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चीन की जीरो-कोविड नीति से परेशान नागरिक क्या कर रहे हैं?
26-Nov-2022 12:58 PM
चीन की जीरो-कोविड नीति से परेशान नागरिक क्या कर रहे हैं?

व्यापक लॉकडाउन के बावजूद चीन के शहरों में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. वहां के निराश नागरिक प्रतिबंधों के विरोध के लिए अब बड़े जोखिम भी उठा रहे हैं.

   डॉयचे वैले पर विलियम यैंग की रिपोर्ट-

चीन के लोग पिछले करीब तीन साल से लगातार जारी लॉकडाउन यानी तालाबंदी और आर्थिक दिक्कतों से निराशा की हद तक परेशान हैं लेकिन चीन की जीरो-कोविड रणनीति का कोई अंत नहीं दिख रहा है.

वायरस को खत्म करने की अधिकारियों की तमाम कोशिशों के बावजूद हाल के हफ्तों में कोविड के नए मामलों में फिर उछाल दिखने लगा है. पिछले 24 घंटों में हर दिन कोविड के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है.

गुरुवार को देश भर में कोविड के 31 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं जो कि इस महामारी के शुरू होनेसे लेकर अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. कई शहरों में लाखों लोग अपने घरों में कैद हैं.

व्यावसायिक लोगों को आदेश दिया गया है कि अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करने को कहें जबकि पार्क और संग्रहालय बंद कर दिए गए हैं.

बीजिंग में अधिकारियों का कहना है कि राजधानी के लोग इस समय कोविड के सबसे खतरनाक दौर का सामना कर रहे हैं. अधिकारियों के मुताबिक, अन्य देशों से चीन में आने वाले लोगों के लिए अपने घरों में रहने और तीन दिन तक कोविड टेस्ट अनिवार्य करने संबंधी नए नियम बनाए जाने की जरूरत है.

सोशल मीडिया से प्राप्त वीडियो और कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से पता चलता है कि बुधवार को दुनिया की सबसे बड़ी आईफोन बनाने वाली फैक्ट्री में कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शनों को हिंसक तरीके से दबा दिया गया. ये लोग कड़े नियमों के चलते मुश्किल होते जा रहे कामकाजी हालात के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.

चीन में विरोध प्रदर्शन करना खतरनाक है
चीन के दक्षिणी इलाके में स्थित ग्वांगझू शहर में करीब दो करोड़ लोग रहते हैं. यह शहर इस वक्त कोरोनावायरस के प्रकोपसे सबसे ज्यादा प्रभावित है. छिटपुट विरोध प्रदर्शनों के बाद यहां लाखों लोग को घरों में कैद कर दिया गया है.

सोशल मीडिया में पोस्ट किए गए वीडियोज को देखकर लगता है कि यहां रहने वाले लोग कितने परेशान और निराश हैं. इन वीडियोज में हाइझू जिले की सड़कों पर लोगों को दौड़ते हुए, बैरियर्स को पार करते हुए और वर्दी पहने हुए स्वास्थ्यकर्मियों से उलझते-लड़ते हुए देखा जा सकता है.

ग्वांगझू शहर के एक निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि हालांकि पूरे शहर में लॉकडाउन नहीं लगाया गया है लेकिन टेस्टिंग के लिए लाइनों में लगने और सार्वजनिक जगहों पर जाने के लिए लागू तमाम पाबंदियों से लोग परेशान हो चुके हैं.

उनका कहना था, "कई बार टेस्ट की रिपोर्ट समय पर नहीं आती है और ऐसे में आप कुछ घंटों के लिए ग्रीन हेल्थ कोड से बाहर आ जाते हैं. निश्चित तौर पर इन सबसे लोग परेशान हैं.”

चीन के लोग यदि सार्वजनिक रूप से बाहर निकलकर प्रदर्शन कर रहे हैं, तो स्थिति की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है.

ह्यूमन राइट्स वॉच में चीन की वरिष्ठ शोधकर्ता याक्यू वांग ने डीडब्ल्यू को बताया कि ग्वांगझू में स्थानीय अधिकारियों और नागरिकों के बीच हुई झड़प, प्रतिरोध का एक ‘अंतिम उपाय' था.

वो कहती हैं, "चीन में प्रतिरोध की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है और ग्वांगझू में, तमाम निराश नागरिक प्रवासी श्रमिक हैं जिनका लॉकडाउन के चलते रहना दूभर हो गया है. मेरा मानना है कि चीन के लोग अंतिम विकल्प के रूप में ही प्रतिरोध का झंडा बुलंद करते हैं. वो जानते हैं कि प्रतिरोध करना उनके लिए कितना महंगा साबित हो सकता है.”

