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अमेरिका ने दो साल बाद गार्सेटी को भारत में अपना राजदूत बनाया, विवादों में क्यों थे?
17-Mar-2023 4:27 PM
अमेरिका ने दो साल बाद गार्सेटी को भारत में अपना राजदूत बनाया, विवादों में क्यों थे?

-ज़ोया मतीन

वाशिंगटन, 17 मार्च ।  अमेरिका ने लॉस एंजिलिस के पूर्व मेयर एरिक गार्सेटी को आख़िरकार भारत में अपना राजदूत नियुक्त कर दिया है. बाइडन सरकार ने जुलाई 2021 में उन्हें इस पद के लिए नामांकित किया था.

लेकिन बाइडन के क़रीबी गार्सेटी की नियुक्ति उस समय रोक ली गई थी. गार्सेटी पर आरोप था कि मेयर रहते हुए उन्होंने अपने नज़दीकी सहयोगी पर लगे यौन प्रताड़ना के आरोपों की अनदेखी की.

हालांकि गार्सेटी ने इन आरोपों का खंडन किया था.

आख़िर बुधवार को सीनेट ने 42 के मुक़ाबले 52 वोटों से उनकी नियुक्ति को मंज़ूरी दे दी. हालांकि कुछ डेमोक्रेट्स उनकी नियुक्ति के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने इस नियुक्ति के ख़िलाफ़ वोट दिया.

भारत में जनवरी 2021 से ही अमेरिकी राजदूत का पद खाली था. जबकि भारत और अमेरिका के बीच मज़बूत कारोबारी और रक्षा संबंधों की वजह से ये काफ़ी अप्रत्याशित था.

विश्लेषकों का कहना है कि बाइडन भारत और अमेरिका के रिश्तों को और मज़बूत करने के पक्ष में हैं. दरअसल एशियाई महाद्वीप में अमेरिका, चीन के असर को सीमित करना चाहता है. इस लिहाज़ से भारत उसके मक़सद के मुफ़ीद बैठता है.

हालांकि गार्सेटी की नियुक्ति ऐसे वक्त में हुई है, जब अमेरिका और भारत के रिश्तों के बीच रूस का पेच फंसा हुआ है. रूस और यूक्रेन के बीच जंग में भारत ने अपना रवैया निष्पक्ष रखा है. इससे अमेरिका परेशान है.

भारत ने इस युद्ध की तो खुलेआम निंदा नहीं की है, लेकिन उसने ''यूएन चार्टर, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता बरक़रार रखने की अहमियत पर ज़ोर दिया है.''

गार्सेटी पर क्या थे आरोप

दरअसल भारत रूसी हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है. इसके साथ ही वह रूस से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल मंगा रहा है. इस मामले में वह अमेरिका और यूरोप की प्रतिबंधों की अनदेखी कर रहा है.

बुधवार को एरिक गार्सेटी की नियुक्ति पर वोटिंग के बाद अमेरिकी सीनेटर चक शुमर ने कहा, '' भारत और अमेरिका के रिश्ते काफ़ी अहम हैं. ये बड़ी अच्छी बात है कि अब भारत में अमेरिका का राजदूत होगा.''

गार्सेटी कोलंबिया यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हैं. राजनीति में आने से पहले वह अमेरिकी नौसेना में 12 साल की सेवा दे चुके थे. 2013 में वह लॉस एंजिलिस के मेयर बने.

2013 में इस पद को संभालते वक्त वो बीते सौ साल में इस शहर के सबसे कम उम्र के मेयर थे. वह पहले यहूदी हैं जो इस पद के लिए चुने गए थे. गार्सेटी 2022 तक यहां के मेयर रहे.

गार्सेटी बाइ़डन के क़रीबी सहयोगी हैं. 2020 में वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की दौड़ में बाहर होने के बाद बाइडन के चुनाव अभियान के सह-अध्यक्ष रहे थे.

जुलाई 2021 में बाइडन ने उन्हें भारत में अमेरिका का राजदूत बनाने के लिए नामांकित किया था. लेकिन 2022 में सीनेट की एक रिपोर्ट में कहा गया कि मेयर रहते हुए उन्होंने अपने नज़दीकी सलाहकारों में से एक रिक जैकब्स के ख़िलाफ़ लगे यौन प्रताड़ना के आरोपों की अनदेखी की थी.

इस रिपोर्ट में कहा गया था, ''जैकब्स के ख़िलाफ़ कई व्हिसल ब्लोअर ने पुख़्ता आरोप लगाए हैं.''

हालांकि रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि मेयर गार्सेटी को इस बारे में व्यक्तिगत रूप से पता था या फिर उन्हें इस बारे में पता होना चाहिए था.

इस बीच, जुलाई 2021 में बाइ़डन ने गार्सेटी को भारत के राजदूत के तौर पर नामांकित कर दिया.

बुधवार को भारत में अमेरिकी राजदूत के तौर पर अपने नाम पर मुहर लगने के बाद गार्सेटी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि उन्होंने कभी भी अपना नाम वापस लेने के बारे में नहीं सोचा.

गार्सेटी ने कहा, ''मैंने राष्ट्रपति बाइडन से मुलाकात की है. मुझे उनका सौ फ़ीसदी समर्थन है.''

भारत में अमेरिकी राजदूत कितना अहम?

'अ मैटर ऑफ़ ट्रस्ट: अ हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया-यूएस रिलेशन फ़्रॉम ट्रुमैन टु ट्रंप' की लेखिका मीनाक्षी अहमद ने न्यूयॉर्क टाइम्स में इस मुद्दे पर एक लेख लिखा था.

मीनाक्षी ने लिखा था, ''यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि अमेरिका ने पिछले दो सालों से भारत में अपना कोई राजदूत नहीं रखा है. बाइडन भारत को कई बार अहम साझीदार कह चुके हैं, तब भी यह हाल है. दोनों देशों के संबंधों में अमेरिकी राजदूत की अहम भूमिका रही है.''

मीनाक्षी ने लिखा है, ''1962 में चीन ने भारत पर हमला किया तो जॉन केनेथ गोल्ब्रेथ नई दिल्ली में अमेरिकी राजदूत थे. गोल्ब्रेथ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी के क़रीबी थे. इसके साथ ही भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी उनके अच्छे संबंध थे. युद्ध के दौरान अमेरिकी हथियारों की खेप भारत भिजवाने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है."

"इससे पहले नेहरू अमेरिका से मदद मांगने में संकोच कर रहे थे. गोल्ब्रेथ ने तब नेहरू और केनेडी के बीच कड़ी का काम किया था और दोनों देशों को क़रीब लाने में कामयाब रहे थे. नेहरू और केनेडी के बीच अविश्वास को केनेथ ने ख़त्म कर दिया था. 1962 में अमेरिका ने भारत का समर्थन कर संबंधों में नई गर्मजोशी ला दी थी. गोल्ब्रेथ भारत में काफ़ी लोकप्रिय हो गए थे.'' (bbc.com/hind)

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