संपादकीय

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अपने प्रदेश गुजरात में एक सैलानी-पुल के गिरने से 141 मौतें हो चुकी हैं, और नदी के पानी में बाकी लोगों की तलाश की जा रही है। कल ही मोदी गुजरात के कुछ और कार्यक्रमों में शामिल हुए थे, और वहां से उन्होंने इस हादसे पर अफसोस भी जाहिर किया था। लेकिन उस कार्यक्रम में भी मोदी जिस तरह से हैट लगाकर तस्वीरें खिंचवा रहे थे उस पर लोग नाराज और निराश दोनों थे। अब हादसे वाले मोरबी शहर के अस्पताल की तस्वीरें आई हैं जहां भर्ती लोगों को देखने के लिए मोदी आज पहुंच रहे हैं, और इसके पहले अस्पताल को दर्शनीय बनाने के लिए गुजरात सरकार रात भर रंग-पेंट करने, नए टाईल्स लगाने में लगी हुई है। सरकार की क्षमता अपार होती है, इमारत को बाहर-भीतर रंगा जा रहा है, और छत के नीचे भी उखड़े पेंट को हटाकर दुबारा पुट्टी-पेंट होते तस्वीरों में दिख रहा है। कांग्रेस ने ऐसी तस्वीरें ट्वीट करते हुए इसे त्रासदी का इवेंट लिखा है, और कहा है कि पीएम मोदी की तस्वीर में कोई कमी न रहे, इसका सारा प्रबंध हो रहा है। उसने लिखा- इन्हें शर्म नहीं आती, इतने लोग मर गए, और ये इवेंटबाजी में लगे हैं। लेकिन कांग्रेस से बढक़र दिल्ली के आम आदमी पार्टी के एक विधायक ने लिखा है- किसी के घर मौत हो जाए तो क्या रंगाई-पुताई करवाई जाती है? अस्पताल के अंदर 134 लाशें पड़ी हैं, और अस्पताल की रंगाई-पुताई चल रही है। एक और ने यह लिखा है कि भाजपा ने अगर 27 बरस में काम किया होता तो आधी रात को अस्पताल चमकाने की जरूरत नहीं पड़ती।
अब यह नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का अपना गुजरात है, यहां पर इन दोनों का लंबा राज रहा है, और इनके दिल्ली आने के बाद भी वहां लगातार इनकी पार्टी का ही राज चला है। यह एक बहुत संपन्न प्रदेश है, कारोबार और कारखानों के मामलों में गुजरात देश के अव्वल राज्यों में है, जाहिर है कि सरकार और म्युनिसिपलों की टैक्स से कमाई भी खासी होती होगी, और ऐसे में अस्पतालों पर खर्च का भी बजट रहता ही होगा। लेकिन ऐसे मौके पर जब प्रधानमंत्री वहां रखी सवा सौ से अधिक लाशों के बीच इलाज पा रहे जख्मी लोगों को देखने जा रहे हैं, तो उस वक्त अस्पताल की साज-सज्जा, उसका रंग-रोगन, रात भर जागकर टाईल्स बदलना, यह सब कुछ संवेदना से परे का काम लगता है। ऐसे हादसे के वक्त जब अस्पताल की सारी प्राथमिकता लाशों को पोस्टमार्टम के बाद परिवारों को देना और घायलों का इलाज करना होना चाहिए, उस वक्त अस्पताल प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए सजाया जा रहा है। शायद इसीलिए दुनिया के सभी सभ्य लोकतंत्रों में हादसे के तुरंत बाद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे लोग कुछ दिन वहां जाने से बचते हैं ताकि बचाव दल, अस्पताल, और स्थानीय अधिकारियों का ध्यान न बंटे। अमरीका में एक बड़े तूफान से हुई तबाही को देखने एक राष्ट्रपति जब कुछ दिन नहीं गए, और लोगों ने उनकी आलोचना शुरू की, तो उन्होंने साफ किया कि वे वहां पहुंचकर बचाव में लगे लोगों का ध्यान बंटाना नहीं चाहते। यह बात बिल्कुल सही है, और हम हमेशा से यह लिखते आए हैं कि अस्पतालों में नेताओं का जाकर