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शाहरुख़ ख़ान की 'पठान' में मनोरंजन का मसाला, साथ ही छिपा है एक संदेश
26-Jan-2023 3:46 PM
शाहरुख़ ख़ान की 'पठान' में मनोरंजन का मसाला, साथ ही छिपा है एक संदेश

पठान फ़िल्मइमेज स्रोत,INSTAGRAM/YRF

-नम्रता जोशी

सिद्धार्थ आनंद की नई बॉलीवुड एक्शन फ़िल्म पठान के एक दृश्य में, पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आईएसआई की जासूस रुबीना मोहसिन (दीपिका पादुकोण) भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के एजेंट पठान (शाहरुख़ ख़ान) से पूछती है, क्या मुस्लिम हो?

इसके जवाब में पठान कहता है कि नहीं मालूम क्योंकि वह अनाथ है और उसके माता-पिता उसे एक सिनेमा हॉल में छोड़ गए थे.

यह जवाब भले ही फ़िल्मी कहानी जैसी हो लेकिन इसके कुछ गहरे संदेश भी हैं.

दरअसल, बॉलीवुड की फ़िल्मों के लिए बॉक्स ऑफ़िस पर कमाई से बड़ा कोई धर्म नहीं है. भारतीय हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री की गिनती देश के धर्मनिरपेक्ष और रचानात्मक संस्थानों में होती है.

पिछले कुछ सालों में जिस तरह से समाज में बदलाव हुआ है, उसका असर फ़िल्मों पर भी हुआ है. फ़िल्मों का भी ध्रुवीकरण हुआ है.

फ़िल्मों को भी नफ़रती अभियान, प्रतिबंध और बॉयकॉट का सामना करना पड़ा है. इस सूची में पठान फ़िल्म के बेशरम रंग के गाने में दीपिका पादुकोण की बिकनी के भगवा रंग को लेकर हुआ विवाद भी शामिल है.

चार साल बाद वापसी
बहरहाल पठान फ़िल्म का यह छोटा दृश्य में फ़िल्म इंडस्ट्री में सर्वधर्म समभाव वाले समावेशी भाव की वापसी की याद दिलाता है और यह अपील खुद रोमांस के बादशाह शाहरुख़ ख़ान करते नज़र आते हैं.

ब्रह्मास्त्र फ़िल्म के कैमियो रोल को अगर छोड़ दें तो शाहरुख़ चार साल बाद पर्दे पर वापस लौटे हैं. पठान से पहले 2018 में आनंद एल. राय की ज़ीरो में वे नज़र आए थे.

आम लोगों के जीवन की तरह फ़िल्मों के लिए भी समय सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है. किसी भी अन्य दौर में, मीडिया, फैंस और इंडस्ट्री पठान को मुख्यधारा की बड़ी स्टारकास्ट वाली फ़िल्म मानता और यह देखा जाता है कि मनोरंजन के हिसाब से फ़िल्म पैसा वसूल है या नहीं.

लेकिन मौजूदा समय के राजनीतिक माहौल को देखते हुए पठान एक तरह से नफ़रत के दौर में प्यार को फिर से हासिल करने का आंदोलन बन गया है.

पठान यशराज फ़िल्म की स्पाई यूनिवर्स सिरीज़ की चौथी फ़िल्म है. इससे पहले 2012 में टाइगर, 2017 में टाइगर ज़िंदा है और 2019 में वॉर आ चुकी है.

ऐसे में पठान में कुछ नया नहीं है. पठान की कहानी को एक पंक्ति में कहा जा सकता है- रॉ का एक एजेंट, एक दूसरे कपटी एजेंट जिम (जॉन अब्राहम) से लड़ रहा है, जो कॉरपोरेट शैली में एक चरमपंथी संगठन को चलाता है और अपने जैविक हथियार रक्तबीज के ज़रिए भारत को तबाह करने की कोशिश कर रहा है.

