विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
जिस देश में लोग पुण्यतिथि पर शुभेच्छा देने की चाह रखते हों, वहां प्रेस दिवस तो बड़ा उत्सव है। सीध्रे-आड़े, नाम से जुड़े पत्रकार भी इसे त्योहार की तरह मनाने लगे हैं। ऐसा ही उत्सव दिल्ली में हुआ जिसमें दो दशक पहले की राजनीति के दमदार सितारे योगानंद शास्त्री हाजिर थे। कभी दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष थे। मुख्यमंत्री बनने का सपना था। मंच पर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह को शास्त्रीजी बार-बार हरिवंश राय कह कर संबोधित कर रहे थे। धडक़ता दिल लिए आयोजक दुआ कर रहे थे कि वे बच्चन न जोड़ दें। शास्त्रीजी अपने युग को कैसे भूलते? उन्होंने हरिवंश राय बच्चन जी कह ही दिया। वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने दूसरे की बाइलाइन नहीं चुराई। यानी दूसरे के लेख पर अपना नाम चिपकाना पसंद नहीं किया। अमिताभ का पितृत्व कैसे स्वीकार करते? उन्होंने वक्ता की बात काट कर विनम्रता से कहा-मैं हरिवंश हूं। बच्चन नहीं। वक्त की मधुशाला का सुरूर गहरा होता है। शास्त्रीजी ने इस बात का सबूत तो दे ही डाला।
प्रत्येक नागरिक
राष्ट्रीय प्रेस दिवस के आयोजन में राष्ट्रपति को सुनने की तमन्ना रखने वाले निराश हुए। बताया जाता है कि वे अनुकूल थीं परंतु बहुत विलंब से सचिवालय ने सूचित किया कि उनका आना संभव नहीं है। राष्ट्रपति बात अलग है। भारतीय प्रेस परिषद में पांच सांसद सदस्य रहते हैं। तीन लोकसभा और दो राज्यसभा से। डेढ़ बरस से लोकसभा सदस्यों के नाम पर विचार जारी है। राज्यसभा से नामजद दो सदस्यों में से लगातार तीन बैठकों में गैरहाजिर रहने वाले की सदस्यता छिन गई। दूसरे दिल्ली के बाहर थे। सूचना-प्रसारण मंत्री के जल्दी जाने की सूचना से निराश पत्रकारों के प्रति अनुराग सिंह ठाकुर ने अनुराग दिखाया। पूरे समय रुके। बाइट और सेल्फी चाहकों की तमन्ना पूरी की। परिषद अध्यक्ष और सदस्यों के साथ अलग से बातचीत की। लोकसभा और राज्यसभा सदस्य के एक एक सदस्य उपस्थित रहे। अनुराग लोकसभा से। राज्यसभा से स्वपन दासगुप्ता? नहीं। उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। सूचना-प्रसारण राज्यमंत्री मुरुगन मध्यप्रदेश से राज्यसभा सदस्य हैं।
लेखन, मुद्रण, चित्र या...
विदेश जाने और विदेशी मेहमानों से मिलने की आतुरता का जिक्र होते ही अपने नरेन्दर भाई का नाम याद आता है। इस गलतफहमी को हाशिये पर रखें। प्रधानमंत्री ने इस सप्ताह दो धाकड़ मेहमानों से मुलाकात टाली। एसियान देशों के राष्ट्रप्रमुखों से मिलने प्रधानमंत्री को पड़ोसी पुरबिया देश की यात्रा पर जाना था। अपनी जगह उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को कम्बोडिया रवाना किया। प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान का भारत आना भी टला। बड़ी बात यह है कि सलमान सउदी अरब के भावी शासक हैं। विरोधी यही कहेंगे कि नूपुर की विवादास्पद कर्कश ध्वनि के कारण सलमान का दौरा टला। सउदी अरब का संविधान कुरान है। नूपुर की बड़बड़ का वहां कड़ा विरोध हुआ। सोच समझकर निशाना साधने वाले सलमान भारत और पाकिस्तान दोनों की यात्रा करना चाहते थे। प्रधानमंत्री ने तरीका निकाला। गुजरात में चुनाव प्रचार किया। राजकुमार से प्रधानमंत्री मुलाकात करेंगे। अमेरिका में नहीं। वैसे दोनों को वहां जाने की खास छूट मिली है। जी-20 के दौरान बाली में।
विचारों और विश्वासों को व्यक्त करने का अधिकार
मध्यप्रदेश और बरार के पहले राज्यपाल मंगल दास पकवासा की पोती सोनल ओडिशी और भरतनाट्यम की नामी नृत्यांगना हैं। सोनल मानसिंह की थिरकन से प्रभावित प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्यसभा के मंच पर बुला लिया। मूलत : राजस्थान के बैरागी परिवार में जन्मे ओडिशा के नौकरशाह अश्विनी वैष्णव पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पसंद थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उन्हें पसंद करते हैं। सोनल और अश्विनी दोनों की अपने अपने काम में महारत और शोहरत है। दोनों की मकबूलियत का अपने-पराए लोहा मानते हैं। राजनीतिक कलुष, कोहरे और कंपकंपी वाली दिल्ली में रेलमंत्री वैष्णव को सोनल मानसिंह ने खास किस्म के लड्डू खिलाए। अलग स्वाद की मिठास से संचार मंत्री थिरक उठे। सोनल मानसिंह ने चौंकाया-बाजरे के लड्डू हैं। शक्कर की जगह इनमें खांडसारी का प्रयोग किया गया है। वैष्णव की जगह लालू प्रसाद होते तो रेल यात्रियों के लिए लड्डू पहुंचाने का इंतजाम कर देते। वैसे उम्मीद कर सकते हैं। हरियाणा में लड्डू बनाने में मशगूल महाशय कभी रिलांयस में बड़े ओहदे पर थे।
संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ड्ड)- बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रत्येक नागरिक को भाषण द्वारा लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से किसी के प्रदान करती है। सभी शीर्षक अनुच्छेद-19 से लिए गए हैं। (लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)