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कोरापुट (ओडिशा), 24 नवंबर। ओडिशा में कोरापुट के घंट्रागुडा के गरीब आदिवासी लोगों ने भले ही 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी के बारे में नहीं सुना हो, लेकिन उनकी तरह सड़क संपर्क संबंधी अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए उन्होंने पहाड़ियों को काटकर अपने दम पर सड़क बनाने का काम शुरू किया है।
पुरुषों और महिलाओं समेत ग्रामीणों के एक समूह ने एक पहाड़ी को काट कर और झाड़ियों को साफ कर जिले में घंट्रागुडा को पुकी छाक से जोड़ने वाली छह किलोमीटर लंबी कच्ची सड़क का निर्माण किया है।
घंट्रागुडा दक्षिणी ओडिशा के कोरापुट शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित है और सड़क की कमी के कारण ग्रामीणों को यहां तक पहुंचने के लिए 52 किमी की यात्रा करनी पड़ती थी।
उन्हें विभिन्न कार्यों के लिए शहर के प्रमुख हिस्से तक पहुंचने के लिए पहाड़ी का पूरा चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ता था और अक्सर समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
लचना पुरसेठी नामक एक ग्रामीण ने कहा कि ग्रामीणों द्वारा बनाई गई सड़क से दूरी 20 किमी कम हो जाएगी। छोटी सड़क के लिए संबंधित अधिकारियों से किए गए अनुरोधों से मामले में मदद नहीं मिली।
लोचन बिसोई नामक एक ग्रामीण ने कहा, ‘‘ हमने कई बार सड़क के लिए अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए हमने खुद सड़क बनाने का फैसला किया। ’’
उन्होंने कहा कि कुदाल, दरांती, फावड़े जैसे कृषि उपकरणों से लैस होकर गरीब आदिवासी ग्रामीणों ने पहाड़ी को काटना शुरू किया।
बिसोई ने बताया, “सीधी सड़कों के अभाव में हमें कोरापुट शहर तक पहुँचने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से रात में और बरसात के मौसम में तो और भी समस्या हो जाती है। कोरापुट के अस्पताल में मरीजों को ले जाना एक दुःस्वप्न बन जाता है और केवल भगवान ही जानता है कि हम कैसे इंतजाम करते हैं ।’’
ग्रामीणों ने बताया कि प्रशासन द्वारा करीब 15 साल पहले पक्की सड़क का निर्माण कराया गया था, लेकिन देखरेख के अभाव में अब इसका कोई नामोनिशान नहीं है।
उन्होंने दावा किया कि उनके द्वारा बनाई गई सड़क के पूरा होने पर घंट्रागुडा के अलावा कम से कम नौ गांवों के लगभग 4000 निवासियों को मदद मिलेगी।
दसमंतपुर के खंड विकास अधिकारी डंबरुधर मलिक ने कहा, ‘‘ग्रामीण संपर्क कार्यक्रम में गांव को शामिल किया गया है और जल्द ही एक पक्की सड़क का निर्माण किया जाएगा।’’
दशरथ मांझी बिहार में गया के पास गहलौर गांव का एक खेतिहर मजदूर था। 1959 में एक पहाड़ से गिरने के बाद चोट लगने के कारण उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी ।सड़कों की कमी के कारण वह अपनी पत्नी को 90 किमी दूर कस्बे के अस्पताल में समय पर नहीं ले जा सका था। दुखी और निराश मांझी ने एक मजबूत इरादा किया। उसने बाद में केवल एक हथौड़े और छेनी की मदद से पहाड़ियों को काट कर रास्ता बनाना शुरू किया। 22 साल की मेहनत के बाद मांझी ने 110 मीटर लंबा (360 फुट), 9.1 मीटर (30 फुट) चौड़ा और 7.7 मीटर (25 फुट) गहरा रास्ता बना दिया।
उसकी मेहनत रंग लाई और दशरथ ने गया जिले के अतरी और वजीरगंज ब्लॉक के बीच यात्रा मार्ग को बहुत छोटा कर दिया। अब यह रास्ता 55 किमी से कम होकर मात्र 15 किमी कर रह गया। (भाषा)