विचार / लेख

बड़े और छोटे पर्दे ने खूब जहर बोया है
01-Feb-2023 5:24 PM
बड़े और छोटे पर्दे ने खूब जहर बोया है

-संजय श्रमण
कुछ महीने पहले एक गाँव में जाना हुआ। कुछ ग्रामीण परिवारों से बात हो रही थी। मुद्दा था कि वे लोग जो त्योहार मनाते हैं वे कब से शुरू हुए हैं। मुख्य विषय करवा चौथ को लेकर था। गाँव के एक परिवार से बात हो रही थी। उस परिवार की बूढ़ी स्त्री दो पुत्र और दो बहूएं चर्चा में शामिल थीं, साथ मे अन्य महिलायें भी आकर बैठ गईं थीं। 

मैंने पूछा कि माताजी आपने करवा चौथ पहली बार कब मनाया? माताजी ने कहा कि मैंने तो आज तक नहीं मनाया। ये सब तो इन बहुओं ने आकर शुरू किया है। फिर बहुओं से पूछा, बड़ी बहू बोली कि मेरी शादी दस साल पहले हुई है और छोटी बहू सात साल पहले आई है। दोनों ने जो कहा उससे साफ हुआ कि उन्होंने ही करवा चौथ मनाना शुरू किया है।

गाँव के अन्य परिवारों ने भी बहुत साफ ढंग से कहा कि यह सब पिछले आठ दस सालों मे शुरू हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि गाँव में यह सब कोई नहीं जानता था। करवा चौथ पहले शहरों में आया है फिर शहरों से गांवों में आया है।  फिर मैंने बहुओं से पूछा कि शहरों में आपको यह सब कैसे सीखने को मिला? उन्होंने कहा कि हमारे कुछ रिश्तेदार जो शहरों मे रहते हैं उनकी महिलायें सज सँवरकर यह सब मनाती हैं और फोटो भेजती हैं तो हमें भी लगता है कि हमें भी यह मनाना चाहिए। इसके बाद मैंने पूछा कि उन शहर के रिश्तेदारों को किसने सिखाया यह सब? इसके उत्तर में पूरा परिवार एक सुर में हँसते हुए बोला कि और कौन सिखाएगा? ये सब फिल्मों और टीवी से सीखा है। 
फिर उन्होंने कुछ फिल्मों के नाम बताए। कभी खुशी कभी गम, बागबान और हम आपके हैं कौन। फिर कुछ टीवी सीरियल्स के नाम बताए जो ‘संस्कारी बहुओं’ के लिए बनाये गए हैं। 

बाद में कुछ और बातें निकलीं जिससे पता चला कि इनकी धार्मिकता का मुख्य स्त्रोत फिल्में, टीवी और बाबा लोग हैं। और मजे की बात ये है कि ये पूरा खेल पैसे कमाने का और एक खास ढंग की राजनीतिक चेतना पैदा करने का काम कर रहा है। इसके बाद कुछ नब्ज टटोलते हुए उनकी राजनीतिक रुचि पर सवाल किये। पता चला कि इस परिवार ने ही नहीं बल्कि पूरे मुहल्ले ने हिंदुस्तान पाकिस्तान वाला व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का पूरा सिलेबस पढ़ लिया है। 

पाकिस्तान और उसके बहाने धर्म विशेष के लोगों को जाहिल और आतंकी बताने मे उन्हे विशेष आनंद आता है। नेहरू के माता पिता किस धर्म के थे और गांधी ने देश का कितना नुकसान कर दिया है, इस सबकी चर्चा व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के सिलेबस के अनुसार वे बड़े मजे से करते हैं। पूरे देश को किस तरह का भोजन खाना चाहिए, औरतों को अपनी ‘औकात’ मे रहना चाहिए, एक खास ढंग से सभी को देशभक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए इत्यादि विषय मे भी उनके पक्के विचार हैं। 

और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि यह पूरी चर्चा दलित महिलाओं से हो रही थी। 
अब इस बात पर थोड़ा सा विचार कीजिए। 

