संपादकीय

हिन्दुस्तान के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी ने अभी अपनी कंपनियों के लिए पैसा जुटाने को शेयर बाजार में खरीददारों के लिए एक एफपीओ उतारा था जिसके बिकने के आसार बहुत कम दिख रहे थे, लेकिन आखिर में अचानक अबूधाबी के एक शाही परिवार से जुड़ी कंपनी ने अडानी में 32 सौ करोड़ रूपये पूंजीनिवेश किया, और आखिरी दिन हिन्दुस्तान के कुछ उद्योगपतियों ने इसमें खासी रकम लगाई, जिनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी सज्जन जिंदल, सुनील भारती मित्तल, और पंकज पटेल के नाम आए, और सत्ता के एक और दूसरे सबसे करीबी देश के दूसरे सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी भी। एक अमरीकी कंपनी के विश्लेषण के बाद हिन्दुस्तान में अडानी के शेयर जमीन तोडक़र पाताल पहुंच रहे थे, और उसी वक्त कंपनी का यह एफपीओ आया था। कुछ बड़े लोगों ने मिलकर इस एफपीओ को खरीद तो लिया, लेकिन इसमें छोटे पूंजीनिवेशकों के लिए जितने शेयर रखे गए थे, उनमें से सिर्फ 10 फीसदी ही बिके हैं। मतलब यह कि जनता का भरोसा कम से कम इस वक्त तो इस कंपनी पर से उठा हुआ है। पिछले तीन बरस में हिन्दुस्तान की सरकारी बीमा कंपनी, एलआईसी ने अडानी की कंपनियों में अपना पूंजीनिवेश दस गुना बढ़ा दिया था, और अभी की खबर कहती है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी को साढ़े पांच लाख करोड़ से अधिक का नुकसान हो चुका है, और इसमें एलआईसी को भी 16 हजार करोड़ रूपये का नुकसान हुआ है जो कि जीवन बीमा पॉलिसी लेने वाले लोगों का नुकसान है।
अमरीका की हिंडनबर्ग नाम की फर्म ने अडानी-समूह का कई तरह का विश्लेषण करके इसे हिसाब-किताब में जोड़तोड़ करने, और कई दूसरे तरह के गलत काम करके आगे बढऩे का आरोप लगाया था। इस आरोप के जवाब में अडानी ने इसे भारत पर हमला बताया। हिन्दुस्तान के लोग यह बात जानकर चौंक गए कि अडानी ही भारत है। सोशल मीडिया पर लोगों ने यह नया रहस्य उजागर होने पर काफी कुछ लिखना चालू किया। लोगों ने याद दिलाया कि अंग्रेजी के एक विद्वान ने किस तरह जमाने पहले यह लिखा था कि किसी बदमाश के लिए छुपने की आखिरी जगह उसके देश के झंडे के पीछे होती है। जब कोई कारोबारी गैरकानूनी हरकतों के आरोपों के बीच अपने आपको देश बताए, तो यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो कि अडानी की सफाई के जवाब में आई, और अडानी की बात किसी बात को साफ नहीं कर पाई, बल्कि अपने पर और गंदगी ही फैला गई, लोग अंग्रेजी का हिन्दी तर्जुमा करने में लग गए, और सोशल मीडिया अब तक हिन्दुस्तान के किसी कारोबारी के शिकंजे से परे है। लेकिन बात अगर भारत पर आकर खत्म हो गई रहती, तब भी ठीक था। अडानी कारोबार-समूह के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर, जगशिंदर सिंह ने एक और बड़ी अनोखी बात कही। उन्होंने कहा कि एक अमरीकी कंपनी, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर जिस तरह से कुछ हिन्दुस्तानी बर्ताव कर रहे हैं, उससे उन्हें हैरानी नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि जालियांवाला बाग में सिर्फ एक अंग्रेज ने हुक्म दिया था, और हिन्दुस्तानी (सिपाहियों) ने ही दूसरे हिन्दुस्तानियों पर गोलियां चलाई थीं।
