विचार / लेख

झारखंड असेंबली में पारित प्रस्ताव पर कुछ विचार..
15-Nov-2022 5:18 PM
झारखंड असेंबली में पारित प्रस्ताव पर कुछ विचार..

-राजेश अग्रवाल
आरक्षण पर झारखंड में आज बिल पास हो गया। कुल मिलाकर 77त्न लोगों को उनकी जाति के हिसाब से सरकारी नौकरियां मिलेंगी। छत्तीसगढ़ में 1 और 2 दिसंबर को इसी विषय पर एक विधानसभा सत्र होने वाला है। छत्तीसगढ़ में भी यह पास हो जाने वाला है, क्योंकि यह सभी दलों की चिंता है। सभी दलों को लगता है कि हम ही उनके हितेषी हैं, जिनकी संख्या ज्यादा है।

आरक्षण की मौजूदा पद्धति से सहमत होना मुश्किल है। ऐसी व्यवस्था बराबरी पर हम सबको कभी नहीं ला पाएगी, 200 साल दे दो तब भी। 

मेरे अनेक मित्र हैं जिन्होंने इसी आरक्षण का फायदा लेते हुए अपने परिवार को छोडक़र ज्यादा कुछ नहीं सोचा है। कई ऐसे मित्र भी हैं जिन्होंने नौकरी नहीं की और व्यवसाय में मिली छूट का फायदा लिया। आज वे बहुत बेहतर जगह पर हैं और बहुत संपत्ति उनके पास है। प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति होती है। ऐसे मित्रों को सलाम करता हूं, क्योंकि उन्होंने अपने लिए मिली विशेष सुविधा का लाभ तो लिया, साथ में अपनी मेहनत भी लगा दी।

यदि हम किसी भी प्रावधान, कानून या निर्णय की समय-समय पर समीक्षा नहीं करते हैं तो यह अच्छी बात नहीं है, कूप मंडूक कहे जाएंगे। अब तक समझ में नहीं आया कि जिन लोगों को आरक्षण का लाभ लिया, उन्होंनेखुद अपने समाज का कितना भला किया? बहुत खराब अनुभव सामने आएंगे। अफसर बनने के बाद उन्होंने खुद अपनी ही बिरादरी के लोगों से मिलना-जुलना और उनका आदर करना बंद कर दिया। कई उदाहरण मेरे सामने हैं। 

विनम्रता से कहूं तो इस बारे में मुझसे कोई सवाल मत करें। आधी रात को भी मैं आरक्षित कहे जाने वाले वर्ग के अपने प्राइमरी स्कूल वाले मित्रों को घर में दरवाजा खोल कर बैठाता, सुलाता, खिलाता हूं। इन्होंने इतना ही किया कि अपने बेटी-बेटे की नौकरियां लगा दी। और इन बेटे-बेटियों को भी अपने ही बच्चों के लिए लाभ पाने का रास्ता पता है। 

कुछ साल पहले की बात है। रिजर्व कोटे से नियुक्त एक बड़े शिक्षा अधिकारी का बड़ा भाई घोड़े की नाल ठोक कर दयनीय स्थिति में अपना गुजारा कर रहा था। अगर शिक्षा अधिकारी अपनी सैलरी से 10 फीसदी भी दे देता तो उसकी हालत अच्छी हो सकती थी। उसे अपनी बेटी की शादी करनी थी। मैंने कहा उसकी मदद करो। उसने बताया, मेरा कई साल से संपर्क नहीं है। उसने मेरी पढ़ाई में जो मदद की थी, उसका कई  गुना में लोटा चुका हूं।

मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के समर्थकों की ओर से एक और विचार चलता है कि यह सिर्फ सरकारी नौकरी और आमदनी का मसला नहीं, समाज में बराबर सम्मान हासिल करने का है। यह बात भी गलत है। मैंने दर्जनों बार देखा है कि आर्थिक रूप से सक्षम लोगों की शादी ब्याह वाली पार्टियों में बहुत भीड़ पहुंची है और कई बच्चों युवाओं ने तो आयोजक के पैर भी हुए हैं। इस बात की परवाह किए बगैर कि हम श्रेष्ठ वर्ण से आते हैं।

सामान्य वर्ग का वह युवा जो जानता ही नहीं है कि आपके साथ उसके पूर्वजों ने क्या अत्याचार किए, उनके मन में रोष है। वह आरक्षण से पद हासिल करने वालों के बारे में कैसे सद्भाव रख सकता है? 

आज जब छत्तीसगढ़ और झारखंड में विभिन्न पिछड़े समुदायों को अधिक आरक्षण देने की मांग पर सरकारें परेशान हैं तब उन्हें डेटा एकत्र करके कोर्ट में प्रस्तुत करना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी 10 फीसदी आरक्षण को जायज बताते हुए कहा है कि आरक्षण की मौजूदा पद्धति सही नहीं है, खत्म करना चाहिए। 

संविधान मे प्रावधान करने के दौरान हमारे पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं था कि कितने प्रतिशत लोगों के साथ कितने लोगों ने अत्याचार किया और कितने प्रतिशत लोगों को इस आधार पर आरक्षण देना चाहिए।

आज भी कुछ उदाहरण जरूर आते हैं, जब पिछड़ों और दलितों को अपमानित किया जाता है। इसे देश भर की मानसिकता के रूप में प्रस्तुत करना एक राजनीतिक गतिविधि हैं। 

नई पीढ़ी के कॉलेज गोइंग बच्चों से पूछें। उन्हें पता ही नहीं है कि वह सवर्ण है या नहीं, बगल में बैठे बच्चे के बारे में समझाना पड़ेगा कि वह दलित है, तुम ज्यादा मेहनत करोगे तब भी उसे आगे ज्यादा मौका मिलने वाला हैं। उनको बस पढ़ाई लिखाई के बाद एक अच्छे ब्रेक की जरूरत है। जो अच्छे कॉलेज मैं नहीं पढ़ पाते हैं उनको भी रोजी-रोटी की चिंता है। इस दौर में असल सवाल आर्थिकी का है। आज सामान्य वर्ग के युवाओं को जब विफलता मिलती है तब पता चलता है कि कोई एक आरक्षण व्यवस्था की गई है जिसके चलते उसे मौका नहीं मिल रहा है। वंचित वर्ग को मौका देने की कोई दूसरी व्यवस्था बनानी चाहिए। मौजूदा स्वार्थपूर्ण राजनीति के लिए देश की छवि दुनिया में खराब हो रही है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news