अंतरराष्ट्रीय
ईरान के प्रॉसिक्यूटर जनरल ने एक धार्मिक सम्मेलन में बताया कि देश की धार्मिक पुलिस यानी मोरैलिटी पुलिस को भंग कर दिया गया है.
हालांकि प्रॉसिक्यूटर जनरल मोहम्मद जफ़र मॉन्ताज़ेरी के बयान को ईरान की क़ानून लागू करने वाली संस्था ने पुष्टि नहीं की है.
हाल ही में 22 वर्षीय महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद से ईरान में इसके ख़िलाफ़ सरकार-विरोधी प्रदर्शन जारी हैं.
इन विरोध प्रदर्शनों में अब तक 300 से अधिक लोगों की मौत भी हुई है.
महसा अमीनी को तेहरान की मोरैलिटी पुलिस ने कथित तौर पर 'ठीक से हिजाब' न पहनने के आरोप में हिरासत में लिया और बाद में उनकी मौत हो गई.
ईरान के सख़्त नियमों के अनुसार, महिलाओं के लिए हिजाब या हेडस्कार्फ़ पहनना अनिवार्य है.
हालांकि बीबीसी फ़ारसी सेवा के रिपोर्टर सियावाश अर्दलान ने कहा कि मोरैलिटी पुलिस को भंग किए जाने का मतलब ये ज़रूरी नहीं है कि अब हिजाब का क़ानून बदल जाएगा. उन्होंने इसे बहुत देर से उठाया गया छोटा क़दम बताया.
मोरैलिटी पुलिस क्या है?
साल 1979 की क्रांति के बाद से ही ईरान में सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए 'मोरैलिटी पुलिस' कई स्वरूपों में मौजूद रही है.
इनके अधिकार क्षेत्र में महिलाओं के हिजाब से लेकर पुरुषों और औरतों के आपस में घुलने-मिलने का मुद्दा भी शामिल रहा है.
लेकिन महसा की मौत के लिए ज़िम्मेदार बताई जा रही सरकारी एजेंसी 'गश्त-ए-इरशाद' ही वो मोरैलिटी पुलिस है जिसका काम ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करना है.
'गश्त-ए-इरशाद' का गठन साल 2006 में हुआ था. ये न्यायपालिका और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स से जुड़े पैरामिलिट्री फ़ोर्स 'बासिज' के साथ मिलकर काम करता है. (bbc.com/hindi)