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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक मां ने हर एक को औकात दिखा दी, सरकार, धर्म, और ईश्वर को भी, कि वे कुछ नहीं
04-Mar-2023 3:47 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक मां ने हर एक को औकात दिखा दी, सरकार, धर्म, और  ईश्वर को भी, कि वे कुछ नहीं

शाहिदा रजा / तस्वीर स्रोत / SYED AMIN

दुनिया में आज सबसे ताकतवर जो चीजें मानी जाती हैं उनमें किसी देश की सरकार रहती है, धर्म रहता है, ईश्वर की धारणा रहती है कि वह सर्वशक्तिमान है, सर्वत्र है, सर्वज्ञ है, और सबकी हिफाजत करता है। हर धर्म लोगों को भरोसा दिलाता है कि ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, और उनकी जरूरत के वक्त ईश्वर उनके साथ खड़े रहेगा। लेकिन पाकिस्तान से शुरू होकर इटली के समंदर तक पहुंचने वाली एक युवती की कहानी बताती है कि एक मां इन सबसे अधिक ताकतवर रहती है, सरकार से भी, धर्म से भी, और ईश्वर से भी। 

यह कहानी बड़ी तकलीफदेह है। पाकिस्तान में दो बहनें मशहूर खिलाड़ी थीं, और राष्ट्रीय टीम तक पहुंची हुई थीं। इनमें से एक शाहिदा रजा थीं जो कि फुटबॉल और हॉकी दोनों में देश और विदेश के कई मुकाबलों तक पहुंची हुई थीं, और इन खेलों में उन्होंने बड़ा नाम भी कमाया था। वे अपनी मेहनत से इन खेलों में आगे बढ़ी थीं, और कई देशों तक मैच खेलने गई हुई थीं। उनका तीन बरस का एक बेटा है जो कि पैदा होने के बाद जल्द ही एक विकलांगता का शिकार हो गया, और कमजोर दिमाग की वजह से उसका चलना-फिरना मुमकिन नहीं रह गया। डॉक्टरों ने कहा कि विदेशों में इसका इलाज मुमकिन है। इसी बात को लेकर शाहिदा योरप जाना चाह रही थी, और वहां जाकर काम करके इलाज के लिए अपने बेटे को बुलाने का सपना देख रही थीं। शाहिदा एक वीजा लेकर तुर्की तक गईं, और वहां से एक गैरकानूनी बोट पर सवार होकर सैकड़ों और लोगों के साथ वे इटली जा रही थीं, और करीब-करीब वहां पहुंच भी गई थीं। इटली के समंदर में नाव डूबने से दो सौ लोगों की मौत का अंदाज है जिसमें 40 पाकिस्तान से थे, और इन्हीं में 27 बरस की शाहिदा भी थीं जो कि देश की सबसे होनहार खिलाडिय़ों में से एक थीं। 

