सामान्य ज्ञान

पाम ऑयल एक संतुलित वनस्पति तेल और ऊर्जा स्रोत है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक कोलस्ट्रोल मुक्त होता है और ट्रांस फेटी एसिड मुक्त तेल है। इसके अलावा इस तेल में कैरोटिनोइड होते हैं, जो विटामिन ए के मुख्य स्रोत हैं। इस तेल में विटामिन ई भी पाया जाता है। ताड़ का तेल आयल पाम एलएईस गुइनीन्सिस के फल की लुगदी से निकाला जाता है। ताड़ की गरी का तेल आयल पाम के फल की गरी (बीज) से निकाला जाता है और नारियल का तेल नारियल (कोकोस नुसिफेरा ) की गरी से प्राप्त किया जाता है। ताड़ के तेल का रंग स्वाभाविक रूप से लाल होता है, क्योंकि इसमें बीटा कैरोटीन का एक उच्च परिमाण शामिल रहता है।
पाम ऑयल का रसोई में खूब इस्तेमाल होता है क्योंकि यह सस्ता पड़ता है। यह ओलियो कैमिकल्स बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है जो साबुन, मोमबत्ती और प्लास्टिक की चीजें बनाने के काम आता है।
पाम (ताड़) वृक्ष का उद्भव पश्चिम अफ्रीका में हुआ था। इसका बीज खाद्य तेल निकालने के काम आता है और इसकी फसल बारहमासी होती है। इससे दो चीजें खासतौर से पैदा होती हैं-पाम ऑयल और पाम की गूदी का तेल जो भोजन बनाने और उद्योगों में काम आता है। यह तेल ताड़ के फल से मिलता है, जिसमें 45-55 प्रतिशत तक तेल होता है।
वर्तमान परिदृश्य में पाम ऑयल की खेती पर बहुत जोर दिया जा रहा है। भारत यह फल पैदा और खपत करने वाला प्रमुख देश है और दुनिया में पैदा होने वाले वनस्पति तेलों का 6-7 प्रतिशत भारत में पैदा होता है, जहां तिलहनों के 12-15 प्रतिशत तक के रकबे पर ताड़ की खेती होती है। हर साल देश में लगभग 27.00 मिलियन टन तिलहन पैदा होता है और घरेलू मांग पूरी करने के लिए यह काफी नहीं होता।
वर्ष 1991-1992 में देश में ऑयल पाम डेवलेपमेंट प्रोग्राम (ओपीडीपी) शुरू किया गया। यह कार्यक्रम तिलहनों और दालों से संबंधित टेक्नालॉजी मिशन का एक भाग था। इस कार्यक्रम का ज्यादा जोर आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओड़ीशा, गुजरात और गोवा पर है। 2004-05 से आगे यह कार्यक्रम तिलहनों और दालों और आयल पाम तथा मक्का के बारे में एकीकृत योजना के एक भाग के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है और 12 राज्यों में पाम आयल की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इन राज्यों में तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। तमिलनाडु में तेल के लिए ताड़ की खेती त्रिची, करूर, नागपट्टिनम, पेरमबूर, तनजाउर, तेनी, तिरूवल्लूर और तूतीकोरिन में की जाती है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत तेल के लिए ताड़ की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम लागू किया जा रहा है, ताकि अगले पांच वर्षों में इसकी पैदावार में 2.5 से 3.00 लाख टन तक की वृद्धि की जा सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रस्ताव है कि तमिलनाडु में ताड़ की खेती के रकबे में लगभग 700 एकड़ की वृद्धि की जाए। इस कार्यक्रम पर लगभग 4.2 करोड़ रूपये का परिव्यय का अनुमान लगाया गया है।