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परवीन शाकिर: एक बेटे की यादों में माँ की कहानी
29-Dec-2022 9:21 AM
परवीन शाकिर: एक बेटे की यादों में माँ की कहानी

परवीन शाकिरइमेज स्रोत,MURAD ALI

-मोहम्मद इसरार

  • 26 दिसंबर 1994 को इस्लामाबाद में एक सड़क दुर्घटना में मौत
  • परवीन शाकिर उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं. उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है.
  • 1977 में पहला काव्य संग्रह ख़ुशबू प्रकाशित, प्राक्कथन में लिखा, 'जब हौले से चलती हुई हवा ने फूल को चूमा था तो ख़ुशबू पैदा हुई.'
  • बीबीसी उर्दू ने दिसंबर 2020 में उनके बेटे सैयद मुराद से अपनी माँ पर विस्तार से बात की थी.

"मां का ख़्याल हर वक़्त आता है लेकिन जब कोई त्योहार हो, ख़ुशी का या ईद का मौक़ा हो तो उस वक़्त अम्मी का ख़्याल ज़्यादा आता है, सब लोगों के ख़ानदान इकट्ठे होते हैं तो कमी तो महसूस होती है कि मेरी अम्मी मेरे साथ नहीं हैं."

यह कहना था सैयद मुराद अली का जो पाकिस्तान की नामवर शायरा परवीन शाकिर के इकलौते बेटे हैं.

परवीन शाकिर 26 दिसंबर 1994 को एक ट्रैफ़िक हादसे का शिकार होकर गुज़र गई थीं. उस समय मुराद की उम्र 15 वर्ष थी और वे बारहवीं के छात्र थे.

परवीन शाकिर पाकिस्तान में एक रोमानी शायरा की हैसियत से पहचानी जाती हैं. उनकी शायरी का विषय अधिकतर प्रेम और स्त्री था. उनका संबंध एक साहित्यिक घराने से था. वह पठन-पाठन के क्षेत्र से जुड़ी रहीं और फिर बाद में सिविल सर्विसेज़ का इम्तिहान देने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली थी.

दुर्घटना का दिन
बीबीसी से विशेष बातचीत में मुराद अली ने बताया कि उन्हें आज भी 26 दिसंबर की वह सर्द सुबह याद है जब उनकी मां एक दुर्घटना के कारण उनसे हमेशा के लिए जुदा हो गईं.

मुराद अली का कहना था, "बारिश हो रही थी, अम्मी हमेशा की तरह तैयार होकर ऑफिस चली गईं. लगभग 9:30 बजे फ़ोन आया कि आपकी अम्मी दुर्घटना की शिकार हो गई हैं आप 'पिम्स' ( पाकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़) आ जाएं."

मुराद ने तुरंत परवीन शाकिर की क़रीबी दोस्त परवीन क़ादिर आग़ा को फ़ोन किया. वह भी अस्पताल आ गईं.

मुराद बताते हैं, "उस दिन बारिश हो रही थी, ट्रैफ़िक सिग्नल काम नहीं कर रहे थे और बस ने उनकी कार को टक्कर मार दी."

"अस्पताल पहुंचने पर मुझे बताया कि गया कि जब उन्हें (परवीन शाकिर को) लाया गया तो उनकी नब्ज़ चल रही थी लेकिन फिर उनकी मौत की ख़बर दी गई."

'उनकी ख़ुशी की धुरी मैं था'
मुराद को अपनी मां के साथ गुज़ारे गए लम्हों की कमी आज भी खलती है.

उनका कहना था, "मम्मी जितनी भी व्यस्त होतीं, रात का खाना घर पर खाती थीं और खाने की टेबल पर हमारी बातें होतीं, स्कूल में कैसा दिन गुज़रा? पढ़ाई कैसी चल रही है? दोस्तों के साथ वक़्त कैसा गुज़र रहा है? और थोड़ी सी राजनीतिक बातें भी होती थीं हालांकि उस समय मैं छोटा था, मुझे समझ नहीं आती थी."

