संपादकीय

'छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धरती से इंसानों की जंग कहां ले जाकर छोड़ेगी?
29-Dec-2022 4:46 PM
'छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :   धरती से इंसानों की जंग  कहां ले जाकर छोड़ेगी?

पिछले हफ्ते केन्द्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया कि वह देश के 81 करोड़ से अधिक गरीब लोगों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत एक बरस तक मुफ्त राशन दिया जाएगा। सरकार की तरफ से गरीबों के कुछ और दूसरे तबकों को बहुत रियायती रेट पर अनाज दिया जाता है। कोरोना लॉकडाउन के समय से केन्द्र सरकार किसी न किसी तरह से सबसे गरीब लोगों को मुफ्त या रियायती राशन देते आ रही थी, और यह अगले एक बरस तक उसी का विस्तार है। इस पर केन्द्र के करीब 2 लाख करोड़ रूपये एक बरस में खर्च होंगे। भारत में गरीबी और अनाज के इस हाल को दुनिया के कुछ दूसरे हिस्सों से जोड़कर देखने की भी जरूरत है क्योंकि धरती नाम के इस गोले पर दुनिया के तमाम देश नक्शे की सरहदों से परे भी कई तरह से एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। आज दुनिया में मौसम की मार के साथ अनाज को जोड़कर देखने की जरूरत है, और इससे भारत हमेशा अछूता रह जाएगा यह सोचना भी खुशफहमी होगी।

फिलीपींस बहुत अधिक दूर भी नहीं है, और वहां पर एक के बाद एक लगातार आए समुद्री तूफानों ने अरबों-खरबों की फसल तबाह कर दी है। तूफानी बाढ़ की वजह से 10 लाख के करीब घरों को नुकसान पहुंचा है या वे तबाह हो गए हैं, साथ ही सवा 4 लाख हेक्टेयर से अधिक फसल भी तबाह हुई है। नतीजा यह हुआ है कि महंगाई वहां सिर चढ़कर बोल रही है, और वहां के बहुत से शहरों में लोग पेट भरने के लिए भीख मांग रहे हैं। आज ही सुबह बीबीसी पर एक रिपोर्ट थी कि वहां एक कामकाजी परिवार की महिला अपने बच्चों को तीन वक्त की जगह अब दो वक्त खाना दे पा रही है, और कुछ दिन बाद एक वक्त भी खाना मिल पाएगा या नहीं इसका ठिकाना नहीं है। अनाज की कमी से चीजों के भाव आसमान पर पहुंच रहे हैं, और फिलीपींस अपना बहुत सारा अनाज आयात करता है जो कि अब आसान नहीं रह गया है। दुनिया की ब्रेड बॉस्केट कहा जाने वाला यूक्रेन रूसी हमले का शिकार हो गया है, और वहां से मौजूदा अनाज भी बहुत कम निकल पाया है, और आगे तो आबादी, खेत, फसल, ढांचा, सभी कुछ रूसी हमले से तबाह हो चुका है। ऐसे में आगे जाकर वहां भी फसल दुनिया का पेट कितना भर पाएगी इसका कोई ठिकाना नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्यान्न संगठन का कहना है कि दुनिया में 19 देशों पर भूख की मार सबसे अधिक है जिनमें अफगानिस्तान, इथियोपिया, नाइजीरिया, सोमालिया, दक्षिण सूडान, और यमन की हालत बहुत ही खराब है।

अब जंग से लेकर मौसम की मार तक, इन तमाम चीजों को जोड़कर अगर देखा जाए तो मौसम की मार ही सबसे अधिक बेकाबू है जिस पर आने वाले कई बरसों तक दुनिया की कोई ताकत काबू नहीं कर सकती। किसी जंग को तो कुछ मध्यस्थ देश रोक सकते हैं, लेकिन आज दुनिया भर में जो मौसम की सबसे बुरी मार (वेदर एक्स्ट्रीम) पड़ रही है, उससे जूझने का कोई शॉर्ट-कट नहीं है। आज अमरीका जिस तरह बर्फबारी को देख रहा है, उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। दसियों लाख लोग बिना बिजली के अपने घरों में कैद हैं, सड़कों पर लोग कारों में जमकर मर गए हैं, या मरकर जम गए हैं। बड़े-बड़े प्रदेशों में बिजली ठप्प है, और इतनी बुरी बर्फबारी को अमरीका में बॉम्बसाइक्लोन कहा जा रहा है। अब दुनिया के सबसे विकसित देश का ढांचा भी कुदरत की ऐसी मार से जरा भी नहीं जूझ सकता है। दूसरी तरफ अफ्रीका के कुछ देशों में पिछले कई बरस से लगातार जितना भयानक सूखा पड़ रहा है, उसने जानवर और इंसान दोनों का जीना मुहाल हो चुका है। पूरे-पूरे देश बगल के देशों की तरफ खिसक रहे हैं कि किसी तरह खाना और पानी मिल जाए। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ महीने पहले ही हिन्दुस्तान के बगल के पाकिस्तान में ऐसी भयानक बाढ़ आई जैसी किसी ने कभी देखी-सुनी नहीं थी। पूरे के पूरे प्रदेश बाढ़ में डूब गए, सड़क और पुल बह गए, और इमरजेंसी राहत पहुंचाने वाले हेलीकाप्टरों के उतरने के लिए भी सूखी जगह नहीं बची थी। दसियों लाख लोग बेघर हो गए थे, भूखे रह रहे थे। कुल मिलाकर बात यह है कि सूखे और बाढ़ से परे, बर्फबारी, और टिड्डी दल के हमले से परे बहुत सी ऐसी और नौबतें हैं जिनसे फसल तबाह होती है। हिन्दुस्तान में ही अभी गेहूं की पिछली फसल के दौरान जब पौधों पर अन्न के दाने विकसित होते हैं, ठीक उसी समय इतनी भयानक लू चली कि उत्तर भारत में गेहूं की फसल खूबी और वजन दोनों पैमानों पर बर्बाद हुई। और इस मौसम में ऐसी लू की किसी ने कल्पना नहीं की थी।

