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अमेरिका-जर्मन संबंधों का टेस्ट बना यूक्रेन युद्ध
04-Feb-2023 1:32 PM
अमेरिका-जर्मन संबंधों का टेस्ट बना यूक्रेन युद्ध

पैट्रियॉट मिसाइलें हों या टैंक, यूक्रेन में इन सबको भेजने के सवाल पर पश्चिमी देश बहुत दुविधा में थे और ना से हां तक पहुंचने का सफर बड़ा मुश्किल भरा रहा है. लेकिन इस बहस ने अमेरिकी जर्मन संबंधों में नया मोड़ ला दिया है.

   डॉयचे वैले पर विलियम नोआ ग्लूक्रॉफ्ट की रिपोर्ट-

अगर यह ग्राउंडहॉग डे जैसा लगता है, तो यह सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि इस हफ्ते अमेरिका में छुट्टी का दिन है. इसी समय पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को अपने मुख्य युद्धक टैंक भेजने का कठिन निर्णय लिया है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के एक साल बाद समर्थन के एक विशेष पैटर्न का यह सबसे हालिया उदाहरण है जो करीब एक साल पहले यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के साथ शुरू हुआ था.

चाहे भारी हथियार हों, उन्नत वायु रक्षा या उच्च स्तरीय बख्तरबंद गाड़ियां हों, इन्हें यूक्रेन को भेजने की शुरुआत पहले ना-नुकुर से होती है और फिर हां तक पहुंच जाती है. लेकिन उससे पहले हफ्तों की बातचीत, तकनीकी बहाने और सहयोगी दलों के बीच एकता दिखाने के प्रयासों के बीच इस मामले में अनिच्छा दिखा रहे देशों पर तेज फैसला लेने के समर्थकों की अधिक दबाव बनाने की कोशिश भी होती है.

अमेरिका और जर्मनी आर्थिक ताकत, औद्योगिक क्षमता और क्रय शक्ति के मामले में गठबंधन के सबसे बड़े सदस्य हैं, और यूक्रेन को मदद के सवाल ने उनके द्विपक्षीय संबंधों को भी नए तरीकों से रंग दिया है. और यह संबंध भी एक अत्यंत जटिल वैश्विक तस्वीर का सिर्फ एक हिस्सा है.

दबाव से धैर्य तक
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के धमकाने वाले वर्षों के बाद, उनके उत्तराधिकारी जो बाइडेन ने यूरोपीय सहयोगियों के साथ विनम्रता की नीति अपनाई है. ‘आरोप की रणनीति' की बजाय उन्होंने और उनके प्रशासन ने धैर्य से काम लिया है और जर्मनी के योगदान के लिए अक्सर उसकी प्रशंसा की है. डीडब्ल्यू से बातचीत में जर्मन मार्शल फंड के बर्लिन दफ्तर के वरिष्ठ विशेषज्ञ थॉमस क्लाइने-ब्रॉकहोफ कहते हैं कि यह जर्मनी को कूटनीतिक ‘कवर' देने का भी एक प्रयास है क्योंकि उसे असहज नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत है.

हाल ही में, जो बाइडेन ने सार्वजनिक रूप से चांसलर ओलाफ शॉल्त्स को यूक्रेन के प्रति उनकी ‘दृढ़ प्रतिबद्धता' के लिए बधाई दी और ‘आगे बढ़ने' के लिए जर्मनी को श्रेय दिया. हालांकि, क्लाइने ब्रॉकहोफ ये भी कहते हैं कि युद्धक टैंक डिलीवरी के हालिया मुद्दे पर बहस ने बंद दरवाजों के पीछे एक अलग ही रास्ता अपनाया है.

