विचार / लेख

बुनियादी बदलाव का सारथी क्यों नहीं बनता विज्ञान
06-Jan-2023 12:58 PM
बुनियादी बदलाव का सारथी क्यों नहीं बनता विज्ञान

- प्रकाश दुबे
आग और धारदार पत्थर को पहला वैज्ञानिक शोध मानने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तैयार हों या न हों, आम धारणा यही है। जीभ के स्वाद और जीवनशैली की सुविधा ने प्रागैतिहासिक मानव को वैज्ञानिक शोध के लिए प्रेरित किया। स्वाद और सुविधा बटोरने की ललक में वैज्ञानिक शोध हुए। 

वैज्ञानिक अनुसंधानों की बदौलत बेहतर जिंदगी की खटपट आसान हुई। रोगों से निजात पाने और दुनिया मुटठी में करने का हौसला बढ़ा। वहीं सबको भरपेट भोजन और बेहतर सुविधाएं दिलाने का लक्ष्य बदलकर व्यक्तिगत और सामूहिक लाभ की तलाश करने वालों के मुनाफे का गणित बनता गया। 16 जुलाई 1946 को जूलियस राबर्ट ओपनहाइमर परमाणु विस्फोट का प्रयोग करने में सफल हुए। बम बना। लाखों लोग मारे गए। धरती अब तक भारी विध्वंस का परिणाम भुगत रही है। 

अमेरिका की नागासाकी और हिरोशिमा पर बमबारी के बाद वेदना को व्यक्त करते हुए ओपनहाइमर ने श्रीमदभगवत्गीता के कृष्ण की उक्ति दोहराई। कहा- मैं काल (मृत्यु), दुनिया का विनाशकर्ता बना। विज्ञान के अहंकारी और मुनाफाखोर प्रयोग से अशांत कुछ वैज्ञानिकों ने पाश्चाताप करना चाहा। अल्फ्रेड नोबल की जन्मभूमि स्वीडन। पिता ने रूस में कारोबार किया। 1864 में नाइट्रोग्लिसरिन से प्रयोगशाला में विस्फोटक बना चुके थे। 25 नवम्बर 1867 को बारूद यानी डायनामाइट को इंग्लैंड से पेटेंट पा लिया। कहते हैं सगा भाई प्रयोग में प्राण गवां बैठा था। मिलते जुलते नाम के व्यक्ति की मौत के बाद खबर छपी-मौत का सौदागर चला गया। उस पल ने अल्फ्रेड नोबल को नोबल पुरस्कार आरंभ करने के लिए प्रेरित किया। 

ओपनहाइमर भौतिकशास्त्री और नोबल रसायनशास्त्री। नोबल पुरस्कार शांति प्रयासों के लिए भी दिया जाता है। यह महत्वपूर्ण है। विकास के लिए बारूद से चट्टानें तोडक़र भवन, बस्तियों, महामार्गों, कारखानों, हवाई अड्?डों का निर्माण किया जाता है। आतंकवादी और अपराध माफिया बारूदी विस्फोट कर मासूमों की जान लेते हैं। अपना उल्लू सीधा करते हैं। वैज्ञानिक और उनकी नकेल थामने वाली सत्ता विकास की आड़ में होने वाले विध्वंस और विनाश के प्रयोग रोकने को कम अहमियत नहीं देती। एक सौ आठवें विज्ञान कांग्रेस में महिला सशक्तिकरण, किसान और जनजाति समुदाय पर विमर्श की पहल महत्वपूर्ण है। उद्घाटन के बाद ही ब्ल्यू इकानामी पालिसी पर सचिव स्तर के अधिकारी ने समूचे प्रारूप पर बात रखी। सागर, मौसम आदि के बारे में केन्द्र सरकार का पृथ्वी विज्ञान विभाग शोध कराता रहता है। अटल बारी वाजपेयी सरकार के मंत्री सुंदर लाल पटवा ने सागर मंथन कर रत्नों की खोज का आदेश जारी किया था। पृथ्वी विज्ञान विभाग के सचिव डा रविचंद्रन के प्रारूप का खुलासा होने पर पता लगेगा कि मछुआरों की जिंदगी में आमूल परिवर्तन लाने में विज्ञान कितना सहायक है? मोटा अनुमान यह, कि सिर्फ मछली पालन जैसे व्यवसाय से करोड़ों लोगों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है। इस तरह के शोध और अनुसंधान प्रयोगशालाओं के बाहर संबंधित समुदाय तक पहुंचना जरूरी है। कृषि अनुसंधान के बावजूद किसान आत्महत्याएं नहीं रुक रही हैं। सही तालमेल के अभाव में?

