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मनीष कश्यप पर बिहार पुलिस ने लगाए गंभीर आरोप, जानिए मामले से जुड़े अहम सवाल
23-Mar-2023 4:03 PM
मनीष कश्यप पर बिहार पुलिस ने लगाए गंभीर आरोप, जानिए मामले से जुड़े अहम सवाल

-चंदन कुमार जजवाड़े

बिहार, 23 मार्च । बिहार के मज़दूरों पर तमिलनाडु में हिंसा की अफ़वाहों ने सोशल मीडिया की ज़िम्मेदारी और भूमिका पर फिर से एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.

यही नहीं सोशल मीडिया की ख़बरों को बिना पड़ताल के कई अख़बारों ने भी बड़ी-बड़ी हेडिंग के साथ छापा था.

फ़ेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर किसी भी भ्रामक ख़बर या सूचना का कितना असर हो सकता है, ये हाल ही में तमिलनाडु में बिहार के मज़दूरों के साथ हिंसा के दावों वाले भ्रामक पोस्ट में देखा गया.

तमिलनाडु पुलिस लगातार बिहार के मज़दूरों पर हिंसा की ख़बरों को झूठ और अफ़वाह बता रही थी. लेकिन सोशल मीडिया पर परोसी गई ख़बरों ने बिहार सरकार, बिहार पुलिस और तमिलनाडु पुलिस को क़रीब दो हफ़्ते तक अपने घेरे में ले लिया था.

इस दौरान तमिलनाडु में काम करने वाले लाखों प्रवासी बिहारियों और बिहार में उनके परिवार के लोग भी डर के माहौल में जी रहे थे.

बाद में दोनों ही राज्यों की पुलिस ने इस मामले में कई एफ़आईआर दर्ज की.

सोशल मीडिया पर अफ़वाह फ़ैलाने के आरोप में बिहार पुलिस ने अब तक छह लोगों को गिरफ़्तार भी किया है.

इनमें से एक गिरफ़्तारी यू-ट्यूबर मनीष कश्यप की हुई है.

ख़ुद को पत्रकार बताने वाले मनीष कश्यप को जब बिहार पुलिस तलाश रही थी, तब उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर अपनी गिरफ़्तारी की एक झूठी तस्वीर भी पोस्ट की थी.

इस पोस्ट के लिए भी उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है.

बाद में मनीष कश्यप ने बीते शनिवार को आत्मसमर्पण किया.

बिहार में मनीष के समर्थकों और कुछ यू-ट्यूबर्स ने इस गिरफ़्तारी के विरोध में 23 मार्च को बिहार बंद की अपील भी की है.

कौन हैं मनीष कश्यप

त्रिपुरारी कुमार तिवारी उर्फ़ मनीष कश्यप बिहार के पश्चिमी चंपारण के रहने वाले है.

वो बिहार में यू-ट्यूब और फ़ेसबुक पर काफ़ी चर्चित हैं. मनीष कश्यप पर झूठी और भ्रामक ख़बरों को फैलाने का आरोप लगा तो वो काफ़ी दिनों तक फ़रार रहे.

उसके बाद बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई ने उनके बैंक खातों को सील कर दिया.

पुलिस के मुताबिक़ उनके बैक़ खातों में 42 लाख़ से ज़्यादा रकम जमा थी.

बिहार पुलिस ने मनीष कश्यप के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी का वारंट जारी किया और फिर एक मामले में कोर्ट ने उनके घर की कुर्की के आदेश दिए.

इसके बाद मनीष कश्यप ने शनिवार को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई के मुताबिक़, मनीष कश्यप पर तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों के साथ हिंसा के बहुत सारे झूठे वीडियो बनाने और फ़ेक इंटरव्यू करने का आरोप है.

मनीष के ख़िलाफ़ तमिलनाडु पुलिस ने छह और बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई ने तीन मामले दर्ज किए हैं.

मनीष कश्यप ने अपने वीडियो में तमिलनाडु के डीजीपी तक के बयान को फ़र्जी बयान बताया था.

उन्होंने बिहार पुलिस और बिहार सरकार, ख़ासकर उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तक को चुनौती दी थी.

