मनोरंजन

बॉलीवुड के दीवाने भारत पर कैसे चढ़ रहा है कोरियाई ड्रामे का ख़ुमार
07-Mar-2023 11:22 AM
बॉलीवुड के दीवाने भारत पर कैसे चढ़ रहा है कोरियाई ड्रामे का ख़ुमार

के ड्रामा क्रैश लैंडिंग ऑन यू का एक दृश्यइमेज स्रोत,CJ ENM

जोया मतीन और मेरिल सेबैस्टियन

एक हादसे के बाद दुश्मन देश में फंसी एक युवती जहां उसे सेना का एक हैंडसम अधिकारी बचाता है.

उन्हें एक दूसरे से प्यार हो जाता है. लेकिन एक होने के लिए उनके बीच कई रुकावटें हैं. इनमें वो लकीर भी शामिल है जो दोनों देशों को बांटती है.

कुछ साल पहले अगर आप ये कहानी किसी भारतीय को सुनाते तो उन्हें सहसा साल 2004 की बॉलीवुड फ़िल्म 'वीरा ज़ारा' की याद आ जाती.

शाहरूख ख़ान और प्रीति ज़िंटा ने इस फ़िल्म भारत और पाकिस्तान के किरदारों को निभाया था. इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंधों में खटास की वजह से तनाव रहता है.

'वीर ज़ारा' की यादें 2019 के बाद धुंधली पड़ने लगीं.

दरअसल, 2019 के कोरियाई ड्रामा (के ड्रामा) क्रैश लैंडिंग ऑन यू (सीएलओवाई) की कहानी भी इससे मिलती जुलती थी. उस कहानी के केंद्र में पड़ोसी देश दक्षिण और उत्तर कोरिया हैं.

'ड्रामा ओवर फ्लॉवर्स' नामक 'के ड्रामा पॉडकास्ट' की को होस्ट परोमा चक्रवर्ती कहती हैं, "दुनिया ने सीएलओवाई को इसलिए पसंद किया क्योंकि इस शो ने दोनों देशों के साझा ग़म को साफ़ साफ़ दिखाया. लेकिन मुझे लगता है कि दुनिया भर में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों ने इसे अलग तरह से लिया."

उनके पॉडकास्ट से संकेत मिलता है कि अब 'के ड्रामा' भारत में कितना लोकप्रिय है.

'के ड्रामा' को देश में पसंद किए जाने का सिलसिला उत्तर पूर्व के राज्य मणिपुर से शुरू हुआ. ये तब की बात है जब अलगाववादी विद्रोहियों ने साल 2000 में बॉलीवुड की फ़िल्मों को बैन कर दिया. धीरे धीरे 'के ड्रामा' बाकी देश में भी फैल गया.

साल 2020 में जब कोविड महामारी की वजह से लोग घरों में रहने को मजबूर थे तब इसकी लोकप्रियता को उछाल मिला. उस साल भारत में नेटफ्लिक्स पर ठीक पिछले साल के मुक़ाबले 'के ड्रामा' देखने वालों की संख्या 370 प्रतिशत ज़्यादा रही.

'के ड्रामा' पसंद करने वालों की संख्या बढ़ रही है. कहानी बयान करने के मामले में उनके अंदाज़ में नयापन है और ये सचाई के ज़्यादा करीब है. ये भारत की विशाल हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री 'बॉलीवुड' के लिए 'व्यूअरशिप ट्रेंड्स' को बदल रहा है.

बॉलीवुड अब भी कोरोना महामारी के पहले स्तर को हासिल करने में संघर्ष कर रहा है.

बॉलीवुड बनाम कोरियाई ड्रामा
साप्ताहिक '52' की संपादक सुप्रिया नायर 'के ड्रामा' की प्रशंसक हैं. वो कहती हैं कि दोनों के बीच तुलना मुश्किल है.

वो कहती हैं, "लोकप्रिय हिंदी सिनेमा की तरह लोकप्रिय कोरियाई सिनेमा मुख्य रुप से मेल ऑडिएंस यानी पुरुष दर्शकों के लिए बनाया जाता है. पॉपुलर कोरियन टीवी, पॉपुलर हिंदी टीवी की ही तरह, महिलाओं के लिए बनाया जाता है."

लेकिन मनोरंजन जगत से जुड़े इन दोनों उद्योगों में कई समानताएं हैं. दोनों ही अपनी अतिनाटकीयता और अजब गजब रोमांस के लिए मशहूर हैं.