यह बहुत ही अनोखी बात है जब आजाद हिन्दुस्तान के जागरूक लोगों की बराबरी अंग्रेजों के सिपाहियों से की जा रही है, और अडानी पर वित्तीय गड़बडिय़ों की रिपोर्ट को जालियांवाला बाग में हिन्दुस्तानियों के जनसंहार के बराबर बताया जा रहा है। जालियांवाला बाग में सैकड़ों लोग मारे गए थे, और हजारों लोग घायल हुए थे, और यह हिन्दुस्तान के ब्रिटिश इतिहास का सबसे भयानक फौजी हमला था। अब हिन्दुस्तान के सबसे विवादास्पद कारखानेदार और कारोबारी के खिलाफ आई एक वित्तीय रिपोर्ट को अगर अडानी यानी हिन्दुस्तान पर हिंडनबर्ग यानी अंग्रेज के हुक्म से की गई गोलीबारी यानी हिन्दुस्तानी आलोचकों का किया गया जनसंहार कहा जा रहा है, तो फिर वह दिन अधिक दूर नहीं दिखता जब देश में सबसे अधिक दौलतमंद को राष्ट्रपिता घोषित किया जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि अडानी का यह सबसे बड़ा वित्त अफसर खुद ऑस्ट्रेलिया का नागरिक है, और नाम से पंजाबी मूल का भी लगता है, और अपनी कंपनी को हिन्दुस्तानी आलोचकों के सवालों से बचाने के लिए जालियांवाला बाग की आड़ ले रहा है। अब देखना पड़ेगा कि आगे जाकर हिन्दुस्तानी शहादत के इस सबसे बड़े स्मारक की आड़ में छुपने वाले के लिए, अंग्रेजी दुनिया में कौन सी कहावत गढ़ी जाएगी। लेकिन यह तय है कि जो भी कहावत गढ़ी जाएगी, उसके मुकाबले राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय झंडे की आड़ में छुपना एक बहुत कमजोर कहावत रह जाएगी। दुनिया के राजनीतिक इतिहास में अडानी के इस अफसर को दुनिया की एक सबसे ताकतवर नई कहावत देने की शोहरत जरूर मिलेगी।
आज हिन्दुस्तान कई किस्म के पाखंडों से गुजर रहा है। भगवा या केसरिया रंग को हिन्दू धर्म मान लिया गया है, और हरे रंग को इस्लाम करार दिया गया है। स्वदेशी का नाम लेकर योगी से कारोबारी बने हुए रामदेव अपने गलत कामों की आलोचना को बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत पर हमला करार देते थकते नहीं है, कुछ लोग रामचरित मानस की आलोचना को हिन्दू धार्मिक भावनाओं पर हमला करार दे रहे हैं, कई लोग मोदी को ही भारत और लोकतंत्र ठहरा रहे हैं, और अब अडानी अपने को भारत मानने लगा है, और अपने हिन्दुस्तानी आलोचकों को हत्यारा ब्रिटिश-हिन्दुस्तानी सैनिक करार दे रहा है, आरएसएस हर हिन्दुस्तानी को हिन्दू करार दे रही है, और सावरकर को पूजने वाले लोग सावरकर की गाय खाने की खुली वकालत को अनदेखा करके उन्हें गांधी के मुकाबले अधिक महान राष्ट्रभक्त साबित करने में लग गए हैं। यह पाखंड और कई मोर्चों पर भी किया जा रहा है, और इसी का नतीजा है कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की याद में अभी आरएसएस के किए जा रहे एक कार्यक्रम से नेताजी की बेटी ने असहमति जारी की है, और आरएसएस को एक साम्प्रदायिक सोच करार दिया है। पूरा देश तरह-तरह के पाखंडों में मस्त है। टीवी समाचार चैनल अपने काम को पत्रकारिता बताते हुए हर किस्म के पत्रकारिता-विरोधी चाल-चलन से अपना धंधा बढ़ा रहे हैं।
किसी देश के नाम, उसके प्रतीकों के नाम, उसके शहादत के नाम, उसके झंडे का ऐसा इस्तेमाल शर्मनाक है। इसे धिक्कारने के लिए लोगों को सामने आना चाहिए। अगर यह समाज नहीं जागेगा तो हो सकता है कि टमाटर की चटनी बनाने वाला कोई ब्रांड अपने इश्तहार में जालियांवाला बाग में बहे लहू सरीखी लाल चटनी का नारा लगाए, और यह मुर्दा समाज उसको भी झेल जाए। आज हिन्दुस्तान एक झूठे गौरव के गुणगान में लगा हुआ है, और उसके सच्चे इतिहास की सच्ची शहादत की सबसे बड़ी मिसाल पर हो रहे ऐसे बाजारू हमले पर इन तथाकथित गौरवान्वित लोगों को अगर कुछ नहीं कहना है तो उन्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।