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समाजवादी पार्टी के गढ़ ढहाने में कामयाब हो सकेगी बीजेपी?
25-Nov-2022 1:02 PM
समाजवादी पार्टी के गढ़ ढहाने में कामयाब हो सकेगी बीजेपी?

यूपी में मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर और खतौली विधानसभा सीटों पर आगामी 5 दिसंबर को उपचुनाव हैं. जब यूपी और केंद्र दोनों जगह पूर्ण बहुमत की बीजेपी की सरकार है, तो क्या सपा के इन दोनों गढ़ों को ढहाने में कामयाब हो सकेगी?

    डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-

मैनपुरी में लोकसभा के उपुचनाव इस सीट से सांसद रहे समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधनकी वजह से हो रहे हैं तो रामपुर विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान को कोर्ट से सजा होने के बाद उनकी सदस्यता जाने की वजह से हो रहे हैं. पश्चिमी यूपी की खतौली विधानसभा सीट पर भी बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को कोर्ट ने सजा दी और उनकी सदस्यता भी चली गई. वहां भी उपचुनाव हो रहे हैं.

मैनपुरी से समाजवादी पार्टी ने अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है तो रामपुर में समाजवादी पार्टी ने आजम खान के करीबी आसिम रजा को उम्मीदवार बनाया है. पिछले करीब साढ़े चार दशक में यह पहला मौका है जबकि इस सीट पर हो रहे चुनाव में आजम खान के परिवार का कोई भी सदस्य चुनावी मैदान में नहीं है. रामपुर से बीजेपी ने उन आकाश सक्सेना को अपना उम्मीदवार बनाया है जिन्होंने आजम खान को सजा दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

जहां तक मैनपुरी लोकसभा सीट का सवाल है तो बीजेपी ने यहां कभी मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे और समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी में आए रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनकी टीम लगातार यहां कैंप किए हुए हैं ताकि चुनाव में कोई कसर न रह जाए. उनके सामने पिछले दिनों आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी हैं जो उनकी पार्टी हार गई थी.

लोकसभा सीटों के लिहाज से देखें तो इन दोनों गढ़ों के बाद मैनपुरी तीसरा गढ़ है जहां उपचुनाव होने हैं और समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर इसे गंवाना नहीं चाहती. आजमगढ़ और रामपुर में जब लोकसभा के उपचुनाव हो रहे थे तो अखिलेश यादव इन दोनों जगहों पर प्रचार करने भी नहीं गए जबकि आजमगढ़ की सीट खुद उनके इस्तीफे से खाली हुई थी और उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे थे. रामपुर सीट आजम खान के इस्तीफे से खाली हुई थी. लेकिन मैनपुरी में अखिलेश यादव कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं. यहां तक कि पिछले छह साल से जिन चाचा शिवपाल सिंह यादव से उनकी अदावत चल रही थी, उन्हें भी अब अपने साथ कर लिया है.

सपा का लक्ष्य, मैनपुरी
वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा कहती हैं कि समाजवादी पार्टी और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव का पूरा जोर इसी सीट पर है क्योंकि यह सीट न सिर्फ मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई है, सपा का मजबूत गढ़ रही है. उपचुनाव में भी उनकी पत्नी उम्मीदवार हैं और इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली पांच सीटों में से तीन पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा है. इनमें से एक सीट करहल से अखिलेश यादव और दूसरी, जसवंतनगर से शिवपाल यादव विधायक हैं.

अमिता वर्मा कहती हैं, "बीजेपी का मुख्य लक्ष्य रामपुर विधानसभा सीट है क्योंकि मुस्लिम बहुल और आजम खान के प्रभाव वाली उस सीट को जीतकर वो बड़ा संदेश देना चाहती है. लेकिन मैनपुरी में भी वो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. जिस तरह से भारी-भरकम स्टार प्रचारकों की फौज को बीजेपी ने उतार रखा है, उसे देखते हुए गंभीरता को समझा जा सकता है लेकिन कई कारण हैं जिनकी वजह से यह सीट सपा के पक्ष में ही जाने की संभावना दिख रही है. पहली बात तो यह कि मुलायम सिंह के प्रति संवेदना है, उन्हीं की बहू और अखिलेश की पत्नी चुनाव मैदान में हैं. शिवपाल यादव भी साथ आ गए हैं और जातीय समीकरण सपा के पक्ष में हैं. दूसरी ओर सपा पूरी ताकत भी यहीं झोंक रही है क्योंकि पिछले उपचुनावों से वो इतनी हतोत्साहित सी है कि रामपुर में जीतने की कोशिश भी नहीं कर रही है.”

