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संविधान दिवस के उपलक्ष्य पर हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय कॉन्क्लेव का आयोजन
27-Nov-2022 6:58 PM
 संविधान दिवस के उपलक्ष्य पर हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय कॉन्क्लेव का आयोजन

रायपुर, 27 नवंबर। हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय परिसर में शनिवार को संविधान दिवस के अवसर पर  कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया। इसमे विश्विद्यालय परिवार और आईटीएम तथा कलिंगा यूनिवर्सिटी विधि संकाय के प्राध्यापकों,छात्रों की सहभागिता रही ।

प्रो. वी.सी. विवेकानंदन, एचएनएलयू के कुलपति ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में भारतीय संविधान के संशोधनवाद की चल रही बहस और 70 साल पुरानी समयरेखा जिसमें इसे रचा गया था की यथास्थिति पर प्रकाश डाला, उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी देश में किसी भी संविधान के 'बुनियादी मूल्यों को मानव गरिमा', 'बहुसंस्कृतिवाद' और 'लोकतांत्रिक प्रक्रिया' के सिद्धांतों का पालन करना मौलिक और बाकी 'विशेष मूल्यों' का हिस्सा होना चाहिए, जिस पर समाज की सतत शांति और प्रगति लिए विचार-विमर्श और संवाद की आवश्यक है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर रणबीर सिंह, प्रो-चांसलर, आईआईएलएम विश्वविद्यालय ने अपने संबोधन में संविधान में भारत और भरत शब्द का विच्छेदन किया और दो भारत एक वंचित और दूसरा सक्षम के संविधान के स्वीकृत लक्ष्यों बावजूद एक साथ अस्तिस्व में होने पर प्रकाश डाला। साथ ही समानता और अन्याय को समाप्त करने में वकीलों की भूमिका पर बल दिया।

प्रो. वेंकट राव, एनएलएसआईयू बैंगलोर के पूर्व कुलपति ने 'पब्लिक ट्रस्ट' की अवधारणा को स्थापित करने में सर्वोच्च न्यायालय के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय संविधान के अंतर्राष्ट्रीय विधि से समन्वयन को स्थापित किया और गोलकनाथ मामले में न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला के योगदान का उल्लेख किया जिसमें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय विधि के समन्वयन का फल साबित हुआ।

अन्य वक्ताओं में एचएनएलयू के रजिस्ट्रार प्रोफेसर उदय शंकर शामिल थे, जो मौलिक अधिकारों और कल्याण लक्ष्यों, आरक्षण के मुद्दों, रिटों की स्थिति और महत्वपूर्ण रूप से राजनीतिक दलों के नियमन और उनकी जवाबदेही बढ़ाने के अधूरे एजेंडे के मुद्दों पर अपने विचार रखें। एचएनएलयू में डीन यूजी (विधि) डॉ दीपक श्रीवास्तव ने भारतीय संविधानः तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य पर अपनी बात रही। 

प्रोफेसर जेलिस सुभान, विभागाध्यक्ष, विधि संकाय, आईटीएम विश्वविद्यालय ने पिछले कुछ दशकों में बढ़ती असमानता की पृष्ठभूमि में समानता और मानवीय गरिमा की स्थिति पर सवाल उठाया और आज भी हाशिए पर पड़े लोगों के साथ दुर्व्यवहार को संविधान के लक्ष्यों की विफलता के रूप में माना लेकिन फिर भी इन विसंगतियों को सुधार पाने की तथा एक एक बेहतर समाज की स्थापना के लिए संविधान की क्षमता पर आशावादी विचार रखें।

प्रोफेसर विष्णु कुनारायर, डीन रिसर्च एचएनएलयू ने विचार-विमर्श का सारांश दिया और संविधान के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, तथा किसी भी प्रकार की कमियों को दूर करने के लिए अनुच्छेद 21 का एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में इसके महत्व पर जोर दिया। कार्यक्रम का संचालन सामाजिक विज्ञान विभाग के डीन प्रोफेसर अविनाश सामल ने किया। कॉन्क्लेव में  एक संपादित पुस्तक "द जर्नी ऑफ सेवन डिकेड्स कॉन्स्टिट्यूशनल डिस्कोर्स एट क्रॉस रोड्स" और एचएनएलयू एलुमनी एसोसिएशन का पहला समाचार पत्र द एलुमनी कनेक्ट का विमोचन भी किया गया।

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