संपादकीय

मध्यप्रदेश हिन्दुस्तान का बाबाबाड़ा लगता है, जिस तरह मुर्गियों का, गाय-भैंस का, या सुअर का बाड़ा होता है, उसी तरह मध्यप्रदेश बाबाओं का बाड़ा है। इस मामले वह हरियाणा नाम के एक बाबाबाड़ा को टक्कर देता है। राजस्थान में एक बलात्कारी आसाराम का बाड़ा चलता था जिसमें बलात्कार के शिकार भक्तों के परिवार का हाल देखते हुए भी दूसरे भक्त जानवरों की तरह बेदिमाग जुटते थे, और आज भी जुटते हैं। ऐसा ही हरियाणा में कई बलात्कारी और हत्यारे बाबाओं का हाल है जिनकी दुकानें उनके जेल में रहने के बाद भी दूर छत्तीसगढ़ के सरकारी मेलों तक में चल रही हैं, और साबित कर रही हैं कि हत्या या बलात्कार जैसे जुर्म किसी को सरकारी मेले में स्टॉल लगाने से नहीं रोक सकते। ऐसे माहौल में मध्यप्रदेश के कुछ बाबाओं का ऐसा बोलबाला है कि वहां से राजनीति को रास्ता मिलते दिखता है। प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियों के नेता इन बाबाओं के पैरों पर पड़े रहते हैं, और सरकारें अपनी ताकत इनके पांव दबाने में झोंक देती है। हिन्दी के कुछ समाचार चैनल इन बाबाओं की मेहरबानी से रोटी पर लगाने के लिए घी-मक्खन और जैम कमाते हैं, और जिंदगी से निराश आम जनता इन्हीं बाबाओं में अपनी तमाम दिक्कतों का इलाज तलाशती फिरती रहती हैं।
ऐसे ही पाखंडी बाबाओं का बोलबाला मध्यप्रदेश से रिस-रिसकर छत्तीसगढ़ तक में आ जाता है, और यहां पर कुछ कुख्यात भूमाफिया अपनी संदिग्ध कमाई से इन त्रिकालदर्शी बाबाओं के आयोजन करते हैं, जिनमें इन बाबाओं को भक्तों की भीड़ के कपड़ों में लगे दाग का राज भी दिखता है, यह एक अलग बात है कि आयोजक-माफिया का कोई जुर्म उन्हेें नहीं दिखता। मध्यप्रदेश में अभी एक बाबा ने रूद्राक्ष बांटने का एक बखेड़ा खड़ा किया जिसमें लाखों लोग जुट गए, ऐसी भगदड़ मची दस-बीस किलोमीटर तक सडक़ें जाम हो गईं, लेकिन बाबा 30 लाख रूद्राक्ष बांटने पर उतारू रहे, और वहां के मीडिया के मुताबिक जब इस भीड़ में मौत भी हो गई, तो भी यह बाबा राक्षसी हॅंसी के साथ मौत के बारे में कहते रहा कि मौत आनी है तो आएगी ही। सरकार का किसी तरह का कोई काबू इस तरह की भीड़ पर नहीं था क्योंकि तमाम बड़े राजनीतिक दलों के नेता ऐसे हर बाबा के चरणों की धूल पाने पर उतारू रहते हैं, जब तक कि वे बलात्कारी साबित न हो जाएं।
किसी भी बाबा की कामयाबी उस प्रदेश में न सिर्फ वैज्ञानिक सोच की कमी बताती है, बल्कि वह सरकार की नाकामी और लोकतंत्र की असफलता का एक संकेत भी होती है। जहां पर लोग सरकार और अदालत पर भरोसा करते हों, जहां पर जिंदगी की उनकी दिक्कतें निर्वाचित सरकारों से दूर होती हों, वहां पर कोई किसी बाबा के फेर में आखिर पड़ेंगे क्यों? जब सरकारी इलाज किसी काम का नहीं रहता, लोगों में भरोसा पैदा नहीं कर पाता, तब जाकर लोग पाखंडियों के चक्कर में पड़ते हैं, जो अलग-अलग कई किस्म के धर्मों के चोले पहने हुए रहते हैं, और अलग-अलग तरीके से लोगों को धोखा देते हैं। सरकारें भी ये चाहती हैं कि जनता बाबाओं के चक्कर में इस हद तक पड़ी रहें कि वे अपनी जिंदगी की दिक्कतों के लिए, बेइंसाफी के लिए सरकार पर तोहमत लगाने के बजाय अपने ही पिछले जन्मों के गिनाए जा रहे कुछ काल्पनिक कुकर्मों को जिम्मेदार मानें, और सरकार को बरी करें। यह सिलसिला हिन्दुस्तान की आजादी से या लोकतंत्र से शुरू हुआ हो ऐसा भी नहीं है, यह सिलसिला तो कबीलों में तब से शुरू हो गया था जब सरदार ने किसी ओझा को तैयार किया था जो कि लोगों की जिंदगियों की मुश्किलों के लिए कुछ दुष्टात्माओं को जिम्मेदार ठहराता था। वहां से शुरू होकर आधुनिक धर्म को बनाने, ईश्वर की धारणा विकसित करने, और फिर इस धर्म के एक विस्तार के रूप में तरह-तरह के बाबा, पादरी, मौलवी खड़े करने की यह साजिश नाकामयाब राजाओं की एक कामयाबी रही है, जो आज भी जारी है।
चाहे ईसाईयों की चंगाई सभा हो, चाहे जन्नत और जहन्नुम के सपने और डर दिखाकर लोगों को बरगलाने वाली तकरीरें हों, या फिर आज के बाबाओं के आए दिन होने वाले भगवा जलसे हों, इन सबका मकसद सिर्फ यही है कि किस तरह लोगों की दिक्कतों के लिए जिम्मेदारी सरकार पर आने के बजाय उसे लोगों के तथाकथित पाप के सिर मढ़ा जाए, किस तरह चमत्कार को एक इलाज और समाधान बताया जाए, किस तरह लोगों को सरकार की तरफ देखने से रोका जाए, इसी मकसद के साथ राजनीति भी इन बाबाओं को स्थापित करती है, और सरकारें चाहती हैं कि ऐसे बाबा हमेशा बने रहें। सरकारें चाहती हैं कि इस देश से वैज्ञानिक सोच पूरी तरह खत्म हो जाए, और लोग चमत्कारों की चाह में ऐसे दरबारों में सिर हिलाते बैठे रहें, बजाय सडक़ों पर खड़े होकर सरकार से दिक्कतों का इलाज मांगते हुए। इसलिए ये बाबा जब कानून तोड़ते हैं, तो भी सरकारें इन्हें अनदेखा करती हैं। ये जब इलाज के बड़े-बड़े दावे करते हैं, तब भी राज्य वहां लागू चमत्कार-विरोधी कानूनों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। मध्यप्रदेश शायद ऐसे बाबा लोगों के मामले में हरियाणा के बाद दूसरे नंबर का राज्य बन गया है, और अब वहां का यह ताजा बाबा अपने बांटे जा रहे रूद्राक्ष के पक्ष में सरकारी विज्ञान प्रयोगशालाओं के प्रमाणपत्र का दावा भी खुलकर कर रहा है, और ऐसा दावा भी सरकार को मजेदार लग रहा है। हो सकता है कि मध्यप्रदेश को देखकर दूसरे प्रदेशों के बाबा भी सरकारी प्रयोगशालाओं के सर्टिफिकेट गिनाने लगें, और देश में विज्ञान की कुछ और हद तक मौत हो जाए।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)