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अमिताभ बच्चन से जब डायरेक्टर ने कहा- कवि के बेटे हो, कहां हीरो बनोगे, कविता करो : विवेचना
04-Feb-2023 2:10 PM
अमिताभ बच्चन से जब डायरेक्टर ने कहा- कवि के बेटे हो, कहां हीरो बनोगे, कविता करो : विवेचना

-रेहान फ़ज़ल

चालीस के दशक में मशहूर अमेरिकी गायक और अभिनेता फ़्रैंक सिनात्रा को मशहूर करने के लिए उनके प्रेस एजेंट जॉर्ज इवान्स ने एक ज़बरदस्त चाल चली थी.

उन्होंने बारह युवतियों को किराए पर लिया, उन्हें सिखाया गया कि फ़्रैंक के गाना शुरू करते वो 'ओ फ़्रैंकी, ओ फ़्रैंकी' कह कर चीख़ें और थोड़ी देर बाद बेहोश होने का नाटक करें.

इवान्स ने थियेटर से उन 'बेहोश' बालाओं को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस का भी इंतज़ाम कर रखा था. उन्होंने इस मौक़े के लिए फ़ोटोग्राफ़रों की भी व्यवस्था कर रखी थी ताकि उस वक्त ली गई तस्वीरों से प्रचार को और ज़ोरदार बनाया जा सके. इसके लिए उन लड़कियों को पाँच-पाँच डॉलर दिए गए थे. इसके लिए इवान्स ने अपनी देखरेख में तीन दिनों तक रिहर्सल करवाई थी.

न्यूयॉर्क के पैरामाउंट थियेटर में फ़्रैंक सिनात्रा के कार्यक्रम के ख़त्म होने से पहले इवान्स ये देखकर चकित हो गए कि उन्होंने तो सिर्फ़ 12 लड़कियों को किराए पर लिया था, जबकि हक़ीकत में 30 लड़कियाँ बेहोश हो गई थीं.

ये कहानी एक बार अमिताभ बच्चन को सुनाई गई तो पहले वो मुस्कराए और फिर कहा, "किसी को धर पकड़ कर हीरो तो बना दिया जा सकता है, लेकिन बस वहीं तक ही. कैमरा स्टार्ट हो जाने के बाद वो अकेला रह जाता है. अभिनय तो उसे करना ही पड़ेगा."

दरअसल अमिताभ समझाना चाह रहे थे कि प्रचार का शोर किसी शख़्स को एक ख़ास मुक़ाम तक तो पहुंचा सकता है, लेकिन उससे आगे जाने के लिए उसमें प्रतिभा होनी भी ज़रूरी है.

शुक्र है अमिताभ को अपने करियर को बढ़ाने के लिए इन सब हथकंडों का सहारा नहीं लेना पड़ा.

सुमित्रानंदन पंत ने किया था नामकरण

अमिताभ का जन्म हुआ 11 अक्तूबर, 1942 को इलाहाबाद में था. पैदा होने के दिन ही उनका नामकरण भी हो गया था.

हुआ ये कि उनके माता-पिता के पारिवारिक मित्र पंडित अमरनाथ झा ने सुझाव दिया कि उस समय के देश के माहौल को देखते हुए उनका नाम 'इन्क़लाब' रखा जाए.

अमिताभ बच्चन पर हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'अमिताभ बच्चन द फ़ॉरएवर स्टार' के लेखक प्रदीप चंद्रा बताते हैं, "जिस दिन अमिताभ पैदा हुए उसी दिन मशहूर कवि सुमित्रानंदन पंत उन्हें देखने नर्सिंग होम आए. उन्होंने बच्चे को देखते ही कहा, 'बच्चन, देखो ये कितना शाँत है, ठीक जैसे ध्यानमग्न अमिताभ हो'."

पंतजी के कहे गए शब्दों को तेजी बच्चन ने मन ही मन दोहराया, 'अमिताभ', 'अमिताभ' और बोलीं वाह कितना अच्छा नाम है.