आज बॉलीवुड ही नहीं बल्कि देश मे जो दो खेमे बन गए हैं और जिस तरह से विचारधारा का संकट पैदा हुआ है उसका जिम्मेदार कौन है? गौर से देखिए। यह फिल्म और टीवी की दुनिया अंधविश्वासों और चलताऊ संस्कारों का प्रचार करते हुए पैसा कमाने की तरकीब खोजती है।  यह खेल अंत में फिल्मी दुनिया और मीडिया को ही नहीं बल्कि पूरे देश को गड्ढे में ले जाता है। 

अब इन ग्रामीण परिवारों के बच्चे दूसरे धर्मों के लोगों के लिए बहुत ही नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। जिस गुंडई को हम आजकल सडक़ों या टीवी चैनल्स पर देखते हैं वह इन परिवारों को नार्मल लगती है। वे इसे ही खबर और विश्लेषण समझते हैं। ऐसे परिवारों के बच्चे पाकिस्तान की निंदा और अपने से भिन्न धर्म के लोगों की निंदा मे बड़ा आनंद लेते हैं। ये परिवार अन्य धर्मों के लोगों के बारे मे बड़े आत्मविश्वास से ऐसी बातें भी बताते हैं जिसे यहाँ लिखा नहीं जा सकता। 

लेकिन ये सब वही बातें हैं जो आजकल पूरे न्यूज मीडिया और राजनीतिक प्रोपेगंडा का मुख्य सिलेबस बन गई है।

अब यही परिवार और यही बच्चे इन फिल्मों मे काम करने वाले मुस्लिम नायकों, खिलाडिय़ों, राजनेताओं, शायरों और इतिहास के नायकों के खिलाफ एक खास किस्म की नफरत लेकर घूम रहे हैं। ये लोग जिन शायरों के फिल्मी गीतों पर पहले ठुमके लगाते थे अब उन्ही के एक्सीडेंट में घायल होने पर तालियाँ बजा रहे हैं। अब ये परिवार हर दिशा मे पहले से अधिक अंधविश्वासी और कट्टर बन गए हैं। 

जिस बॉलीवुड और टीवी ने अंधविश्वासों और कुरीतियों में निवेश किया था उसका परिणाम न सिर्फ देश के सामने है बल्कि खुद बॉलीवुड और मीडिया के भी सामने है। 

बॉलीवुड के शहंशाह, बादशाह, सुल्तान, दबंग, खिलाड़ी अनाड़ी सहित सब तरह के अगाड़ी और पिछाड़ी अब आमने-सामने आ गए हैं। इसी के साथ पद्मावतियाँ और लंदन वाली क्वींस भी आमने सामने आ गई हैं। फिर भी अधिकांश लोग चुपचाप अपनी सुरक्षित गुफाओं में बैठे हैं। कुछ की रीढ़ कि हड्डी मे थोड़ी जान नजर आ रही है। लेकिन इतना तो पक्का है कि इन लोगों को अब समझ मे आ गया होगा कि वे जो कुछ करते आए हैं उसका परिणाम इस देश को ही नहीं बल्कि उनके अपने बच्चों को भी भुगतना होगा। 

ये निर्णायक समय है। इस समय मे बॉलीवुड टीवी और पत्रकारिता सहित कलाजगत के सभी लोगों को आत्मनिरीक्षण करने का बेहतरीन मौका है। मीडिया और विशेष रूप से सोशल मीडिआ के आने के बाद अंधविश्वासों और त्योहारों की ताकत जिस तरह से बढ़ी है वह एक भयानक बात है। अंधविश्वासों और त्योहारों का राजनीतिक इस्तेमाल सबसे भयानक बात है जो आज हम देख रहे हैं। इस खेल में बड़े और छोटे पर्दे ने खूब जहर बोया है। इन छोटे और बड़े पर्दे के नायकों को अब सारे पर्दे हटाकर आईना देखने का वक्त निकालना चाहिए। 

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