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राधिका शर्मा
जयपुर, 21 जनवरी। वयोवृद्ध कवि-गीतकार गुलजार ने शनिवार को कहा कि लता मंगेशकर का गायन संसार इतना विशाल और विस्तृत है कि वह कब हम सबके जीवन में रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गईं, हमें पता ही नहीं चला । उन्होंने कहा कि जीवन के हर क्षण के लिए लता का गाया हुआ एक न एक गीत मौजूद है।
उन्होंने कहा कि एक समय था जब एक आम भारतीय उस गाने को सुने बिना अपने दिन के बारे में सोच भी नहीं सकता था जिसे मंगेशकर ने नहीं गाया था । लता मंगेशकर का 6 फरवरी, 2022 को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।
गुलजार ने कहा, "हर गायक की आवाज, शैली, तकनीक और उच्चारण अलग है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे किसी से कम हैं। आशा (भोसले) जी हैं, गीता (दत्त) जी भी थीं। लता जी ने उनकी आवाज से ज्यादा,उसकी गुणवत्ता के कारण पहचान पायी । वह हमारी रोजमर्रा की संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा बन गई।' "सुबह उठते ही सबसे पहले आपको 'भजनों' में उनकी आवाज़ सुनाई देती थी। अगर कोई शादी की रस्म या होली और रक्षा बंधन जैसे त्यौहार थे, तो लता जी का गाना था। वह हमें बताए बिना हमारी रोजमर्रा की जिंदगी हिस्सा बन गईं। । यह एक बड़ी उपलब्धि है जो इस नाम और आवाज से जुड़ी है। ऐसा किसी भी गायक के साथ नहीं हुआ है।" गुलजार यहां जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में "लता: सुर गाथा" के लेखक यतींद्र मिश्रा और गायक की जीवनी के प्रकाशक वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी के साथ एक सत्र में हिस्सा ले रहे थे।
पेंग्विन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित और ईरा पांडे द्वारा अनुवादित पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद, "लता: ए लाइफ इन म्यूजिक" शुक्रवार को जारी किया गया।
गुलज़ार ने फिल्म उद्योग में "वीज़ा" दिलाने का श्रेय लता मंगेशकर को दिया,जिन्होंने पहली बार उनके लिखे गीत "मोरा गोरा अंग लेइले" को 1963 की "बंदिनी" में गाया । इसी से गुलजार ने बतौर गीतकार के रूप में अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की।
इसके बाद दोनों ने 'खामोशी', 'किनारा', 'लेकिन', 'रुदाली', 'मासूम', 'लिबास', 'दिल से..', 'सत्या' जैसी फिल्मों के गानों के साथ कई अनमोल गीत रचे यतीन्द्र मिश्रा, जिन्होंने 2017 में "लता: सुर गाथा" के लिए सिनेमा पर सर्वश्रेष्ठ लेखन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था, ने कहा कि मंगेशकर को लेखकों और संगीतकारों के लिए रॉयल्टी पर आगे बढ़ने का श्रेय दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा "वह उन अग्रदूतों में से एक थीं जिन्होंने भारतीय फिल्म संगीत उद्योग को स्थापित करने में मदद की। अगर वह और साहिर लुधियानवी साहब नहीं होते, तो आकाशवाणी या संगीत लेबल अपने रिकॉर्ड पर पार्श्व गायकों और गीतकारों के नाम उकेरना शुरू नहीं करते।
उन्होंने कहा, "अगर लता जी न होतीं तो फिल्मफेयर प्लेबैक सिंगिंग के लिए अलग अवॉर्ड कैटेगरी नहीं बनाता।" (भाषा)