हरिवंश और तेजी दोनों ने तय किया कि वो अपने बेटे का नाम अमिताभ रखेंगे. हांलाकि परिवार का सरनेम श्रीवास्तव था लेकिन अमिताभ को उनके पिता हरिवंशराय बच्चम का सरनेम 'बच्चन' दिया गया.

घर में उन्हें अमित कह कर पुकारा जाता था, लेकिन उनकी माँ उन्हें 'मुन्ना' कह कर पुकराती थीं. अमिताभ के छोटे भाई अजिताभ का घर का नाम 'बंटी' था.'

हरिवंश राय बच्चन (बाएं), सुमित्रानंदन पंत (बीच में) और तेजी बच्चन (दाएं)

किरोड़ीमल कालेज की ड्रामा सोसाएटी सेअभिनय की शुरुआत

नैनीताल के शेरवुड स्कूल मे प्रारंभिक शिक्षा के बाद अमिताभ बच्चन ने दिल्ली के किरोड़ीमल कालेज में दाखिला लिया. वहाँ उन्हें नाटकों में काम करने का ख़ूब मौका मिला.

कालेज की ड्रामा सोसाएटी के प्रमुख फ़्रैंक ठाकुरदास अमिताभ की लरजती हुई आवाज़ से बहुत प्रभावित हुए. हुआ ये कि मशहूर थियेटर शख़्सियत प्रताप शर्मा के भाई को एक नाटक के प्रमुख रोल के लिए चुना गया. ऐन मौक़े पर उन्होंने कुछ निजी कारणों से नाटक में काम करने से मना कर दिया.

ठाकुरदास के सामने परेशानी थी कि अब उनका रोल किसको दिया जाए. अमिताभ ने वो भूमिका निभाने की पेशकश की. ठाकुरदास इसके लिए राज़ी हो गए. अमिताभ ने इसका पूरा फ़ायदा उठाते हुए बेहतरीन अभिनय किया और दर्शकों का दिल जीत लिया.

बाद में अमिताभ ने मिरांडा हाउज़ में होने वाले नाटक 'रेप ऑफ़ द बेल्ट' में भी अभिनय किया.

उस समय मुंबई थियेटर की दुनिया में नाम कमाने वाली डॉली ठकोर मिरांडा हाउज़ में पढ़ा करती थीं. उन्होंने अमिताभ को याद करते हुए कहा "उन दिनों अमिताभ कोने में चुपचाप बैठे रहते थे. वो बहुत शर्मीले थे. उनके छोटे भाई अजिताभ देखने में उनसे बेहतर थे."

बीए पास करने के बाद अमिताभ ने कोलकात्ता की टबर्ड्स एंड कंपनी में नौकरी शुरू की. दो साल काम करने के बाद उन्होंने 'ब्लैकर एंड कंपनी' में काम करना शुरू किया. वहाँ उनकी तन्ख्वाह तो बढ़ी ही, उन्हें दफ़्तर आने-जाने के लिए एक मॉरिस माइनर कार भी दी गई.

फ़िल्मफ़ेयर- माधुरी कॉन्टेस्ट' में हुए फ़ेल

अभिनय में अमिताभ के रुझान को देखते हुए उनके छोटे भाई अजिताभ ने उनकी एक तस्वीर 'फ़िल्मफ़ेयर- माधुरी टेलेन्ट कॉन्टेस्ट' में भेज दी.

प्रदीप चंद्रा बताते हैं, "इस प्रतियोगिता के विजेता को 2500 रुपए और हिंदी फ़िल्म में काम करने का मौक़ा दिया जाना था. लेकिन तब तक अमिताभ का समय नहीं आया था, इसलिए उनको नहीं चुना गया. उस साल संजय और फ़िरोज़ ख़ान के भाई समीर ने वो कॉन्टेस्ट जीता."

