ताजा खबर

दिल्ली पुलिस ने 6 लोगों को शहर की दीवारों पर पोस्टर चिपकाने के एक मामले में गिरफ्तार किया है। ये पोस्टर जाहिर तौर पर आम आदमी पार्टी के छपवाए हुए दिखते हैं। पोस्टरों पर कहीं आप का नाम नहीं है, लेकिन अब तक की पुलिस जांच में जो सामने आया है उसके मुताबिक ऐसे पोस्टरों से भरी हुई एक वैन जब्त हुई है जो कि आप मुख्यालय से निकली थी, और गिरफ्तार किए गए लोगों से यह पता लगा है कि दो दिन से ऐसे पोस्टर छापकर आप मुख्यालय में पहुंचाए जा रहे थे। इस पोस्टर की जिम्मेदारी लिए बिना इस पार्टी ने ट्विटर पर इस पोस्टर की फोटो के साथ लिखा है कि मोदी सरकार की तानाशाही चरम पर है, इस पोस्टर में ऐसा क्या आपत्तिजनक है जो इसे लगाने पर मोदीजी ने सौ एफआईआर कर दी, प्रधानमंत्री मोदी, आपको शायद पता नहीं पर भारत के एक लोकतांत्रिक देश है, एक पोस्टर से इतना डर क्यों?
अब यह पोस्टर चार शब्दों के हैं, मोदी हटाओ देश बचाओ। दो प्रिटिंग प्रेस को ऐसे 50-50 हजार पोस्टर छापने का ऑर्डर दिया गया था, और इन प्रेस से जुड़े हुए लोगों ने इतवार रात से सोमवार सुबह तक दिल्ली की दीवारों पर ये पोस्टर चिपकाए हैं। ये मामला प्रिटिंग प्रेस के नाम के बिना पोस्टर छापने की वजह से दर्ज किया गया है क्योंकि देश के कानून के मुताबिक किसी भी छपाई पर उसे छपवाने वाले और छापने वाले के नाम होने चाहिए। लोगों को याद होगा कि छोटे-छोटे से पर्चे भी प्रिटिंग प्रेस के नाम सहित ही छपते हैं। ऐसे में एक राजनीतिक मांग या नारे वाले ऐसे पोस्टर छपवाना और उन्हें सार्वजनिक दीवारों पर चिपकाना, यह काम बिना नाम क्यों होना चाहिए था? अरविन्द केजरीवाल की पार्टी को चुनाव लड़ते कई बरस हो गए हैं, और यह पार्टी रात-दिन दिल्ली के लेफ्टिनेंट जनरल से कानूनी लड़ाई में लगी रहती है। अभी इसके दो बड़े नेता जेलों में हैं, और पार्टी रात-दिन वकीलों के साथ जुटी हुई है। ऐसे में एक रजिस्टर्ड राजनीतिक दल को इस मासूमियत का लाभ नहीं दिया जा सकता कि वह पोस्टर छपवाते हुए एक न्यूनतम कानूनी जरूरत को पूरा करना भूल गई थी। वह तो अभी भी जब इस मामले में सौ एफआईआर हो चुकी हैं, और 6 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, तब भी इस पोस्टर की जिम्मेदारी लेने से कन्नी काट रही है। वह प्रधानमंत्री की आलोचना तो कर रही है, उन्हें लोकतंत्र याद दिला रही है, बेनाम पोस्टरों के खिलाफ जुर्म दर्ज होने पर उसे तानाशाही करार दे रही है, लेकिन अपनी खुद की इस हरकत पर बेकसूर लोगों की गिरफ्तारी के बाद भी वह इन पोस्टरों को छपवाने और लगवाने की जिम्मेदारी के मुद्दे पर चुप है। यह तो पुलिस जांच से साबित हो गया है कि इन पोस्टरों के पीछे आम आदमी पार्टी ही है, तो फिर सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता के आंदोलन की उपज यह पार्टी साफ-साफ अपने काम कुबूल क्यों नहीं कर रही है? मोदी से लोकतंत्र की उम्मीद करना, और खुद बेनाम पोस्टर छपवाकर लगवाने का कानूनविरोधी काम करना, इन दोनों को एक साथ करना आम आदमी पार्टी के बस की ही बात दिखती है।