विज्ञान को घर-घर पहुंचाने की डा एपीजे अब्दुल कलाम वाली ललक की प्रशंसा होती है। उस राह पर चलने वाले विरले हैं। राष्ट्रपति भवन से बाहर निकलने के बाद डा कलाम देश भर के युवजनों को वैज्ञानिक वातावरण से जोड़ रहे थे। गुवहाटी में विद्यार्थियों को संबोधित करते समय उन्होंने अंतिम सांस ली। पाठशाला से लेकर विश्वविद्यालय तक हमारे वैज्ञानिकों के जाने का लाभ तो होगा, इस काम के लिए विज्ञान सेना तैयार करने की आवश्यकता है। सूर्य ग्रहण से लेकर अनेक कुदरती घटनाओं के बारे में गहराई तक संशय और अंधविश्वास के कारण अनेक समस्याएं उपजती हैं।     

विकास की अवधारणा में विकेन्द्रीकरण की अनदेखी से कई बातें छूट जाती हैं। बिजलीघर बनाते समय सही मीटर रीडिंग, ऊर्जा की न्यूनतम खपत जैसे सरकारी उपाय आधे मन से किए गए। सडक़ और भवन निर्माण में फ्लाईएश का उपयोग नहीं होता तो राख के पहाड़ खेतों को लीलते जाते। देश के कम ही राज्य हैं जहां बालू और पत्थर की अवैध खुदाई और तस्करी नहीं होती। मध्य अंचल के मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में इस गैरकानूनी कारोबार में राजनीतिक हस्तियों की भागीदारी सर्वविदित है। 

15 अक्टूबर 2022 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने ऐलानिया कहा था कि मंत्री, जन प्रतिनिधि तक को जेल भेजने से नहीं हिचकेंगे। संबंधित विभागों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। जिस देश में आत्मनिभ्रर उद्योजक ड्रोन तैयार करने की क्षमता रखता है वहां हवाई निगरानी से करोड़ों की लूट से प्रकृति को विकृत करने और नौकरशाहों को भ्रष्ट करने पर अंकुश लगाने का कीमिया विज्ञान के पास है नहीं, या उसका प्रयोग नहीं होता? भ्रष्टाचार के विरुद्ध निरपेक्ष भाव से कार्रवाई करना तभी संभव है, जब विज्ञान के उपकरण उपलब्ध हों। उनका वाजिब इस्तेमाल हो। पांच-जी के युग में प्रवेश करने के बावजूद संचार सुविधा गड़बड़ाती है। 

पता नहीं, विज्ञान कांग्रेस के प्रतिनिधियों का क्या अनुभव रहा? आम नागरिक तो कामरूप से कच्छ तक इसे भुगत रहा है। भरपूर बिजली और बेहतर संचार सुविधा के घोड़े पर सवारी किए बगैर आन लाइन शिक्षा दूरदराज के देहातों तक नहीं पहुंच सकती। ग्रामोपयोगी विज्ञान की दिशा में बहुत कुछ करना शेष है। खेतों को रसायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने के सस्ते उपाय नहीं हैँ। कचरे का वर्गीकरण लोगों की समझ में ठीक से नहीं आया। उसके निस्तारण पर चर्चा कर वैज्ञानिक उपयोगी समाधान खोज लें तो अस्पतालों और महंगी दवाओं की मार से देश बचेगा। 

युवा वैज्ञानिकों ने कई सस्ते तरीके ईजाद किए हैं। देश की आजादी के बारे में तरह तरह के मापदंड हैं। सबकी अपनी परिभाषाएं। नागरिक को साफ पेयजल और निस्तारण के लिए शौचालय उपलब्ध कराने वाले देश को ही सही अर्थ में आजाद और आत्मनिर्भर कहा जा सकता है। शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगकी को सस्ता, सुबोध और सरल बनाने पर ही यह संभव है।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news