विचार / लेख

इमरान ख़ान को गिरफ्तार किया गया तो इसका सियासी फायदा किसको होगा?
20-Mar-2023 3:26 PM
इमरान ख़ान को गिरफ्तार किया गया तो इसका सियासी फायदा किसको होगा?

तरहब असगर

शनिवार को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के लाहौर के जमान पार्क स्थित घर पर पंजाब पुलिस के ऑपरेशन और राजधानी इस्लामाबाद में तोशाखाना केस में पेशी के दौरान पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) के कार्यकर्ताओं और पुलिस में झड़प हुई।

इसके बाद एक बार फिर इन अफवाहों में तेजी आई है कि चुनावी मुहिम से पहले दर्जनों जगहों में से किसी एक में इमरान खान को गिरफ्तार किया जा सकता है।

हालांकि सत्तारूढ़ गठबंधन पीडीएम (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट) ने इमरान खान की गिरफ्तारी से संबंधित कोई साफ बयान नहीं दिया है, लेकिन गृह मंत्री राना सनाउल्लाह ने पिछले दिनों एक निजी टीवी चैनल से बात करते हुए कहा था, ‘हम गिरफ्तारी की सोचें भी तो उन्हें (इमरान खान को) जमानत मिल जाती है। हम कौन हैं जो उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाएं।’

तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान अपनी गिरफ्तारी से बारे में कई बार भविष्यवाणी करते रहे हैं और पिछले दिनों उन्होंने  ‘लंदन प्लान’ का दावा करते हुए कहा था कि जमान पार्क ऑपरेशन का मकसद ‘मेरी अदालत में पेशी सुनिश्चित करना नहीं बल्कि मुझे इस्लामाबाद में गिरफ्तार कर जेल भेजना है।’

इससे पहले जब बीते मंगलवार को पुलिस ने जमान पार्क के इलाके में ऑपरेशन किया तो इमरान खान ने अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया, ‘पुलिस मुझे जेल ले जाने के लिए आई है। उन्हें लगता है कि इमरान खान जेल चला जाएगा तो राष्ट्र सो जाएगा। आपको उन्हें गलत साबित करना है।’

साथ ही साथ इमरान खान अपनी गिरफ्तारी से जुड़े तर्क भी देते हैं। उनके शब्दों में, ‘वह यह इसलिए करना चाहते हैं कि मैं इलेक्शन की मुहिम न चलाऊं। वह मैच खेलना चाहते हैं, लेकिन कप्तान के बिना। वो समझते हैं कि अगर मैं जेल चला जाऊं या अयोग्य करार दिया जाऊं तो उनके मैच जीतने की संभावनाएं बेहतर हो जाएंगी।’

इन दावों की सच्चाई एक तरफ है, लेकिन यह बहस भी धीरे-धीरे जोर पकड़ रही है कि अगर इमरान खान को गिरफ्तार किया गया तो इसका राजनीतिक लाभ आखिर किसे होगा।

अतीत में जब अविश्वास प्रस्ताव सफल होने के करीब था तो इमरान खान ने खुद ही कहा था कि वह सरकार से निकल जाने के बाद ‘ज्यादा खतरनाक’ हो जाएंगे।

जानकारों के मुताबिक, उन्होंने बतौर विपक्षी नेता अपने इस दावे को कुछ हद तक सही भी साबित किया है।

अब सवाल यह है कि अगर इमरान खान जेल जाते हैं तो क्या वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए पहले से ज्यादा ‘खतरनाक’ साबित हो सकते हैं और क्या सरकार की सोच के उलट उनकी गिरफ्तारी उनके दल की लोकप्रियता और समर्थन में और इजाफे की वजह बनेगी?

इस पर तहरीक-ए-इंसाफ के नेता फवाद चौधरी का कहना है कि पिछले 11 महीनों में सरकार और इस्टैब्लिशमेंट के तहरीक-ए-इंसाफ विरोधी हर कदम ने इमरान खान को जनता में और लोकप्रिय बनाया है। ‘इमरान खान के गिरफ्तार होने के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ अगर अभी 70 प्रतिशत है तो वह 100 प्रतिशत पर चला जाएगा।’

फवाद चौधरी का यह भी कहना है, ‘इस समय सरकार एजेंसियां चला रही हैं। इमरान खान का मुकाबला ताकत से हो रहा है और इसी वजह से देश में राजनीतिक खालीपन पैदा हो रहा है और सरकार का ग्राफ हर दिन नीचे जा रहा है।’

उन्होंने कहा कि इस समय इस्टैब्लिशमेंट जितनी अलोकप्रिय है उतनी अतीत में कभी नहीं थी और ऐसा पहली बार हो रहा है कि सैन्य प्रतिष्ठान की रेटिंग राजनीतिक लोगों से नीचे है।

तहरीक-ए-इंसाफ की राजनीतिक विरोधी मुस्लिम लीग-नून के केंद्रीय नेता अहसन इकबाल फवाद चौधरी के इस दावे को रद्द करते नजर आते हैं।

