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पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों की इबादतगाहों पर क्यों बढ़ रहे हैं हमले?
06-Feb-2023 10:08 AM
पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों की इबादतगाहों पर क्यों बढ़ रहे हैं हमले?

पाकिस्तानइमेज स्रोत,JAMAAT AHMADIYYA

-आज़म ख़ान

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 3 और 4 फ़रवरी के बीच की रात मीरपुर ख़ास के इलाक़े गोठ चौधरी जावेद अहमद में अज्ञात लोगों ने जमात-ए-अहमदिया की इबादतगाह की मीनारों को तोड़ दिया और वहां रखे सामान को आग लगा दी.

पिछले एक महीने के दौरान इस तरह की घटनाओं में तेज़ी देखने में आई है. पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में अहमदिया समुदाय की इबादतगाहों को निशाना बनाया जा रहा है.

इससे पहले कि इन घटनाओं के संबंध में हम अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता और विशेषज्ञों से विस्तृत बातचीत पेश करें, सिंध और पंजाब में हुई ऐसी घटनाओं पर नज़र दौड़ाते हैं, जिनमें पिछले एक माह के दौरान या तो अहमदी इबादतगाहों की मीनार तोड़ी गई या फिर उन्हें आग लगा दी गई.

उनमें से कुछ घटनाओं की एफ़आईआर भी दर्ज हुई लेकिन यह सिलसिला थम नहीं सका है. अहमदिया समुदाय ने कुछ घटनाओं में स्थानीय पुलिस के भी शामिल होने का आरोप लगाया है.

2023 में अहमदिया समुदाय की इबादतगाहों पर कई हमले हुए. इस साल 10 जनवरी की रात वज़ीराबाद के मोती बाज़ार में अहमदिया समुदाय की इबादतगाहों की मीनार तोड़ी गई.

अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता के अनुसार ये मीनार ख़ुद पुलिस ने तोड़ी थी लेकिन पुलिस ने इस आरोप का खंडन किया है. इसी तरह 18 जनवरी को 15 से 20 अज्ञात लोग दिन में तीन बजे मार्टन रोड, कराची में सीढ़ी लगाकर इबादतगाह के अंदर दाख़िल हुए और सामने की दो मीनारों को नुक़सान पहुंचाया.

इसकी जानकारी मिलने पर पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो अज्ञात अपराधी वहां से फ़रार हो गए. इसी तरह फ़रवरी में सदर कराची में अहमदिया हॉल की मीनारों को नुक़सान पहुंचाया गया. इस केस की एफ़आईआर के अनुसार 10 से 15 अज्ञात लोग इबादतगाह में घुस गए और अहमदिया हॉल को नुक़सान पहुंचाया.

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार यह इबादतगाह और इस पर लगी मीनार सन 1947 में पाकिस्तान बनने से पहले बनाई गई थी.

एफ़आईआर में कहा गया है कि इस हमले में शामिल लोगों ने स्थानीय लोगों को भी जमा किया और अहमदिया समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाई और इस हमले को रोकने वाले पुलिसवालों से भी मारपीट की, इससे वो घायल भी हुए.

इसी तरह तीन फ़रवरी की रात नूर नगर ज़िला उमरकोट में कुछ अज्ञात लोग एक इबादतगाह में दीवार फांद कर अंदर गए और तेल छिड़ककर जमात-ए-अहमदिया की इबादतगाह को आग लगा दी गई. इससे इबादतगाह के हॉल में कुर्सियां और दरियां वगैरह जल गईं.

3 फरवरी की ही रात गोठ जावेद अहमद, ज़िला मीरपुर ख़ास में अज्ञात आरोपियों ने मीनारें तोड़ीं और इबादतगाह को आग लगाई थी.

पिछले वर्ष 4 जून को पिंड दादन ख़ान (झेलम) में अहमदी इबादतगाह की मीनार तोड़ी गई. अहमदी समुदाय के प्रवक्ता के अनुसार 21 जून को गुजरांवाला के बाग़बानपुरा में पुलिस ने स्थानीय लोगों की शिकायत पर ज़बर्दस्ती एक इबादतगाह की मीनार ढंक दी.

प्रवक्ता के अनुसार स्थानीय लोगों की शिकायत पर 7 दिसंबर को पुलिस ने ही यह मीनार ख़ुद तोड़ भी दी. हालांकि पुलिस ने बाद में ह्यूमन राइट्स कमीशन में मीनार तोड़ने वाली घटना में अपनी भूमिका को स्वीकार नहीं किया.

