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अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान को कहाँ से मिल रहा है देश चलाने के लिए पैसा?
04-Feb-2023 10:46 AM
अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान को कहाँ से मिल रहा है देश चलाने के लिए पैसा?

-अतहुल्पा अमेरिसे

डेढ़ साल पहले तालिबान ने जब अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता हथियाई थी, तब से लेकर मानवाधिकार हनन के मामले लगातार बढ़े हैं. ख़ासतौर पर महिलाओं से जुड़े मामले. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में चिंता की बात सिर्फ यही नहीं है.

अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत और भी चिंताजनक है. ये देश दो दशक तक अमेरिकी सैनिकों की देख रेख में चला. इसके बाद जब अमेरिकी सैनिकों ने लौटना शुरू किया, तब जुलाई 2021 में तालिबान ने यहां की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया.

तभी से अफ़ग़ानिस्तान की पहले से डांवाडोल अर्थव्यवस्था और भी खस्ताहाल होने लगी.

विश्व बैंक के एक आंकड़े के मुताबिक 368 डॉलर प्रति व्यक्ति की सालाना आय के साथ अफ़ग़ानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है.

अफ़ग़ानिस्तान की कुल चार करोड़ 20 लाख आबादी में से आधे से ज्यादा लोगों को ठीक से पोषण नहीं मिल पा रहा है. इनमें से 86 फीसदी लोग भूखे हैं. ये तादाद पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है.

संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व खाद्य कार्यक्रम के सूचकांक में अफ़ग़ानिस्तान पिछले साल के मुकाबले 11 पायदान नीचे खिसका है.

अफ़ग़ानिस्तान में ये संकट बढ़ने के पीछे कई वजहे हैं. मसलन बाहरी मदद में कमी, भूकंप से लेकर बाढ़ और भंयकर ठंड जैसी प्राकृतिक आपदाएं और पूरी दुनिया में बढ़ती महंगाई का असर.

लेकिन इन सबसे बड़ी वजह है - अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध.

इसकी वजह से विदेशों में अफ़ग़ानिस्तान के सेंट्रल बैंक की 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि को फ्रीज की जा चुकी है.

इन हालात में देश की वित्तीय व्यवस्था सुचारु बनाए रखने के लिए तालिबान सरकार राजस्व के नए और पुराने स्रोतों का सहारा ले रही है.

कर वसूली हफ़्ता
अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता हथियाने के बाद से ही तालिबान ने कर वसूली बढ़ा दी है.

कनाडाई रिसर्चर ग्रेमी स्मिथ ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि, 'कर वसूली में इजाफे की वजह है पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का सैन्य नियंत्रण. ऐसा नियंत्रण बीते दशकों में किसी भी ग्रुप का नहीं रहा.

वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2021 से अक्टूबर 2022 तक तालिबान सरकार ने 1.5 बिलियन डॉलर की कर वसूली की थी. ये राशि इसी अवधि में पिछले 2 बरसों के मुकाबले ज़्यादा थी.

इस वसूली में बड़ा योगदान है सरहद पर पूरे नियंत्रण का. 2022 में सरहद से आने-जाने और आयात-निर्यात के बदले वसूले जाने वाले कर की हिस्सेदारी पूरे टैक्स कलेक्शन में 59 फीसदी थी. इसके पहले के बरसों में ये वसूली इसकी आधी भी नहीं थी.

स्मिथ बताते हैं, "सीमा शुल्क तालिबान सरकार की आय का बड़ा जरिया बन चुका है."

बीबीसी के लिए काम करने वाले अफ़ग़ानी पत्रकार अली होसैनी भी कहते हैं, "तालिबान ने जिस तरह पूरे सरहदी आवागमन और सरकारी दफ्तरों पर नियंत्रण स्थापित किया है, इसकी वजह से कई तरह के कर, खासतौर पर आयात कर वसूलने में ज्यादा आसानी हुई है."