मरीजों और घायलों से मिलना पूरी तरह बंद होना चाहिए क्योंकि इससे मरीजों पर तरह-तरह के संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। अस्पताल में भर्ती किसी भी जख्मी या मरीज को किसी नेता से कुछ हासिल नहीं हो सकता, सिवाय किसी संक्रमण के। इसलिए बेहतर तो यह होता कि प्रधानमंत्री बिना अस्पताल गए दूर से ही हमदर्दी जाहिर कर देते, बजाय रात भर अस्पतालों की साज-सज्जा के। जिनके परिवारों की लाशें भीतर पड़ी हैं, जख्मी दम तोड़ रहे हैं, उन्हें इस साज-सज्जा से क्या लग रहा होगा यह सोचना बहुत मुश्किल भी नहीं है।
हिन्दुस्तान का लोकतंत्र बस कहने के लिए लोकतंत्र है, इसमें सामंती मिजाज अब तक सदियों पहले का ही चले आ रहा है। किसी राजधानी में विधानसभा का सत्र शुरू होने के पहले विधानसभा की तरफ जाने वाली सडक़ों को फिर से बनाया जाता है, मानो नई चिकनी सडक़ पर जाकर विधायक वहां असुविधा के सवाल नहीं पूछेंगे। किसी भी शहर में प्रधानमंत्री के पहुंचने पर फुटपाथों तक को दुबारा पेंट किया जाता है। पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के रहते हुए एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉन मेजर कोलकाता पहुंचे थे, और प्रदेश की राजधानी को खूबसूरत दिखाने के लिए तमाम सडक़ों के गड्ढे भरे गए थे, फुटपाथों को अवैध कब्जों से खाली कराया गया था, सडक़ किनारे रंग-रोगन किया गया था, लेकिन इससे भी बढक़र, कोलकाता के सारे बेघर लोगों और भिखारियों को शहर के बाहर ले जाकर फेंक दिया गया था। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ बरस पहले ही जब अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप हिन्दुस्तान आए थे तो मोदी उन्हें अपने प्रदेश की राजधानी अहमदाबाद ले गए थे। वहां सडक़ किनारे की झोपड़पट्टियों को रातों-रात उजाडऩा मुमकिन नहीं था, इसलिए सडक़ किनारे पक्की और ऊंची दीवार बनाई गई थी ताकि झोपडिय़ां ट्रंप के काफिले से न दिखें। लेकिन विदेशी मेहमानों के लिए किसी समारोह के मौके पर स्वागत करने के लिए कुछ साज-सज्जा तो समझ आती है, लेकिन जिस गुजरात में नरेन्द्र मोदी पिछले बीस बरस से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की तरह राज कर रहे हैं, वहां पर लाशों के बीच रंगाई-पुताई न सिर्फ गैरजरूरी है, बल्कि नाजायज भी है। यह सिलसिला गुजरात में भी बुरा है, और देश में किसी भी दूसरे प्रदेश में भी बुरा है। ऐसी साज-सज्जा प्रधानमंत्री की तस्वीरों के लिए की जा रही है, या उनकी पार्टी की राज्य सरकार उनके सामने अपनी तस्वीर सुधारना चाह रही है, यह तो इन दोनों के बीच की बात है, लेकिन जो बात सबके सामने है, वह यह है कि यह पूरी हरकत बहुत ही संवेदनाशून्य है, और प्रचलित शब्दों में कहा जाए तो अमानवीय है, हालांकि ऐसी सोच और भावना मानव-स्वभाव का एक हिस्सा ही है, और हम अपनी जुबान में इंसानों की की गई किसी भी बात को अमानवीय नहीं मानते।
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, या किसी विदेशी मेहमान के लिए साज-सज्जा पर ऐसा अंधाधुंध खर्च जनता के पैसों का बेरहम इस्तेमाल है। यह सिलसिला पूरी तरह खत्म होना चाहिए, और जहां कहीं भी ऐसा हो, उसका जमकर विरोध होना चाहिए।