31 अगस्त 2022 को ज़िला जेलम में मतयाल नाम की जगह पर ऐसी ही एक घटना हुई. इसके बाद 13 सितंबर को ज़िला टोबा टेक सिंह के गूजरा में भी ऐसा ही हुआ. अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता के अनुसार एक माह बाद 12 अक्टूबर को औकाड़ा शहर के एफ़ ब्लॉक में पुलिस ने मीनार ढंकवा दिए.

'यह सुनियोजित अभियान लगता है'
जमात-ए-अहमदिया के प्रवक्ता आमिर महमूद ने बीबीसी को बताया कि उनके समुदाय की इबादतगाहों को पिछले कुछ समय से सिंध और पंजाब में निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब की कुछ घटनाओं में ख़ुद पुलिस भी शामिल थी और ऐसे मामलों के मुक़दमे भी दर्ज नहीं हो सके.

प्रवक्ता के अनुसार, "सिंध में असामाजिक तत्व का हौसला इतना बढ़ा हुआ है कि वो ख़ुद अंदर जाकर मीनार तोड़ रहे हैं." आमिर महमूद के अनुसार, "इन घटनाओं में अचानक तेज़ी से पता चलता है कि यह सुनियोजित अभियान है और इन घटनाओं में किसी गिरोह का हाथ साफ़ दिखाई दे रहा है."

उन्होंने कहा कि सन 2014 में उस समय के चीफ़ जस्टिस तस्दीक़ हुसैन जीलानी की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय बेंच ने अल्पसंख्यकों की इबादतगाहों की सुरक्षा के लिए एक टास्क फ़ोर्स बनाने का निर्देश दिया था मगर उस पर अमल नहीं हो सका है.

आमिर महमूद के अनुसार आर्टिकल 20 सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता देता है. एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि संविधान में कहा गया है कि अहमदिया इन इबादतगाहों को मस्जिद न कहें, लेकिन निर्माण शैली से संबंधित कोई बंदिश नहीं लगाई गई है.

उन्होंने कहा कि अब यह राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह हमारे अधिकारों की रक्षा करे. एडवोकेट यासिर लतीफ़ हमदानी के अनुसार सबसे बड़ी समस्या यह है कि अहमदिया समुदाय के अधिकारों की बात आती है तो संविधान में उन्हें वह अधिकार नहीं दिए गए हैं जो अल्पसंख्यकों को मिले हुए हैं.

उनके अनुसार इस संदर्भ में बनाया गया क़ानून ही ग़लत है क्योंकि मीनार तो हर मज़हब के मानने वालों की इबादतगाहों पर होती हैं. यासिर लतीफ़ का कहना है कि सन 1993 के एक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आम नागरिकों को भी भावनाएं आहत होने पर अहमदिया समुदाय के ख़िलाफ़ सीधी कार्रवाई की अनुमति दे रखी है.

उनके अनुसार पाकिस्तान में तो अहमदिया जमात को न मज़हबी आज़ादी है और न हो वह धर्म प्रचार कर सकती है.

'नए धार्मिक समूहों के बनने से ऐसी घटनाओं में तेज़ी आई है'
राबिया महमूद पत्रकार और रिसर्चर हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि मुमताज़ क़ादरी द्वारा सलमान तासीर की हत्या की घटना के बाद अहमदिया समुदाय की समस्याएं बढ़ी हैं. वह कहती हैं कि पहले अहमदियों के ख़िलाफ़ हिंसा होती थी लेकिन अब उनकी इबादतगाहों को भी निशाना बनाया जा रहा है.

उनके अनुसार पिछले कुछ वर्षों में नए धार्मिक व राजनीतिक समूहों की स्थापना के बाद अन्य समुदाय के विरुद्ध हिंसक घटनाओं में तेज़ी देखने में आई है.

राबिया के अनुसार औकाड़ा और चिनाब नगर में अहमदिया समुदाय से संबंध रखने वाले लोगों की हत्या करने वालों का संबंध भी धार्मिक राजनीतिक दल से था.

उनके अनुसार जमात-ए-अहमदिया की इबादतगाहों पर जिस तरह हमले हो रहे हैं उससे यह साफ़ होता है कि उनमें शामिल लोग इस तरह की मज़हबी जमातों की विचारधारा से प्रभावित हैं.

राबिया के अनुसार पिछले सात साल में बरेलवी विचारधारा से संबंध रखने वाले गिरोहों और उनसे प्रभावित कुछ नए पात्र भी सामने आए हैं जो अहमदिया समुदाय के ख़िलाफ़ ऐसी घटनाओं में आगे आगे रहते हैं.

उनके विचार में ऐसी घटनाएं संगठित ढंग से एक ख़ास योजना के तहत अंजाम दी जा रही हैं. (bbc.com/hindi)

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