ब्रॉकहोफ कहते हैं, "जर्मन चांसलर ने अमेरिका पर टैंकों की डिलीवरी के मामले में दबाव डाला और कहा कि मैं तभी करूंगा जब पहले आप करेंगे. इससे अमरीकी पक्ष में कुछ हलचल हुई, खासकर इसलिए क्योंकि अमेरिका ने जर्मनी पर दबाव डालने से परहेज किया था.” हालांकि बाइडेन ने इस बात से इनकार किया है कि शॉल्त्स के दबाव ने उन्हें अमेरिकी एब्रेम्स टैंक भेजने पर अपना विचार बदलने के लिए मजबूर किया. क्लाइने ब्रॉकहोफ कहते हैं कि अमेरिका में नीति निर्माताओं को अब एहसास हुआ है कि "जर्मन वास्तव में अनुसरण करना चाहते हैं, नेतृत्व करना नहीं चाहते हैं."

पुराने तनाव कम होते ही नए तनाव
शॉल्त्स के आलोचकों के लिए, यह जर्मन संसद बुंडेस्टाग में उनके उस धमाकेदार संबोधन का खंडन करता प्रतीत होता है जो उन्होंने पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कुछ ही दिनों बाद किया था. इस संबोधन में उन्होंने ‘साइटेनवेन्डे' यानी एक ऐतिहासिक मोड़ की घोषणा की जिसका मतलब था सैन्य खर्च में भारी वृद्धि और एक अधिक मजबूत सुरक्षा नीति तय करना. ब्रॉकहोफ कहते हैं, "अमेरिकी-जर्मन संबंधों में लंबे समय से चल रहे चिड़चिड़ेपन पर रास्ता बदलने के लिए जर्मनों को युद्ध का सहारा लेना पड़ा.”

अमेरिकी अधिकारियों के दृष्टिकोण में यह उच्च सैन्य खर्च की मांग पर जर्मनी का प्रतिरोध था, जो सकल घरेलू उत्पाद के 2 फीसद के नाटो के पैसले से कम हो रहा था और रूस के साथ इसकी नॉर्ड स्ट्रीम गैस परियोजनाएं भी अमेरिका को खटकती थीं. वहीं जर्मनी इस विचार से चिढ़ गया था कि एक सहयोगी उसे ऊर्जा सौदे को रोकने के लिए प्रतिबंधों की धमकी देगा. ये मुद्दे तब से रास्ते से हट गए जब से नाटो के ‘परमाणु साझाकरण' कार्यक्रम में जर्मनी की भागीदारी को लेकर वहां बहस चल रही है. यह एक ऐसी नीति है जो अमेरिकी परमाणु हथियारों को जर्मनी की धरती पर रखने की अनुमति देती है और उन्हें ले जाने के लिए जर्मन विमानों की जरूरत होती है.

अपने-अपने हित
अमेरिकी हितों को पहले रखने के लिए बाइडेन की तेजी, मसलन, सब्सिडी-बहुल मुद्रास्फीति में कमी संबंधी अधिनियम और निरंकुश शासकों के खिलाफ खड़े लोकतंत्रों के गठबंधन की उनकी दृष्टि, वह जटिल लेकिन संतुलित कार्यशैली है जो अमेरिका-जर्मनी संबंधों को तय कर रही है. जहां जर्मनी यूक्रेन को क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले के रूप में देखता है, वहीं अमेरिका के लिए यह युद्ध भू-राजनीतिक शतरंज के जटिल खेल का एक हिस्सा है. अमेरिका के लिए एक कमजोर रूस उसके अपने हितों के लिए वरदान हो सकता है. यह अमेरिका का ऐसा दृष्टिकोण है जिसका समर्थन जर्मनी आसानी से नहीं कर सकता.

यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट गालेन में इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिटिकल साइंस के डायरेक्टर जेम्स डेविस कहते हैं, "कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो जर्मनी के पास उस तरह से सोचने की मानसिक या बौद्धिक क्षमता भी नहीं है. वहां ऐसा करने के लिए कोई भी प्रशिक्षित नहीं है.” अमेरिका को यूरोप की रक्षा के भार को साझा करने के लिए जर्मनी की आवश्यकता है ताकि वह प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिए अधिक संसाधन जुटा सके. इस बीच, जर्मनी को यह समझने की जरूरत है कि वह यूरोप में अमेरिकी समर्थन पर भरोसा कर सकता है.

