संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मोरक्को की इस जीत को मुस्लिम जीत करार देना कितना जायज?
12-Dec-2022 4:00 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :   मोरक्को की इस जीत  को मुस्लिम जीत करार  देना कितना जायज?

इंटरनेट पर अभी एक बड़ी दिलचस्प बहस चल रही है कि मोरक्को ने पुर्तगाल को हराकर विश्वकप फुटबॉल में सेमीफाइनल में जो जगह बनाई है, उसे एक मुस्लिम जीत बताना कितना जायज या नाजायज है। सदियों तक अरब राज झेलने वाला अफ्रीकी देश मोरक्को 97 फीसदी मुस्लिम आबादी वाला देश है। और फुटबॉल के इतिहास का यह पहला मौका है कि एक अफ्रीकी देश इतने ऊपर तक पहुंचा है। इस विश्वकप टूर्नामेंट में अकेला मोरक्को ही मुस्लिम बहुल आबादी वाला देश है, और इसकी जीत के बाद जिस तरह इसके एक स्टार खिलाड़ी की बुर्का पहनी हुई मां मैदान पर पहुंची, और मां-बेटे ने जिस तरह खुशी में डांस किया, उससे भी खिलाडिय़ों का धर्म पता लग रहा था। इन खिलाडिय़ों ने मैच के दौरान हर गोल करने पर खुदा का शुक्रिया अदा किया था, और मैदान पर ही जीत को मनाने के लिए धरती पर सिर झुकाकर खुदा को याद किया था। यहां तक की बात तो ठीक थी, लेकिन सोशल मीडिया पर जिस तरह बहुत से लोगों ने इसे एक मुस्लिम जीत बताया, उससे भी यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या फुटबॉल के इतिहास की इसके पहले की तमाम जीतें ईसाई जीत थीं?

मोरक्को एक छोटा सा देश है, साढ़े तीन करोड़ की आबादी है, 97 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम हैं। यह आसानी से माना जा सकता है कि यहां के खिलाडिय़ों ने अपनी बाकी आबादी की तरह इस्लाम के अलावा बहुत कम और कुछ देखा होगा। अभी पौन सदी पहले तक हिन्दुस्तान का हिस्सा रहने वाले पाकिस्तान के खिलाड़ी भी क्रिकेट के मैदान पर मैच के बाद सवालों का जवाब देने के पहले अल्लाह को याद करते हैं, और उसके जिक्र से ही बात शुरू करते हैं। इसलिए अगर इस जीत को दुनिया के मुस्लिम एक मुस्लिम जीत करार दे रहे हैं, तो इसकी कई वजहें हैं जिनको समझना चाहिए। पहली बात तो यह कि यह एक अब तक की कमजोर टीम के इतने आगे आने का मौका है जो कि अफ्रीकी इतिहास में पहली बार हुआ है। दूसरी बात यह कि यह कामयाबी एक बहुत छोटे से देश ने हासिल की है जहां कि तकरीबन तमाम आबादी मुस्लिम है। इसलिए मोरक्को की इस कामयाबी को अगर दुनिया के तमाम मुसलमान एक मुस्लिम-कामयाबी मान रहे हैं, तो उसमें भी कोई अटपटी बात नहीं है। इसे इस्लाम की जीत तो करार नहीं दिया जा रहा है, और न ही इसे ईसा मसीह पर अल्लाह की जीत कहा जा रहा है। आज यह समझने की जरूरत है कि दुनिया भर में मुस्लिमों को अपनी धर्म की वजह से जितने किस्म के तनावों का सामना करना पड़ रहा है, वे कम नहीं हैं। दुनिया के कई देशों में इस्लाम के नाम पर आतंक करने वाले संगठनों ने पूरी दुनिया में मुस्लिमों के लिए जीना मुश्किल कर रखा है। ऐसे में अगर पूरी तरह से मुस्लिम टीम को ऐसी कोई जीत मिली है, तो उस पर दुनिया के मुसलमानों का खुश होना नाजायज नहीं है। यह धर्म की जीत नहीं है, लेकिन यह मुस्लिम खिलाडिय़ों की कामयाबी तो है ही।