उनका कहना है कि तहरीक-ए-इंसाफ वह दल है जिसमें बहुत अंदरूनी मतभेद हैं। ‘इमरान ख़ान के रहते उन समस्याओं पर पर्दा डालना आसान होता है। अगर वह नहीं होंगे तो यह मतभेद खुलकर सामने आ जाएंगे।’

उन्होंने यह भी कहा कि इमरान खान की गिरफ्तारी से जनता के बीच वह राय भी गलत साबित होगी जो इमरान खान ने अपने कार्यकर्ताओं के बीच बनाई है यानी ‘मैं वह शख्स हूं जिसने कभी कोई गलती नहीं की।’

सीनेटर डॉक्टर अफऩान उल्लाह ने बीबीसी उर्दू को बताया कि यह एक कानूनी प्रक्रिया है और इसको सरकार के फायदे या नुकसान से हटकर कानून को लागू करने के तौर पर देखना चाहिए।

उनके अनुसार, ‘अगर नवाज शरीफ 200 से अधिक पेशियां भुगत सकते हैं, कैद काट सकते हैं तो कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।’

जनता कैसे देखती है और चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?

राजनीतिक विश्लेषक अहसन इकबाल की इस राय से सहमत दिखाई नहीं देते। वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक सलमान गऩी का कहना है कि इमरान खान की गिरफ्तारी के नतीजे में पीडीएम को राजनीतिक तौर पर नुकसान होगा।

‘राजनीतिक गिरफ्तारियां कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों में अधिक उत्साह पैदा करती हैं जिसका चुनाव पर असर पड़ता है।’

उनका कहना है कि अब तक जो पार्टियां सत्ता में आई हैं, उनकी लीडरशिप की लोकप्रियता दो जगहों पर नोट होती है, एक जनता के बीच और दूसरी इस्टैब्लिशमेंट में।

वह कहते हैं कि इमरान ख़ान ने दूसरी जगह पर अपने आप को रक्षात्मक मोर्चे पर खड़ा कर रखा है। ‘पाकिस्तान की इस्टैब्लिशमेंट पाकिस्तान की एक बड़ी राजनीतिक सच्चाई भी है और उनकी स्वीकार्यता के बिना किसी भी दल का सत्ता में आना मुश्किल है।’

‘दूसरी ओर उनका राजनीतिक पक्ष इस हिसाब से जनता में मजबूत है कि वह सरकार को टारगेट करते हैं।’

इमरान खान के अदालत में पेश न होने के मामले पर तहरीक-ए-इंसाफ का यह कहना है कि एक और जहां उनके नेता की जान को खतरा है, वहीं सरकार की ओर से उन पर झूठे मुकदमों की भरमार कर दी गई है और यह संख्या इतनी अधिक है कि किसी इंसान के लिए उतने मामलों में अदालतों में पेश होना मुमकिन नहीं है।

जानकारों के विचार में तहरीक-ए-इंसाफ के अपने कार्यकाल में भी विपक्ष के प्रति सत्ता का रवैया कुछ ऐसा ही रहा था। इसलिए यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि क्या मुस्लिम लीग-नून वही कर रही है जो तहरीक-ए-इंसाफ ने अतीत में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ किया?

इमरान और नवाज शरीफ के मामलों में क्या अंतर है?

इस बारे में तहरीक-ए-इंसाफ के नेता फवाद चौधरी कहते हैं कि यह कहना सही नहीं कि जो हमारे दौर में नून लीग के साथ हुआ वही अब तहरीक-ए-इंसाफ के साथ हो रहा है क्योंकि नवाज शरीफ तो पनामा केस में अयोग्य घोषित हुए और जेल गए जो कि एक अंतरराष्ट्रीय स्कैंडल था।

‘वह करप्शन के केस में अंदर गए जबकि इमरान खान के खिलाफ फर्जी मामले बनाए गए हैं। यह लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है, जो हम मांगते हैं। जहां तक रही बात इस्टैब्लिशमेंट की तो उनकी भूमिका तो संविधान और कानून से भी बहुत अधिक बनी हुई है, जो अलोकतांत्रिक है।’

इस बारे में अहसन इकबाल का कहना है कि इमरान ख़ान का इस समय सिर्फ ये कहना है कि फौज उनका साथ दे। अहसन इकबाल के अनुसार, ‘वह यह नहीं कहते हैं कि फौज न्यूट्रल रहे। वह चाहते हैं कि फौज उनकी सत्ता की राह दोबारा आसान करे।’

विश्लेषक हबीब अकरम का कहना है कि साफ़ तौर पर यही लगता है कि जो मुस्लिम लीग नून के साथ बतौर विपक्षी पार्टी हुआ, वही अब ‘पीटीआई’ के साथ हो रहा है।

वह कहते हैं, ‘लेकिन यहां यह बात बेहद महत्वपूर्ण है कि जनता इन दोनों दलों की लड़ाई को कैसे देखती है।’

हबीब अकरम के अनुसार, मुस्लिम लीग-नून की जिस बात के लिए आलोचना हो रही है वह करप्शन है, जबकि इमरान ख़ान पर जो मामले हैं उनमें कोई महत्वपूर्ण केस करप्शन से संबंधित नहीं है।

‘केवल एक केस है वह भी तोशाख़ाना का। जनता के लिए यह बहुत बड़ा अंतर है।’ (bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news