विचार / लेख

नेताओं के लिए पांच संकल्प
25-Nov-2022 8:04 PM
नेताओं के लिए पांच संकल्प

-राजशेखर चौबे 
लोकतंत्र यदि वास्तविक है और लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत है तो हम स्वयं अपना नेता या शासक चुनते हैं और हमें उनसे कोई शिकायत नहीं होना चाहिए।  वैसे भी कहा गया है- ‘हम जैसे हैं वैसे ही शासक या नेता भी डिजर्व करते हैं’, अत: आप, आपके द्वारा पहले या अभी चुने गए नेता पर शोक मत कीजिए। जनता नेता को प्राय: पांच साल में एक बार नसीहत देती है परंतु नेता जनता को पांच  साल तक और कभी-कभी  दस साल तक लगातार नसीहत देते हैं। आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर हमारे लोकप्रिय व यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने लाल किले की प्राचीर से सार्थक और उपयोगी उद्बोधन दिया है। इसमें उन्होंने जनता से पांच प्रण  का आव्हान किया है। उन्होंने 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प दोहराया है । उन्हें साधुवाद। जनता प्राय: भेड़चाल चलती है और उसे नेताओं के मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती है। जनता अपने नेताओं का अनुसरण करती है इसीलिए नेताओं को सुधारना शायद ज्यादा जरूरी है। नेताओं को हम नसीहत तो नहीं दे सकते , हो सकता है वे बुरा मान जाएं। जनता उन पांच प्रण के अनुसार आचरण करें और नेतागण मेरे सुझाए पांच संकल्पों पर अमल करें तो आजादी की सौवीं सालगिरह तक हमें विकसित राष्ट्र बनने से कोई भी रोक नहीं सकता। प्राय: लोकतांत्रिक देशों ने ही  विकसित देश का रुतबा हासिल किया है। हम भी लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर ही विकसित देश  का दर्जा पा सकेंगे। मेरे पांच  संकल्प किसी एक दल  या एक नेता के लिए नहीं है बल्कि देश के तमाम राजनीतिक दलों एवं नेताओं के लिए ये संकल्प हैं। मेरे पांच संकल्प या सुझाव निम्नानुसार हैं-

शिक्षा व कौशल विकास को बढ़ावा देना  
 शिक्षा व कौशल विकास सफलता का द्वार है। इन दोनों ही क्षेत्रों में हम अत्यंत पिछड़े हुए हैं। सुनियोजित तरीके से शिक्षा का भ_ा बैठाया जा रहा है । ‘पूरे देश में केवल दो नेता जो मुख्यमंत्री भी हैं , शिक्षा की बात करते हैं लेकिन लोग उनका भी मजाक उड़ाते हैं।’ शिक्षा में निजी क्षेत्र की घुसपैठ ने उसे महंगा बना दिया है। यहां तक कि  सरकारी इंजीनियरिंग व मेडिकल कॉलेज और आईआईटी, एम्स  आदि  की फीस में भी बेतहाशा वृद्धि की गई है। सरकारें  रेवडिय़ाँ  बांटने में गुरेज नहीं करती पर शिक्षा के नाम पर कुछ भी खर्च नहीं करना चाहती। स्कूलों में कम वेतन में ‘अग्निवीरों’ (शिक्षाकर्मी, शिक्षा मित्र, गुरुजी आदि) की व्यवस्था बरसों से चल रही है।  स्कूलों व कॉलेजों में हजारों पद खाली पड़े हैं। हमारा ध्यान शिक्षित करने और शिक्षा देने में नहीं है।  हम केवल आंकड़ा बढ़ाकर वाहवाही लूटना चाहते हैं।  छात्र नवमीं पास हो जाता है पर वह ठीक से पढ़ लिख नहीं पाता है। आखिर ऐसी शिक्षा का क्या मतलब है? जनरल प्रमोशन को तुरंत बंद किया जाना चाहिए। आज ग्लोबलाइजेशन का जमाना है। अत: अंग्रेजी शिक्षा को अनिवार्य करने की भी जरूरत है। शिक्षा के बजट को बढ़ाना होगा। बारहवीं तक मुफ्त व अच्छी शिक्षा और कॉलेज में कम फीस में अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन भत्ता देना होगा। 

इसी तरह कौशल विकास केअंतर्गत इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर ,मिस्त्री, कम्प्यूटर ऑपरेटर आदि की  ट्रेनिंग दी जानी चाहिए जिससे युवाओं को रोजगार की कमी न रहे।  हमारे देश में युवा शक्ति बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। इन्हें सही दशा और दिशा की जरूरत है। सरकार की यह मुख्य प्राथमिकता होना चाहिए। युवाओं को बेरोजगारी भत्ता या दूसरी रेवडिय़ों  के बदले सस्ती व अच्छी  शिक्षा और कौशल विकास के अवसर उपलब्ध कराने पर ही देश प्रगति की राह पर अग्रसर होगा। 