मुराद अली का कहना है कि वह खाने के मामले में बहुत नखरे करते थे लेकिन उनकी मां उनकी पसंद के खाने भी बनातीं. "अम्मी के हाथ का मटर पुलाव मुझे बहुत पसंद था और अम्मी रोहू मछली बनाया करती थीं जो मुझे बहुत पसंद थी."

मुराद कहते हैं, "उनकी ख़ुशी की धुरी मैं था."

"अम्मी व्यस्त होती थीं, मुशायरा और ऑफ़िस के कामों के बाद जो समय बचता था, वह मेरे हिस्से में आता था और वही कुछ यादें हैं उनकी जो मेरे पास हैं."

मुराद का कहना था, "पाकिस्तान में सिंगल मदर होना बहुत मुश्किल है. वह मुशायरे में भी जातीं, ऑफ़िस भी जातीं और घर पर भी टाइम देतीं. वह मल्टी टास्किंग करती थीं."

"मुझे आज इस बात का एहसास होता है कि वह काफ़ी मेहनत करती होंगी, बहुत मुश्किल से वक़्त गुज़ारती होंगी. वह बहुत सारी चीजें एक साथ करती थीं. मुझे समझ नहीं आता कि वह किस तरह यह मैनेज करती थीं."

मुराद ने बताया कि अमेरिका में रहने के दौरान भी उनकी मां ने व्यस्तता के बावजूद उनकी ख़ुशी का ख़्याल रखा. ऐसी ही एक सुखद घटना का उल्लेख करते हुए वह मुस्कुरा दिए.

उनका कहना था, "हमें दो साल होने को थे अमेरिका में रहते हुए और 10-12 साल के बच्चे को कार्टून देखने का कितना शौक़ होता है और अमेरिका में होते हुए एक जगह जाने का बहुत दिल करता था कि डिज़्नी लैंड देखें, मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ था कि हम वहां नहीं जा सके."

"एक दिन मम्मी ने कहा कि हम एक नई जगह जा रहे हैं. मैंने पूछा कहां जा रहे हैं तो मम्मी ने कहा चलते हैं बस. फिर अगले दिन वह मुझे डिज़्नी लैंड ले गईं."

मुराद ने कहा कि उस दिन वह इस बात पर बहुत ख़ुश थे कि उनकी मां ने उनकी ख़्वाहिश को याद रखा.

'मुझे दूर भेजना चाहती थीं'
मुराद अली परवीन शाकिर की इकलौती संतान थे और उनके प्यार का केंद्र भी लेकिन वह फिर भी उन्हें ख़ुद से दूर रखना चाहती थीं.

इसका कारण बताते हुए मुराद का कहना था, "वह मुझे कहती थीं कि आपको बोर्डिंग स्कूल में डाल देंगे. पहले जब मैं छोटा था तो मुझे एचिसन में डालना चाहती थीं, फिर हसन अब्दाल कैडेट कॉलेज में डालने को कहा और फिर लॉरेंस कॉलेज की बात हुई."

"मैंने उनसे कहा आप मुझसे मोहब्बत करती हैं, यह सब अच्छी जगहें हैं लेकिन मैं आपका इकलौता बेटा हूं, मैं नहीं जाना चाहता."

मुराद के अनुसार उनके बोर्डिंग स्कूल जाने से इनकार पर परवीन शाकिर ने उनसे एक फ़रमाईश की.

"उन्होंने कहा ठीक है, मुझे एक लंबा सा ख़त लिखो, फिर मुझे बताओ कि तुम क्यों नहीं जाना चाहते?"

"फिर मैंने ख़त लिखा और अम्मी ने पढ़ा तो कहने लगीं कि ठीक है तुम नहीं जाना चाहते तो फिर हमारे साथ ही रहोगे."

मुराद अली का कहना था कि उनकी शिक्षा और भविष्य के बारे में उनकी मां ने स्पष्ट दिशा निर्देश दे रखे थे.

"उनका कहना था कि तुम डॉक्टर बनो और वह भी न्यूरो सर्जन, जो बहुत मुश्किल पढ़ाई होती है. तुम वह करो और वह इस पर बहुत ज़ोर देती थीं."

