संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक बार फिर सडक़ पर हुई थोक में मौतें, फिक्र का मौका
24-Feb-2023 3:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक बार फिर सडक़ पर हुई  थोक में मौतें, फिक्र का मौका

छत्तीसगढ़ में बीती आधी रात एक सडक़ हादसे में एक परिवार के 11 लोगों की मौत हो गई, और 10 लोग खासे जख्मी होकर अस्पताल में हैं। ये तमाम लोग एक मालवाहक गाड़ी में एक पारिवारिक कार्यक्रम में गए थे, और वापिसी में एक ट्रक ने इन्हें जोरों से टक्कर मारीं, और मौके पर ही 11 लोग मारे गए। सडक़ हादसों में कुछ गिनी-चुनी वजहों से रोजाना अलग-अलग जगहों पर बहुत सी मौतें होती हैं, लेकिन उन पर लिखने की जरूरत तब सूझती है जब मौतें थोक में आती हैं, और खबरें बड़ी बनती हैं। ऐसे हादसे कम मौतों वाले हों, या अधिक वाले, इनमें से अधिकतर के पीछे सरकारी विभागों और गाड़ी चलाने वाले लोगों की बराबरी की जिम्मेदारी रहती है। 

ऐसे मौकों पर सरकार को यह सोचना चाहिए कि क्या इन हादसों को किसी तरह कम किया जा सकता है? छत्तीसगढ़ एक खनिज प्रदेश होने के नाते यहां पर कोयला, लोहा, सीमेंट-पत्थर की आवाजाही खासी रहती है, और इसके अलावा धान का बहुत बड़ा कारोबार रहने से भी सडक़ों पर ट्रकें अधिक रहती हैं। इन दोनों बातों के अलावा यह राज्य आधा दर्जन दूसरे राज्यों से घिरा हुआ है, इसलिए भी दूसरे प्रदेशों की गाडिय़ां यहां से होकर गुजरती हैं। लेकिन यह बात तो कोई नई नहीं है, और सडक़ों से लेकर ट्रैफिक और आरटीओ के इंतजाम तक हर विभाग को इसकी जानकारी है। फिर यह जानकारी भी सबको है कि कारोबारी गाडिय़ां बहुत खराब हालत में चलती हैं, उनकी फिटनेस जांचने की दिलचस्पी किसी विभाग को नहीं होती, वे ओवरलोड भी चलती हैं, ड्राइवर बिना नींद पूरी किए या नशे में अंधाधुंध रफ्तार से चलाते रहते हैं, और ट्रैफिक नियमों के लिए लोगों के मन में परले दर्जे की हिकारत है। ये तमाम बातें मिलकर खराब सडक़ों के साथ जुडक़र बहुत बड़ा खतरा बन जाती हैं। इनमें से हर खतरे को एक जिम्मेदार सरकार कम कर सकती है, लेकिन वैध और अवैध कमाई से परे सरकार की दिलचस्पी सुरक्षा और सावधानी में बहुत ही कम दिखती है। 

दूसरी तरफ लोग लापरवाह हैं, और पूरे कुनबे को लेकर किसी भी मालवाहक गाड़ी पर सवार होकर रात-बिरात शादी-ब्याह या पूजा-तीर्थ से  आते-जाते हैं, कई जगहों पर तो ड्राइवर भी शराब पिए हुए रहते हैं। इस तरह दो अलग-अलग गाडिय़ां दो अलग-अलग नशे में डूबे ड्राइवरों के हाथों आमने-सामने जब आती हैं, तो ऐसा हादसा न होना हैरानी की बात रहती है। अगर पुलिस की जांच और कार्रवाई कड़ी हो, तो भी नशे में गाड़ी चलाना रूक सकता है। ऐसे ड्राइवरों के लाइसेंस अगर निलंबित और रद्द होना शुरू हो जाए, गाडिय़ां जब्त होने लगें, तो फिर ऐसे हादसे भी कम होने लगेंगे। लेकिन कारोबारी मालवाहक गाडिय़ां या मुसाफिर बसें अधिक से अधिक कारोबार करने के चक्कर में अंधाधुंध रफ्तार से सडक़ों को रौंदती हैं, और आए दिन ऐसे हादसे होते हैं, लेकिन किसी ड्राइवर का ड्राइविंग लाइसेंस रद्द होने की बात नहीं आती है। 

छत्तीसगढ़ अतिसंपन्नता का शिकार प्रदेश है, और यहां पर बड़ी-बड़ी तेज रफ्तार गाडिय़ां सडक़ों पर अराजकता के साथ दौड़ती हैं। बहुत अधिक पैसा जिनके पास है वे लाखों रूपये की मोटरसाइकिलों के साइलेंसर फाडक़र चलते हैं, बड़ी गाडिय़ों पर अंधाधुंध लाईट और सायरन लगाकर चलते हैं, और ऐसी बातें उनके मिजाज को भी बताती हैं कि वे बाकी नियमों को भी इसी तरह तोड़ते होंगे। किसी भी प्रदेश या शहर में नियम-कानून की इज्जत की शुरुआत सडक़ों से ही होती है, और जिस शहर में सडक़ों पर अराजकता रहती है वहां बाकी की जिंदगी में भी अराजकता रहती है। यही हाल छत्तीसगढ़ का हो रहा है कि यहां सडक़ों पर ट्रैफिक पूरी तरह बेकाबू रहता है, और सरकार के किसी अमले की इसमें दिलचस्पी भी नहीं रहती है। अगर सरकार न करे तो भी जनता के बीच से ऐसा एक सोशल ऑडिट होना चाहिए कि किसी सडक़ हादसे में मौतों की जिम्मेदारी किन बातों पर थी। आज छत्तीसगढ़ में न सरकार इस नजरिए से सडक़ हादसों का विश्लेषण करती, न ही जनता को इसकी कोई खास परवाह लगती कि जो सरकार गाडिय़ों से इतना टैक्स लेती है, वह सडक़ सुरक्षा के मामले में लापरवाह है। 

आज टाली जा सकने वाली तमाम मौतों को रोकने की जरूरत है। लोगों से सौ फीसदी जिम्मेदारी की उम्मीद करना गलत है, और आम हिन्दुस्तानी का मिजाज सजा, जुर्माना, या लाठी देखकर ही ठीक से चलने का है। इसलिए सरकार के जुड़े हुए विभागों को जनसंगठनों के साथ मिल-बैठकर सडक़ सुरक्षा बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए। जब छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था तब जिला और संभाग स्तर पर यातायात सुधार समितियां बनती थीं, और उनमें व्यापारी संगठनों से लेकर अखबारों तक के लोग रखे जाते थे, और उनकी सलाह भी सुनी जाती थी। अब वह सिलसिला खत्म हो गया है, और अब इसे सिर्फ अफसरों का काम मान लिया गया है। ऐसे में सडक़ों पर मौतें कभी कम नहीं हो पाएंगीं। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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