दरअसल, मैनपुरी की सीट न सिर्फ समाजवादी पार्टी की प्रतिष्ठा से जुड़ी है बल्कि अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य भी काफी कुछ यहां से तय होता है. यह सीट सपा का गढ़ जरूर है और पार्टी की स्थापना के बाद से समाजवादी पार्टी को छोड़कर कोई दूसरी पार्टी यहां से चुनाव नहीं जीत पाई लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में जब खुद मुलायम सिंह इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे और बहुजन समाज पार्टी का भी उसके साथ गठबंधन था, तब भी उनकी जीत का अंतर एक लाख से कम रह गया था और बीजेपी उम्मीदवार को उनसे महज 94 हजार वोट ही कम मिले थे.

इस साल हुए विधानसभा चुनाव में भी सपा के इस मजबूत गढ़ में बीजेपी ने जमकर सेंध लगाई और दो सीटें जीतने में कामयाब रही. यही नहीं, आस-पास की और भी सीटें उसने जीतीं और लोकसभा चुनाव में भी यादव परिवार के कई सदस्यों को भी हार का मुंह देखना पड़ा जिनमें डिंपल यादव भी शामिल हैं. जातीय समीकरणों के लिहाज से भी बीजेपी ने उस शाक्य समुदाय के उम्मीदवार पर दांव लगाया है जिसकी संख्या यादव मतदाताओं की तुलना में थोड़ी ही कम है. अब तक शाक्य जाति के लोग ज्यादातर समाजवादी पार्टी के ही समर्थक हुआ करते थे लेकिन अपनी जाति के उम्मीदवार होने के कारण शायद यह स्थिति पहले जैसी न रहे.

बीजेपी का जोर
राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पूरे आत्म विश्वास से कहते हैं कि उनकी पार्टी न सिर्फ मैनपुरी बल्कि रामपुर और खतौली विधानसभा सीटें भी भारी बहुमत से जीतेगी. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "समाजवादी पार्टी महज एक परिवार की पार्टी है. उनके कार्यकर्ता से लेकर नेता तक यह बात जानते हैं. चुनाव में हार के डर के कारण अखिलेश यादव कहीं प्रचार करने नहीं जा रहे हैं ताकि बाद में हार का ठीकरा उनके ऊपर न फूटे.”

दूसरी ओर रामपुर विधान सभा सीट भी राजनीतिक गलियारों में हॉट सीट के रूप में देखी जा रही है. पिछले 45 साल में यह पहला मौका है जबकि इस सीट पर आजम खान के परिवार का कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ रहा है. 1980 से लेकर अब तक खुद आजम खान यहां से 10 बार चुनाव जीत चुके हैं. उनके सांसद होने पर उनकी पत्नी यहां से चुनाव जीतीं. समाजवादी पार्टी ने जिन आसिम रजा को टिकट दिया है वो आजम खान के करीबी माने जाते हैं लेकिन समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं ने अब तक चुनाव प्रचार से जिस कदर दूरी बना रखी है और दूसरी ओर बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं को यहां प्रचार में उतार रखा है, उसे देखते हुए आसिम रजा की राह आसान नहीं दिख रही है.

दूसरी ओर, गैर बीजेपी नेता भी बीजेपी के समर्थन का जिस तरह से ऐलान कर रहे हैं, वह आसिम रजा की मुश्किलें बढ़ाने वाली ही दिख रही हैं. कांग्रेस के नेता नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां, गन्ना विकास परिषद के पूर्व अध्यक्ष बाबर अली खां राष्ट्रीय लोकदल के पूर्व जिलाध्यक्ष मोहम्मद उसमान बीजेपी को समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं.

रामपुर में स्थानीय पत्रकार मुजस्सिम खान कहते हैं, "आजम खान के करीबी और मीडिया प्रभारी रहे फसाहत अली खां के बीजेपी में शामिल होने के बाद समाजवादी पार्टी के नेताओं का मनोबल और भी ज्यादा कमजोर हुआ है. वहीं बीजेपी ने कई मंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री के भी कार्यक्रम यहां लगा रखे हैं. और नेता भी लगातार प्रचार कर रहे हैं. इन सब को देखते हुए तो यही लगता है कि जैसे समाजवादी पार्टी ने पिछले कुछ उपचुनावों में बिना लड़े ही हार मान ली, कुछ ऐसा ही रामपुर में भी कर रही है. बीजेपी के नेताओं का उत्साह और समाजवादी पार्टी के नेताओं की मायूसी को देखकर तो यही लगता है कि बीजेपी का पलड़ा भारी है.”

मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी ने अपने सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल को दे रखी है जहां से उसने मदन भैया को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि बीजेपी ने पूर्व विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को टिकट दिया है.मुजफ्फरनगर दंगों में शामिल होने के मामले में सजा पाने के बाद विक्रम सैनी की सदस्यता चली गई थी. (dw.com)
 

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