"इससे पहले धर्मेंद्र और राजेश खन्ना ये कॉन्टेस्ट जीत चुके थे. इसको भी एक विडंबना ही कहा जाएगा कि अपनी आवाज़ का लोहा मनवाने वाले अमिताभ को आकाशवाणी ने 'स्वर परीक्षा' में फ़ेल कर दिया गया था."

छोटे भाई अजिताभ बच्चन (बाएं) के साथ अमिताभ

हिंदी फ़िल्मों में अमिताभ का प्रवेश तेजी बच्चन और सुनील दत और नरगिस दत्त की दोस्ती की वजह से हुआ.

इससे भी पहले जानेमाने फ़िल्म निर्देशक सावन कुमार टाक के साथ 1968 में दिल्ली में तेजी बच्चन की मुलाक़ात हुई थी. उन्होंने सावन कुमार को बताया कि उनका बेटा फ़िल्मों में काम करने का इच्छुक है.

टाक उन दिनों मिर्ज़ा ग़ालिब पर एक फ़िल्म बनाने की योजना बना रहे थे. उन्होंने अमिताभ को मिर्ज़ा ग़ालिब का रोल देने का मन भी बना लिया था. लेकिन उनके जानने वालों ने तर्क दिया कि अमिताभ ग़ालिब के रोल में फ़िट नहीं होंगे, क्योंकि वो बहुत लंबे हैं, जबकि ग़ालिब का क़द बहुत छोटा था.

कई फ़िल्म प्रोड्यूसरों ने किया नज़रअंदाज़

सुनील दत्त की सिफ़ारिश पर मशहूर निर्देशक बीआर चोपड़ा अमिताभ का स्क्रीन टेस्ट लेने के लिए तैयार हो गए. स्क्रीन टेस्ट में अमिताभ की लाइनें थीं -तुम जब भी मुझे यूँ देखती होमैं सब भूल जाता हूँ,क्या हूँकहाँ हूँकुछ समझ में नहीं आता.

लेकिन बीआर चोपड़ा की तरफ़ से अमिताभ के लिए बुलावा नहीं आया. हाँ, 'ज़ंजीर' फ़िल्म रिलीज़ हो जाने के बाद ज़रूर उन्होंने अमिताभ को अपनी फ़िल्म 'ज़मीर' में साइन किया.

उन्हीं दिनों अमिताभ मशहूर फ़िल्म निर्माता ताराचंद बड़जतिया से भी मिलने गए. लेकिन वहाँ भी बात बनी नहीं.

बड़जतिया ने उनसे कहा, "तुम बहुत लंबे हो. तुम्हें अपने पिता का पेशा अपनाना चाहिए. तुम उनकी तरह एक अच्छे कवि बन सकते हो."

कुछ सालों बाद इन्हीं बड़जतिया ने अमिताभ को अपनी फ़िल्म 'सौदागर' में बतौर हीरो साइन किया. यही नहीं हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'ऊचाइयाँ' में ताराचंद के पोते सूरज बड़जतिया ने अमिताभ को लीड रोल दिया.

निर्माता निर्देशक ताराचंद बड़जात्या

ख़्वाजा अहमद अब्बास ने दिया पहला रोल

अमिताभ को पहली फ़िल्म मशहूर फ़िल्म निर्देशक ख़्वाजा अहमद अब्बास ने दी.

निर्देशक टीनू आनंद की दोस्त नीना सिंह ने उनसे अनुरोध किया कि वो अमिताभ की कुछ तस्वीरें अब्बास साहब को दिखाएं.

प्रदीप चंद्रा बताते हैं, "तस्वीरें देखने के बाद अब्बास साहब ने अमिताभ को बुलवा भेजा. अमिताभ कलकत्ता से ख़ासतौर से अब्बास से मिलने आए."

