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बजट 2023: मोदी सरकार पिछले बजट के अपने वादों पर कितना खरा उतर पाई?
29-Jan-2023 9:41 AM
बजट 2023: मोदी सरकार पिछले बजट के अपने वादों पर कितना खरा उतर पाई?

-श्रुति मेनन और शादाब नज़्मी

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली भारत सरकार अगले महीने 2024 के आम चुनावों से पहले अपना आख़िरी पूर्ण बजट पेश करने जा रही है.

हमने ये देखने के लिए उन आधाकारिक आंकड़ों की पड़ताल की कि एक साल पहले जब बजट पेश किया गया तो उस समय किए गए वायदे कितने पूरे हुए.

आर्थिक विकास और ख़र्च के वायदे
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022 का बजट पेश करते हुए कहा था कि मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की "अनुमानित विकास दर 9.2 फ़ीसदी थी जो कि सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ऊंची है."

लेकिन वैश्विक मंदी और रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईंधन की क़ीमतों में वृद्धि की आशंकाओं को देखते हुए, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने पिछले दिसम्बर में देश की विकास दर के अनुमान को संशोधित कर 6.8 फ़ीसदी कर दिया.

हालांकि संशोधित करके विकास दर के अनुमान को कम करने के बावजूद विश्व बैंक (वर्ल्ड बैंक) ने कहा कि उम्मीद है कि दुनिया की सात सबसे बड़ी विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ी से विकास करती रहेगी.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टालिना जोर्गीवा ने इसी महीने कहा कि भारत वैश्विक औसत के मुक़ाबले अच्छा प्रदर्शन कर रहा है.

सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार, भारत की जीडीपी की विकास दर वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 13.5 फ़ीसदी थी लेकिन दूसरी तिमाही में ये गिर कर 6.3 फ़ीसदी पहुंच गई क्योंकि कच्चे माल और ईंधन की क़ीमतें बढ़ने के कारण मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर धीमा पड़ गया.

भारत सरकार ने राजकोषीय घाटे को जीडीपी का 6.4 फ़ीसदी तक बनाए रखने का वादा किया था और आरबीआई के अनुसार अभी तक सरकार इसे इसी स्तर पर बनाए रखने में क़ामयाब रही है.

राजकोषीय घाटा असल में सरकार द्वारा किए गए खर्च और कुल सरकारी आमदनी का अंतर होता है.

कोविड की वजह से सरकारी वित्त पर बोझ कम होने के कारण इस साल के रोजकोषीय घाटे का लक्ष्य 2020 (9.1 फ़ीसदी) और 2021 (6.7 फ़ीसदी) के मुक़ाबले कम रखा गया था.

हालांकि आरबीआई के आंकड़े दिखाते हैं कि सरकार द्वारा ख़र्चों को 39.45 ट्रिलियन रुपये (394.5 ख़रब रुपये) तक बनाए रखने का लक्ष्य मुश्किल है क्योंकि महंगे आयात और राशन, ईंधन और उर्वरक पर सब्सिडी का बिल बढ़ गया है.

कल्याणकारी योजनाएं पिछड़ीं
सबको घर मुहैया कराने की प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) 2015 में शुरू की गई थी और नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक रही है.

पिछले बजट में 80 लाख घर बनाने के वादे के साथ इस मद में 480 अरब रुपये आवंटित किये गए. ये 2022-2023 वित्त वर्ष में ग्रामीण और शहरी इलाक़ों में योग्य लाभान्वितों को दिए जाने थे.

चूंकि ये आवंटन शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में घर बनाने के लिए था, इसलिए उसे अलग-अलग मंत्रालयों द्वारा अंजाम दिया जाना था.

शहरों में पीएमएवाई स्कीम लागू करने की ज़िम्मेदार आवास एवं शहरी विकास मामलों के मंत्रालय ने पिछले साल अगस्त में कहा था कि वो लक्ष्य में पिछड़ गई है. उसने डेडलाइन को आगे बढ़ाने और केंद्र सरकार से और वित्तीय मदद की मांग की थी और उसकी डेडलाइन को दिसम्बर 2024 तक बढ़ा दिया गया.

योजना की निगरानी करने वाले मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, एक अप्रैल 2022 से 23 जनवरी 2023 के मौजूदा वित्त वर्ष में शहरी इलाकों में 12 लाख घर बनकर तैयार हुए हैं जबकि ग्रामीण इलाक़ों में 26 लाख घर बने.

इसका मतलब ये है कि घरों के लक्ष्य में सरकार 42 लाख घरों से पीछे है.

वित्त मंत्री ने घर घर पानी का कनेक्शन देने के लिए 2022-23 में 3.8 करोड़ घरों का लक्ष्य निर्धारित किया था और इसके लिए 600 अरब रुपये आवंटित किए थे.

जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान अभी तक क़रीब 1.7 करोड़ घरों में पानी का कनेक्शन दिया गया. ये लक्ष्य का क़रीब आधा ही है.

यह स्कीम अगस्त 2019 में शुरू की गई थी और तबसे 7.7 करोड़ घरों में पानी का कनेक्शन पहुंच चुका है.

सड़क निर्माण की धीमी हुई रफ़्तार
वित्त मंत्री ने पिछले साल ये भी घोषणा की थी कि नेशनल हाईवे नेटवर्क में 2022-23 के दौरान 25 हज़ार किलोमीटर और जोड़ा जाएगा.

इस 25 हज़ार किलोमीटर में नई सड़कें बनाने के साथ मौजूदा सड़कों को सुधारने और स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे घोषित करना भी शामिल किया गया था.

इसमें भी सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इस वित्त वर्ष में अपने लिए 12 हज़ार किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य रखा.

मंत्रालय द्वारा प्रकाशित ताज़ा आंकड़े दिखाते हैं कि अप्रैल से लेकर दिसम्बर 2022 के दौरान 5,774 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण हुआ, लेकिन हमारे पास इस साल के जनवरी का डेटा नहीं है.

पछले सालों के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल सड़क निर्माण की रोज़ाना रफ़्तार औसतन 21 किलोमीटर प्रति दिन रही, जबकि यह 2021-22 में यह औसत 29 किलोमीटर और 2020-21 में 37 किलोमीटर प्रति दिन था.

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