विचार / लेख

एटीआर में टाइगर लाने से पहले माहौल सुधारें..।
02-Jan-2023 4:22 PM
एटीआर में टाइगर लाने से पहले माहौल सुधारें..।

-प्राण चड्ढा

छतीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में अन्यत्र से टाइगर लाने की योजना पर काम शुरू है, पर जब तक यहां 19 छोटे बड़े गांवों की आबादी का दबाव है और यहां के प्रोफेशनल सोच के अफसर शहर में सुखपूर्वक बंगले में रात गुजारते रहेंगे। सवाल यह है कि क्या बाहर से लाए गए टाइगर से संतान बढ़ेगी और इतने टाइगर हो जायेगे कि पर्यटकों को जिप्सी सफारी में दिखने लगेंगे तो यह एक दिवास्वप्न है।
अचानकमार से टाइगर क्यों कम हुए और आज बाहर से टाइगर लाने की नौबत बनी है, उन समस्त कारणों का जब तक निराकरण नहीं होता, लाए जा रहे टाइगर के भी खत्म होने की आशंका बनी रहेगी।

बेहतर है कि पहले चरण में पार्क मैनेजमेंट पर जमीनी काम करें। वह गांव की आबादी व मवेशी चराई पर रोक लगाएं। साथ ही भीतरी गांवों के विस्थापन पर जोर दिया जाए। इससे टाइगर के लिए रहवास का बेहतर माहौल बनेगा। इससे किसी अन्य पार्क से आया प्रवासी टाइगर यहां से वापस नहीं जाएगा।

मध्यप्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व और छतीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में आज भी जंगल का ऐसा गलियारा है, जहां से प्राचीन काल से अब तक टाइगर आते-जाते हैं। यह बात अलग है कि कान्हा का टाइगर आता है जबकि अचानकमार में इतने टाइगर नहीं कि वे यहां से कान्हा जाएं।

मध्यप्रदेश सरकार में जब बिलासपुर के बीआर यादव वन मंत्री थे तब वे इस गलियारे को वन्यजीवों के लिए और महफूज व सघन बनाने की बात करते थे। जिस जंगली राह से टाइगर आते जाते हैं, वन प्रेमियों ने उसे भी पग-पग नापा है। इसकी वन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने 2013 और 2017 में पदयात्रा भी की थी। कान्हा और अचानकमार के बीच यह दूरी 110 किमी के करीब है। इसमें उपेंद्र दुबे,अनुभव शर्मा सहित कुछ और वन्यजीव प्रेमी तथा गुरुघासीदास केंद्रीय विवि के फारेस्ट्री विभाग के छात्रों ने शिरकत की थी।

गलियारे से टाइगर आने के कई कारण हैं, जैसे, कान्हा में टाइगर की संख्या सौ से ज्यादा है। प्रभावी नर टाइगर के प्रभुत्व का एक एरिया होता है, जहां दूसरा बड़ा नर नहीं होता। मादा जरूर वहां एक से ज्यादा हो सकती हैं। मादा की लिए नरों में अधिकतर वर्चस्व की लड़ाई होती है, जिसमें खदेड़े गए नर के सामने अपना क्षेत्र छोड़ कर भागने के अलावा जान बचाने का कोई रास्ता नहीं होता। ऐसे नर इस गलियारे से अचानकमार पहुंच सकते हैं। दूसरी तरफ कान्हा के वे युवा टाइगर जो अभी अपना एरिया बनाने योग्य नहीं हैं वे अचानकमार के जंगल में मजबूत होने तक रहने आते हैं। गर्भवती बाघिन अन्य अन्य बाघों के हमले से अपने बच्चों के मारे जाने की आशंका से अचानकमार में पहुंचती हैं। बान्धवगढ़ से आई टाइग्रेस के यहां मिलने से यह बात प्रमाणित हो गया है कि अचानकमार में टाइगर की आवाजाही बनी हुई है।

अचानकमार में चार- पांच टाइगर हैं, जिनमें एक नर टाइगर कान्हा का प्रवासी माना जाता है। यदि अचानकमार के अफसर बेहतर पार्क प्रबंधन कर एटीआर में चीतल,सांभर की वृद्धि में सफल रहा,और बेहतर जल प्रबंधन कर सका, तो निश्चित है, यहां प्रवास पर आए टाइगर यहीं के होकर रह जाएंगे।

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