालों की बात नहीं सुनी गई.

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर की बार-बार अवमानना करने के लिए रूस को सुरक्षा परिषद से बाहर कर देना चाहिए. साथ ही संयुक्त राष्ट्र और दूसरे मुल्कों को युद्ध अपराधों के पीड़ितों को न्याय देने की ज़रूरत है.

ये संगठन डोनबास और क्राइमिया में राजनातिक दमन के मामलों की पड़ताल करता रहा है. क्राइमिया यूक्रेन का हिस्सा हुआ करता था, इस पर रूस ने कब्ज़ा कर लिया था.

इस संगठन ने हाल के महीनों में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूसी युद्धापराधों का दस्तावेज़ीकरण शुरू किया था. (bbc.com/hindi)

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