संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऑनलाईन जुर्म से बचाने में सरकारी रफ्तार बहुत धीमी
11-Nov-2022 4:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :   ऑनलाईन जुर्म से बचाने में सरकारी रफ्तार बहुत धीमी

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फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो तैर रहा है जिसमें गैरकानूनी पिस्तौल बेचने वाले लोग पिस्तौल दिखाकर उसकी खूबियां गिना रहे हैं, और ग्राहक ढूंढ रहे हैं। जाहिर है कि जब ऐसा वीडियो खबरों में आ रहा है तो वह सरकार की एजेंसियों की नजरों में तो आना ही चाहिए। सोशल मीडिया पर दूसरे कई किस्म की हिंसा की धमकियों को लेकर भी हम हर कुछ महीनों में यह मुद्दा उठाते हैं कि आईटी एक्ट के तहत किसी कार्रवाई के लिए जिन सुबूतों की जरूरत पड़ती है वे सुबूत ऐसे इंटरनेट और सोशल मीडिया जुर्म के मामलों में बड़ी आसानी से हासिल रहते हैं, और पुख्ता भी रहते हैं। लेकिन ऐसे मामलों में सजा की खबरें भूले-भटके ही कभी सामने आती हैं। ऐसा लगता है कि राज्यों की पुलिस और केन्द्रीय एजेंसियां जुर्म तो तेजी से दर्ज कर लेती हैं, लेकिन मुजरिमों को सजा दिलाने में उनकी यह तेजी गायब हो जाती है। 

और बात सिर्फ सोशल मीडिया पर धमकियों की नहीं है, इन दिनों ईमेल और मोबाइल फोन के एसएमएस पर तरह-तरह के झांसे रोज आते हैं। किसी में लॉटरी मिलने की खबर रहती है, तो किसी में मोटी तनख्वाह पर काम पर रखने के लिए छांटने की बात रहती है। इन पर तो संदेश भेजने वाले नंबर भी रहते हैं, लेकिन हिन्दुस्तानी पुलिस और जांच एजेंसियां इन नंबरों को भी नहीं रोक पातीं, और इनके पीछे के लोगों को पकड़ नहीं पातीं। कानून कड़ा है, लेकिन उस पर अमल ढीला है। नतीजा यह है कि इन दिनों खासा वक्त सोशल मीडिया या मोबाइल फोन पर गुजारने वाले लोग बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी और जालसाजी का शिकार हो रहे हैं, लेकिन न तो उनके नुकसान की भरपाई हो पाती है, और न ही मुजरिम पकड़े जाते हैं। इन दिनों छत्तीसगढ़ में ऑनलाईन सट्टेबाजी का एक एप्प खूब खबरों में है, लेकिन उसके लिए काम करने वाले छोटे-छोटे लोगों को तो पुलिस पकड़ रही है, लेकिन उसके पीछे के बड़े लोग शायद कुछ ताकतों की मेहरबानी से पकड़ से परे हैं। लोगों का अंदाज है कि ऐसी ऑनलाईन सट्टेबाजी के इस अकेले एप्लीकेशन में अब तक लोग हजारों करोड़ गंवा चुके हैं, और यह जारी ही है। 

ऑनलाईन जुर्म परंपरागत जुर्म से कई मायनों में अलग है। दुनिया में कहीं भी बैठे लोग किसी भी देश में जालसाजी और धोखाधड़ी कर सकते हैं, लोगों को ठग सकते हैं। और भारत जैसे देश में जहां पर सरकार लगातार लोगों के बैंक खाते, और दूसरे तमाम किस्म के लेन-देन को आधार कार्ड से जोड़ रही है, कई किस्म की मोबाइल बैंकिंग को बढ़़ावा दे रही है, उसके चलते टेक्नालॉजी और उपकरणों की कम समझ रखने वाले लोग भी इनके इस्तेमाल को मजबूर हो रहे हैं, और अपनी जानकारी ऑनलाईन आ जाने से वे तरह-तरह की धोखाधड़ी का शिकार हो रहे हैं। डिजिटल लेन-देन और कैशलेस खरीद-बिक्री के इतने सारे तरीके आज प्रचलन में आ गए हैं कि लोगों को अपने मोबाइल फोन के लिए उतनी हिफाजत जुटाना अभी नहीं आया है। जहां तक साइबर मुजरिमों का सवाल है, वे पुलिस और दूसरी एजेंसियों से कई कदम आगे चलते हैं, और जब तक लाठी-बंदूक वाली पुलिस उनका ऑनलाईन पीछा कर पाती है, तब तक वे कई बैंक खाते खाली करके आगे बढ़ चुके रहते हैं। 