आज दुनिया को यह समझने की जरूरत है कि लोगों के पास आज अगर किसी तरह खाना जुट रहा है, तो जरूरी नहीं है कि यह अनाज हमेशा मिलते ही रहेगा। मौसम की मार फसलों को बहुत दूर तक बर्बाद कर रही है, और उस पर इंसानों का कोई रातोंरात का काबू भी नहीं हो सकता। आज हर बरस दुनिया में एक-दो जगहों पर मौसम के बदलाव के खतरों से जूझने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हो रहे हैं, उनमें अधिकतर देशों के बड़े नेता पहुंच रहे हैं, मौसम विज्ञानी और पर्यावरण शास्त्री इक_ा हो रहे हैं, पर्यावरण आंदोलनकारी इन मौकों पर खतरों को गिनाते हुए सभा भवनों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन दुनिया के देश अपने प्रदूषण मेें कटौती को अपनी घरेलू आबादी के बीच अलोकप्रिय मानते हुए उस पर तेजी से कटौती की बात नहीं कर रहे हैं। न तो कोयले से बनने वाली बिजली में कटौती हो पा रही है, और न ही निजी इस्तेमाल वाली बड़ी-बड़ी कारों की बढ़ती हुई गिनती की रफ्तार किसी तरह घट पा रही है। लोगों की संपन्नता उन्हें धरती की साधन-सुविधाओं के अनुपातहीन इस्तेमाल का हक दे रही है, और उस पर कोई देश कोई काबू करना नहीं चाह रहा है। नतीजा यह हो रहा है कि धरती पर गिनी हुई आबादी के बीच खपत इतनी अधिक हो चुकी है कि वह उनसे सैकड़ों या हजारों गुना अधिक गरीब आबादी की खपत को भी पीछे छोड़ चुकी है। ऐसी इंसानी बेलगाम खपत के चलते ही धरती के पर्यावरण में इतना बदलाव आ रहा है कि जगह-जगह एक्स्ट्रीम वैदर की मार इतिहास के सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है।

हम इसे अनाज से जोड़कर इसलिए देख रहे हैं कि इंसान की पहली जरूरत खाने और पानी की रहती है। हवा तो वे प्रदूषित लेना सीख चुके हैं, पानी भी गंदा रहे तो भी काम चला लेते हैं, लेकिन अगर अनाज ही नहीं रहेगा, तो क्या होगा? अभी तो दुनिया केवल एक जंग झेल रही है, हो सकता है कि रूस का यूक्रेन पर हमला बढ़कर रूस और नाटों देशों के बीच जंग में तब्दील हो जाए, और वैसे में दुनिया के और भी बहुत से खेत खत्म हो जाएंगे, अनाज और घट जाएगा। अमरीकी वैज्ञानिक संस्था नासा का एक अध्ययन कहता है कि दुनिया के मौसम में बदलाव से दस बरसों के भीतर ही फसलों पर बहुत बुरा असर देखने मिल सकता है। यह अध्ययन बताता है कि मक्के की फसल 24 फीसदी तक घट सकती है, और उत्पादन में ऐसी गिरावट पूरी दुनिया को भूख से बदहाल कर सकती है। मौसम में बदलाव से अगर भुखमरी और बढ़ी, तो दुनिया के सबसे गरीब और अकालग्रस्त देश बाकी दुनिया की रहम पर अगर जिंदा रह गए तो भी बहुत होगा, लेकिन वहां की आबादी दान पर मिले अनाज पर महज जिंदा रहने से अधिक कुछ भी नहीं कर पाएगी।

आज के अनाज की कमी को देखते हुए, गरीबी और मौसम की मार को देखते हुए सभी लोगों को यह सोचने की जरूरत है कि मौसम के बदलाव में इजाफा करने के बजाय किस तरह किफायत बरती जा सकती है ताकि धरती और अधिक तबाह न हो।

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