डेविस कहते हैं, "क्या आप इस वक्त अपना दांव अमेरिका के साथ लगाएंगे? यह एक उचित सवाल है.” ट्रंप के शासनकाल के दौरान हुए नुकसान से बाहर आकर, जर्मनी जैसे अमेरिकी सहयोगियों को प्रशांत क्षेत्र में विरोधी हितों का सामना करना पड़ता है और उम्मीद है कि उन्हें चीन पर साथ आना होगा. इस समय एक अप्रत्याशित रिपब्लिकन पार्टी के हाथ में कांग्रेस का नियंत्रण है, जो अमेरिका में एक विनाशकारी ऋण चूक की धमकी दे रही है और इस बात की याद दिलाती है कि बाइडेन के नेतृत्व में व्हाइट हाउस का संचालन बेहतर है.

नए निवेश, समान उपलब्धि
डेविस कहते हैं कि यह हैरान करने वाली बात है कि 9/11 के बाद से अमेरिका-जर्मन संबंधों में बड़े बदलावों के बावजूद, विदेश नीति के मुद्दों पर नेतृत्व करने के लिए जर्मनी की अनिच्छा वैसी ही बनी हुई है. जर्मन सरकारें इराक में अमेरिकी सैनिकों को भेजने, पकड़े गए लड़ाकों को यातना और दुर्व्यवहार और एक बड़े पैमाने पर जासूसी अभियानों की बहुत आलोचक थीं. जासूसी अभियानों में जर्मनी भी अमेरिका के लक्ष्य पर था. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका जर्मनी को अपने से दूर रखना चाहता था और वैश्विक मंच पर उसकी मौजूदगी को सीमित रखना चाहता था.

दोनों के बीच संबंध अब बहुत सामान्य हैं लेकिन यह हिचकिचाहट अभी भी बनी हुई है. डेविस कहते हैं, "ट्रांस-अटलांटिक संबंधों में अभी भी यह हताशा है, इस तरह का तनाव है, लेकिन इस बार ऐसा इसलिए है क्योंकि जर्मन कहते हैं, ‘केवल आपके साथ'.” जर्मनी में सत्तारूढ़ त्रिपक्षीय गठबंधन का नेतृत्व करने वाले सेंटर लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स ने अक्सर रूस के साथ एक सहकारी दृष्टिकोण की वकालत की है जो कि यूरोप का सबसे बड़ा देश है और आक्रमण से पहले तक उनका एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार रहा है.

रूसी हमले के बाद एसपीडी के कई सांसदों ने अपना रुख बदल लिया है, लेकिन पार्टी के आलोचक अभी भी संशय में हैं. यह राजनीतिक संशय पूर्वी जर्मनी यानी जीडीआर के मतदाताओं से कुछ समर्थन हासिल होने की वजह से भी है. पूर्व साम्यवादी जीडीआर, सोवियत संघ का सहयोगी था जो जर्मनी के पश्चिमी हिस्सों की तुलना में सांस्कृतिक रूप से रूस के करीब महसूस करते हैं और रूस के साथ टकराव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं रहते.

पूर्ववर्ती पश्चिम जर्मनी अधिक अमेरिकी समर्थक हो सकता है, लेकिन यह भावना शीत युद्ध-युग की इस उम्मीद के साथ आती है कि अमेरिका अगुआ है. नाजी अतीत और उसके बाद सैन्य शक्ति से दूरी की जर्मनी की नीति को खारिज करते हुए डेविस कहते हैं, "नई भूमिका में विकसित होने के लिए आपके पास काफी लंबा समय था. यह मुझे 30 साल के उन लोगों की याद दिलाता है जो अपने माता-पिता के घर से बाहर नहीं जाना चाहते हैं.” (dw.com)
 

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