राष्ट्रीय
असम और मेघालय के बीच मंगलवार को हुई ताजा हिंसा की प्रथम दृष्टया वजह भले लकड़ी के तस्करों के साथ कथित मुठभेड़ हो, इसकी जड़ें दोनों राज्यों के सीमा विवाद में छिपी हैं.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
कुछ महीने पहले ही असम व मेघालय ने 12 में से छह विवादित इलाकों को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षरकिए थे. तब उसके सीमा विवाद के समाधान का मॉडल बनने का दावा किया गया था. लेकिन अब मंगलवार को तड़के भड़की ताजा हिंसा ने छह लोगों की बलि ले ली है. हिंसा का सिलसिला बुधवार को भी जारी रहा. दोनों राज्यों के बीच वाहनों की फिलहाल आवाजाही ठप है. मेघालय में सात जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है. इस हिंसा के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर कब तक बेकसूर लोग सीमा विवाद की बलि चढ़ते रहेंगे और क्यों केंद्र व राज्य सरकार इस विवाद के शीघ्र समाधान की दिशा में ठोस कदम नहीं उठातीं.
असम का इलाके के कम से कम चार राज्यों - मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम के साथ सीमा विवाद चल रहा है. यह विवाद असम से काट कर इन चारों को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने के समय से ही है. इन तमाम विवादों में अक्सर हिंसा होती रही है. अभी बीते साल ही मिजोरम के साथ सीमा विवाद में असम पुलिस के छह जवानों की हत्या कर दी गई थी.
ताजा मामला
असम के वन विभाग के सुरक्षाकर्मियों ने मेघालय सीमा पर मंगलवार को कथित रूप से तस्करी की लकड़ी ले जाने वाले एक ट्रक को रोकने का प्रयास किया था और इसके लिए फायरिंग की थी. लेकिन उसके बाद सीमा पार से सैकड़ों लोगों ने उन सबको घेर लिया. बाद में असम पुलिस के जवानों के मौके पर पहुंचने के बाद वहां हुई हिंसक झड़प में एक सुरक्षाकर्मी समेत छह लोगों की मौत हो गई. इससे महीनों से दबा सीमा विवाद एक बार फिर उभर आया है. दरअसल, दोनों राज्य सरकारों ने छह विवादित इलाकों पर जो समझौता किया था वह स्थानीय लोगों को मंजूर नहीं था. कई विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी उस समझौते को खारिज करने की मांग उठाई थी. इस वजह से स्थानीय लोगों में असम के लोगों के प्रति भारी नाराजगी थी. ऐसा लगता है कि लकड़ी के तस्करों का मामला तो महज इस नाराजगी को चिंगारी देने की वजह बन गया.
इस घटना के बाद दोनों राज्यों में वाहनों की आवाजाही तत्काल रोक दी गई और मेघालय के सात जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया. इस घटना के बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से फोन पर बातचीत की. फिर भी तनाव बढ़ रहा है. बुधवार को मेघालय के लोगों ने असम वन विभाग के दफ्तर और असम की नंबर प्लेट वाले कुछ वाहनों में आग लगा दी. मेघालय सरकार ने इस घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया है. इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल 24 नवंबर को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेगा. संगमा ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से भी मुलाकात करेगा और आवश्यक कार्रवाई के लिए घटना पर रिपोर्ट सौंपेगा.
दूसरी ओर, इस घटना से पैदा तनाव कम करने के लिए असम के मुख्यमंत्री ने जिले के पुलिस अधीक्षक को हटा दिया है और कई वन अधिकारियों को निलंबित कर दिया है. उन्होंने भी घटना की न्यायिक जांच की बात कही है. हिमंता ने बुधवार को पत्रकारों से कहा, "मुझे इस मामले की जांच सीबीआई से कराने पर कोई आपत्ति नहीं है. इस घटना में मृत लोगों के परिजनों को सरकार 5-5 लाख का मुआवजा देगी."
हिंसा पहली बार नहीं
राज्यों के सीमा विवाद पर हिंसा का यह कोई पहला मौका नहीं है. असम और दूसरे राज्यों, जिनकी सीमा उसके साथ सटी है, के बीच अक्सर हिंसक झड़पें होती रही हैं. खासकर मेघालय के साथ तो कई बार ऐसी झड़पें हो चुकी हैं. उसकी 884.9 किमी लंबी सीमा असम के साथ लगी है. इस साल मेघालय के गठन को 50 वर्ष पूरे हो गए हैं. वर्ष 2010 में ऐसी ही एक घटना में लैंगपीह में पुलिस गोलीबारी में चार लोग मारे गए थे. उसके बाद शायद ही कोई साल ऐसा बीता है जब सीमा पर हिंसा नहीं भड़की हो.
सीमा विवाद के चलते ही बीते साल मिजोरम पुलिस के हाथों असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई थी. असम के साथ मिजोरम की करीब 165 किमी लंबी सीमा सटी है. असम-मिजोरम सीमा विवाद को सुलझाने के लिए वर्ष 1995 से कई दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन तमाम दावों के बावजूद उसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है. इसी तरह असम और अरुणाचल प्रदेश बीच सीमा पर सबसे पहले वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी. उसी समय से दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण और हिंसा भड़काने के आरोप लगाते रहते हैं. उस सीमा पर भी रह-रह कर हिंसा भड़क उठती है.
सीमा विवाद के मुद्दे पर असम और नगालैंड में भी अक्सर हिंसा होती रही है. दोनों राज्यों की सीमा 434 किलोमीटर लंबी है. वर्ष 1979, 1985, 1989, 2007 और 2014 में विभिन्न घटनाओं में नगालैंड से सशस्त्र बलों के हमलों में कई लोग मारे जा चुके हैं. इनमें से ज्यादातर असम के थे. पांच जनवरी, 1979 को असम के जोरहाट जिले के नागालैंड सीमा से लगे गांवों पर हथियारबंद लोगों के हमले में 54 लोग मारे गए थे और करीब 24 हजार लोगों ने भाग कर राहत शिविरों में शरण ली थी. वर्ष 1985 में मेरापानी में असम और नागालैंड के बीच भी ऐसी ही हिंसा हुई थी, जिसमें 28 पुलिसकर्मी समेत 41 लोग मारे गए थे. इसके चार साल बाद यानी वर्ष 1989 में गोलाघाट जिले में हुई हिंसक झड़प में दोनों पक्षों के कम से कम 25 लोग मारे गए थे.
राजनीतिक पर्यवेक्षक धीरेन गोहांई डीडब्ल्यू से कहते हैं, "पूर्वोत्तर में नए राज्यों के गठन के बाद इलाके में उग्रवाद की समस्या ने जिस गंभीरता से सिर उठाया, उससे बाकी तमाम मुद्दे हाशिए पर चले गए. केंद्र की उपेक्षा और इन राज्यों में सत्ता संभालने वाली राजनीतिक पार्टियां सीमा विवाद जैसे गंभीर मुद्दों को सुलझाने की बजाय अपने हितों को साधने में ही जुटी रहीं. यही वजह है कि यह विवाद अब नासूर बन कर जब-तब रिसता रहता है.” वह कहते हैं कि केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों को सीमा विवाद को शीघ्र सुलझाने के लिए एक ठोस कवायद शुरू करनी चाहिए. ऐसा नहीं होने तक इस विवाद के नाम पर अक्सर भड़कने वाली हिंसा में बेकसूर लोगों की बलि चढ़ती रहेगी. (dw.com)