"अमिताभ के चले जाने के बाद अब्बास ने टीनू को बताया कि वो अमिताभ को 5000 रुपए देंगे, चाहे ये फ़िल्म एक महीने में बने या एक साल में. जब टीनू ने ये बात अमिताभ और उनके भाई को बताई तो वो बहुत ख़ुश नहीं हुए. ये राशि अमिताभ की दो महीने की तन्ख़वाह के बराबर थी."

अमिताभ की ख़्वाजा अहमद अब्बास से मुलाक़ात का ज़िक्र अब्बास की भतीजी सैयदा सैयदेन हमीद ने भी बीबीसी से बात करते हुए किया था.

सैयदा ने बताया था, "अब्बास अपने सचिव अब्दुल रहमान को बुला कर अमिताभ का कॉन्ट्रैक्ट डिक्टेट करने लगे. उन्होंने अमिताभ से एक बार फिर उनका पूरा नाम और पता पूछा. अमिताभ ने अपना नाम बताया और फिर कुछ रुक कर कहा, पुत्र डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन."

रुको", अब्बास चिल्लाए. वो बोले, "इस कॉन्ट्रैक्ट पर तब तक दस्तख़्त नहीं हो सकते, जब तक मुझे तुम्हारे पिता की इजाज़त नहीं मिल जाती. वो मेरे जानने वाले हैं और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड कमेटी में मेरे साथी हैं. तुम्हें दो दिनों तक और इंतज़ार करना पड़ेगा."

इस तरह ख़्वाजा अहमद अब्बास ने कॉन्ट्रैक्ट की जगह हरिवंशराय बच्चन के लिए एक टेलिग्राम डिक्टेट किया और पूछा, "क्या आप अपने बेटे को अभिनेता बनाने के लिए राज़ी हैं?"

दो दिन बाद सीनियर बच्चन का जवाब आया, "मुझे कोई ऐतराज़ नहीं. आप आगे बढ़ सकते हैं."

इस तरह अमिताभ ने 15 फ़रवरी, 1969 को अपनी पहली फ़िल्म 'सात हिंदुस्तानी' साइन की.

अब्बास ने लिया उर्दू का टेस्ट

इस फ़िल्म मे टीनू आनंद भी काम करने वाले थे, लेकिन उसी समय उन्हें सत्यजीत राय ने अपने पास बुला लिया. नतीजा ये हुआ कि टीनू आनंद का रोल अमिताभ बच्चन को दे दिया गया और अमिताभ पहले जो रोल कर रहे थे वो महमूद के भाई अनवर अली को दिया गया.

उन्हीं दिनों अमिताभ की मुलाकात ऋषि कपूर से हुई.

ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा 'खुल्लमखुल्ला' में उन्हें याद किया है. उन्होंने लिखा है, "मैं टीनू आनंद का दोस्त था और अक्सर उनके घर चला जाता था. एक बार मैंने देखा कि एक दुबला-पतला आकर्षक व्यक्ति ज़मीन पर पालथी मारे बैठा हुआ था और ख़्वाजा अहमद अब्बास को एक लिखित परीक्षा दे रहा था."

"दरअसल अब्बास चाहते थे कि अमिताभ उर्दू की परीक्षा दें, क्योंकि फ़िल्म के बहुत से डॉयलॉग उर्दू में थे. अमिताभ ने भी इस वाक़ये की पुष्टि करते हुए कहा, 'उस समय मुझे उर्दू बिल्कुल नहीं आती थी. वो पहला मौक़ा था जब मैंने उर्दू का शब्द ज़ायका सुना था जिसका अर्थ होता है स्वाद'."

अब्बास (बाएं से दूसरे) अमिताभ बच्चन के साथ

शराब से की तौबा

अमिताभ को अपनी पहली ही फ़िल्म 'सात हिंदुस्तानी' में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.

प्रदीप चंद्रा अपनी क़िताब में लिखते हैं, "अब्बास साहब बहुत कम बजट में फ़िल्म बनाते थे. लेकिन कभी-कभी जब वो बहुत खुश होते थे तो अपने साथ काम करने वालों में किसी को 50 रुपए दे कर कहते थे कि लो जश्न मनाओ."

