विचार / लेख

गांधी के जन्म स्थान पोरबंदर के लोग पीएम मोदी के बारे में क्या सोचते हैं?
11-Nov-2022 4:04 PM
गांधी के जन्म स्थान पोरबंदर के लोग पीएम मोदी के बारे में क्या सोचते हैं?

-रजनीश कुमार

34 साल के जयेश का होम टाउन पोरबंदर है। वह अहमदाबाद में रहते हैं। उनकी शिकायत है कि पोरबंदर अब भी विकास से कोसों दूर है। जयेश सुबह-सुबह अपने दोस्त मनोज के साथ समंदर में नहाने आए हैं। उनसे पूछा कि पिछले 27 सालों से बीजेपी यहाँ चुनाव जीत रही है, यह पोरबंदर के लिए कैसा रहा?

जयेश कहते हैं, ‘मेरे परिवार में आधे से ज़्यादा लोग ब्रिटेन में रहते हैं। मैं उनसे पूछता हूँ कि वे भारत कब आएँगे? उनका जवाब होता है कि हम वहाँ आकर क्या करेंगे? दस साल पहले सडक़ों पर जो गड्ढे थे, अब भी नहीं भरे हैं। न तो वहाँ कुछ बदल रहा है और न ही विकास हो रहा है।’

वो कहते हैं, ‘वैसे मेरा वर्कटाउन अहमदाबाद है। मुझे जब छुट्टी मिलती है तो पोरबंदर आता हूँ। अहमदाबाद में मेट्रो आ गई है। लेकिन पोरबंदर गांधी जी की जन्मस्थली के बावजूद बहुत पिछड़ा हुआ है। नरेंद्र मोदी को पोरबंदर की तरफ भी देखना चाहिए, क्योंकि यहाँ के विधायक और सांसद भी बीजेपी के ही हैं। मोदी ने काम किया है लेकिन कुछ गिने-चुने शहरों में ही किया है। पोरबंदर में तो कुछ हुआ ही नहीं है।’
चालीस साल के धर्मेश पटेल शेयर ब्रोकर का काम करते हैं। उनका कहना है कि मोदी ने अहमदाबाद का कायाकल्प कर दिया है, लेकिन पोरबंदर में कुछ नहीं हुआ है। वह कहते हैं, ‘यहाँ जो भी इंडस्ट्री थी, वो बंद हो गई। इन्हें फिर से शुरू नहीं किया गया। पोरबंदर का कुछ भी नहीं हुआ है।’

पोरबंदर पहली नजर में देखने पर भारत का बाकी के शहरों की तरह ही लगता है। यहाँ ज्यादातर पुरानी इमारते हैं। पुरानी इमारतों को देखते हुए बनारस की याद आती है।
‘पोरबंदर में विकास कम लेकिन
इसमें मोदी की गलती नहीं’
पैंतालीस साल के न_ा भाई स्विमिंग कोच हैं।

उनसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘यहाँ कांग्रेस लंबे समय तक रही। 1995 से यहाँ बीजेपी का राज है लेकिन पोरबंदर का कुछ नहीं किया। गांधी की जन्मस्थली है, यहाँ कुछ तो खास होना चाहिए था। इन्होंने समुद्र तट को ठीक कर दिया। रिवर फ्रंट बना दिया। घूमने के लिए तो ठीक है लेकिन रोजी-रोटी के लिए कुछ नहीं किया।
वो कहते हैं, ‘पहले यहाँ कितनी इंडस्ट्री थी लेकिन सब बंद हो गई। लोगों को रोजी-रोटी चाहिए लेकिन यहाँ काम के लिए कुछ नहीं है। मछुआरे भी तकलीफ में हैं।’

जिग्नेश पटेल पोरबंदर में पैथोलॉजी लैब चलाते हैं। वे अपनी पत्नी किंजल पटेल के साथ चौपाटी (समुद्र तट) पर आए हैं। उनसे पूछा कि वह पीएम मोदी के बारे में क्या सोचते हैं?
जिग्नेश पटेल ने कहा, ‘मैं सरदार पटेल और मोदी को आदर देता हूँ। सरदार पटेल ने रियासतों को एक किया। यह बड़ा काम था। मोदी के आने के बाद भी पूरे देश में काम हुआ है। यह केवल गुजरात की बात नहीं है। पोरबंदर में पैसा भेजा जाता है, लेकिन पैसे कहाँ चला जाता है, इसे देखना चाहिए।