हिन्दुस्तान में आज केन्द्र और राज्य की एजेंसियों को संगठित साइबर-जुर्म करने वाले लोगों की तुरंत शिनाख्त के तरीके सोचने और लागू करने होंगे। जब तक बड़ी संख्या में लोग लुट नहीं जाते, तब तक तो पुलिस तक बात भी नहीं पहुंच पाती है। ऐसी नौबत को बदलने के लिए केन्द्र सरकार को उसे मिले हुए निगरानी रखने के अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहिए, और ऐसे मोबाइल नंबर आसानी से पकड़े जा सकते हैं जो कि नौकरी या ईनाम, बैंक के खातों की जानकारी जैसे संदेश बड़े पैमाने पर लोगों को भेजते हैं। जब किसी नंबर से सैकड़ों-हजारों लोगों को एक सरीखे संदेश जाते हैं, तो उनकी पहचान करना अधिक मुश्किल नहीं होना चाहिए। इसके अलावा सरकारों को जनता से भी इसकी जल्द शिकायत पाने के तरीकों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि ऐसे संदेश पहुंचें, और कोई न कोई उसकी शिकायत पुलिस को करे। आज ऑनलाईन कारोबार और लेन-देन जितना बढ़ रहा है, उसमें अगर सावधानी नहीं बरती गई, तो लोगों का नुकसान बहुत बड़ा होगा, और पुलिस के हाथ भी शिकायतों से भर जाएंगे। इसलिए बचाव को ही असली हिफाजत मानकर उसके तरीकों को लागू करना चाहिए। 

दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर भी सरकारी एजेंसियों की नजर रहनी चाहिए ताकि वहां पर कोई कानून तोडऩे वाली बात पोस्ट करें, तो उन पर तुरंत कार्रवाई की जा सके, बजाय किसी शिकायत के आने का इंतजार करने के। इनमें से कोई भी बात ऐसी नहीं है जो सरकारों की सामान्य समझबूझ में न आए, लेकिन आज सरकारों तक शिकायत पहुंचने के पहले कोई कार्रवाई शुरू होते नहीं दिखती है। ऑनलाईन सट्टेबाजी के जिस एप्लीकेशन से जुड़े हुए छोटे-छोटे महत्वहीन मुजरिमों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार करना जब शुरू हो चुका था, उसके बाद भी इस सट्टेबाजी के इश्तहार कम से कम एक बड़े अखबार में छपना जारी था, जबकि केन्द्र सरकार ने इसके कुछ दिन पहले ही ऐसे इश्तहारों के खिलाफ चेतावनी जारी की थी। ऐसे इश्तहारों में टेलीफोन नंबर या एप्लीकेशन डाउनलोड करने की जानकारी, और उन पर सट्टे का दांव लगाने के लिए बैंक खातों की जानकारी रहती है, लेकिन भारत सरकार इस पर कोई कार्रवाई करती नहीं दिख रही है। 

किसी भी किस्म के जुर्म के लिए कानून को बहुत कड़ा बना देने से जुर्म में कमी नहीं आ सकती, यह तो कम कड़े कानून पर भी अधिक मजबूत अमल से आ सकती थी, जो कि नहीं आई, क्योंकि पिछले कानूनों का ही ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया। केन्द्र और राज्य सरकारों को मिलकर और अलग-अलग भी तुरंत ही ऑनलाईन जुर्म के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, नहीं तो टेक्नालॉजी की सबसे कम समझ रखने वाले लोग सबसे बुरी तरह लुटते चले जाएंगे।

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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