ये 50 रुपये एक बार अमिताभ को मिले. पैसे मिलते ही तीनों दोस्तों बच्चन, जलाल आग़ा और अनवर अली ने इसे एक यादगार शाम बनाने का फ़ैसला किया. तीनों ने जम कर शराब पी.

अगले दिन अनवर अली ने बच्चन को सलाह दी कि जब तक तुम्हारा इंडस्ट्री में नाम न हो जाए, शराब को हाथ मत लगाना. अमिताभ ने उसी समय शराब छोड़ने का फ़ैसला किया.

उन्होंने ताउम्र इस फ़ैसले का पालन किया. हाँ, जब उनके छोटे भाई अजिताभ की शादी हुई तो उन्होंने ज़रूर शराब के दो घूँट लिए.

मृणाल सेन ने दिया वॉएस ओवर का काम

उन्हीं दिनों मशहूर फ़िल्म निर्देश मृणाल सेन ने अमिताभ बच्चन को एक वॉएस ओवर का काम दिया.

सेन अब्बास के घर आए हुए थे. उन्हें एक अच्छी आवाज़ वाले शख़्स की तलाश थी जिसे वो अपनी फ़िल्म 'भुवन शोम' में एक नरेटर की तरह इस्तेमाल कर सकें.

जब अमिताभ ने ये सुना तो उन्होंने मृणाल से कहा कि वो बंगाली जानते हैं. मृणाल ने उनकी आवाज़ सुनी. उन्हें आवाज़ तो पसंद आई लेकिन उन्हें उनका बंगाली बोलने का लहजा पसंद नहीं आया.

उन्होंने बच्चन को अपनी फ़िल्म में हिंदी में नरेशन देने के लिए चुन लिया. इस काम के लिए सेन ने बच्चन को 300 रुपए दिए.

जब 'भुवन शोम' रिलीज़ हुई तो उसके क्रेडिट में अमिताभ का नाम भी था. ये फ़िल्म भारतीय सिनेमा की मील का पत्थर साबित हुई. इसको तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, निर्देशक और अभिनेता के.

'आनंद' के रोल ने सबका ध्यान खींचा

'सात हिंदुस्तानी' के बाद भाग्य ने अमिताभ बच्चन का साथ नहीं दिया. उनकी लगातार दस फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर पिटीं.

सन 1971 में उनकी फ़िल्म 'परवाना' आई जिसमें नवीन निश्चल हीरो थे और अमिताभ ने एक 'नेगेटिव' रोल किया था.

इस बीच सुनील दत्त ने उन्हें अपनी फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' में काम करने का मौक़ा दिया. दिलचस्प बात ये थी कि ये एक गूँगे का रोल था.

बाद में हरिवंश राय बच्च्न ने अपनी आत्मकथा में लिखा, "ये अमिताभ के अभिनय कौशल की असली परीक्षा थी क्योंकि उन्हें एक शब्द बोले अपनी सभी भावनाओं को दर्शकों तक पहुंचाना था".

एक बार अमिताभ बच्चन ख़्वाजा अहमद अब्बास के साथ हृषिकेश मुखर्जी से मिलने उनके घर पर गए. वो उन दिनों अपनी फ़िल्म 'आनंद' के लिए एक अभिनेता की तलाश में थे.

पिता हरिवंश राय बच्चन के साथ अमिताभ

अमिताभ को देखते ही उन्हें लग गया कि उन्हें उनका 'बाबू मोशाय' मिल गया.

इससे पहले वो इस रोल के लिए मशहूर बंगाली अभिनेता उत्तम कुमार को लेना चाहते थे. बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, "अमिताभ की आवाज़ और गंभीर आँखों की वजह से मैंने उसे चुना. मुझे ये कहने में कोई परहेज़ नहीं कि इस फ़िल्म में अमिताभ राजेश खन्ना पर भारी पड़े."

