संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दुनिया भर में होती छंटनी से यहां भी सीखने की जरूरत
16-Nov-2022 2:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  दुनिया भर में होती छंटनी से  यहां भी सीखने की जरूरत

अपने नए मालिक के मातहत ट्विटर ने हजारों लोगों को नौकरी से निकाल दिया है, और उसके बाद फेसबुक उसी रास्ते पर चला है, और उसने करीब 13 फीसदी कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की घोषणा की, और कंपनी के मुखिया मार्क जकरबर्ग ने कहा कि यह उनकी कंपनी के इतिहास का सबसे मुश्किल फैसला था। अगली खबर ऑनलाईन बिक्री के प्लेटफॉर्म अमेजॉन से आई है जहां दस हजार लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है।  कम्प्यूटर और इंटरनेट पर आधारित कारोबार वाली इन कंपनियों में नौकरियां एकदम से घटाने की कोई एक किस्म की वजह हो सकती है, लेकिन इससे परे भी दुनिया का हाल बहुत डांवाडोल है। और इसकी वजहें सिर्फ कारोबार और ग्राहक पर टिकी हुई नहीं हैं, कहीं पर चल रही जंग पर भी टिकी हैं, तो कहीं पर जंग के आसार से भी कारोबार खतरे में हैं। फिर पिछले दो-चार बरसों में ही मौसम में बदलाव की वजह से जो एक्स्ट्रीम वैदर का प्रलय आया है, वह भी अर्थव्यवस्था को दहलाने वाला है। अफ्रीका के कई हिस्से अभूतपूर्व अकाल का शिकार हैं, और वे भुखमरी देख रहे हैं, दसियों लाख लोगों का पलायन देख रहे हैं। और कल ही दुनिया की आबादी 8 अरब होने की जो खबर आई है वह बताती है कि अफ्रीका में ही आबादी सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रही है, क्योंकि वहीं पर बच्चों को लेकर लोगों को यह भरोसा नहीं रहता है कि उनमें से कितने बड़े हो सकेंगे, बालिग होने तक जिंदा रह सकेंगे, इसलिए वे अधिक बच्चे पैदा कर रहे हैं, और कोई गरीब देश दुनिया की अर्थव्यवस्था में कुछ जोड़ नहीं सकता, इसलिए किसी भी किस्म के कारोबार से अरबों गरीब ग्राहक पूरी तरह से बाहर ही हुए जा रहे हैं। जब ग्राहक ही कम रहेंगे, खरीदी ही कम रहेगी, तो यह जाहिर है कि कारोबार को छंटनी करनी पड़ेगी। 

हम दुनिया में छंटनी को लेकर भारत को उससे सीधे तो नहीं जोडऩा चाहते, लेकिन भारत के भीतर रोजगार बढऩा थमा हुआ है, और कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रोजगार घट रहे हैं क्योंकि सरकारी संस्थानों का, सरकारी सेवाओं का निजीकरण हो रहा है, और निजी क्षेत्र में उसी काम के लिए कम लोगों की जरूरत पड़ती है क्योंकि मैनेजमेंट बेरहमी से काम लेता है। फिर सरकारी नौकरियां घटकर जब वही काम निजी क्षेत्र में जाते हैं, तो उनमें आरक्षण की कोई गुंजाइश नहीं रहती, और यह कमजोर तबके के लिए एक और नुकसान की बात रहती है। भारत में अमीर और गरीब के बीच का फासला तेजी से बढ़ रहा है, और इनका औसत मिलाकर देश की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तो ठीक दिखती है, लेकिन अंबानी और अडानी खाएंगे तो खाएंगे कितना, पहनेंगे तो पहनेंगे कितना, नतीजा यह है कि ग्राहकी घट रही है, और कारोबार मुश्किल में हैं। ऑनलाईन बिक्री और शहरों के बड़े-बड़े सुपरबाजारों का फायदा शहर के छोटे दुकानदारों को तो होता नहीं है, और उनका कारोबार घटते जा रहे है। भारत की अर्थव्यवस्था देश के बाहर से भी प्रभावित होती है, और अगर दूसरे देशों में लाखों नौकरियां घट रही हैं, तो उनमें से जितने हिन्दुस्तानी काम खो रहे हैं, उनका भेजा पैसा भी अब घर आना बंद हो जाएगा, और भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था में उनका योगदान घटेगा। 

