संपादकीय
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बाम्बे हाईकोर्ट के एक जज, गौतम पटेल ने अभी एक मामले की सुनवाई करते हुए सरकारी वकील से पूछा कि क्या मुम्बई शहर अपने गरीबों से छुटकारा पाना चाहता है? उन्होंने कहा कि बेघर होना एक वैश्विक समस्या है, ऐसे लोग कम किस्मत वाले हैं, लेकिन वे इंसान तो हैं। जस्टिस गौतम पटेल जस्टिस मीना गोखले के साथ हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। यह मामला बाम्बे हाईकोर्ट के ठीक सामने शहर के एक विख्यात चौराहे फ्लोरा फाउंटेन के इर्द-गिर्द फुटपाथों पर बेघर लोगों के कब्जे को लेकर बाम्बे बार एसोसिएशन की एक याचिका का है जिसमें यह एसोसिएशन फुटपाथों से बेघर लोगों को हटाना चाह रहा है। इस मामले में जस्टिस पटेल ने तल्खी के साथ कहा कि क्या आप उन्हेें फुटपाथों से फेंक देना चाहते हैं? दोनों जजों ने पूछा कि क्या शहर को अपने गरीबों से छुटकारा पा लेना चाहिए? जजों ने कहा कि बेघर लोगों की समस्या चाहे बार एसोसिएशन की फिक्र न हो, यह कम से कम अदालत की फिक्र तो है ही। जजों ने वकीलों को याद दिलाया कि वे लोग भी इंसान हैं, और इस अदालत में उनकी उतनी ही जगह है जितनी कि बार एसोसिएशन की है। बाम्बे हाईकोर्ट में फुटपाथ और सडक़ किनारे कारोबार करने वाले छोटे फेरीवालों का मामला भी चल रहा है, और इन दोनों ही किस्म के तबकों से फुटपाथ पर चलने की जगह घिरती है। लेकिन अदालत ने इन दोनों किस्म के मामलों को जोडक़र सुनना सही नहीं समझा।
हिन्दुस्तान में जगह-जगह शहरी फुटपाथों पर काम करने वाले लोगों के खिलाफ माहौल बनते ही रहता है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शहर के एकदम बीच के सबसे घने बाजारों में दुकानों के सामने, सडक़ों पर लोग कारोबार कर रहे हैं, वहां से किसी छोटी गाड़ी के निकलने की भी जगह नहीं रह गई है, लेकिन शहर को हांकने वाले नेताओं की मेहरबानी से यह सिलसिला जारी है, और बढ़ते ही चल रहा है। दूसरी तरफ शहर के एक खाली हिस्से में कॉलेजों के सामने खोमचे-ठेले लगाने वाले छोटे-छोटे मजदूर सरीखे कारोबारियों को इन्हीं नेताओं और उनकी म्युनिसिपल के अफसरों ने कई किलोमीटर तक हटाकर फेंक दिया क्योंकि उस इलाके में नेताओं और अफसरों ने मिलकर खानपान का एक नया महंगा बाजार बनाया है, और इस बाजार का कारोबार बढ़ाने के लिए सडक़ किनारे के गरीब ठेलेवालों को बेदखल करना जरूरी था। यह पूरा इलाका कॉलेज, यूनिवर्सिटी, और हॉस्टलों का है, यहां पर दसियों हजार बच्चे इन सैकड़ों ठेलों पर रोज खाते थे, और हजारों लोगों का घर भी उससे चलता था। अब गिने-चुने कुछ दर्जन बड़े कारोबारी वहां महंगी दुकानों को (शायद नाजायज तरीके से) पाएंगे, और महंगे कारोबार के एकाधिकार के लिए गरीबों को उठाकर फेंक दिया गया। यह इलाका स्थानीय विधायक के घर का इलाका है, लेकिन यहां ठेले लगाने वाले लोग शहर के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं, और जाहिर है कि वे इस इलाके के विधायक के वोटर नहीं हैं, इसलिए उनकी फिक्र भी नहीं है।
हमारा मानना है कि अगर छत्तीसगढ़ में कोई जनहित याचिका अदालत तक पहुंचे, और किसी जज को गरीबों के साथ किए गए इस जुल्म को समझाया जा सके, तो इन ठेलेवालों को उठाकर फेंकने वाले कटघरे में रहेंगे। लेकिन छत्तीसगढ़ जैसा राज्य सामाजिक चेतना के मामले में एक मुर्दा राज्य है। यहां के लोग अपने निजी स्वार्थ से परे बहुत कम कुछ करते दिखते हैं। और चुनाव लडक़र जीतने वाले नेताओं को शायद यह भरोसा हो गया है कि वे गरीबों के वोटों से नहीं जीतते, नोट देकर खरीदे गए वोटों से जीतते हैं, इसलिए इस तरह के जुल्म की साजिश पर भी किसी का मुंह नहीं खुलता। एक तरफ शहर में एक के बाद दूसरे खेल के मैदान को काटकर, बांटकर तरह-तरह के बाजार बनाए जा रहे हैं, आसपास की संपन्न बस्तियों के लिए पार्किंग बनाई जा रही है, हर बगीचे और तालाब को कारोबारी जगह बनाया जा रहा है, तालाबों को पाटा जा रहा है, मैदानों को काटा जा रहा है, और इनके खिलाफ अदालत तक जाने की फिक्र और फुर्सत किसी जनसंगठन को नहीं है, जनप्रतिनिधियों को तो है ही नहीं।
ऐसा मुर्दा समाज किसी भी शहर और प्रदेश की मौत का मूक गवाह रहता है। वह हर किस्म के जुल्म और जुर्म होते देखते रहता है, और जब तक उसके अपने मकान-दुकान टूटने की बारी नहीं आती, वह बेफिक्र रहता है। आज छत्तीसगढ़ में, या इस किस्म के दूसरे बहुत से गैरजिम्मेदार प्रदेशों में सरकार, और स्थानीय संस्थाओं की जनविरोधी योजनाओं का विरोध करने के लिए जागरूक नागरिकों के संगठनों की जरूरत है जो कि आने वाली पीढिय़ों के लिए शहर को बचाने के लिए फिक्रमंद हों। निर्वाचित स्थानीय नेता, और सरकार हांक रहे अफसर काली कमाई की योजनाएं बनाने में पूरी तरह भागीदार रहते हैं, और शहरों में बन रही हर योजना की प्राथमिकता यही रहती है कि किस तरह लूटा और खाया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के अधिकतर हिस्सों में सडक़ों पर बुरी तरह काबिज कारोबारियों को अनदेखा करके किसी एक खास हिस्से के फुटपाथी ठेलेवालों को जिस तरह फेंका गया है, उसके फैसलों की फाईलें लोगों को निकलवानी चाहिए, और इसके खिलाफ अदालत जाना चाहिए। प्रदेश के किसी एक शहर को लेकर भी अगर हाईकोर्ट का कोई अच्छा फैसला आता है, तो वह बाकी प्रदेश में भी समान स्थितियों पर लागू होगा। यह मौका न्यायपालिका के लिए भी अपनी सामाजिक चेतना के इस्तेमाल का रहेगा, वैसे तो अदालत को खुद होकर भी ऐसे मामले में खबरों के आधार पर जनहित याचिका शुरू कर देनी थी, और राजधानी के म्युनिसिपल के कमाऊ नेताओं और अफसरों से जवाब मांगने थे।