बॉलीवुड की ही तरह 'के ड्रामा' भी अपना संसार रचता है. ये ज़रूरी नहीं कि ब्रह्मांड के नियम यहां हमेशा लागू हों. यहां कहानी का प्लॉट में कभी रुखी सूखी सचाई हो सकती है और कभी सिर चकरा देने वाले तथ्य.

ये दोनों बड़ी इंडस्ट्री हैं. इनके लाखों दर्शक हैं और बेशुमार दीवानगी रखने वाले फैन हैं.

सुप्रिया नायर कहती हैं, "(बॉलीवुड) अलग अलग शैली और तौर तरीकों को सहजता से मिला लेता है. हम एक ही कहानी में तमाशा, एक्शन, रोमांस, वास्तविकता और भावुकता को शामिल कर सकते हैं."

और कोरियाई शोज़ के कहानी बयान करने तरीके में भी यही लचीलापन मिलता है. हर बार परीकथा जैसे सुखद अंत की गारंटी रहती है लेकिन वहां तक पहुंचने के पहले कहानी में कई तरह के घुमाव और मोड़ आते हैं.

लेकिन उनके बीच सबसे बड़ी समानता कहानियों में पारिवारिक और सामाजिक ताने बाने की मौजूदगी है.

सुप्रिया नायर कहती हैं, "कोरियाई ड्रामा में मां पिता और बच्चों के साथ रिश्तों का जो जुड़ाव सामने आता है, उसे पश्चिमी देश उस तरह से कतई नहीं समझ सकते जैसे कि हम समझते हैं."

कोरियाई शोज़ और बॉलीवुड फ़िल्मों की पटकथा इसी के असर के इर्द गिर्द घूमती है. प्यार किससे करना है ये तय करने से लेकर बच्चे कौन सा करियर चुनें, पति के परिवार को लेकर एक महिला की ज़िम्मेदारी और परिवार की ओर से मिलने वाले सामाजिक दायरे तक की बात होती है.

सुप्रिया नायर कहती हैं, " लेकिन सचाई चाहे जितनी रूखी हो, मुझे लगता है कि बेहतरीन ड्रामा में सभी किरदारों को बेहद नरमी और सोच समझ के साथ गढ़ा और पेश किया जाता है. "

कई बार स्क्रीन पर मुहब्बत दिखाने के मामले में भी ये दोनों इंडस्ट्री एक सी नज़र आती हैं.

परोमा चक्रवर्ती कहती हैं, " मुहब्बत को आदर्श रुप में पेश किया जाता है. इसे हासिल करने में भी प्यार और मासूमियत झलकती है. ये वो मामला है जहां बीते कुछ साल से बॉलीवुड लीक तोड़ रहा है, इसलिए कई सारे भारतीय दर्शक 'के ड्रामा' का रुख कर रहे हैं."

सुप्रिया नायर इसे उदाहरण से समझाती हैं. वो कहती हैं कि तमिल, मलयालम और तेलुगू फ़िल्मों के कई फैन 'होमटाउन चा चा चा' जैसे 'के ड्रामा' में काफी समनाता तलाश सकते हैं.

वो कहती हैं, "इसकी कहानी का प्लॉट वैसा ही है जैसा दशकों से दशकों दक्षिण भारतीय फ़िल्ममेकर्स पसंद करते रहे हैं. शहर में रहने वाली एक महत्वाकांक्षी लड़की एक नाटकीय गांव पहुंचती है, जहां स्थानीय लोग उसकी फिरकी लेते हैं और उसे एक ग्रामीण से प्यार हो जाता है."

लेकिन, इन समानताओं के मायने ये हैं कि दोनों ही इंडस्ट्री एक सी ही ग़लतियों के लिए अभिशप्त हैं. ख़ासकर मुहब्बत को बयान करते वक़्त, प्यार पाने के लिए महिला का पीछा करना, महिला को जबरन पकड़ना और हीरोइन के लिए कमसिन होने की शर्त.

परोमा चक्रवर्ती कहती हैं, "जलन को प्यार के संकेत के तौर पर दिखाया जाता है. पुरुषों के प्रेमिका या पत्नी पर एकाधिकार को गहरे लगाव के तौर पर दिखाया जाता है."

वो कहती हैं कि 'के ड्रामा' और भारतीय फ़िल्मों में आखिर में परिवार के दुष्ट सदस्य को माफी मिल जाती है और दोनों ही इंडस्ट्री की कहानियों में घरेलू अत्याचारों को शायद ही कभी ठीक तरीके से संभाला जाता है.