चुस्त पटकथा, दमदार डॉयलॉग
कहानी भले एक पंक्ति की हो लेकिन यह एक लंबी फ़िल्म है जिसमें कई बार फ्लैशबैक के दृश्य आते हैं. अतीत और वर्तमान को जोड़ने वाले दृश्यों की भरमार, भ्रमित करने वाली है. हालांकि फ़िल्म को देखते हुए क्लाइमेक्स का अनुमान लगाया जा सकता है.

दिमाग़ और तर्क को एक तरफ़ रखकर देखने पर पठान एक मसालेदार फ़िल्म है जिसमें मनोरंजन का हर मसाला मौजूद है. ख़ूबसूरत दृश्यों के अलावा इसमें ढेरों एक्शन दृश्य हैं जहां दर्शकों की सांसें थमने लगती है.

श्रीधर राघवन का लिखा स्क्रीनप्ले भी काफ़ी चुस्त है और अब्बास टायरवाला के लिखे डॉयलॉग, शाहरुख़ ख़ान की संवेदनशीलता और हास्यबोध से मैच करते हैं.

वैसे यह देखना दिलचस्प है कि शाहरुख़ ने बॉलीवुड में इन दिनों प्रचलित देशभक्ति के नैरेटिव को किस तरह से अपनाया है. हालांकि इसमें भी शाहरुख़ की अपनी छाप नज़र आती है, वे इसे अंधराष्ट्रवाद से अलग करते हैं और सामान्य तरह से अपनी भूमिका को मानवीय स्पर्श देते हैं.

फ़िल्म की पटकथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के विवादास्पद मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है, इसमें दिखाया गया है कि पाकिस्तान, भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश करता और समस्याएं उत्पन्न करता है. फ़िल्म पठान यह भी दर्शाता है कि वर्चस्व के इस क्षेत्रीय खेल में भारत का पलड़ा भारी है. यह सब दिखाते हुए भी मुख्य किरदार पठान गरिमापूर्ण नज़र आते हैं.

खलनायक की भूमिका दमदार
पठान और भारत के विराधी पाकिस्तान से हो सकते हैं, लेकिन पठान की भूमिका में शाहरुख़ रेखांकित करते हैं कुछ बुरे लोग पूरे देश को, सरकार को और लोगों को नहीं बदल सकते.

अफ़ग़ानिस्तान में एक मिशन के दौरान पठान एक परिवार से घुलमिल जाते हैं और हर साल उनके साथ ईद मनाते हैं. वे एक भारतीय एजेंट हैं, साथ ही विश्व के सबसे बड़े सॉफ्ट पॉवर के एजेंट भी हैं. इन दोनों मानकों में तालमेल भी दिखता है, ठीक उसी तरह जैसे शाहरुख़ की लोकप्रियता देश-विदेश तक फैली हुई है.

फ़िल्मी पर्दे पर रोमांटिक छवि के चलते शाहरुख़ रोमांस के बादशाह कहे जाते हैं लेकिन पठान में वे मर्दाना छवि भी आजमाते दिखे हैं. नंगी छाती और धूप में खुलकर अपनी मांसपेशियों का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने पहली बार पूरी तरह से एक्शन हीरो की भूमिका निभाई है.

पठान का खलनायक लता मंगेशकर के गीत, 'ऐ मेरे वतन के लोगों' पर सिटी बजाता नज़र आता है. उसका चरित्र, हीरो से कहीं ज़्यादा दमदार है. उसके गुस्से को उचित संदर्भ, तार्किकता और सहानुभूति का स्पर्श दिया गया है जिसे जॉन अब्राहम ने जीवंतता के साथ निभाया है. पठान यह भी दर्शाता है कि भले ही दुनिया में मर्दों का बोलबाला हो लेकिन यह महिलाओं के लिए ख़तरनाक जगह नहीं है, उनकी अपनी मौजूदगी है.

पादुकोण की शुरुआत बिकनी में गाने से ज़रूर हुई है लेकिन बाद में वह दमदार और घातक भूमिका नज़र आती है.

वहीं पठान की बॉस के रूप में डिंपल कपाड़िया है जो अपने परम देशभक्ति के लिए सम्मान का भाव जगाती हैं.

