अंतरराष्ट्रीय
-सियावाश अर्दालान & मारिटा मोलोनी
'मोरैलिटी पुलिस' ईरान की पुलिस व्यवस्था का वो हिस्सा है जो इस्लामिक क़ानूनों और ड्रेस कोड को लागू करना सुनिश्चित करती थी. ईरान के अटॉर्नी जनरल के बयान के मुताबिक़, अब इस पुलिस व्यवस्था को भंग किया जा रहा है.
हालांकि अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफ़र मोंटाज़ेरी के इस बयान की पुष्टि ईरान से बाहर की एजेंसियों के ज़रिए की जानी बाकी है, लेकिन माना जा रहा है उन्होंने ये बयान रविवार को एक कार्यक्रम में दिया है.
कुछ महीने पहले ईरान में पुलिस कस्टडी में एक महिला की मौत के बाद से लगातार प्रदर्शन जारी है. उस महिला का नाम था महसा अमीनी जिन्हें हिजाब नहीं पहनने के जुर्म में पुलिस ने हिरासत में लिया था.
एक धार्मिक कार्यक्रम में मोंटेज़ेरी से जब ये पूछा गया कि क्या सरकार मोरैलिटी पुलिस को ख़त्म करने जा रही है, तो उनका जवाब था- "मोरैलिटी पुलिस का न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं है. वो व्यवस्था जिस तरह बनाई थी, उसे अब पूरी तरह ख़त्म किया जा चुका है. इसका कंट्रोल गृह मंत्रालय के पास था ना कि न्यायपालिका के पास."
इससे पहले मोंटेज़ेरी ईरानी संसद में ये कुबूल कर चुके हैं कि महिलाओं को हिजाब पहनना ज़रूरी करने वाले क़ानून पर दोबारा विचार किया जाएगा.
हालांकि मोरैलिटी पुलिस की व्यवस्था ख़त्म करने के बावजूद ईरान में माना जा रहा है कि इससे दशकों पुराने इस्लामिक क़ानूनों की सख़्ती में कोई बदलाव नहीं आएगा.
इसके ख़िलाफ़ पूरे ईरान में 16 सितंबर से ही लगातार प्रदर्शन चल रहे हैं, जब पुलिस कस्टडी में 22 साल की युवती महसा अमीनी की मौत की ख़बर आई थी.
अमीनी को मौत से तीन दिन पहले पुलिस ने हिरासत में लिया था. उनकी मौत के ख़िलाफ़ पूरे देश में प्रदर्शन शुरू हुए, जिसे दंगा क़रार देते हुए ईरानी प्रशासन ने लगातार सख़्ती बरतना शुरू कर दिया.
ईरान में ये प्रदर्शन भले ही हिजाब को लेकर सख़्ती और पुलिस ज़्यादती के ख़िलाफ़ शुरू हुए थे, लेकिन देखते ही देखते ग़रीबी, बेरोज़गारी, ग़ैर-बराबरी, अन्याय और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे प्रदर्शन के एजेंडे में शामिल होते गए.
'हमारे साथ क्रांति की मशाल है'
अगर मोरैलिटी पुलिस व्यवस्था भंग करने की ख़बर पुख़्ता होती है तो ये प्रदर्शनकारियों के लिए बड़ी जीत होगी, लेकिन तब भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि पूरे ईरान में चल रहे प्रदर्शनों में कोई कमी आएगी.
बीबीसी से बातचीत में एक ईरानी महिला ने कहा, "अगर सरकार ये भी मान लेती है कि हिजाब व्यक्तिगत पसंद का मामला है तो भी ये हमारे लिए काफ़ी नहीं होगा. लोग जान चुके हैं कि मौजूदा सरकार के साथ ईरान का कोई भविष्य नहीं. महिलाओं के तमाम अधिकार दिलाने के लिए हमारे साथ मुल्क के कई तबकों के लोग एकजुट हो रहे हैं."
एक दूसरी ईरानी महिला ने बीबीसी से कहा, "हिजाब हमारे लिए अब चिंता का विषय है ही नहीं, ये तो हम पिछले 70 दिनों से नहीं पहन रहे. आज हमारे पास क्रांति की मशाल है. इसकी शुरुआत हिजाब से हुई थी, लेकिन अब तानाशाही के ख़ात्मे और मौजूदा सत्ता में बदलाव से कम हमें कुछ भी मंज़ूर नहीं. "
मोरैलिटी पुलिस क्या है?
ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद मोरैलिटी पुलिस के कई रूप देखने को मिले. लेकिन इसका हालिया रूप ग़श्त-ए-इरशाद सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा. ईरानी पुलिस का यही वो हिस्सा है जो महिलाओं को हिजाब पहनाने के साथ इस्लामिक क़ानूनों को सख़्ती से लागू कराना सुनिश्चित कर रहा था.
इन्होंने 2006 से ही अपनी पेट्रोलिंग शुरू कर दी थी. इस दौरान ये लोग तय करते थे कि कोई भी महिला बिना हिजाब के नहीं निकले. महिलाएं शॉर्ट्स, फटी हुई जीन्स की बजाय पूरी लंबाई तक के कपड़े पहनें.
साल 1979 की क्रांति के बाद से ही ईरान में सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए 'मोरैलिटी पुलिस' कई स्वरूपों में मौजूद रही है.
इनके अधिकार क्षेत्र में महिलाओं के हिजाब से लेकर पुरुषों और औरतों के आपस में घुलने-मिलने का मुद्दा भी शामिल रहा है.
लेकिन महसा अमीनी की मौत के लिए ज़िम्मेदार बताई जा रही सरकारी एजेंसी 'गश्त-ए-इरशाद' ही वो मोरैलिटी पुलिस है जिसका काम ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करना है.
'गश्त-ए-इरशाद' का गठन साल 2006 में हुआ था. ये न्यायपालिका और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स से जुड़े पैरामिलिट्री फ़ोर्स 'बासिज' के साथ मिलकर काम करता है.(bbc.com/hindi)