दमदार होते हैं महिलाओं के रोल
लेकिन, भारत की कई महिलाओं के लिए कोरियाई शोज़ का सबसे बड़ा आकर्षण उनमें महिलाओं को दिखाए जाने का तरीका है. इनमें आला भूमिकाएं निभाने वाली महिलाएं अक्सर स्मार्ट और पेचीदा होती हैं. मुहब्बत के परे भी उनका चरित्र विकसित किया जाता है और वो सिर्फ़ हीरो की परछाईं नहीं होती हैं.

उदाहरण के लिए बॉलीवुड की सुपरहिट फ़िल्म 'दंगल' और कोरियन ड्रामा 'वेटलिफ्टिंग फेयरी किम बोक-जू' को देखें. 2016 में रिलीज़ दोनों ही कहानियां महिला खिलाड़ियों पर आधारित है.

'दंगल' में सुपरस्टार आमिर ख़ान थे. इस फ़िल्म में बेटी को कामयाब पहलवान बनाने के लिए पिता की कुर्बानियों को प्रमुखता दी गई. जबकि 'के ड्रामा' में युवा महिला वेटलिफ़्टर को कहानी केंद्र में रखा गया.

दोनों ही कहानियों में साहस, विद्रोह और कुर्बानी दिखाई गई लेकिन 'दंगल' में आखिरकार बेटी को पिता के फ़ैसले को मानना पड़ा वहीं 'के ड्रामा' में युवा खिलाड़ी के संघर्ष को केंद्र में रखा गया.

कोरियाई इंडस्ट्री में कई शोज़ महिलाएं लिखती और निर्देशित करती हैं. सुप्रिया नायर कहती हैं, "कोरिया के शो रनर एक तरफ पारंपरिक नियमों और ब्रॉडकास्ट मानकों को बनाए रखते हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं की महत्वाकांक्षाओं और उनकी निजी आज़ादी का का भी ख्याल रखते हैं. "

इसलिए जहां 'दंगल' चमत्कार के लिए आमिर ख़ान की स्टार पावर पर भरोसा दिखाती है, वहीं वेटलिफ्टिंग फेयरी का पूरा फोकस उसकी मुख्य किरदार पर टिका रहता है.

'16 अध्याय का उपन्यास'
ऐसे में 'के ड्रामा' अक्सर अपनी कहानी 16 एपिसोड में पूरी कर लेते हैं. परोमा चक्रवर्ती इसे "16 अध्याय वाला उपन्यास" कहती हैं.

सुप्रिया नायर कहती हैं कि 'के ड्रामा' में महिलाओं को मिलने वाली अहमियत उत्साह जगाती है.

वो कहती हैं, "क्या आपने कभी नोटिस किया है कि कोरिया के पीरियड ड्रामा में महिलाओं की आज़ादी को लेकर कितनी फंतासी दिखाई जाती है."

सुप्रिया नायर कहती हैं, "इंडियन पॉप कल्चर में हम कभी ऐसा नहीं बनाते क्योंकि फंतासी में भी हम कभी महिलाओं को जाति और धर्म के दायरे से बाहर की आज़ादी नहीं दे सकते."

वो कहती हैं कि इसकी एक वजह 20वीं सदी में कोरिया, चीन और पूर्वी एशिया के कुछ दूसरे हिस्से में महिलाओं को अपेक्षाकृत हासिल हुई धार्मिक और सामाजिक आज़ादी है.

वो कहती हैं कि 'के ड्रामा' देखने वाले लंबे समय से इनकी नई स्टोरीलाइन का श्रेय अच्छी स्क्रिप्ट राइटर्स को देते हैं. स्क्रिप्ट लिखने वालों में ज़्यादातर महिलाएं हैं. बॉलीवुड के कहानी कहने के तरीके में भी तब आमूलचूल बदलाव आ सकता है, जब यहां भी स्क्रिप्ट लिखने वालों को ऐसा ही सम्मान मिले.

एक मुश्किल कहानी को मजेदार और संवेदनशील कैसे बनाया जा सकता है, 'क्रैश लैंडिंग ऑन यू' इसका एक अच्छा उदाहरण है.

सुप्रिया नायर कहती हैं, "हिंदी सिनेमा के कई बड़े स्टार और फ़िल्म निर्माताओं ने विभाजन के दर्द को सीधे तौर पर महसूस किया है लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्होंने या फिर उनके बच्चों ने सीमा के आर पार मुहब्बत को उस कामयाबी से दिखाया जैसे कि कोरिया के लोगों ने दिखाया है."

"ये विडंबना है क्योंकि कोरियाई देश 70 साल से जंग के मुहाने पर हैं जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच बीते कुछ समय से शांति है." (bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news