संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कहीं और की कामयाबी पर अपना हक जताते हिन्दुस्तानियों का हाल
26-Oct-2022 3:05 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  कहीं और की कामयाबी पर अपना हक जताते हिन्दुस्तानियों का हाल

एक भारतवंशी कहे जा रहे ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने से ब्रिटेन में एक नया इतिहास बना है कि दक्षिण एशियाई मूल का कोई व्यक्ति वहां पीएम बना है, और वह भी एक ऐसी पार्टी से जो कि गोरों के दबदबे वाली कंजरवेटिव पार्टी है। ऋषि सुनक के दादा-दादी आज के पाकिस्तान के गुजरांवाला से अफ्रीका गए थे, और वहां ऋषि सुनक के माता-पिता पैदा हुए थे। फिर वे ब्रिटेन गए और वहां पर उनके बच्चे हुए जिनमें से एक ऋषि सुनक भी थे। इस तरह इस परिवार का दो पीढ़ी पहले का आज के पाकिस्तान के पंजाब से उस वक्त रिश्ता था। उनका भारत से और दो किस्म का रिश्ता है, एक तो यह कि वे धर्म को मानने वाले हिन्दू हैं, और सांसद की शपथ उन्होंने गीता पर हाथ रखकर ली थी। दूसरी बात यह कि उनकी पत्नी भारत के एक सबसे बड़े कारोबारी, नारायणमूर्ति की बेटी हैं, और उनकी कंपनी इन्फोसिस की एक शेयरहोल्डर होने के नाते ब्रिटेन की सबसे संपन्न महिलाओं में से हैं। यह भी कहा जाता है कि वे ब्रिटेन की महारानी से भी अधिक दौलतमंद हैं। इन तमाम वजहों से ऋषि सुनक को भारतवंशी मानकर भारत में बड़ी खुशियां मनाई जा रही हैं। कई लोग तो यह मानकर चल रहे हैं कि वे हिन्दुस्तान के साथ अपनी वफादारी दिखाएंगे, और भारत से वहां गया कोहिनूर वापिस दिलवाएंगे।

हिन्दुस्तानी भी गजब के रहते हैं। दुनिया में जहां कहीं कामयाबी दिखे वहां वे भारत से उसका रिश्ता तेजी से जोड़ लेते हैं। कमला हैरिस अमरीकी उपराष्ट्रपति बनीं, तो भारत में ऐसी खुशियां मनाई गईं कि अब अमरीका पर भारत का ही राज होगा, भारतीयों की खूब चलेगी। आज हालत यह है कि हिन्दुस्तान में अगर कोई अमरीकी वीजा के लिए अर्जी लगाए, तो सारे कागजात देने के साढ़े सात सौ दिन बाद इंटरव्यू की तारीख मिल रही है, वीजा मिले न मिले यह तो बाद की बात है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सार्वजनिक रूप से अधिक घरोबा दिखने की वजह से हिन्दुस्तान के उनके समर्थक अमरीकी राष्ट्रपति रहे डोनल्ड ट्रंप के नाम पर बावले हो गए थे, और जब ट्रंप ने चुनाव लड़ा, तो हिन्दुस्तान में जगह-जगह उनकी जीत के लिए हवन करवाए जा रहे थे। यह एक अलग बात है कि वही ट्रंप अमरीका में प्रवासियों के सबसे अधिक खिलाफ थे, जिनमें हिन्दुस्तानी भी शामिल थे। उनसे हिन्दुस्तान का एक धेला भला नहीं हुआ, लेकिन लोगों को वे अपने फूफा लग रहे थे। अब ऋषि सुनक के डीएनए के अलावा उनका हिन्दुस्तान, और तकनीकी रूप से आज के पाकिस्तान से और कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन लोग ऐसे मजे से खुशियां मना रहे हैं कि अब लंदन जाने पर प्रधानमंत्री निवास में ही ठहरना होगा। सच तो यह है कि उन्होंने आते ही भारतीय मूल की एक सांसद सुएला ब्रेवरमैन को गृहसचिव (मंत्री) बनाया है जिन्होंने हफ्ते भर पहले ही पिछले मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था। उन्होंने भारत से ब्रिटेन पहुंचने वाले लोगों के खिलाफ टिप्पणी की थी। वे भारत के गोवा में पैदा हुई थीं, और अपनी इस टिप्पणी के लिए ये विवाद से घिरी थीं।

