विचार / लेख

बेहया के फूल
13-Mar-2023 4:52 PM
बेहया के फूल

ध्रुव गुप्त
बेहया, जिसे बेशरम और थेथर भी कहते हैं, के फूलों पर नजऱ तो सबकी ही पड़ती है, उन्हें ठहरकर देखता कोई नहीं। तालाबों, पोखरों, नदियों के किनारों और कीचड़ भरे गड्ढों में बेतरतीब-सी झाडिय़ों में इफऱात से मिलने वाला यह गंधरहित लेकिन खूबसूरत फूल दुनिया के कुछ  सबसे अभागे फूलों में एक है। कोई इन्हें अपने घर के लॉन में पनपने नहीं देता। न यह देवताओं पर चढ़ता है, न स्त्रियों का शृंगार बनता है। दुनिया के किसी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को उपहार में भी नहीं दिया होगा यह फूल। इनकी झाडिय़ां तो जलावन में, बाड़ बनाने अथवा  औषधि के तौर पर काम आती हैं। हमारे स्कूली दिनों में यह मास्टर साहब की खतरनाक छड़ी भी होती थी। लेकिन बैंगनी और गुलाबी रंगों का मिला-जुला तिलिस्म जगाते इसके फूल सदा से उपेक्षित ही पैदा होते और उपेक्षित ही मरते रहे हैं। बिना देखभाल के कठिन परिस्थितियों में भी जिन्दा बचे रहने वाले इस फूल को कभी ध्यान से देखिएगा। 

अपारंपरिक सौंदर्य से लदा यह गर्वोन्नत फूल आपको हमेशा हंसता हुआ  मिलेगा। चौतरफा तिरस्कार के बावजूद इसी आत्ममुग्धता की वजह से शायद इसे बेहया ,बेशरम, थेथर जैसे नाम दिए गए। जैसे भी है, ये फूल मुझे बेहद पसंद हैं।बगैर किसी प्यार, प्रत्याशा, देखभाल के गर्व से कैसे जिया और मरा जा सकता है, यह इन  बेहया के फूलों से बेहतर कौन बता सकता है ?

अगली बार कभी इनकी झाडिय़ों से गुजऱना हुआ तो तनिक ठहरकर इन्हें छू और इनसे बतिया ज़रूर लीजिएगा! क्या पता आपके थोड़े स्नेह से इन्हें अपने जीने की एक वजह भी मिल जाय!
(मेरी एक कविता का गद्यानुवाद)

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