भ्रष्टाचार,परिवारवाद, भाई-भतीजावाद पर अंकुश 
हम सभी जानते हैं कि देश में भ्रष्टाचार, परिवारवाद, भाई भतीजावाद का बोलबाला है । भ्रष्टाचार को रोकने के लिए संवैधानिक संस्थाओं खासकर नियंत्रक एवं  महालेखा परीक्षक को वास्तविक अधिकार देना जरूरी है।  ‘सूचना का अधिकार’ कानून के कारण बहुतेरे भ्रष्टाचार उजागर हुए परंतु अब उसे भी लगभग दंत विहीन कर दिया गया है। अधिकारियों ने इस से बचाव के रास्ते ढूंढ लिए हैं। भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए पारदर्शिता बेहद जरूरी है। अत: सभी विभागों को टेंडर आदि की पूरी जानकारी तीन दिन के भीतर अपने वेबसाइट पर अपलोड करना अनिवार्य होना चाहिए। कार्यालयों का कार्य जैसे-जैसे ऑनलाइन होगा भ्रष्टाचार में निश्चित रूप से कमी आएगी। भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए भ्रष्टाचारियों के मन में शासन और प्रशासन का डर जरूरी है।  केंद्रीय एजेंसियों को निष्पक्षता और बिना किसी डर के अपना काम करने की स्वतंत्रता  होनी चाहिए। भ्रष्टाचार से देश का नुकसान होता ही है परंतु ऊपर लेवल का भ्रष्टाचार अत्यंत नुकसानदेह है। इसमें  करोड़ों नहीं अरबों का लेनदेन होता है और इसे पकडऩा भी टेढ़ीखीर है।भ्रष्टाचार के जड़ पर प्रहार  जरूरी है। 

देश के अधिकांश दल परिवारवाद, भाई भतीजावाद से पीडि़त है और वह निर्लज्जता से इसका प्रदर्शन भी करते हैं और अपने  लोगों को बढ़ाते और बचाते भी हैं।  जनता समय-समय पर इन्हें सबक सिखाती है । इन सबका चेहरा उजागर हो चुका है ।

अधिकांश नेता अपने दल को ही अपना परिवार मानते हैं और अपने दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपना भाई भतीजा ही मानते हैं। ये नेता इन्हें हमेशा ही शरीफ और ईमानदार बताते हैं। यहां तक कि दूसरे दलों के गुंडे, बेईमान, भ्रष्टाचारी नेता भी इन दलों में आने के बाद शरीफ और ईमानदार माने जाने लगते हैं। इस तरह के  परिवारवाद और भाई भतीजावाद पर भी रोक जरूरी है। देश का शासक पूरे देश का शासक होता है और उसके द्वारा किसी भी तरह का भेदभाव  गैरवाजिब है। 

रेवड़ी कल्चर की समाप्ति 
जनता को दी जाने वाली रेवडिय़ों  पर उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ शासन ने भी कड़ा रुख अख्तियार किया है । नेताओं और जनप्रतिनिधियों को दी जाने वाली रेवडिय़ों की फेहरिस्त  काफी लंबी है । जनता को जागरूक होकर इन पर अपनी आपत्ति दर्ज कर इन्हें समाप्त करवाना चाहिए। 

(i)  नेताओं के पेंशन की समाप्ति 
 यदि कोई नेता पार्षद, महापौर, विधायक और सांसद रह चुका है तो वह एक नहीं चारों पदों के पेंशन का हकदार है। दिल्ली की आप पार्टी की सरकार ने एक पेंशन का कानून लागू किया है और वे बधाई के पात्र हैं। इसे पूरे देश में लागू करना होगा। एक सरकारी कर्मचारी 35-40 वर्ष सरकारी सेवा के बाद पेंशन का पात्र होता था वहीं जनप्रतिनिधि पद की शपथ लेते ही पेंशन  का पात्र हो जाता है। अब 35-40 वर्ष सरकार की सेवा करने वाला कर्मचारी भी पेंशन से वंचित हो चुका है। नेता सेवा भाव से राजनीति में आते हैं परंतु अधिकांश नेता मेवा पा जाते हैं और उन्हें इस पेंशन की खास जरूरत नहीं होती है।देश के विकास की खातिर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति को छोडक़र बाकी सब के पेंशन को बंद किया जाना चाहिए । 

(II) विधान परिषद व  गैरजरूरी पदों की समाप्ति 
आमतौर पर विधान परिषद की विशेष उपयोगिता नहीं है और अधिकांश राज्यों की  विधानसभाएं बिना विधान परिषद के शानदार काम कर रही हैं। इसका उपयोग असंतुष्टों को मनाने व संतुष्ट करने का ही रह गया है । यह सफेद हाथी की तरह है। द्वितीय सदन के संबंध में एक विद्वान की राय विधान परिषद पर एकदम फिट बैठती है उनका कहना है ‘यदि द्वितीय सदन प्रथम सदन से असहमत है तो यह लोकतंत्र के विरुद्ध है और यदि वह सहमत है तो फिर उसकी उपयोगिता ही क्या है?’


