संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीकी संसद पर हमले की संसदीय जांच कमेटी ने कहा ट्रंप पर क्रिमिनल केस चले
20-Dec-2022 3:30 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय  : अमरीकी संसद पर हमले की  संसदीय जांच कमेटी ने कहा  ट्रंप पर क्रिमिनल केस चले

अमरीकी संसद की एक जांच कमेटी ने पिछले राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को चुनाव हारने के बाद 6 जनवरी को संसद पर हुए हमले को उकसाने और हमलावरों की मदद करने का कुसूरवार मानते हुए अमरीका के न्याय विभाग से सिफारिश की है कि ट्रंप पर कुछ अपराधों को लेकर आपराधिक मुकदमा चलाना चाहिए। अठारह महीने से यह संसदीय समिति संसद पर हमले की जांच कर रही थी, और उसने ट्रंप पर चार आरोपों को सही पाया है। कमेटी के सामने ट्रंप के बहुत से सहयोगियों के भी शपथपूर्वक बयान हुए थे, और जांच कमेटी ने ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के सांसद भी थे। कमेटी ने डेढ़ सौ पेज की रिपोर्ट में कहा है कि संसद और सरकार के खिलाफ विद्रोह को उकसाने, विद्रोहियों की मदद करने, उन्हें मदद का वायदा करने, सरकारी और संसदीय कामकाज में बाधा डालने, अमरीका के साथ धोखा करने, और गलत बयान देने की साजिश के लिए आपराधिक मुकदमा चलाया गया। लोगों को याद होगा कि 6 जनवरी 2021 को जब ट्रंप चुनाव हार चुके थे, और जो बाइडन अगले राष्ट्रपति की शपथ लेने को थे, तब ट्रंप के हजारों समर्थक आदिम हमलावरों की शक्ल में संसद में घुस गए थे, तोडफ़ोड़ और आगजनी की थी, सांसदों को टेबिलों के नीचे छुपकर जान बचानी पड़ी थी, और टीवी पर यह सब हिंसा देखते हुए ट्रंप अपने सहयोगियों की भी यह सलाह तीन घंटे से अधिक तक अनसुनी करते रहे कि उन्हें अपने समर्थकों को हिंसा रोकने के लिए कहना चाहिए। बल्कि ट्रंप सार्वजनिक रूप से जो बयान दे रहे थे, वे चुनावों को फर्जी करार देने वाले, और इस हमलावर भीड़ को देशभक्त बताने वाले थे। इस कमेटी ने संसद पर हमले और टीवी पर हमला देखते ट्रंप को उनके कमरे से देखने वाले हजार से ज्यादा लोगों के बयान लिए थे, और ऐसे तमाम हलफिया बयानों में डेढ़ बरस का समय लगा था। छह जनवरी को करीब 24 घंटे यह हमला चलते रहा, और इसमें पांच लोगों की मौत हुई थी, और सौ से अधिक घायल हुए थे। यह दो बरस के भीतर का इतिहास है इसलिए आज के अधिकतर लोगों को इसकी याद भी होगी।

अमरीका की व्यवस्था के तहत न्याय विभाग संसद और सरकार से परे भी फैसले लेता है, और सरकार का विभाग होने के बावजूद वह कानूनी मामलों में खुद फैसले लेता है। इसके मुखिया वहां के अकादमी जनरल होते हैं, जो सीधे राष्ट्रपति को रिपोर्ट करते हैं। अमरीकी परंपराएं बताती हैं कि इसके हर फैसले पर जरूरी नहीं है कि अमरीकी राष्ट्रपति की सहमति लगी हो। लोगों को यह भी याद होगा कि ट्रंप के घर पर छापा मारकर अमरीका की सबसे बड़ी जांच एजेंसी एफबीआई ने सैकड़ों अतिगोपनीय कागजात जब्त किए थे जो कि रद्दी के गट्ठों में पड़े हुए थे, उनके घर पर बिखरे हुए थे। उसे लेकर भी उन पर मुकदमा चलाने की बात चल ही रही थी कि अब यह संसदीय कमेटी की रिपोर्ट आ गई है।

