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न्यायालय ने कुछ अदालतों की ओर से समन के आधार पर पेश होने आए आरोपियों को एजेंसी की हिरासत में भेजने के मुद्दे पर संज्ञान लिया
22-Mar-2023 8:20 PM
न्यायालय ने कुछ अदालतों की ओर से समन के आधार पर पेश होने आए आरोपियों को एजेंसी की हिरासत में भेजने के मुद्दे पर संज्ञान लिया

नयी दिल्ली, 22 मार्च। उच्चतम न्यायालय ने कुछ अदालतों द्वारा समन पर पेश हुए आरोपियों को जांच एजेंसी की हिरासत में भेजने की ‘परिपाटी’ पर संज्ञान लेते हुए ‘इस मामले में ‘सटीकता की जांच ’ करने की जरूरत है।’

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी चार आरोपियों की अपील पर सुनवाई करने के दौरान की जिन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की जांच के सिलसिले में उनके द्वारा दाखिल अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।

अदालत ने कहा कि रेखांकित किया कि अपीलकर्ताओं को गिरफ्तारी का भय सीबीआई से नहीं है बल्कि सुनवाई अदालत की ओर से है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा किया जाए और इसके लिए विशेष अदालत पासपोर्ट जमा कराने सहित अन्य शर्तें लगा सकती है।

पीठ ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में रेखांकित किया गया कि सीबीआई वह संस्था नहीं है जो हिरासत मांग रही है, लेकिन अपीलकर्ताओं को आशंका है कि सुनवाई अदालत उन्हें हिरासत में भेज सकती है और इसलिए वे सुरक्षा मांग रहे हैं। हमें इन अपील पर फैसला देते समय इस तथ्य पर गौर किया जाना चाहिए।’’

न्यायमूर्ति वी सुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने 20 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा, ‘‘यही वजह है कि देश के कुछ हिस्सों में देखा जा रहा है कि अदालतें समन आदेश के जवाब में पेश होने के तुरंत बाद आरोपियों को हिरासत में भेजने की परिपाटी अपना रही हैं। ऐसी परिपाटी के औचित्य को उपयुक्त मामले में परखने की जरूरत है।’’

मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने रेखांकित किया कि कॉरपोरेशन बैंक द्वारा धोखाधड़ी और षडयंत्र रचने सहित विभिन्न आरोपों में जून 2019 में प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद चारों आरोपियों में से किसी को सीबीआई ने हिरासत में नहीं लिया और उन्होंने जांच में सहयोग किया।

शीर्ष अदालत ने कहा सीबीआई ने दिसंबर 2021 में अंतिम रिपोर्ट दाखिल की जिसके बाद विशेष अदालत ने आरोपियों को पिछले साल सात मार्च को पेश होने का समन भेजा। गिरफ्तारी के भय से अपीलकर्ताओं ने विशेष अदालत में अग्रिम जमानत की अर्जी दी और बाद में उच्च न्यायालय का रुख किया लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली।(भाषा)

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