अली होसैनी के मुताबिक कर वसूली के मामले में तालिबान दूसरी सरकारों के मुकाबले ज़्यादा सख़्त हैं. वो बताते हैं "पहले यही रकम अफ़सरों, कर्मचारियों की जेबों में जाती थी. लेकिन सख़्ती की वजह से भ्रष्टाचार काफी कम हुआ है. इसलिए टैक्स की रकम सरकार के हाथों में ज्यादा आ रही है."

कर वसूली को बढ़ावा देने के लिए तालिबान सरकार राष्ट्रीय स्तर पर 'टैक्स कलेक्शन वीक' आयोजित कराने का ऐलान कर चुकी है.

अशर और ज़कात
पारंपरिक करों के साथ तालिबान सरकार धार्मिक कर भी वसूलती है. इसे वो अशर और ज़कात कहते हैं.

ये दोनों धार्मिक कर पिछले साल सत्ता में आने से पहले भी तालिबान अपने कब्ज़े वाले इलाकों में वसूलते रहे हैं.

तालिबान की धार्मिक कर व्यवस्था को विस्तार से बताते हुए पत्रकार अली होसैनी कहते हैं, 'इसमें हर आदमी को हर साल अपनी पूरी जायदाद का लेखा जोखा तैयार करना होता है, जिसमें से पांचवा हिस्सा सरकार को देना जरूरी है.'

होसैनी कहते हैं "धार्मिक करों के मद में कितनी रकम वसूली जाती है, इसकी गणना या अंदाजा लगाना मुश्किल है, क्योंकि अफ़गानिस्तान की 99 फीसदी आबादी मुस्लिम है. इसलिए इस्लामिक कानूनों के तहत दिए गए आदेश का पालन सबको करना पड़ता है."

कनाडाई रिसर्चर स्मिथ भी मानते हैं कि धार्मिक करों की उगाही से सरकार के कोष में जमा होने वाली रकम के बारे में अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है. वो कहते हैं 'तालिबान वित्तीय लेन-देन के मामले में कभी पारदर्शी नहीं रहा, इसलिए हम कुछ नहीं बता सकते.'

प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से अफ़ग़ानिस्तान एक संपन्न देश है. यहां कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, सोना, तांबा और कीमती पत्थर जैसे खनिज भरपूर हैं.

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के विशेषज्ञों और कुछ भूगर्भशास्त्रियों के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान के खनिज भंडार की कीमत एक ट्रिलियन डॉलर (एक लाख करोड़ डॉलर) के क़रीब है.

इनके व्यापक खनन के लिए मशीनरी, ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स में बड़े निवेश की ज़रूरत है. लेकिन देश में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से ये अब तक नहीं हो पाया है.

स्मिथ कहते हैं 'यहां की ज़्यादातर खनिज संपदा निकट भविष्य में भी ज़मीन के नीचे ही रह जाएगी.'

स्मिथ बताते हैं, "अगर आप अफ़ग़ानिस्तान से सोने या तांबे के खनिज निकालना चाहते हैं, तो आपको रेलवे ट्रैक बनाने पड़ेंगे. और ये काफी बड़ा निवेश होगा. लेकिन यहां की मौजूदा हालत देखते हुए निवेशक काफी सतर्क दिखते हैं. "

आज की तारीख़ में एक कोयला ही है, जो सबसे ज्यादा निर्यात करता है अफ़ग़ानिस्तान. वो भी मुख्य तौर पर पाकिस्तान को.

तालिबान के सत्ता में आने के पहले साल में पाकिस्तान को कोयले के निर्यात में 20 फीसदी का इजाफ़ा हुआ. सरकार के आंकड़ों के मुताबिक हर रोज 10 हज़ार टन कोयले का निर्यात अभी किया जाता है.

वर्ल्ड बैंक की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान के कुल 1.7 बिलियन डॉलर के निर्यात में कोयले के हिस्सेदारी 2022 में 90 फीसदी रही.

यहां के खनिज, टेक्सटाइल्स और कृषि उत्पादों का 65 फीसदी हिस्सा पाकिस्तान को जाता है. जबकि 20 फीसदी हिस्सा भारत को निर्यात होता है.

