संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सोशल मीडिया से लेकर साइबर-ठगी तक रफ्तार से कार्रवाई की जरूरत
18-Mar-2023 3:19 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :   सोशल मीडिया से लेकर साइबर-ठगी तक रफ्तार से कार्रवाई की जरूरत

फोटो : सोशल मीडिया

आज दो अलग-अलग चीजें हुई हैं, सुबह की पहली खबर यह मिली कि पिछले अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप यूट्यूब और फेसबुक पर वापिस आ गए हैं, और उन्होंने लिखा- ‘आई एम बैक’। और इसके साथ ही उन्होंने अपनी एक चुनावी रैली का वीडियो पोस्ट करके एक किस्म से यह मुनादी कर दी है कि वे दुबारा चुनाव लडऩे जा रहे हैं। 2020 में चुनाव हारने के बाद उनके समर्थकों ने जिस तरह अमरीकी संसद पर हमला बोला था, हिंसा की थी, और अगली सरकार को आने से रोकने की कोशिश की थी, उसके बाद हिंसा को भडक़ाते दिखने वाले ट्रंप के सोशल मीडिया अकाऊंट ब्लाक कर दिए गए थे। अब वे फिर से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं, और अमरीकी संस्कृति के मुताबिक अच्छे या बुरे हर किस्म के उम्मीदवार को यह हक है कि वोटर तक अपनी बात पहुंचा सके, या वोटर अपने उम्मीदवार की बात सुन सके, इसलिए एक-एक करके तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नफरत और हिंसा की राजनीति करने वाले ट्रंप के अकाऊंट बहाल करते जा रहे हैं। इस बीच लोगों को याद होगा कि ट्रंप ने अपनी नफरत की सोच को आगे बढ़ाने के लिए ट्विटर के मुकाबले एक नया प्लेटफॉर्म भी शुरू करवाया था, लेकिन वह किसी किनारे नहीं पहुंच पाया। आज की दूसरी खबर यह है कि बिहार के एक यूट्यूबर मनीष कश्यप ने तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले की झूठी खबरें फैलाकर नफरत और तनाव फैलाने का काम किया था, और इस पर उसके खिलाफ दर्ज मामले में उसने बिहार पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है। पुलिस उसे चारों तरफ तलाश रही थी, और दोनों राज्यों की पुलिस का यह मानना है कि इस यूट्यूबर ने हमले की फर्जी खबरें फैलाई थीं। 

अब अलग-अलग जगहों का कानून सोशल मीडिया पर झूठ, नफरत, और हिंसा फैलाने वाले लोगों के साथ कैसा बर्ताव करता है, यह भी देखने के लायक है क्योंकि भडक़ाने का यह तरीका लगातार अधिक इस्तेमाल हो रहा है, और हिन्दुस्तान में तो बड़े राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नामी-गिरामी पदाधिकारी इस काम में लगे दिखते हैं, और फिर मानो उन्हें कानून की भी कोई परवाह नहीं रह गई है। दूसरी तरफ लोगों को याद होगा कि कंगना रनौत जैसी चर्चित फिल्म अभिनेत्री नफरत की अपनी पोस्ट के चलते हुए ट्विटर पर ब्लाक की गई थीं। नफरत का यह सिलसिला लोगों की निजी सोच तक सीमित नहीं है, इसे साम्प्रदायिक विचारधाराएं हिन्दुस्तान में लगातार संगठित रूप से, और बहुत से लोगों का अंदाज है कि एक साजिश के तहत लोगों का साइबर-गिरोह खड़ा करके आगे बढ़ाया जा रहा है। यह बात जरूर है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत किसी के मुंह जिंदगी भर के लिए नहीं सिले जा सकते, और कानूनी कार्रवाई के बाद लोगों को एक बार फिर बोलने का हक मिलना चाहिए, लेकिन हिन्दुस्तान में दिक्कत यह है कि नफरत फैलाने वाले किसी सोशल मीडिया मवाली को सजा होते दिखती नहीं है, नतीजा यह होता है कि बाकी नफरतजीवी आम लोगों को भी यह लगता है कि वे जो चाहे पोस्ट कर सकते हैं, और देखादेखी नफरत का यह सैलाब दूर-दूर तक फैलने लगता है। 

हिन्दुस्तान में वैसे तो साइबर कानून बड़ा कड़ा बनाया गया है, और उसी के चलते तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले की झूठी खबर पर बिहार में दर्ज मुकदमे में एक नफरतजीवी यूट्यूबर को पुलिस के सामने हथियार डालने पड़े हैं, लेकिन ऐसी गिरफ्तारी के बाद लोगों को सजा मिलते दिखती नहीं है। पता नहीं मामले-मुकदमे कितने लंबे चलते हैं, सजा की खबरें क्यों नहीं आती हैं, और उनके न आने से बाकी लोग इसी धंधे को आगे बढ़ा रहे हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट-मोबाइल का इस्तेमाल जिस तरह बढ़ गया है, ऐसा लगता है कि देश में साइबर-जुर्मों की सुनवाई के लिए अलग से अदालतों की जरूरत है। इसके साथ-साथ पुलिस या सरकारी वकीलों को भी साइबर तकनीक की बारीकियों को पढ़ाकर ऐसे मुकदमों के लिए तैयार करना चाहिए। इन मामलों में गवाहों की जरूरत नहीं रहती है, और पुख्ता साइबर सुबूत रहते हैं जिन पर तेजी से फैसले तक पहुंचना आसान रहता है, फिर भी ऐसे मामलों में सजा क्यों नहीं हो रही है, इस बारे में सरकारों को सोचना चाहिए। 

सोशल मीडिया के नफरत और हिंसा वाले जुर्म से परे और भी बहुत किस्म के साइबर-जुर्म हैं, जो लोगों को बड़ी आर्थिक चोट पहुंचा रहे हैं। लोगों की जिंदगी भर की बचत मोबाइल के एक-दो मैसेज के जवाब देने की गलती करने पर चली जाती है। ऐसे जुर्म इतने संगठित तरीके से किए जा रहे हैं कि हर दिन ऐसे बहुत से मामले उजागर हो रहे हैं। इसके बाद भी मोबाइल फोन, सिमकार्ड, इंटरनेट कनेक्शन के सुबूत रहते हुए भी पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां जुर्म के सिलसिले को क्यों नहीं रोक पाती हैं, यह समझना भी कुछ मुश्किल है। जब तक लोगों को जालसाजी और ठगी का अहसास होता है, और उनमें से कुछ लोग पुलिस तक पहुंच पाते हैं, और मुजरिमों में से कुछ तक पुलिस पहुंच पाती है, तब तक ऐसे जालसाज रात-दिन ऐसे अपराध करने में लगे रहते हैं। हर किस्म के साइबर-जुर्म की बहुत तेजी से जांच, उनकी तेजी से धरपकड़, और मामलों की तेज सुनवाई के लिए साइबर-जागरूकता, साइबर-थानों, और साइबर-अदालतों सबकी जरूरत है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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