उनका कहना था कि वह उनकी पढ़ाई के मामले में समझौता नहीं करती थीं, यहां तक कि एक बार नंबर कम आने पर उनके दोस्तों के सामने उन्हें डांट दिया था.

मुराद मानते हैं कि उनकी मां परवीन शाकिर बहुत दूरदर्शी थीं. "वह कहती थीं मुराद तुम कंप्यूटर ज़रूर पढ़ना, कंप्यूटर बहुत ज़रूरी है, आगे दुनिया उसी तरफ़ जाएगी और उनकी यह बात सच साबित हुई."

मुराद ने बताया कि उन्होंने मास्टर्स कंप्यूटर साइंस में की है. "मैं सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बन गया हूं. मैं टेस्ला कंपनी में काम करता हूं. यह वही कंपनी है जो इलेक्ट्रिक कार बनाती है. वह अगर होतीं तो वह बिल्कुल संतुष्ट होती कि मैं सफल हो गया हूं और वह ख़ुश होतीं."

मुराद अली का कहना था कि परवीन शाकिर उनसे हमेशा मेहनत करने के लिए कहतीं और "वह ख़ुद बेहद मेहनती थीं."

"एक चीज़ जो अम्मी की ज़िंदगी से मैंने ली है वह है मेहनत करना. मुझे उन्होंने एक बार कहा था कि नौकरी करना मेरे लिए ज़रूरी नहीं है, मेरी किताबों की रॉयल्टी आती है वही काफ़ी है. मैं नौकरी इसलिए करती हूं कि तुम ज़्यादा पढ़ जाओ और एक अच्छे आदमी बन जाओ."

"वह कहती थीं कि मेहनत करोगे तो कुछ बन जाओगे, मेहनत के बिना कुछ नहीं बन सकोगे."

मुराद को अपनी मां परवीन शाकिर की ज़िंदगी के वह लम्हे भी याद हैं जब वह खाने के बाद चहलक़दमी करते हुए शाइरी किया करती थीं.

"अम्मी को टहलने का बड़ा शौक़ था, ख़ासतौर पर खाने के बाद वह ख़ुदकलामी (स्वलाप) करतीं, शायद वह शेर पढ़ती थीं या शायद शेर दोहरा रही होती थीं."

मुराद बताते हैं कि वह उन लम्हों में सोच रही होती थीं. "जब उनको कोई चीज़ अच्छी लगती थी तो वह अपनी डायरी में लिख लेतीं. उनकी एक दो डायरियां थीं जो नामुकम्मल थीं."

मुराद अली ने बताया कि परवीन शाकिर की यह अधूरी शायरी संकलित करवाने के बाद 'कफ़-ए-आईना' (आईने की हथेली) के नाम से प्रकाशित हुई. अपनी इस किताब का नाम परवीन शाकिर पहले ही तय कर चुकी थीं.

मेरी बेटियां पूछती है दादी कैसी थीं?
मुराद ने अपनी मां के नाम को अपनी आवाज़ में शामिल रखने के लिए अपनी बड़ी बेटी के नाम का एक हिस्सा परवीन रखा है.

उनका कहना था, "मेरी दो बेटियां हैं. बड़ी का नाम शानज़े परवीन अली है. वह सात साल की है. परवीन मैंने अम्मी की तरफ़ से रखा है और दूसरी का नाम आरया है."

"वो पूछती हैं अपनी दादी के बारे में, घर में कई जगहों पर उनकी तस्वीरें और मेडल वग़ैरा लगे हुए हैं तो वह पूछती हैं कि ये कौन है? मैं कहता हूं आपकी दादी जान हैं, तो उस वक़्त यह अफ़सोस होता है कि अम्मी मिल नहीं सकीं, उस वक़्त अम्मी का बहुत ख़्याल आता है."

"काश इस वक़्त वह यहां पर होतीं तो इन बच्चों से उनका एक लगाव होता."

परवीन शाकिर की मौत के बाद पाकिस्तान सरकार ने मुराद की तालीम का बीड़ा उठाया था.