एक्शन दृश्यों की भरमार
फ़िल्म में एक्शन की भरमार है. इसमें स्टंट के ख़तरनाक दृश्य हैं जिनको ज़मीन, हवा, पानी और बर्फ़ पर फ़िल्माया गया. इनमें कार, हेलीकॉप्टर और बाइक का बख़ूबी इस्तेमाल किया गया है. इन दृश्यों को स्पेन, यूएई, तुर्की, रूस, इटली, फ्रांस, अफगानिस्तान और साइबेरिया के आकर्षक स्थानों पर शूट किया गया है.

फ़िल्म में रूस में ट्रेन का हैरतअंगेज़ एक्शन सीक्वेंस मौजूद है वहीं साइबेरिया में जमी बैकाल झील पर वायरस से भरे गोलों के बीच शानदार फाइटिंग सीक्वेंस भी है.

पठान का एजेंट लोहे और इस्पात जितना मज़बूत ही नहीं है बल्कि वह स्मार्ट और विनम्र भी है. यह ऐसा जासूस है जो रो सकता है, प्यार में पड़ सकता है और खुद का मज़ाक उड़ा सकता है. पठान में, लावारिस, खुदा गवाह और करन अर्जुन की झलक भी देखी जा सकती है. मास्को में एक तिजोरी की लूट को 1993 में आयी डर फ़िल्म के 'तू है मेरी किरण' के साथ ख़ूबसूरती से जोड़ा गया है, हालांकि यह मूर्खतापूर्ण भी नज़र आता है.

शाहरुख़ और दीपिका के बीच एक नोकझोंक वाला मजेदार दृश्य भी है जहां दोनों के बीच विश्वास का संकट उत्पन्न हो जाता है, क्योंकि दोनों देशों की संबंधित एजेंसियां भी एक दूसरे पर विश्वास नहीं करती, इन दोनों के रोमांस के चलते आईएसआई कार्यालय को एजेंटों के बीच मज़ाकिया तौर पर डेटिंग वेबसाइट तक कहा गया है.

पठान फ़िल्म का सबसे मजेदार दृश्य, बॉलीवुड की दुर्दशा और ख़ान तिकड़ी-शाहरुख, सलमान और आमिर के उदाहरण वाले हैं. उदाहरण के लिए, फ़िल्म में जापानी कला किंत्सुगी का एक विस्तारित संदर्भ है, कि कैसे सोने के साथ मिट्टी के बर्तनों के टूटे हुए टुकड़ों को जोड़कर आप कला का एक और भी सुंदर और कीमती काम बना सकते हैं.

फ़िल्म में इसका इस्तेमाल घायल और सेवानिवृत एजेंटों को एक साथ जोड़कर संयुक्त संचालन और गुप्त अनुसंधान नामक एक नई इकाई बनाने के लिए किया गया है. हालांकि ऐसा लगता है जैसे शाहरुख़ बॉलीवुड के बारे में बात कर रहे हैं, कैसे मौजूदा दौर से गुजर कर वह बेहतर होगा.

वैसे पठान फ़िल्म में दो मेगा मनोरंजक दृश्य भी हैं, इसमें एक अन्य सुपरस्टार का कैमियो शामिल है. इसमें एक सीक्वेंस इंटरवल के ठीक बाद है और इसमें आपको एक था टाइगर के बाद फैशन ट्रेंड में शामिल हुए रंगबिरंगे स्कार्फ का इस्तेमाल दिखेगा.

दूसरा मज़ाक का एक अच्छा क्षण है, जो बहुत अंत में आता है. क्रेडिट के बाद जब झूमे जो पठान गाना आता है, इसमें शाहरुख़, ख़ान सितारों की बढ़ती उम्र पर खुद से मजाक़ करते हैं लेकिन यह भी कहते हैं इनकी जगह कोई नहीं ले सकता. शाहरुख़ इस फ़िल्म में खुद का मजाक़ उड़ाते नज़र आते हैं और इसे दर्शकों का प्यार भी मिल रहा है. (bbc.com/hindi)

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