अमिताभ और जया में बढ़ी नज़दीकी

इस सबके बावजूद अमिताभ की अभी तक कोई सोलो हिट नहीं आई थी. अमिताभ की नज़दीकियां जया भादुड़ी से बढ़ चुकी थीं और दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे.

साल 1971 में ऋषिकेश मुखर्जी दोनों को अपनी फ़िल्म 'गुड्डी' में लेना चाहते थे लेकिन आख़िरी समय पर उन्होंने अपना फ़ैसला बदल दिया. दोनों इससे बहुत आहत हुए.

अगले साल बीआर इशारा ने अमिताभ और जया को अपनी फ़िल्म 'एक नज़र' में साथ काम करने का मौक़ा दिया.

ये फ़िल्म उन्होंने धर्मेंद्र के सेक्रेटरी दीनानाथ शास्त्री के कहने पर अमिताभ और जया को ऑफ़र की थी. लेकिन वो अंदर से ये मना रहे थे कि जया स्क्रिप्ट सुन कर फ़िल्म में काम करने से इनकार कर दें. लेकिन इशारा की इच्छा पूरी नहीं हुई और दोनों ने फ़िल्म में काम करने का फ़ैसला कर लिया.

एक और फ़िल्म 'एक थी सुधा, एक था चंदर' में दोनों को साइन किया गया. ये मशहूर हिंदी साहित्यकार डाक्टर धर्मवीर भारती के उपन्यास 'गुनाहों का देवता' पर आधारित थी. लेकिन पैसों की तंगी के कारण इस फ़िल्म की शूटिंग पूरी नहीं की जा सकी.

लगातार 12 फ़िल्में फ़्लॉप

अमिताभ की शुरुआती फ़िल्में चली भले ही न हो लेकिन उनके अभिनय ने सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा.

प्रदीप चंद्रा कहते हैं "अगर अमिताभ में टेलेंट नहीं होता तो उन्हें एक के बाद एक बारह फ़िल्में नहीं मिलतीं. तीसरी ही फ़िल्म के बाद ही उन्हें अपना बोरिया-बिस्तर बाँधना पड़ता."

उनके साथ काम करने वाले अभिनेताओं ने उनकी तारीफ़ों के पुल बाँधने शुरू कर दिए थे. सबसे पहले 'परवाना' में उनके साथ काम कर रहे ओम प्रकाश ने उनके अभिनय की तारीफ़ की थी.

मशहूर विलेन प्रेम चोपड़ा ने, जिन्होंने बच्चन के साथ 27 फ़िल्में की, उनके अभिनय को दाद दी. लेकिन हिट न दे पाने के कारण उन्हें कई फ़िल्मों से निकाला भी गया.

सन 1972 में उन्हें एक फ़िल्म 'अपने पराए' के लिए साइन किया गया था. इसे कुंदन कुमार डायरेक्ट कर रहे थे. फ़िल्म का एक बड़ा हिस्सा शूट हो जाने के बावजूद बच्चन को हटा दिया गया. उनकी जगह संजय ख़ान को ले लिया गया. फ़िल्म का नाम भी बदल कर 'दुनिया का मेला' रख दिया गया.

जावेद अख़्तर की सिफ़ारिश से मिला 'ज़ंजीर' का रोल

जब प्रकाश मेहरा 'ज़ंजीर' बनाने लगे तो धर्मेंद्र, राज कुमार और देवानंद ने कोई न कोई बहाना बना कर ये फ़िल्म रिजेक्ट कर दी.

