संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चीनी ऐप पर रोक लगाने इतनी लंबी लिस्ट बनाने की क्या जरूरत थी?
06-Feb-2023 4:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चीनी ऐप पर रोक लगाने इतनी लंबी लिस्ट बनाने  की क्या जरूरत थी?

भारत और चीन के बीच सरहद पर बने हुए तनाव के चलते चीन के कई किस्म के कारोबार पर पिछले बरसों में रोक लगाई गई जिनमें सबसे अधिक चर्चित रहा मोबाइल ऐप पर रोक लगाना। टिक-टॉक जैसे लोकप्रिय मोबाइल ऐप पर भारत में रोक लगाई गई और अमरीका सरीखे बहुत से देशों में इस पर रोक लगाने की मांग हो रही है। अब कल भारत सरकार ने 232 मोबाइल ऐप पर रोक लगाई है जिनमें से अधिकतर चीनी हैं। इनमें बड़ा हिस्सा मोबाइल ऐप के मार्फत सट्टा लगाने और जुआ खेलने का था, और सौ के करीब ऐसे ऐप थे जो कि ऑनलाईन कर्ज देते थे, और गुंडागर्दी से उनकी वसूली होती थी। कर्जदार को इतना प्रताडि़त किया जाता था कि आंध्र और तेलंगाना में ऐसे बहुत से लोग आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें से कोई भी बात नई नहीं है, और बरसों से ये खबरें में बनी हुई हैं, लेकिन केंद्र सरकार का काम करने के तरीके और उसकी रफ्तार का हाल यह है कि सूचना तकनीक से जुड़े ऐसे ऑनलाईन जुर्म पर रोक लगाने में उसे बरसों लग जाते हैं, दूसरी तरफ बीबीसी की एक डाक्यूमेंट्री पर रोक लगाने में उसे कुछ घंटे ही लगते हैं।

चीन से जुड़े हुए किसी भी मोबाइल ऐप को लेकर पूरी दुनिया में यह फिक्र बनी रहती है कि उसके मार्फत जुटाया जाने वाला डेटा चीन के सर्वरों पर इकट्ठा होता है, और उसका इस्तेमाल बाकी देशों के लोगों की जासूसी करने में किया जाता है। अब भारत में जिन दो किस्मों के चीनी मोबाइल ऐप पर अभी रोक लगाई गई है उसे देखें तो एक अजीब सी बात सामने आती है। पहले लोग ऑनलाईन सट्टा लगाएं, या जुआ खेलें, और फिर उन्हें ऑनलाईन खड़े-खड़े कर्ज देने वाले एप्लीकेशन आ जाएं। क्या यह महज एक संयोग है, या फिर यह धंधा जोड़े में चल रहा है? ठीक वैसे ही जैसे जो लोग बाजार में सोने के गहने खरीद चुके हैं, उनके पास गहने गिरवी रखने के इश्तहार आने लगें। एक मजाक की बात यह भी है कि अमिताभ बच्चन हफ्ते के कुछ दिन गहनों का इश्तहार करते हैं, और कुछ दिन गहने गिरवी रखने वाली साहूकार कंपनियों का। तो क्या चीनी मोबाइल ऐप की एक किस्म में जुए-सट्टे में फंसे लोगों को संभावित कर्जदार मानकर उन्हें कर्ज देने के मोबाइल ऐप में फांसा जाता है?