वो कहते हैं, ‘पोरबंदर में विकास कम हुआ है, लेकिन इसमें मोदी की ग़लती नहीं है। मोदी ने पटेल की इतनी ऊंची मूर्ति बनाई है। इससे हमारा मान बढ़ा है।’
60 साल के अशोक सिंह ऑटो चलाते हैं। वे कहते हैं कि सरकार को पोरबंदर पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यहाँ रोजी-रोटी को लेकर बहुत कुछ करने की जरूरत है। अशोक सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी गांधी की विरासत को लेकर पोरबंदर में काम करें, ताकि बापू को समझने और पढऩे में मदद मिले।
पोरबंदर में बीजेपी और कांग्रेस

को ‘आप’ से चुनौती
पोरबंदर में 2012 से विधानसभा चुनाव बीजेपी के बाबूभाई भीमाभाई बोखरिया जीत रहे हैं।
वे कांग्रेस के अर्जुन मोढ़वाडिय़ा को पिछले दो विधानसभा से चुनाव हरा रहे हैं। दोनो मेर जाति के हैं। मेर ख़ुद को राजपूत बताते हैं। मेर जाति यहाँ ओबीसी में है। जातीय समीकरण के हिसाब से देखें तो यहाँ मेर जाति का वोट सबसे ज़्यादा है।

बाबूभाई बोखरिया कहते हैं कि यहाँ मेर जाति का वोट 74 हजार है। इसके बाद ब्राह्मणों का वोट 32 हजार और 26 वोट के साथ तीसरे नंबर पर मछुआरे हैं।
आम आदमी पार्टी ने मछुआरे जाति से ताल्लुक रखने वाले जीवन जंग को यहाँ से मैदान में उतारा है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों इस बात से चिंतित हैं कि कहीं आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के कारण उन्हें हार का सामना न करना पड़े।

क्यों रास आ रही है हिंदुत्व की विचारधारा?
यहाँ के आम लोगों में बीजेपी और पीएम मोदी को लेकर शिकायतें हैं, लेकिन फिर भी ये कहते हैं कि बीजेपी ही सत्ता में आएगी।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि गांधी की विचारधारा में पले-बढ़े लोगों को हिन्दुत्व की विचारधारा रास आने लगी?
कई लोगों का मानना है कि गुजरात में गांधी के बाद नॉलेज ट्रेडिशन पूरी तरह से ग़ायब है। जाने-माने समाज विज्ञानी अच्युग याग्निक इसे बौद्धिक गरीबी कहते हैं। वह पोरबंदर में बीजेपी की जीत को इसी बौद्धिक गरीबी से जोड़ते हैं।

वे कहते हैं- 1960 में गुजरात एक अलग राज्य बना था। इससे पहले बॉम्बे से शासित होता था। गुजरात के गठन से लेकर कांग्रेस पार्टी के आने तक आरएसएस कुछ नहीं कर पाया। गुजरात में कई दंगे हुए हैं। एक 1969 में हुआ। तब कांग्रेस की ही सरकार थी और हितेंद्र देसाई मुख्यमंत्री थे।

दूसरा दंगा 1985 में हुआ, तीसरा 1992 में हुआ और उसके बाद 2002 में हुआ। आरक्षण विरोधी आंदोलन भी हुए। एक 1981 में और दूसरा 1985 में।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव शाह मानते हैं कि इन दंगों और आरक्षण विरोधी आंदोलन से बीजेपी का परचम पूरे गुजरात में लहराया।
हालाँकि गुजरात में 2002 के दंगे का असर पोरबंदर में उस तरह से नहीं पड़ा था। 2002 में दंगों के कारण गुजरात विधानसभा चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण की बात कही जाती है लेकिन तब भी पोरबंदर से कांग्रेस के अर्जुन मोढ़वाडिय़ा ही जीते थे।

‘मोदी हिंदुत्व की राजनीति
की वजह से लोकप्रिय’
भानूभाई ओडादरा पोरबंदर जि़ला कोर्ट में वकील हैं।

वो कहते हैं, ‘मोदी हिन्दुत्व की राजनीति के कारण यहाँ लोकप्रिय हैं। यहाँ के ब्राह्मण और मछुआरे बीजेपी के साथ जाते हैं। मछुआरे गरीब हैं और उन्हें बीजेपी कहती है कि वोट नहीं दोगे तो पाकिस्तान वाले बोट जब्त कर लेंगे और कोई फिर छुड़ा नहीं पाएगा।’
वो कहते हैं, ‘पाकिस्तान से बचना है तो बीजेपी को जिताओ। मछुआरों को यह बात अपील करती है। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने मछुआरे को ही टिकट दिया है इसलिए बीजेपी को नुक़सान हो सकता है।’
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से चुनावी राजनीति में बीजेपी को वहाँ भी जीत मिली, जहाँ अतिवादी वामपंथियों का केंद्र रहा या फिर गांधीवादियों का। वो चाहे पश्चिम बंगाल का माटीगरा-नक्सलबाड़ी इलाक़ा हो या गांधी की जन्मस्थली पोरबंदर। (www.bbc.com)

 

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