संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बयान के 45 दिन बाद राहुल के घर पहुंची दिल्ली पुलिस असहमति पर एक हमला...
19-Mar-2023 3:58 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बयान के 45 दिन बाद राहुल  के घर पहुंची दिल्ली पुलिस असहमति पर एक हमला...

आज किस मुद्दे पर लिखा जाए इसे लेकर तलाश जारी थी कि कुछ हैरान करने वाली एक खबर आ गई, और यह तलाश खत्म हुई। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के घर पर दिल्ली पुलिस के एक बड़े अफसर की अगुवाई में एक टीम पहुंची है जो उनसे उनके एक बयान पर पूछताछ करना चाहती है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने श्रीनगर में यह कहा था कि कुछ महिलाओं ने उनसे यौन उत्पीडऩ की शिकायत लेकर संपर्क किया था, और उन्होंने यह सुना है कि उन महिलाओं पर अभी भी यौन हमले किए जा रहे हैं। अभी पूछताछ करने पहुंचे अफसरों का कहना है कि पुलिस ने उनसे उन पीडि़त महिलाओं के बारे में जानकारी मांगी है ताकि उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई जा सके। 

पूछताछ का यह अंदाज कुछ हैरान करता है। किसी एक सांसद ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अगर यह कहा है कि यौन शोषण की शिकार महिलाओं ने उनसे मिलकर शिकायत की है, तो क्या यह बयान किसी सांसद के घर पुलिस टीम के पहुंचकर बयान लेने के लायक है? या पुलिस महज एक चि_ी लिखकर भी अपने लोगों का वक्त बचा सकती थी? कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने यह कहा है कि भारत जोड़ो यात्रा को खत्म हुए ही 45 दिन हो चुके हैं। अगर दिल्ली पुलिस को राहुल गांधी के बयान से महिलाओं की सुरक्षा की इतनी फिक्र उपजी थी, तो उसे इतने दिनों में यह पूछताछ कर लेनी थी। यह बात अटपटी है, और इसीलिए आज कांग्रेस और केन्द्र सरकार के बीच, खासकर राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच चल रही एक अभूतपूर्व तनातनी को लेकर पूछताछ का यह तरीका अधिक फिक्र के लायक हो जा रहा है। क्या यह ब्रिटेन प्रवास के दौरान राहुल गांधी द्वारा की गई मोदी सरकार की आलोचना की एक प्रतिक्रिया है? क्या यह कांग्रेस पार्टी की ओर से अडानी को लेकर मोदी से हर दिन सोशल मीडिया पर किए जा रहे सवालों की प्रतिक्रिया है? आज जब तनातनी इतनी अधिक है, तो क्या सरकार चला रहे लोगों को सरकार के तौर-तरीकों को लेकर कुछ अधिक सावधान नहीं रहना था, या फिर तौर-तरीकों का यह प्रदर्शन सोच-समझकर किया जा रहा है, ताकि खिलाफ बयान देने वाले लोगों को सरकार की ताकत का अहसास हो सके? 

एक नेता के एक सामान्य बयान का जवाब प्रभावित पार्टी या नेता की ओर से एक सामान्य बयान से भी हो सकता था। लेकिन राहुल के बयान के खिलाफ जिस तरह से संसद को ही कई दिनों से ठप्प कर दिया गया है, जिस तरह से राहुल से माफी मंगवाने पर भाजपा और सत्ता आमादा हैं, वह भी हैरान करता है। अडानी से तो हिन्दुस्तान की अर्थव्यवस्था, जनता के हक की सार्वजनिक संपत्तियां जुड़ी हुई हैं, इसलिए अडानी को लेकर तो अमरीका की संस्था हिंडनबर्ग से लेकर भारतीय अदालतों तक कई जगहों पर सवाल हो रहे हैं, इसलिए किसी को उसका बुरा नहीं मानना चाहिए। लेकिन भारतीय लोकतंत्र की आज की हालत की राहुल की व्याख्या अगर किसी बहाने पुलिस को उनके घर पहुंचा दे रही है, तो यह तरीका अभूतपूर्व और बड़ा ही अटपटा है, और यह निराश करता है कि इस लोकतंत्र में विपक्ष और असहमति अवांछित हो चुके हैं। 