इस नौबत में आम लोगों को क्या करना चाहिए, इस पर बात करने के लिए आज हम इस मुद्दे को यहां छेड़ रहे हैं। जब भी कोई कंपनी छंटनी करती है, किसी को काम से निकालती है, तो बहुत सोच-समझकर सबसे कम काबिल, कम मेहनती, कम हुनरमंद लोगों को पहले निकालती है। कंपनियों को भी काम तो जारी रखना है, और कम संख्या में कर्मचारियों से काम करवाने के लिए उन्हें काबिल लोगों को छांट-छांटकर बचाए रखना पड़ता है। इसलिए छंटनी का सबसे बड़ा खतरा कम काबिल लोगों पर रहता है, कम मेहनती लोगों पर रहता है। आज जिन लोगों को नौकरी जाने की आशंका दिखती है, वे लोग अपने पर से खतरा कम कर सकते हैं, अपने आपको अधिक काबिल, अधिक मेहनती, और अधिक हुनरमंद बनाकर। जब अर्थव्यवस्था डांवाडोल होती है, तो छंटनी होती ही है, और लोगों को ऐसे दिन की सोचकर अपने आपको बेहतर बनाना जारी रखना चाहिए। 

दुनिया की अर्थव्यवस्था से परे यह भी समझने की जरूरत है कि आज सारे कारोबार अपने खर्चों में कटौती के लिए कम्प्यूटरों और मशीनों का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं, खर्च को घटाने की नई-नई तरकीबें ढूंढ रहे हैं। ऐसे में अपने आप ही बहुत से कामों के लिए इंसानों की जरूरत कम पड़ रही है। कहीं पर नए काम निकलना बंद हो रहे हैं, तो कहीं पर रिटायर हो रहे लोगों की जगह किसी की भर्ती नहीं हो रही है। ऐसी नौबत में निजी क्षेत्र में, या हिन्दुस्तान जैसे देश के सरकारी क्षेत्र में भी जब कभी कोई रोजगार निकलेगा, तो वह मुकाबले में सबसे काबिल के हाथ ही लगेगा। इसलिए अपने आपमें अच्छा होना काफी नहीं है, औरों के साथ मुकाबले में उनसे बेहतर होने की तैयारी करना भी जरूरी है। हिन्दुस्तान में आज लोग डिग्री लेकर बिना किसी हुनर और काबिलीयत के, बिना किसी तजुर्बे के नौकरी पाने के इंतजार में अर्जी देने की उम्र भी पार कर लेते हैं। इन सब लोगों को भी सिमटती हुई नौकरियों के खतरे समझना चाहिए, और अपने आपको बेहतर बनाना चाहिए। आने वाला वक्त उन देशों का रहेगा, उन नौजवानों या कामगारों का रहेगा जो कि अपने आपको आगे की जरूरत के किसी हुनर के लायक तैयार रखेंगे। कम होती नौकरियों ने बेहतर हुनर की जरूरत को पहले के मुकाबले और बढ़ा दिया है। आज हिन्दुस्तान के बहुत से राज्यों में लोग रोजगार के बाजार की जरूरत की जुबान, अंग्रेजी से नावाकिफ हैं, कम्प्यूटर के काम में दक्षता की जरूरत नहीं समझते हैं, अपने व्यक्तित्व के किसी तरह के विकास को जरूरी नहीं समझते हैं, और वे इसी देश के कुछ बेहतर प्रदेशों के बेहतर बेरोजगारों के मुकाबले बहुत पिछड़े हुए हैं। उनकी थोड़ी-बहुत गुंजाइश रिश्वत देकर या किसी और किसी किस्म की बेईमानी से अपने ही प्रदेशों के सरकारी ओहदों पर क्षेत्रीय आरक्षण की वजह से पहुंच जाने की रहती है, लेकिन ऐसी नौकरियां ही अपने आपमें घटती चल रही हैं, इन पर ज्यादा भरोसा करने वाले लोग बेरोजगार अधेड़ होकर रह जाएंगे। 

आज दुनिया में रोजगार की जो बदहाली हो रही है, उसे देखकर भी हिन्दुस्तानी नौजवानों को बेरोजगार होने के पहले से बेहतरी की तैयारी करनी चाहिए, और रोजगार पाने के बाद भी उसे बचाए रखने के लिए मेहनत करनी चाहिए। सरकारें बहुत से रोजगार का झांसा दे सकती हैं, लेकिन इन नौकरियों के लिए कतार में लगे हुए लोग हजारों गुना अधिक ही रहेंगे, और उनमें से अधिकतर लोग कभी इन नौकरियों को नहीं पा सकेंगे। इसलिए सरकारी नौकरी के बजाय लोगों को अपनी काबिलीयत पर अधिक भरोसा करना चाहिए क्योंकि निजीकरण के इस दौर में आगे चलकर अधिक से अधिक नौकरियां निजी क्षेत्र में ही रहेंगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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