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जस्टिस विक्टोरिया गौरी: मद्रास हाई कोर्ट में नियुक्ति पर क्यों उठे सवाल
07-Feb-2023 8:11 PM
जस्टिस विक्टोरिया गौरी: मद्रास हाई कोर्ट में नियुक्ति पर क्यों उठे सवाल

लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरीइमेज स्रोत,ANI

-इमरान क़ुरैशी

मद्रास हाई कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति के बाद कॉलेजियम सिस्टम पर फिर से सवाल उठ रहे हैं क्योंकि उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में अतीत में विवादास्पद बयान दिए हैं.

हाई कोर्ट की मदुरै पीठ में प्रैक्टिस करने वाली 49 साल की विक्टोरिया गौरी अब न्यायपालिका में ऊपर तक जा सकती हैं.

अब सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर उनकी नियुक्ति को लेकर विचार किया जा सकता है, क्योंकि उनकी रिटायरमेंट में अभी 13 साल बचे हैं.

विक्टोरिया गौरी का नाम जिस तरीके से कॉलेजियम के सामने आया और नियुक्ति की सिफ़ारिश के बाद प्रक्रिया में जो तेजी दिखाई गई उसकी वजह से ये सारा मामला चर्चा में आ गया.

सिर्फ एक दिन के अंदर केंद्र ने राष्ट्रपति को सिफारिश की. राष्ट्रपति कार्यालय ने वारंट जारी किया और राज्यपाल ने मद्रास हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करने के लिए कह दिया.

यह सब उस दिन हुआ जब सुप्रीम कोर्ट 21 वकीलों की दायर की हुई उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जो नियुक्ति के फैसले की समीक्षा करने की मांग कर रहे थे. उनकी दलील थी कि विक्टोरिया गौरी उन्होंने हेट स्पीच दी थी.

वहीं वकीलों के दूसरे ग्रुप ने उनके समर्थन में ज्ञापन भी दिया.

ऐसे कौन से बयान हैं जिन्होंने एक वकील और मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच में भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को विवादस्पद बना दिया?

अब उन्हें जस्टिस विक्टोरिया गौरी कहा जाएगा क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया है. याचिका में उन पर मुस्लिम और ईसाई समुदाय के ख़िलाफ़ विवादित बयान देने का आरोप लगाया गया था. ये बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए हैं.

एक वीडियो में उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है, "यह रोमन कैथोलिक संप्रदाय का सबसे ग़लत काम है. इस संप्रदाय ने कला, संस्कृति और साहित्य के नियंत्रण के लिए एक ग्रुप बना रखा है. द्रविड़ साहित्य के नाम पर वामपंथी विचारधारा को लाया गया और बाद में उसने धर्मांतरण को फलने-फूलने के लिए जगह दी. "

"कुछ ऐसा ही भरतनाट्यम के साथ हुआ. मुझे बहुत हैरानी हुई जब मुझे एक ईसाई संस्था ने निमंत्रण दिया. हमें यह अजीब और बदसूरत लगता है जब भगवान नटराज की मुद्रा का ईसा मसीह से तुलना की जाती है. क्राइस्ट और नटराज का क्या कनेक्शन है? ईसाई गीतों पर भरतनाट्यम नहीं किया जा सकता. भगवान नटराज की मुद्रा की ईसा मसीह के नाम से कैसे बराबरी की जा सकती है. कल एक ईसाई स्कूल में हिंदू लड़को को ईसा मसीह के लिए नटराज को छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा."

विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति का विरोध करने वाले वकीलों के अनुसार उन्होंने ऐसे बयान भी दिए हैं.

"जहां तक ​​भारत की बात है, मैं कहना चाहूंगी कि ईसाई समूह इस्लामिक समूहों से ज्यादा ख़तरनाक हैं. धर्मांतरण के मामले में दोनों ख़तरनाक हैं. खासकर लव जिहाद के मामले में."

वकीलों ने ये भी दावा किया कि विक्टोरिया गौरी ने इस्लाम की तुलना 'ग्रीन टेरर' और ईसाई धर्म की तुलना 'व्हाइट टेरर' से की है.