फिर यह बात भी हैरान करती है कि सत्ता के साथ-साथ मीडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा देश की हर दिक्कत के लिए जिस अंदाज में राहुल से सवाल कर रहा है, उससे ऐसा लगता है कि राहुल ही देश के प्रधानमंत्री हैं, और सौ रूपये लीटर डीजल-पेट्रोल से लेकर 11 सौ रूपये के गैस सिलेंडर तक के लिए राहुल ही जिम्मेदार हैं। देश की दिक्कतों और सरकार की नाकामी को लेकर जितने सवाल सरकार से होने चाहिए, उतने सवाल राहुल से किए जा रहे हैं। लोकतंत्र में मीडिया ने हिन्दुस्तान में बहुत पहले से अपने को चौथा खम्भा बना रखा था। अब यह चौथा खम्भा पहले खम्भे के तलुओं को गुदगुदाने में जिस अंदाज में जुटा हुआ है, उससे हैरानी होती है कि क्या असल जिंदगी के कोई स्तंभ एक-दूसरे के पैरों पर पड़े रहकर भी स्तंभ का दर्जा पाने का दावा करते रह सकते हैं? इस मीडिया में जब कभी हिन्दुस्तानी जिंदगी के कुछ असल मुद्दों के सतह पर आ जाने, और छा जाने का खतरा दिखता है, तब-तब योजनाबद्ध तरीके से कुछ ऐसी निहायत गैरजरूरी बातों से गढ़ी हुई खबरों के सैलाब मीडिया में दिखने लगते हैं कि जनता, दिमाग पर जोर डालने से बचने की आदी जनता, उसी में भीग जाती है। यह सिलसिला गैरमुद्दों को असल मुद्दों की तरह पेश करने का है, और ऐसा भी लगता है कि राहुल के घर पुलिस भेजने का यह फैसला खबरों से कुछ दूसरी बातों को पीछे धकेलने का है, और बयान देने वाले नेताओं को चुप रहने की, कम बोलने की नसीहत देने वाला तो है ही। यह लिखते-लिखते ही दिल्ली से राहुल के घर के बाहर पुलिस के पहुंचने और दाखिल होने के जो वीडियो आए हैं, वे और हक्का-बक्का करते हैं। डेढ़-दो दर्जन पुलिसवाले, जिनमें से बहुत से लोग वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहे हैं, मानो हरियाणा के संत रामपाल के आश्रम में पुलिस कार्रवाई होने जा रही है, और भीतर से हथियारबंद संघर्ष की आशंका है। एक अहिंसक, सभ्य और विनम्र सांसद से पूछताछ के लिए दिल्ली पुलिस का एक अफसर काफी नहीं होता?

हिन्दुस्तान में आज केन्द्र सरकार, भाजपा, और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किसी भी किस्म की असहमति, उनमें से किसी की भी आलोचना को देशविरोधी, राष्ट्रविरोधी, और राष्ट्रद्रोही साबित करने की एक दौड़ चल रही है। कल ही केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने एक बयान दिया है कि देश के कुछ ऐसे भूतपूर्व जज हैं जो भारतविरोधी गिरोह का हिस्सा हैं, जो न्यायपालिका को विपक्षी दलों की तरह सरकार के खिलाफ करने की कोशिश कर रहे हैं, और जो कोई देश के खिलाफ काम करेंगे उन्हें इसके दाम चुकाने होंगे। उनके इस बयान पर देश के एक प्रमुख वकील प्रशांत भूषण ने इसे जजों को धमकी देना कहा है। तो बात सिर्फ राहुल गांधी तक सीमित नहीं है, इस देश में देश की सबसे बड़ी अदालत के रिटायर्ड जज भी अब भारतविरोधी गिरोह का हिस्सा करार दिए जा रहे हैं, क्योंकि वे सरकार के कुछ फैसलों से असहमत हैं। जिस लोकतंत्र में असहमति नाली में फेंक दिए गए अवांछित नवजात शिशु से भी अधिक अवांछित मान ली जाए, वहां नाली में सिर्फ नवजात शिशु की लाश नहीं रहती, वहां वानप्रस्थ आश्रम जाने की उम्र वाले लोकतंत्र की लाश भी रहती है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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