एक देश के रूप में पाकिस्तान बड़ा नाकामयाब रहा है क्योंकि वह धर्म पर आधारित देश बना, उसके कानून अपनी ही आबादी के बीच भेदभाव करने वाले बने, और वहां धार्मिक कट्टरता पर बने हुए आतंकी संगठनों ने कानून के ऊपर अपना राज कायम कर लिया। नतीजा यह निकला कि 15 अगस्त 1947 के पहले भारत और पाकिस्तान एक ही जमीन का हिस्सा थे, और हिन्दुस्तान इस पौन सदी में लगातार आगे बढ़ा क्योंकि उसने अभी कुछ बरस पहले तक धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा नहीं दिया, धार्मिक आतंकी संगठनों का राज कायम नहीं होने दिया। पाकिस्तान में सरकार इस मामले में नाकामयाब रही। और जहां तक धर्म का सवाल है, तो धर्म तो अपने अधिकतर लोगों को गरीब रखने में भरोसा रखता है क्योंकि उन लोगों को नर्क का डर और स्वर्ग के सपने दिखाकर उन्हें राजा और कारोबारी का गुलाम बनाकर रखा जा सकता है। पाकिस्तान में धर्म ने यह काम बखूबी किया, और अधिकतर आबादी गरीब रह गई, बहुत सी आबादी आधुनिक शिक्षा से दूर रह गई, विज्ञान और टेक्नालॉजी से उसे रूबरू नहीं होने दिया गया क्योंकि ये दोनों ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं। नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान एक नाकामयाब अर्थव्यवस्था बनकर रह गया, और इसमें वहां धर्म के बोलबाले का बड़ा हाथ रहा। अब बात आती है ईश्वर की, तो ईश्वर की धारणा अपने आपमें अफीम के नशे की तरह रहती है, और इस मामले में भी ईश्वर बुरी तरह नाकामयाब रहा कि उसने अपने सबसे गरीब भक्तों की भी कोई मदद नहीं की, वहां के करोड़ों लोग बाढ़ के शिकार होकर भूखों मरने के करीब आ गए, दसियों लाख लोग बेघर हो गए, और ईश्वर ऊपर बैठा सब देखता रहा, और उसने सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वत्र, इनमें से किसी भी तमगे को नहीं छोड़ा। पाकिस्तान में इस नौजवान खिलाड़ी महिला की इटली के समंदर में इस तरह की मौत ईश्वर की नामौजूदगी, या नाकामयाबी का एक बड़ा सुबूत है। 

लेकिन सरकार, धर्म, ईश्वर, इन सबकी असफलता के बीच एक मां कामयाब रही कि जो असंभव किस्म का काम था, वह उसी को पूरा करने के लिए निकल पड़ी थी, और किसी तरह योरप पहुंचकर, वहां कोई काम जुटाकर, इलाज के लिए अपने बच्चों को वहां बुलवाने और उसे पैरों पर खड़ा करने के लिए वह सिर पर कफन बांधकर निकल पड़ी थी। तीन साल के बेटे को पाकिस्तान में लाइलाज मानी गई एक बीमारी से उबारने के लिए उसने अपनी जान दांव पर लगा दी, और एक ओवरलोड बोट पर सवार होकर गैरकानूनी तरीके से वह योरप तक पहुंच ही गई थी कि उसी ऊपर वाले ईश्वर ने जमीन से जरा दूरी पर बोट को डुबा दिया। यह महिला अपनी इस जिंदगी में तो बेटे का इलाज नहीं करा पाई, लेकिन फिर भी वह सरकार, धर्म, और ईश्वर, इन तीनों से बेहतर साबित हुई कि उसने कोई कोशिश बाकी नहीं रख छोड़ी थी। वह अपनी जान भी खतरे में डालकर बेटे के इलाज के लिए एक परदेस पहुंचकर वह तमाम कोशिशें करने वाली थी जो कि उसके देश की सरकार ने नहीं की थी, धर्म ने नहीं की थी, और ईश्वर ने तो जाहिर है कि वह तकलीफ उसके बेटे को दी ही थी। 

लोगों को इस एक मामले को देखकर यह अच्छी तरह समझना चाहिए कि किसी देश में किसी धर्म का राज कायम हो जाने पर उस देश के लोगों का, उस धर्म के लोगों का भला नहीं हो जाता। यह भी समझना चाहिए कि धर्म बड़ी-बड़ी बातें करता है, लेकिन अपने भीतर के सबसे दौलतमंद और ताकतवर लोगों को यह नहीं कहता कि वे उसी धर्म के दूसरे गरीब लोगों की मदद करें। और ईश्वर तो दुनिया में होने वाले हर बुरे को देखते हुए बैठे रहता है, और बिना कुछ किए हुए एक नाजायज वाहवाही पाते रहता है। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि एक मां इन सबसे ऊपर होती है, वह अपनी जान देकर भी अपने बच्चों को बचाने की कोशिश करती है, और दुनिया की तमाम चीजों में मां से बड़ा सच और कुछ नहीं होता। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)


 

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