मनीष कश्यप पर एक गंभीर आरोप यह है कि उन्होंने पटना के बंगाली टोले में दो लोगों से घायल होने का नाटक कराया और वीडियो बनवाया.

छह मार्च को बनाए गए इस वीडियो में दोनों को तमिलनाडु में हिंसा का शिकार बताया गया.

मनीष कश्यप ने इसी महीने यानी 8 मार्च को इस वीडियो को अपने एक साथी के यू-ट्यूब से पोस्ट करवाया और फिर उसे ख़ुद शेयर किया.

इस वीडियो पर एक मोबाइल नंबर देकर मनीष ने दावा किया था कि ये लोग तमिलनाडु में हिंसा के शिकार हुए हैं.

बिहार पुलिस की ईओयू (आर्थिक अपराध शाखा) एसपी सुशील कुमार के मुताबिक़, "हमने मोबाइल नंबर को ट्रैक किया तो पता चला कि जिन्हें बिहारी मज़दूर बताया गया वे छोटे-छोटे यू-ट्यूबर हैं. इस मामले में मनीष कश्यप, वीडियो बनाने वाले और दोनों एक्टिंग करने वालों यानी कुल चार लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है."

मनीष कश्यप पर दर्ज पुराने मामले

मनीष कश्यप पर साल 2016-17 में एक वीडियो में महात्मा गांधी के लिए अपशब्दों के इस्तेमाल का आरोप है.

उन्होंने 2018 में बिहार के बेतिया में एक चर्च में रखी किंग एडवर्ड की मूर्ति तोड़ दी थी, उसके बाद उन्हें बेतिया पुलिस ने गिरफ़्तार भी किया था.

मनीष कश्यप ने जिस स्कूल में पढ़ाई की थी, उसके हेडमास्टर को पीटने का भी आरोप उन पर लगा है.

उसके बाद उन पर मुक़दमा भी हुआ था जिसमें महिलाओं से छेड़छाड़ करने का आरोप भी शामिल है.

साल 2019 में पुलवामा हमले के बाद पटना में कश्मीरी शॉल, स्वेटर वगैरह के मेले में मनीष कश्यप ने कश्मीरी लोगों के साथ मारपीट की थी और उनके कपड़े फेंक दिए थे. उस मामले में भी मनीष कश्यप को जेल भेजा गया था.

साल 2021 में उन्होंने बैंक में जाकर मैनेजर के साथ मारपीट की थी. बैंक मैनेजर ने इसके ख़िलाफ़ केस दर्ज कराया था.

इस मामले में गिरफ़्तारी से बचने के लिए वे हाई कोर्ट गए थे, लेकिन अदालत ने उनकी अग्रिम ज़मानत की याचिका ख़ारिज़ कर दी थी.

ईओयू एसपी सुशील कुमार के मुताबिक़, "उसके बाद मनीष कश्यप को आत्मसमर्पण करना था, लेकिन वो घूम-घूमकर वीडियो बना रहे थे. वो भगोड़ा और आदतन अपराधी हैं. वह पत्रकार नहीं हैं बल्कि एजेंडा और पेड न्यूज़ चलाते हैं."

पटना के कोचिंग संस्थानों की भूमिका

मनीष कश्यप की दो प्राइवेट कंपनियां 'सच तक मीडिया प्रा. लि.' और दूसरी 'सच तक फ़ाउंडेशन प्रा. लि.' हैं.

दूसरी कंपनी को मनीष ने 'नॉट टू प्रॉफ़िट' बताया है.

आरोपों के मुताबिक़, मनीष ने पिछले साल कंपनी को 6 लाख का घाटा दिखाया है जबकि उन्होंने अपने पार्टनर के साथ मिल कर इस साल कंपनी के खाते से क़रीब 42 लाख़ रुपए निकाले हैं.

ईओयू के मुताबिक़, मनीष कश्यप अपने स्टाफ़ को आठ से बारह हज़ार रुपए सैलरी देते थे, लेकिन हर साल उनके स्टाफ़ के ख़ाते में 10-12 लाख़ का ट्रांज़ैक्शन देखा गया है. ईओयू को इसमें मनी लॉन्ड्रिंग का भी संदेह है.