कोविड के मामले में चीन के पास कोई दूरगामी नीति नहीं है
इस महीने की शुरुआत में चीनी अधिकारियों ने महामारी नियंत्रण उपायों में थोड़ी ढील दे दी थी जिनमें बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए क्वारंटीन की अवधि को कम करना और कई शहरों में सामूहिक रूप से कोविड परीक्षण बंद करना शामिल थे. इस ढील के बावजूद कई शहरों में लॉकडाउन जारी था.

येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में हेल्थ पॉलिसी के प्रोफेसर शी चेन कहते हैं कि कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए अधिकारियों के लिए एक देशव्यापी समन्वय नीति बनाने में काफी परेशानी होगी.

वो कहते हैं, "कोविड की यह लहर जल्दी ही संक्रमण के उस स्तर को पार कर जाएगी जो इस साल की शुरुआत में शंघाई में लॉकडाउन के समय था. हालांकि तीन साल से चल रहे सामूहिक परीक्षण, क्वारंटीन और धीमी अर्थव्यवस्था के बाद स्थानीय स्तर पर वित्तीय स्थिति को काफी खराब कर दिया है जिसके चलते कोई समन्वित रणनीति बनाना और मुश्किल हो गया है.”

वो आगे कहते हैं, "आने वाले हफ्तों में, इस संकट से निबटने के लिए चीन कुछ कड़े कदम उठा सकता है.”

चेन कहते हैं कि चीनी अधिकारियों के पास कोरोनावायरस की समस्या से निबटने के लिए अभी भी कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं है और वायरस से लड़ने के लिए शुरुआती कोशिशों की सफलता के बावजूद इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

उनके मुताबिक, "कोविड नियंत्रण के अल्पकालिक उपायों पर दीर्घकालिक निर्भरता से इस खतरे से बाहर निकलने की रणनीति के फेल होने का खतरा है. पूरा ध्यान अभी इस बात पर है कि पीसीआर टेस्टिंग और क्वारंटीन जैसे उपायों से कैसे वायरस के संक्रमण को बढ़ने से रोका जाए.”

जबकि दीर्घकालिक उपायों के लिए ज्यादा प्रभावी वैक्सीन और एंटीवायरल ड्रग्स के निर्माण के साथ स्वास्थ्य तंत्र की तैयारी और जनता के साथ बेहतर तालमेल बनाना जरूरी है. चेन का कहना है कि लगातार देश भर में "कठोर कोविड नियंत्रण उपायों” को जारी रखने से समाज में बिखराव का भी खतरा है.

लॉकडाउन का मानवीय प्रभाव
दैनिक जीवन में व्यवधान के अलावा, इन लॉकडाउन्स का एक और खतरनाक असर चिकित्सा देखभाल पर भी पड़ा है.

पिछले हफ्ते जेंग्झू शहर में चार महीने के एक बच्चे की मौत ने सोशल मीडिया में हंगामा मचा दिया था. इस बच्ची को क्वारंटीन के दौरान सही इलाज नहीं मिल सका था जिसके चलते उसकी मौत हो गई.

हाल ही में ऐसी ही एक और घटना हुई जब लांझू शहर में तीन साल के एक बच्चे की मौत कार्बन मोनो ऑक्साइड से हो गई क्योंकि सरकारी प्रतिबंधों की वजह से उसे समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका.

स्थानीय सरकार की रिपोर्ट्स के मुताबिक, बच्चे के पिता ने हॉटलाइन पर चार बार फोन करने की कोशिश की और जब आखिरकार उसकी बात हुई तो उसने जवाब दिया कि चूंकि परिवार ‘हाई रिस्क जोन' में रहता है इसलिए उन्हें सिर्फ ऑनलाइन चिकित्सा सहायता या परामर्श मिल सकता है.

ह्यूमन राइट्स वॉच से जुड़ी वांग कहती हैं, "कुछ लोगों की मौत तो इसी वजह से हो गई क्योंकि उनके पास इलाज की कोई व्यवस्था नहीं थी जबकि अन्य लोगों की मौत खाद्य सामग्री के अभाव में या अन्य जरूरी चीजों के अभाव में हो गई.”

वो कहती हैं कि मानवाधिकारों पर महामारी का दूरगामी प्रभाव पड़ा है. उनके मुताबिक, "हालांकि चीन के लोगों पर महामारी को रोकने के लिए सरकारी कोशिशों का दीर्घगामी प्रभाव पड़ेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अव्यवस्था के खिलाफ प्रतिरोध भी जारी रहेगा.

चीन की सरकार ने लोगों के इकट्ठे होने, संगठन बनाने जैसे तमाम सामाजिक आधारों को इस कदर खत्म कर दिया है कि उनके पास प्रतिरोध का कोई रास्ता ही नहीं बचा है. यहां तक कि सरकार के खिलाफ यदि बड़े पैमाने पर भी नाराजगी होती है, तो भी ये लोग विरोध के लिए एक साथ नहीं आ पाएंगे.” (dw.com)
 

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