यह भी समझने की जरूरत है कि दुनिया के जिन पेशों में धर्म की कोई भूमिका नहीं है, वहां पर भी धर्म को जगह मिलती है। हिन्दुस्तान में ही फौज में तमाम धर्मों की उपासना की सहूलियत मुहैया कराई जाती है, और पंडित से लेकर मौलवी, ग्रंथी, और पादरी तक नियुक्त किए जाते हैं। इसलिए अगर खिलाड़ी अपने धर्म का प्रदर्शन कर रहे हैं, तो यह प्रदर्शन दुनिया के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी करते हैं, दुनिया के फिल्म कलाकार भी करते हैं, और अपनी पोशाक से बहुत से पत्रकार और साहित्यकार भी अपने धर्म का प्रदर्शन करते हैं। कामयाबी के मौकों पर इनमें से बहुत से लोग अपने ईश्वर को धन्यवाद देते हैं, इसलिए मोरक्को की टीम का अपने ईश्वर को धन्यवाद देना भी अटपटा नहीं है, दुनिया की अनगिनत टीमों के खिलाड़ी किसी मैच के पहले या किसी जीत के बाद अपने गले के क्रॉस को चूमते हुए दिखते हैं। यह भी समझने की जरूरत है कि विश्वकप फुटबॉल की टीमों में मोरक्को अकेली पूरी तरह से मुस्लिम खिलाडिय़ों की टीम है। अपने पूरी तरह से मुस्लिम देश से आकर वे कामयाबी पा रहे हैं, ऐतिहासिक कामयाबी पा रहे हैं, दुनिया की एक दिग्गज टीम को हरा रहे हैं, तो वे अपने ईश्वर का शुक्रिया तो अदा करेंगे ही।

दुनिया में जो धर्म निशाने पर रहता है, उसके लोगों में एकजुटता भी आती है, और आत्मरक्षा के लिए वे तरह-तरह के काम करते हैं। दुनिया के इतिहास में जब और जहां जिस धर्म के लोगों पर हमले हुए, उनकी बसाहट एक साथ होने लगी ताकि वे मुसीबत के समय एक-दूसरे के काम आ सकें। हिन्दुस्तान में ही 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के बाद बहुत से शहरों ने सिक्खों के मुहल्लों में और अधिक सिक्खों के आने को देखा। इसी तरह आज जब मुस्लिम देशों में आतंक की वजह से, सरकारों की नाकामयाबी की वजह से, मुस्लिम रिवाजों के पश्चिमी देशों में विरोध की वजह से मुस्लिम समुदाय के लोग एक अभूतपूर्व तनाव से गुजर रहे हैं। दुनिया के कई देशों में पहुंचते ही वहां विमानतलों पर उन्हें उनके मुस्लिम नाम की वजह से, या उनके मुस्लिम देश की वजह से घंटों तक अतिरिक्त पूछताछ का सामना करना पड़ता है। ऐसी तमाम वजहों से लोगों में अपने धार्मिक रिवाजों के लिए अधिक उत्साह पैदा होता है। इसलिए आज अगर मोरक्को की जीत को दुनिया के बहुत से प्रमुख मुसलमान भी मुस्लिमों की जीत कह रहे हैं, पाकिस्तान के पिछले प्रधानमंत्री इमरान खान इसे एक मुस्लिम टीम की जीत कह रहे हैं, तो इसमें अटपटी बात कुछ नहीं है। फुटबॉल का यह विश्व मुकाबला एक धर्म के खिलाडिय़ों की इतनी बड़ी कामयाबी पहली बार देख रहा है, और लोगों का उत्साह किसी दूसरे धर्म की टीम के खिलाफ नहीं है, दूसरे धर्म के खिलाडिय़ों के खिलाफ नहीं है, इसलिए मुस्लिमों का यह आत्मगौरव हिंसक नहीं है, और यह उनका हक बनता है।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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