जिन लोगों ने दुनिया को नहीं देखा है, लोकतंत्र को नहीं देखा है, विकसित और सभ्य समाजों को नहीं देखा है, उनके लिए हिन्दी फिल्मों के डायलॉग की तरह खून का रिश्ता सबसे मजबूत होता है। हिन्दुस्तानी (या पाकिस्तानी) डीएनए आज अगर अमरीकी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा है, तो उसमें डीएनए से परे इन देशों का क्या योगदान है, इस पर कोई चर्चा करना नहीं चाहते। हिन्दुस्तान में काम की बेहतर संभावनाएं न रहने पर ऋषि सुनक के दादा-दादी पूर्वी अफ्रीका गए थे, कमला हैरिस की मां अमरीका गई थीं, और गूगल के आज के मुखिया सुन्दर पिचाई बेहतर भविष्य के लिए अमरीका गए थे। ऐसे में उनके जन्म के देश के यह भी समझना चाहिए कि इस देश की वजह से ये लोग आगे बढ़े, या इस देश के बावजूद वे बाहर जाकर इतना आगे बढ़ पाए। आज जब ऋषि सुनक की खुशियों से हिन्दुस्तान का एक तबका लबलबा रहा है, तब एक दूसरी खबर यह है कि सुन्दर पिचाई की अगुवाई वाली कंपनी गूगल पर भारत में प्रतिस्पर्धा आयोग ने 936 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया है क्योंकि यह कंपनी गूगल प्ले स्टोर बाजार में अपने दबदबे का गलत तरीके से फायदा उठा रही थी। अब भारतीय बाजार में अगर गूगल का कामकाज इतने बड़े जुर्माने के लायक समझा गया है, तो यह भारत के साथ सुन्दर पिचाई की किसी खास रियायत का सुबूत नहीं है। जो लोग इस दुनिया के बीच एक कुएं में जीते हैं, वे यह नहीं समझ पाते कि अपने जन्म के देश के साथ वफादारी निभाते हुए लोग उन देशों के साथ गद्दारी या धोखेबाजी नहीं कर सकते, जहां वे पले-बढ़े हैं, या पढ़े हैं, और काम कर रहे हैं। वे जहां के नागरिक हैं, उनकी पहली जिम्मेदारी वहां के लिए है, और हिन्दुस्तान के लिए उनकी कोई वफादारी नहीं बनती है। हिन्दुस्तान के कुछ चैनल अपनी आदत और नीयत के मुताबिक यह साम्प्रदायिकता भडक़ाने में लग गए हैं कि ऋषि सुनक के दादा-दादी गुजरांवाला से पूर्वी अफ्रीका इसलिए गए थे कि वे वहां पर हिन्दू-मुस्लिम तनातनी से डरे हुए थे। मतलब यह कि ऋषि सुनक को अपना साबित करने के लिए उसे भारतवंशी बताना भी जरूरी है, लेकिन साथ-साथ आज के पंजाब में मौजूद गुजरांवाला को बदनाम करने के लिए उसे हिन्दू-मुस्लिम तनाव वाला बताना भी जरूरी है। ऐसी नीयत के साथ जो लोग गौरव पर कब्जा करना चाहते हैं, वे खुद भी आगे नहीं बढ़ सकते, क्योंकि वे झूठे गौरव के साथ खुश रहना सीख चुके रहते हैं।

हिन्दुस्तान के भीतर काबिल लोगों को अच्छे कॉलेजों में दाखिले से रोकना, नौकरियों से रोकना, उनके कारोबार में तरह-तरह से अड़ंगे लगाना, ऐसी हरकतों वाला देश दुनिया में कहीं कामयाबी पर दावा करते हुए अपने आपको हॅंसी का हकदार बना देता है। हिन्दुस्तानी इसमें बहुत माहिर हैं। वे कोहिनूर का रास्ता देख रहे थे, और उन्हें भारतविरोधी बयान देने वाली मंत्री बनाने वाली ऋषि सुनक की खबर मिली है। लोगों को गर्व और गौरव के लिए अपनी ठोस कामयाबी और उपलब्धि तलाशनी चाहिए, कहीं और की कामयाबी जो किन्हीं और वजहों से हुई है, उन पर दावा जताना खोखले लोगों का काम होता है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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