2021 के पहले के दो दशकों में अफ़ग़ानिस्तान में 126 छोटे खदान शुरू किए गए थे. तालिबान के तेल और खनिज मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल ही 60 और खदान खोले गए. इसके अलावा कुछ और कॉन्ट्रैक्ट साइन किए जाने वाले हैं.

पत्रकार अली होसैनी बताते हैं खदानों, खासतौर पर तांबे के खनन के कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए कई चीनी कंपनियां तालिबान सरकार से बातचीत कर रही हैं.

इसके अलावा तालिबान सरकार ने हाल ही में कच्चे तेल के खनन में भी चीन के साथ एक बड़े करार का ऐलान किया है. सरकार ने कहा कि वो चीन की कंपनी सीएपीईआईसी के साथ कच्चे तेल के खनन के लिए अब तक का सबसे बड़ा कॉन्ट्रैक्ट साइन करने वाली है.

ड्रग्स की तस्करी
सत्ता में आने से पहले तालिबान की आय का मुख्य जरिया अपहरण और जबरन वसूली जैसे आपराधिक गतिविधियों के साथ अफ़ीम की खेती भी था.

संयुक्त राष्ट्र संघ के एक आंकड़े के मुताबिक पूरी दुनिया अफ़ीम की अवैध खेती का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान में होता है.

पिछले साल अप्रैल में तालिबान ने अफ़ीम पोस्ता (ओपियम पॉपी) की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था.

अफ़ीम पोस्ता का इस्तेमाल हीरोइन और दूसरे नशीले पदार्थों के उत्पादन में किया जाता है. अफ़ग़ानिस्तान में ये दशकों से भ्रष्ट शासकों, अधिकारियों, जंगी कबीलों, स्थानीय आकाओं और आम किसानों की भी आय का बड़ा जरिया रहा है.

खुद तालिबान भी सत्ता में आने से पहले अपनी आय बढ़ाने के लिए अफ़ीम की बिक्री का सहारा लेता था. सवाल ये है, कि क्या उन्होंने ये सब वाकई बंद कर दिया है?

इसे लेकर अमेरिकी सरकार ने पिछले साल जुलाई में एक रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक़ 'अफ़ीम किसानों और इसकी तस्करी से जुड़े दूसरे लोगों का समर्थन खोने के जोखिम के बावजूद तालिबान सरकार ड्रग्स पर पाबंदी के अपने फैसले को लेकर प्रतिबद्ध दिख रही है.'

पत्रकार होसैनी मानते है कि तालिबान नेतृत्व भले ही छोटे पैमाने पर क्यों न हो, लेकिन ड्रग तस्करों से पैसे वसूलता है.

वो कहते हैं, "इसकी एक वजह ये है कि तालिबान सरकार ने भले ही अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम की खेती और ड्रग्स की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन अभी इसकी खेती यहां होती है और ड्रग्स भी बिकते हैं."

दरअसल नशीले पदार्थों की खेती पर पाबंदी के ऐलान 8 महीने बाद ही अफ़ग़ानिस्तान में 23,33,000 हेक्टेयर में अफ़ीम की खेती का पता चला. इस आंकड़े का जिक्र संयुक्त राष्ट्र संघ की ड्रग्स और अपराध शाखा की एक रिपोर्ट में है.

हुसैनी के मुताबिक इससे जो रकम मिलती है, वो सीधे तालिबान सरकार के खजाने में जाती है. पहले की सरकारों में ये पूरी रकम भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों की जेब में जाती थी.

इस वित्त वर्ष में भारत भी अफ़ग़ानिस्तान को 200 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देगा. बुधवार को पेश किए गए आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने विदेश मंत्रालय को 18 हज़ार करोड़ रु. आवंटित किए हैं. इसमें से 200 करोड़ रुपये अफ़ग़ानिस्तान को अनुदान और कर्ज के रूप में दिए जाएंगे. (bbc.com/hindi)

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