अत: विधान परिषद का खात्मा किया जाना चाहिए। इसी तरह संसदीय सचिवों विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष का पद भी असंतुष्टों  को संतुष्ट करने के ही काम आ रहा है । इनकी भी समाप्ति जरूरी है । 

(3) सांसदों , विधायकों व अन्य जनप्रतिनिधियों के भत्तों पर रोक  
जो भी जनप्रतिनिधि (सांसद विधायक आदि) अपने काम से सदन से अनुपस्थित रहे, उसे उस दिन का भत्ता नहीं देना चाहिए । इसी तरह सांसद या विधायक निधि से कम खर्च करने वालों को आगामी वर्ष में उतनी ही राशि दी जानी चाहिए। गैर जरूरी अन्य भत्तों  पर भी रोक जरूरी है । 

 (4) आपसी सद्भाव व भाईचारा कायम रखना   
यदि आपके परिवार की मासिक आय 25000 है तो आप देश के टॉप 10त्न में शामिल है और यदि आपकी पारिवारिक  मासिक आय  एक लाख  है तो आप टॉप 1त्न में शामिल हो सकते हैं । यहां अमीर और अमीर व गरीब और गरीब होता जा रहा है। अमीर व गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। अत: शासन करने के लिए भावनात्मक मुद्दे जरूरी है। धर्मान्धता, जातिवाद, राष्ट्रवाद जैसे भावनात्मक मुद्दों को हवा दी जा रही है। इससे सामाजिक ताना-बाना टूट रहा है। यह  पूरे देश के लिए घातक है। इतिहास गवाह है जिस देश में भी आपसी सद्भाव और भाई चारा खत्म होता है वहां प्रगति अवरुद्ध हो जाती है।  विदेशी निवेश, देश के भीतर व्यापार उद्योग आदि के विकास के लिए देश के भीतर शांति और सद्भाव को कायम रखना बेहद जरूरी है । इस बात से शायद ही कोई इनकार करेगा कि पिछले वर्षों में आपसी सद्भाव में कमी व विद्वेष  में वृद्धि हुई है। हो सकता है कि आपसी मनमुटाव व द्वेष से   किसी नेता व दल को त्वरित लाभ मिल जाए परंतु यह समाज व देश के लिए खतरनाक है। जिस देश में भी धर्मान्धता, अंधविश्वास  और धार्मिक कठमुल्लापन है उस देश का पिछडऩा तय है। इन बुराइयों को  हर हाल में रोकना होगा अन्यथा विकास की बात करना बेमानी है। 

(5) कथनी और करनी में अंतर न हो  
देखा गया है कि नेतागण बातें अच्छी अच्छी करते हैं परंतु प्राय: काम बुरे बुरे ही करते हैं। वे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग बातें करते हैं और इनमें विरोधाभास पाया जाता है। वे गैर जरूरी मुद्दों पर बोलते हैं परंतु ज्वलंत मुद्दों पर चुप्पी साध लेते हैं। वे भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करेंगे परंतु मंत्रिमंडल में भ्रष्ट मंत्रियों को भी जरूर रखेंगे। महिला अधिकारों की बात करेंगे पर बलात्कारी नेता का महिमामंडन करेंगे। यकीन मानिए जिस देश में हत्यारों और बलात्कारियों का अभिनंदन होने लगे उस देश का पतन सुनिश्चित है। हमें इन जघन्य अपराधियों को धर्म व जात के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। यदि नेतागण अपनी कथनी पर अमल करें तो हमारी आधी समस्या तुरंत हल हो सकती है। 

उपरोक्त पांच संकल्पों  के अलावा भी कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।  किसानों व  सामान्य उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान रखना होगा क्योंकि उनमें जागरूकता की कमी है। किसान देश की रीढ़ हैं परंतु इन दिनों मुसीबत में है। उनकी मांगों पर सहृदयता पूर्वक विचार करने की जरूरत है। पंचायती राज व अन्य उपायों द्वारा सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया परंतु इससे भ्रष्टाचार का भी विकेंद्रीकरण हो गया। भ्रष्टाचार गांव-गांव तक पहुंच गया है। इस पर भी पुनर्विचार की जरूरत है। अंग्रेजों ने उपनिवेशों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाकर  शोषण के लिए साम्राज्यवादी नीतियों का सृजन किया। आजादी के 75 वर्ष  बाद भी हम उसी पद्धति से देश का शासन चला रहे हैं। इस शासन पद्धति ने दंभी अधिकारियों और नेताओं की फौज खड़ी कर दी है जो अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ समझते है। इनका एक ‘कुलीन वग’ बन गया है जो अपनी सुविधा अनुसार देश को चला रहे हैं। आम गरीब जनता के दुख दर्द से इन्हें कोई मतलब नहीं है । इस शासन व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इस हेतु एक आयोग गठित करना होगा जिसके सदस्य निष्पक्ष व ईमानदार हों। आप विश्वास कीजिए यदि इन उपायों को नहीं अपनाया गया तो अगले 25 वर्ष भी वैसे ही गुजर जाएंगे जैसे पिछले 75 वर्ष गुजरे हैं खासकर देश की 98त्न गरीब व निरीह जनता के लिए ।

 

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