संपादकीय

कल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में दिनदहाड़े खुली सडक़ पर एक दबंग की कार रोककर किसी ने उसे गोलियों से भून डाला। आधा दर्जन फायर किए गए, और कार की सीट पर बैठे हुए ही संजू त्रिपाठी नाम के इस निगरानीशुदा बदमाश की मौत हो गई। कार के सामने जिला कांग्रेस महामंत्री की तख्ती लगी हुई थी, और इस मृतक ने अपने तीन-तीन फेसबुक अकाऊंट पर अपना यही पदनाम लिखकर रखा था। जब चारों तरफ खबरों में फैला कि सत्तारूढ़ पार्टी के जिला महामंत्री की इस तरह सडक़ पर हत्या हो गई, तो जिस रफ्तार से पुलिस ने हत्यारे की तलाश शुरू की होगी, उसी रफ्तार से उसने इस बात का खंडन जारी किया कि मृतक किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ था। यह बात अपने आपमें हैरान करती है कि पुलिस कैसे किसी राजनीतिक दल, या सभी राजनीतिक दलों की तरफ से कोई सफाई दे सकती है कि मरने वाला उनका सदस्य या पदाधिकारी नहीं था? लेकिन पुलिस को एक हत्या, और सत्तारूढ़ पार्टी के एक नेता की हत्या में ऐसा बड़ा फर्क दिख रहा था कि वह आनन-फानन प्रेसनोट जारी कर रही थी कि मरने वाला किसी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं था, मानो राजनीतिक दल से परे के किसी की हत्या हो जाना कम अहमियत की बात है।
पुलिस ने आनन-फानन इस मृतक पर दर्ज दर्जनों मामलों की जानकारी जारी की कि यह पुराना आदतन अपराधी था, और इस पर तरह-तरह के हथियारबंद जुर्म करने के मामले दर्ज थे। मामलों की यह लिस्ट 40 पेज लंबी थी, और यह जाहिर है कि यह पुलिस के पास पहले से तैयार थी। अब हैरानी की बात यह है कि अगर इतने अपराधों से जुड़ा हुआ एक आदतन अपराधी अपनी महंगी और बड़ी सी कार पर जिला कांग्रेस महामंत्री की तख्ती लगाकर चल रहा है, तो भी न यह कांग्रेस को दिक्कत की बात लग रही, और न ही पुलिस को। अब कम से कम इस मामले के सामने आने के बाद राजनीतिक दलों को चौकन्ना हो जाना चाहिए कि उनकी पार्टी या पदों के नाम की तख्ती लगाकर घूमने वाले लोग कैसे हैं। इस मृतक के फेसबुक पेज पर उसके जितने तरह के पोस्टर दिख रहे हैं, उन पर भी कांग्रेस के पदाधिकारी होने का बड़ा साफ-साफ जिक्र है। तो क्या कांग्रेस पार्टी जनता से इतनी कट गई है कि गुंडे-मवाली उसके नाम का इस्तेमाल करें, उसके पदाधिकारी होने का दावा करें, और उसे पता भी न चले?
यह एक मामला इस बात का भी नमूना है कि यह आदमी पदाधिकारी सचमुच था या नहीं था, यह तो अलग बात है, लेकिन अपनी गाड़ी पर ऐसी तख्ती लगाकर घूमते हुए यह अपने अपराधों के लिए एक राजनीतिक आड़ तो इस्तेमाल कर ही रहा था। इसके ऊपर जिस तरह दर्जनों गंभीर मामले दर्ज हैं, वे अपने आपमें हैरान करते हैं कि इन सबके बावजूद यह आदमी बिलासपुर में खुलेआम घूम रहा था, और हर कुछ दिनों में कोई नया जुर्म कर भी रहा था। किसी शहर में ऐसी गुंडागर्दी करने वाले मुजरिम के खिलाफ तो सत्तारूढ़ पार्टी को खुद होकर भी कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन पार्टी से अपने युवक कांग्रेस के दिनों से जुड़ा हुआ यह मुजरिम डंके की चोट पर पार्टी का पदाधिकारी बना घूमते रहा, और किसी ने यह सिलसिला नहीं रोका।
छत्तीसगढ़ के शहर-कस्बों का यह आम हाल है कि यहां न सिर्फ सत्तारूढ़ पार्टी, बल्कि कोई दूसरे राजनीतिक दल, सामाजिक और धार्मिक संगठन, साम्प्रदायिक संगठन, सभी तरह की तख्तियां लगाकर लोग चलते हैं, और पुलिस किसी पर भी कार्रवाई करने से बचती है। ऐसा शक्तिप्रदर्शन पुलिस को धमकाने के लिए ही रहता है, और उसका असर यहां होते दिखता है। गाडिय़ों के लिए बने कानून में ऐसी तख्तियों पर तगड़े जुर्माने का इंतजाम है, लेकिन जुर्माना करने वाला पुलिस अमला इनसे सहमकर ही रहता है। ऐसे शक्तिप्रदर्शन का नतीजा यह होता है कि राजनीतिक दलों के पदाधिकारी गुंडागर्दी करने लगते हैं, और गुंडे राजनीतिक दलों के पदाधिकारी बनने की कोशिश करते रहते हैं ताकि उन्हें किसी भी कानूनी कार्रवाई का सामना न करना पड़े। यह सिलसिला पूरी तरह खत्म होना चाहिए। लेकिन दिक्कत यह है कि सांसद और विधायक, जज और बड़े-छोटे अफसर, सभी लोगों को तख्तियां लगाकर गाडिय़ों का हॉर्सपावर बढ़ाने का शौक रहता है, और यह आदत संक्रामक रोग की तरह बाकी लोगों में फैलती रहती है। जिन राजनीतिक दलों के लोग ऐसी तख्तियां लगाकर सड़क़ों पर शक्तिप्रदर्शन करते हैं, उन्हें जनता की नाराजगी भी मिलती है, लेकिन चूंकि सभी छोटी-बड़ी पार्टियों के लोग इस मनमानी में एक जैसे जुटे हुए हैं, इसलिए चुनाव में नुकसान का किसी को पता नहीं लगता है। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। और कल बिलासपुर में इस हत्या के बाद जिस तरह सत्तारूढ़ पार्टी से उसका रिश्ता न होने की बात कही जा रही है, तो सभी पार्टियों को ऐसी वारदात के पहले भी मुजरिमों से अपने रिश्तों, और अपनों से मुजरिमों के रिश्तों पर गौर कर लेना चाहिए।