एक तरफ तो अमरीका में आजादी का हाल यह है कि चुनाव हारा हुआ राष्ट्रपति संसद पर हमला करवा सकता है, चुनावों को धोखाधड़ी करार दे सकता है, और लोगों को अराजकता और बगावत के लिए भडक़ा सकता है कि वे इन नतीजों को न मानें। दूसरी तरफ मौजूदा राष्ट्रपति पर भी संसद महाभियोग चला सकती है, इतिहास में चला चुकी है, और ट्रंप पर अगर ये आपराधिक मुकदमे चलते हैं तो हो सकता है कि उनका बाकी जिंदगी किसी भी चुनाव लडऩे का हक खतम ही हो जाए। इस तरह आज अमरीका एक अभूतपूर्व हालात का सामना कर रहा है जिसमें ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के भीतर भी उनके खिलाफ आवाज उठ रही है, लोग उनका विरोध कर रहे हैं। और सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति जो बाइडन अपनी गिरती हुई लोकप्रियता के बाद भी वहां हाल में हुए मध्यावधि चुनावों में उम्मीद से अधिक जीत पा चुके हैं, और ट्रंप के करीबी समझे जाने वाले, उनके छांटे हुए रिपब्लिकन उम्मीदवार चुनाव हार चुके हैं।

ट्रंप ने अपने चार बरस के कार्यकाल में लगातार परले दर्जे के एक दकियानूसी और संकीर्णतावादी नेता की तरह घोर नस्लवादी रूख दिखाया, देश के अल्पसंख्यकों के हक कुचलने की कोशिश की, दूसरे देशों से आने वाले प्रवासी कामगारों के खिलाफ जंग सी छेड़ दी, और गरीबों के खिलाफ अपना वैसा ही रूख दिखाया जैसा कि कोई पक्का कारोबारी दिखा सकता है। यहां तक भी बात उनकी पार्टी और उनकी विचारधारा की हो सकती थी, लेकिन ट्रंप पर लगे हुए कई दूसरे आरोप बताते हैं कि उन्होंने चुनावी चंदे का इस्तेमाल अपने वकीलों पर किया, कारोबार में टैक्स चुराने तरह-तरह की धोखाधड़ी की, एक सनकी बादशाह की तरह अमरीकी सरकार को हांकने की कोशिश की, जिन कारोबारियों से वे असहमत थे, उनके खिलाफ तरह-तरह की जांच शुरू करने के लिए अपने अफसरों को उकसाया, और तमाम ऐसी बातें कीं जो कि अमरीकी लोकतंत्र में मंजूर नहीं की जाती हैं। लेकिन यह बददिमागी बढ़ते-बढ़ते चुनावी नतीजों को खारिज करने तक पहुंच गई, और जनता के फैसले के खिलाफ खुली हिंसक बगावत करवाने तक। नतीजा यह हुआ कि उनके हिंसक समर्थकों ने संसद पर ऐसा भयानक हमला किया जैसा कि हॉलीवुड की किसी फिल्म में ही सोचा जा सकता था, असल अमरीका में नहीं।

अमरीकी न्याय विभाग को ट्रंप के खिलाफ ऐसे गंभीर अपराधों के पुख्ता सुबूतों का इस्तेमाल करना चाहिए, और उन्हें अदालत के कटघरे तक ले जाना चाहिए। शायद ऐसा होगा भी। ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी भी ट्रंप की हरकतों से थकी हुई है, और उसके भी कई लोग यह चाहते हैं कि अगले चुनाव में ट्रंप को राष्ट्रपति बनाने के लिए फिर काम करने की नौबत न आए, और ट्रंप से इस तरह छुटकारा मिल जाए। जब पार्टी राजनीतिक रूप से ट्रंप से छुटकारा नहीं पा सक रही है, तब वह अदालत की किसी कार्रवाई की वजह से मिल सकने वाले ऐसे छुटकारे को काम का समझ सकती है। वैसे भी अमरीकी लोकतंत्र में बाकी ट्रंप सरीखे लोगों को यह सबक मिलना चाहिए कि लोकतंत्र पर ऐसा जानलेवा हमला करके किसी की जगह दुबारा कोई निर्वाचित दफ्तर नहीं हो सकता, जेल ही हो सकती है।

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