मुराद अली का कहना था, "अम्मी के जाने के बाद बहुत तन्हाई महसूस की क्योंकि मेरा न कोई भाई था और न बहन. ऐसे में मेरी ख़ाला और नानी मेरे पास इस्लामाबाद आकर रहने लगीं."

पाकिस्तान सरकार ने कैसे की मुराद की मदद?
परवीन शाकिर की मौत के बाद उनके दोस्तों ने जितना संभव हो सका कोशिश की कि वह उन्हें मां की कमी महसूस ना होने दें.

मुराद का कहना था, "मुझे अम्मी के दोस्तों ने मिलकर पाला है. हालांकि मां की जगह तो कोई नहीं ले सकता लेकिन अम्मी के दोस्त मेरा ख़ानदान बन गया और उनके बच्चे मेरे भाई बहन."

मुराद के अनुसार परवीन क़ादिर न सिर्फ़ उनकी मां की हमनाम थीं बल्कि उन्होंने उनसे मां जैसी मोहब्बत भी की.

परवीन शाकिर की सरकारी नौकरी की वजह से उन्हें इस्लामाबाद में विभिन्न जगहों पर सरकारी घर मिले. उनकी मौत से पहले जो आख़िरी मकान उन्हें मिला वह जी टेन टू में था.

मुराद का कहना था, "जब अम्मी की मौत हुई तो सरकार ने यह मकान मेरे पास रहने दिया. जब तक कि मैं ग्रेजुएशन कर लूं, तो यह बड़ा सहारा बना."

मुराद ने बताया, "उस समय की प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने मेरे लिए मासिक 60 हज़ार रुपये की स्कॉलरशिप तय कर दी जो मेरे लिए बहुत मददगार साबित हुई और मैं शिक्षा पूरी कर सका."

इस्लामाबाद में दफ़्न करने का फैसला
मुराद कहते हैं कि क्योंकि परवीन शाकिर ने अपना अधिकतर जीवन इस्लामाबाद में बिताया इसलिए बड़ों ने इस्लामाबाद में उन्हें दफ़्न करने का फ़ैसला किया जिसमें वह शामिल नहीं थे.

मुराद अली बताते हैं, "अम्मी को इस्लामाबाद के एच 8 क़ब्रिस्तान में दफ़्न किया गया क्योंकि उन्होंने सारा जीवन इसी शहर में बिताया और उनके दोस्त व मिलने वाले अधिकतर यहीं पर थे."

मुराद बताते हैं,"जनाज़े में काफ़ी लोग आए थे, ब्यूरोक्रेट शायर, उनके ऑफ़िस के लोग, मेरी नानी और ख़ाला भी कराची से आई थीं और उस दिन मेरे वालिद साहब भी आ गए थे."

परवीन शाकिर ट्रस्ट

परवीन शाकिर की मौत के बाद उनके दोस्तों ने मिलकर परवीन शाकिर ट्रस्ट की बुनियाद रखी.

इस ट्रस्ट की चेयरपर्सन परवीन क़ादिर आग़ा हैं जो परवीन शाकिर की दफ़्तर में सीनियर थीं और उनकी अच्छी दोस्त भी थीं.

परवीन क़ादिर आग़ा ने बताया कि ट्रस्ट का मक़सद मुराद की परवरिश था और जब वह बड़ा हो गया तो अब उस ट्रस्ट का मक़सद परवीन शाकिर की शाइरी को उजागर करना है.

परवीन शाकिर की मौत के बाद जो उनका संकलन 'कफ़-ए-आईना' प्रकाशित हुआ. उसमें एक नज़्म नुमा ग़ज़ल नज़र आती है जो उनके बेटे मुराद के लिए लिखी हुई जान पड़ती है. उसके दो शेर उनके रिश्ते के इज़हार के लिए काफी हैं:

ख़ुदा करे तिरी आंखें हमेशा हंसती रहें

दयार-ए-वक़्त से तू शादमां गुज़रता रहे

मैं तुझको देख न पाऊं तो कुछ मलाल नहीं

कहीं भी हो, तू सितारा-ए-निशां गुज़रता रहे 

(bbc.com/hindi)

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