दुनिया भर में यह फिक्र तो चलती ही रहती है कि ऑनलाईन कामकाज पर दुनिया के इतने कारोबारी निगरानी रखते हैं कि अभी वॉट्सऐप पर किसी के जूते की चर्चा करें, तो वॉट्सऐप के मालिक फेसबुक अपने पेज पर जूतों का इश्तहार दिखाने लगते हैं। लेकिन इस फिक्र से परे जो बहुत सीधा-सीधा खतरा हिंदुस्तान में लोगों पर छाया हुआ है वह चीनी या हिंदुस्तानी, कई किस्म के धोखाधड़ी और जालसाजी के मोबाइल ऐप, वॉट्सऐप संदेशों, एसएमएस और टेलीफोन कॉल के मार्फत लोगों को धोखा देने और ठगने का है। आज लोगों के बैंक खाते बात की बात में खाली हो जा रहे हैं, और बहुत से लोगों को तो उसकी खबर भी नहीं हो रही है। खुद भारत सरकार का हाल देखें तो 232 ऐसे खतरनाक एप्लीकेशन एक साथ बंद किए जा रहे हैं, जबकि इनमें से हर किसी की शिनाख्त तो अलग-अलग हुई होगी, अलग-अलग समय पर हुई होगी। इतनी लंबी लिस्ट बनने के पहले हर एप्लीकेशन को शिनाख्त होते ही बंद करने का एक इंतजाम अगर किया जाता, तो हो सकता है कि लाखों लोग लुटने से बच गए होते। सरकार का एक ऐसा ढांचा होना चाहिए जो कि ऐसे किसी भी एप्लीकेशन पर जल्द से जल्द फैसला लेकर उसे अलग-अलग रोक सके। यह तो कुछ ऐसा मामला हो गया कि जब किसी शहर में चालीस अलग-अलग कत्ल हो जाएं, तब जाकर पुलिस कातिलों की तलाश शुरू करे। थोक में ऐसे कार्रवाई सरकार की सहूलियत की हो सकती है, लेकिन ऐसी सहूलियत से परे का एक ऐसा ढांचा बनाना चाहिए जो ठगों और जालसाजों को तुरंत रोक सके। आज हर हिंदुस्तानी के पास झारखंड के जामताड़ा नाम के गांव या कस्बे से आए दिन फोन आते हैं, और उनके बैंक खातों को लूटा जाता है। यह जुर्म मोबाइल फोन और सिम कार्ड के जरिए होता है, लेकिन सरकार अपने सारे साइबर औजार रहते हुए भी, जगहों की शिनाख्त हो जाने के बाद भी मुजरिमों पर हाथ डालने में महीनों और बरसों लगा रही है। एक तरफ तो शरीफ लोगों के सिम कार्ड खरीदने के लिए कई किस्म के पहचान पत्र लगते हैं, दूसरी तरफ एक-एक मुजरिम दर्जनों और सैकड़ों सिम कार्ड इस्तेमाल करते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें जुर्म की इस पूरी मशीन को तोड़ क्यों नहीं पा रही हैं, यह समझ से परे है।

हिंदुस्तान में जैसे-जैसे डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल बढ़ते चल रहा है, लोग ऑनलाईन काम और कारोबार करते जा रहे हैं, वैसे-वैसे साइबर जुर्म का खतरा भी बढ़ते चल रहा है, और लोग ऐसे जुर्म के शिकार होते चल रहे हैं। सरकार को रात-दिन काम करने वाली एक ऐसी सरकारी मशीनरी के बारे में सोचना चाहिए जो कि देश के भीतर से भी ठगी-जालसाजी करने वाले लोगों को पकड़े। छत्तीसगढ़ में ही पिछले जाने कितने महीनों से ऑनलाईन सट्टेबाजी के एक मोबाइल ऐप, महादेव आईडी की चर्चा है जिसमें सैकड़ों छोटे-छोटे से लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है, कुछ करोड़ रुपये जब्त भी किए गए हैं, लेकिन जिसके बारे में चर्चा है कि उसे चलाने वाले छत्तीसगढ़ के ही कुछ बहुत ताकतवर लोग हैं, और इस सट्टेबाजी में लोगों के दसियों हजार करोड़ रुपये लूट लेने की चर्चा है, जिसके मुकाबले अब तक जब्त रकम जुर्म का छिलका भी नहीं है। अब महीनों से लोग पकड़ा भी रहे हैं, और हिंदुस्तानी टेलीफोन और इंटरनेट से वह जुर्म चलते भी जा रहा है, तो इसका मतलब यह है कि केंद्र और राज्य सरकार में से किसी का ढांचा ही कमजोर है। चीन के साथ तनाव के चलते वहां से चलने वाले मोबाइल ऐप बंद कर देना लोगों के लुटने का अंत नहीं हो सकता, इसके लिए इस देश में ही बसे हुए महादेव जैसे सट्टेबाजी-धोखेबाजी के ऐप पर भी रोक लगाना होगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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