राजनीतिक अतीत
उनके अधिकतर बयान उस वक़्त आए थे जब वे तमिलनाडु महिला मोर्चा की संयोजक थीं. लेकिन बयानों के बावजूद उन्हें सितंबर 2020 में मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ में भारत सरकार का असिस्टेंट सॉलिस्टिर जनरल बनाया गया. हालांकि उन्होंने ये पद स्वीकार करने से पहले बीजेपी के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.

अपने नाम न बताने की शर्त पर चेन्नई और मदुरै के कई वकीलों ने बीबीसी हिंदी को बताया कि किसी राजनीतिक दल में पद पर रहना ग़लत नहीं है और अतीत में भी ये होता रहा है. वे 20 वर्षों से वकील हैं.

हाई कोर्ट के एक वकील ने कहा,``हाल ही में रिटायर हुए एक जज भी विक्टोरिया गौरी जैसी ही पृष्ठभूमि से आते हैं. लेकिन एक जज के तौर पर उनके फ़ैसलों पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. उनके राजनीतिक अतीत की झलक, उनके निर्णयों में प्रतिबिंबित नहीं होती.

मद्रास हाई कोर्ट के एक वकील अनंत कृष्ण कहते हैं, " हमारे सामने जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर का उदाहरण है. वे कम्युनिस्ट थे. लेकिन जज बनने के बाद वे एक विख्यात न्यायाधीश बने. किसी भी व्यक्ति का उसके अतीत के आधार पर आंकलन करना ग़लत है."

सियासी अतीत और हेट स्पीच
हालांकि मद्रास हाई कोर्ट एक रिटायर जज जस्टिस के चंद्रू ने बीबीसी हिंदी को बताया, "किसी भी व्यक्ति को जज की पोस्ट के लिए राजनीतिक विचारों के आधार पर अयोग्य क़रार नहीं दिया जा सकता.यहां मुद्दा अलग है. हेट स्पीच अयोग्य क़रार दिए जाने के लिए एक फ़ैक्टर है. ये इसलिए नहीं कि आप राजनीतिक व्यक्ति हैं बल्कि इसलिए कि आप सांप्रदायिक हैं जो संवैधानिक मूल्यों पर यक़ीन नहीं रखते."

जस्टिस के चंद्रू कहते हैं, ``विक्टोरिया गौरी केस कॉलेजियम सिस्टम के असफल होने का क्लासिक उदाहरण है. विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आप किसी के विरुद्ध शिकायत नहीं कर सकते. एक स्थायी सचिवालय ही पारदर्शिता ला सकता है. और पारदर्शिता की ज़रुरत नियुक्ति से पहले है न कि बाद में.''

जस्टिस चंद्रू बताते हैं कि जब किसी का नाम जज के लिए सामने आता है तो इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी और सरकार की अन्य एजेंसियों से रिपोर्ट मांगी जाती है.

वे कहते हैं, " ये संभव है कि आईबी ने रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी हो लेकिन केंद्र सरकार के लिए कॉलेजियम के साथ शेयर करना अनिवार्य नहीं. तो मूलत व्यवस्था ही त्रुटिपूर्ण है."

वकील आर जॉन सत्यन की मिसाल देते हैं. मद्रास हाई कोर्ट के वकील सत्यन के बारे में आईबी की रिपोर्ट कॉलेजियम से शेयर की गई थी.

कॉलेजियम ने उस रिपोर्ट पर कुछ यूँ टिप्पणी की थी,`` आईबी की रिपोर्ट ये कहती है: सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्रोतों के आधार उन्होंने द क्विंट की एक रिपोर्ट शेयर की थी जो जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना थी. इसके अलावा उन्होंने साल 2017 में NEET की परीक्षा पास ने कर पाने पर अपनी जान लेने वाली अनीता के बारे में एक पोस्ट शेयर की. उन्होंने इसे राजनीतिक विश्वासघात बताते हुए लिखा - शेम ऑन यू इंडिया."

इस रिपोर्ट के बावजूद कॉलेजियम ने मद्रास हाई कोर्ट के जज के रूप में उनकी नियुक्ति को हरी झंडी दी. लेकिन केंद्र ने कॉलेजियम के सुझाव पर अब तक निर्णय नहीं लिया है. (bbc.com/hindi)

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