प्रदीप चंद्रा बताते हैं कि "तब जावेद अख़्तर ने कहीं से उनका टेलिफ़ोन नंबर ढ़ूढ़ा और उन्हें फ़ोन कर कहा कि वो उन्हें अपनी स्क्रिप्ट सुनाना चाहते हैं. अमिताभ उन दिनों इतने व्यस्त नहीं थे, इसलिए उन्होंने उन्हें तुरंत आ जाने के लिए कहा. जावेद अख़्तर टैक्सी पर अमिताभ बच्चन के घर 'मंगल' पहुंचे, जहाँ उन दिनों वो रहा करते थे."

"स्क्रिप्ट सुनने के बाद अमिताभ ने जावेद ख़्तर से पूछा कि 'क्या उनमें ये रोल करने की क्षमता है ? जावेद ने उन्हें समझाया कि 'अगर कोई ये रोल कर सकता है तो वो आप ही हैं'."

कई सालों बाद अमिताभ बच्चन ने जावेद अख़्तर से पूछा, "क्या सोच कर आपने प्रकाश मेहरा को मुझे फ़िल्म में लेने के लिए कहा था? जावेद का जवाब था, 'मैंने 'बॉम्बे टू गोआ' देखी थी. उस फ़िल्म में आपके और शत्रुघ्न सिन्हा के बीच एक फ़ाइट सीन था. फ़ाइट की शुरुआत में आप चुइंगम खा रहे थे. मुक्का खाने के बाद जब गिर कर उठे तब भी आप चुइंगम चबा रहे थे. वो दृश्य देख कर ही मैंने तय किया कि 'ज़ंजीर' फ़िल्म आपके सिवा कोई नहीं कर सकता'."

जावेद अख़्तर प्रकाश मेहरा को लेकर रूपतारा स्टूडियो पहुंचे, जहाँ अमिताभ जीतेंद्र और हेमा मालिनी के साथ 'गहरी चाल' फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे. वहीं पर अमिताभ ने अपने करियर की 13 वीं फ़िल्म साइन की.

यही नहीं इस फ़िल्म में उनकी होने वाली पत्नी जया भादुड़ी को उनकी हीरोइन के तौर पर साइन किया गया. बाद में अमिताभ से पूछा गया कि अगर उन्हें 'ज़जीर' नहीं मिली होती तो उन्होंने क्या किया होता ?

अमिताभ का जवाब था, "मेरे पास कोई वैकल्पिक योजना नहीं थी. कोई भी मुझे रोल नहीं दे रहा था. उस समय 'ज़ंजीर' ही अकेली फ़िल्म थी जो मेरे हाथ में थी'."

'एंग्री यंग मैन' का उदय

1973 में रिलीज़ हुई 'ज़ंजीर' सुपरहिट फ़िल्म साबित हुई. फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में इसे नौ वर्गों में नामांकित किया गया. प्राण पर फ़िल्माया गया इस फ़िल्म का गाना 'यारी है ईमान मेरा' उस साल का सबसे लोकप्रिय गाना साबित हुआ.

इस फ़िल्म ने एक अनजान से अभिनेता को एक सुपरस्टार की श्रेणी में ला खड़ा किया. यहीं से उनकी 'एंग्री यंग मैन' की छवि की शुरुआत हुई और वो नेशनल क्रेज़ बन गए.

हांलाकि अमिताभ बच्चन का मानना है कि 'एंग्री यंग मैन 'की छवि के बीज ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म 'नमकहराम' फ़िल्म के दौरान बोए गए थे.

ऋषिकेश मुखर्जी का मानना था कि उन्होंने 'आनंद' में अमिताभ को निर्देशित करने के दौरान ही उनकी ऑन स्क्रीन प्रेज़ेन्स को भाँप लिया था.

उन्होंने एक बार कहा था, "मुझे अंदाज़ा हो गया था कि उनमें सिर्फ़ एक निगाह और अपनी आवाज़ भर से अपनी भूमिका को ताकतवर बना देने की ग़ज़ब की क्षमता थी. यही वजह थी कि मैंने उन्हें 'नमकहराम' में एंग्री यंगमैन की भूमिका दी थी." (bbc.com/hindi)

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