हिन्दुस्तान में राजनीतिक दल चुनावों के वक्त, चुनाव आचार संहिता के चलते चुनाव आयोग के सीधे नियंत्रण में रहते हैं, या कम से कम उनके प्रति हर हद तक जवाबदेह तो रहते ही हैं। लेकिन आचार संहिता से परे भी उनका काम तो एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल की हैसियत से ही चलता है, और यह मान्यता उन्हें चुनाव आयोग से ही मिली हुई है, इसलिए अपनी गैरकानूनी हरकतों के लिए उन्हें देश के बाकी कानून के साथ-साथ चुनाव आयोग के प्रति भी जवाबदेह रहना चाहिए, और गैरकानूनी हरकतों की वजह से पार्टियों की मान्यता खत्म करने का इंतजाम भी रहना चाहिए। और यह बात हम सिर्फ आम आदमी पार्टी के इस मासूम नारे वाले गैरकानूनी पोस्टरों के बारे में नहीं कह रहे हैं, बल्कि किसी भी पार्टी के नेता की गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक बातों के बारे में भी कह रहे हैं। बहुत से नेता लगातार हिंसा और साम्प्रदायिक नफरत भडक़ाने वाले बयान देते हैं। इनमें से बहुत से लोग राजनीतिक दलों के सांसद और विधायक भी रहते हैं, या मान्यता प्राप्त राजनीतिक संगठन के पदाधिकारी रहते हैं। चूंकि संसद और विधानसभाएं सदन के बाहर अपने सदस्यों के किसी भी आचरण पर कोई कार्रवाई करते नहीं दिखती हैं, न ही उनकी कोई दिलचस्पी दिखती है, ऐसे में चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों से जवाब-तलब करने, उनकी मान्यता निलंबित या खत्म करने का काम करना चाहिए। आज बहुत से लोगों को यह बात इसलिए अलोकतांत्रिक लग सकती है क्योंकि आज देश में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता धेले की नहीं रह गई है। ऐसा माना जाता है कि मोदी सरकार ने चुनाव आयोग को सरकार का ही एक विभाग या मंत्रालय बना रखा है। लेकिन हम राजनीतिक दलों के जुर्म, उनकी गुंडागर्दी, और उनके अलोकतांत्रिक कामों को लेकर चुनाव आयोग के प्रति उनकी एक जवाबदेही के हिमायती हैं। अब अगर संवैधानिक संस्थाएं पूरी तरह से पक्षपाती हो जाएं, तो एक अलग बात है, उस हालत में तो बिना ऐसे अधिकार के भी चुनाव आयोग किसी पार्टी को परेशान कर सकता है, लेकिन सामान्य स्थितियों में राजनीतिक दलों की जवाबदेही बढ़ानी चाहिए, और उन्हें सिर्फ देश के आम कानून के भरोसे नहीं छोडऩा चाहिए। वे एक विशेष कानूनी दर्जा प्राप्त मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं, और इस मान्यता के साथ यह बात जुड़ी रहनी चाहिए कि अगर वे सार्वजनिक जगहों पर कोई तोडफ़ोड़ करते हैं, तो चुनाव आयोग भी उनसे जवाब-तलब कर सके, नुकसान की वसूली कर सके। कई लोगों को लग सकता है कि इस काम के लिए तो देश के दूसरे कानून काफी हैं, और चुनाव आयोग को और अधिक अधिकार क्यों दिए जाएं, लेकिन देश के बाकी कानून राजनीतिक दलों की मान्यता से जुड़े हुए नहीं हैं। इसलिए देश में कई तरह के सार्वजनिक जुर्म करने पर कार्रवाई का अधिकार चुनाव आयोग को भी होना चाहिए।
आखिर में इस मुद्दे पर यही लिखना रह गया है कि आम आदमी पार्टी इस तरह के कई शिगूफों, और लोगों से एकतरफा टकराव करने की रणनीति पर चलती आई है। वह कोई आरोप उछालती है, और खिसक लेती है, किसी बात को मुद्दा बनाती है, और उसे सहूलियत के साथ भूल जाती है, वह भ्रष्टाचार विरोध के आंदोलन के साथ अस्तित्व में आई थी, लेकिन आज उसके बड़े-बड़े नेता बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ्तार हैं, और लोगों की हमदर्दी इस पार्टी के साथ घटती दिख रही है। अब यह पार्टी मोदी हटाने का ऐसा नारा तो दीवारों पर लगवा रही है जो देश के बाकी विपक्षी दलों को भी ठीक लगे, लेकिन मोदी के खिलाफ किसी मजबूत विपक्ष की नौबत से वह कतरा भी रही है। इसलिए आज उसका मोदी विरोध का यह महत्वहीन नाटक गैरकानूनी छपाई करवाने का नाटक भी है, ताकि ये पोस्टर और खबरों में आ जाएं। दिल्ली की जनता कई वजहों से केजरीवाल को दुबारा चुन चुकी है, लेकिन धीरे-धीरे करके ऐसे नाटक उजागर होते चलेंगे, और इस पार्टी के लिए मामला आसान नहीं रह जाएगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)