मनीष कश्यप के ऑफ़िस से तीन डायरी भी मिली है. इसके ज़रिए पटना और बिहार के कई कोचिंग संस्थानों से मनीष कश्यप के संबंधों की जाँच की जा रही है.

आरोप है कि मनीष अपने यू-ट्यूब पर कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन न चलाकर पेड इंटरव्यू और पेड-न्यूज़ चलाते थे.

इसके बदले वह कोचिंग संस्थानों से कैश में पैसे लेते थे जो 50 हज़ार से एक-डेढ़ लाख रुपए तक है.

ईओयू के मुताबिक़, 'उन्हें जानकारी मिली है कि मनीष कश्यप के पटना में चर्चित कोचिंग संस्थान चलाने वाले ख़ान सर से भी काफ़ी क़रीबी ताल्लुक हैं और ख़ान सर के प्रमोशन में इनकी भूमिका की जाँच की जा रही है.'

हालाँकि ख़ान सर ने बीबीसी को बताया है कि उनका नाम किसी तरह से मनीष कश्यप के मामले से नहीं जुड़ा है और कुछ मीडिया वाले व्यू पाने के लिए उनका नाम ले रहे हैं.

तमिलनाडु में क्या हुआ था?

इसी साल फ़रवरी महीने के अंतिम सप्ताह में सोशल मीडिया पर कई पोस्ट में दावा किया जा रहा था कि तमिलनाडु के तिरुपुर और कोयंबटूर में बिहार के मज़दूरों के साथ हिंसा हो रही है.

इस तरह की पोस्ट में कम से कम दो बिहारी मज़दूरों की हत्या का दावा भी किया गया.

सोशल मीडिया पर यह भी दावा किया गया कि बिहारी लोग तमिलनाडु से निकलने की कोशिश कर रहे हैं और रेलवे स्टेशनों पर भगदड़ का माहौल है.

बीबीसी ने इस बारे जानने के लिए 2 मार्च को तिरुपुर के पुलिस अधीक्षक जी. शशांक साई से बात की तो उन्होंने ऐसी ख़बरों को पूरी तरह से अफ़वाह और ग़लत बताया था.

दक्षिण रेलवे ने भी इस मामले में बीबीसी को बताया था कि होली की वजह से ट्रेनों में भीड़ थी, जो बहुत ही सामान्य-सी बात है. होली का त्योहार 8 मार्च को था और इसकी वजह से ट्रेनों में आम दिनों के मुक़ाबले ज़्यादा भीड़ थी.

यानी सोशल मीडिया पर जो दावे किए जा रहे थे, आधिकारिक तौर पर कहीं से भी वो ख़बरें पुख़्ता नहीं हुई थीं. लेकिन उसके बाद भी यह ख़बर इतनी ज़्यादा चर्चा में थी कि इसने तमिलनाडु पुलिस, बिहार पुलिस और बिहार की राजनीति को अपने घेरे में ले लिया.

तमिलनाडु पुलिस के मुताबिक़ 14 जनवरी को तमिलनाडु में पोंगल की छुट्टियों के दौरान तिरुपुर में बिहार और तमिलनाडु के लोगों के बीच एक छोटा झगड़ा हुआ था, जिस पर पुलिस ने मामला भी दर्ज किया था.

लेकिन सोशल मीडिया पर कोयंबटूर में स्थानीय लोगों के बीच के झगड़े के एक वीडियो को तमिलनाडु में बिहार के लोगों पर हिंसा का वीडियो बताया गया.

सके अलावा एक पुराने मामले में तिरुपुर में एक व्यक्तिगत झगड़े में झारखंड के एक प्रवासी मज़दूर ने बिहार के एक प्रवासी मज़दूर की हत्या कर दी थी, इसे भी बिहार के लोगों के साथ हिंसा से जोड़कर बताया गया था.

चेन्नई में मौजूद बिहार एसोसिएशन के सचिव मुकेश कुमार ठाकुर का कहना था कि उनके पास एक मार्च से हर रोज़ डेढ़-दो सौ फ़ोन आने लगे और लोग इस तरह की हिंसा के बारे में पूछने लगे.

मुकेश के मुताबिक़ उन्होंने ख़ुद 50 से ज़्यादा जगहों पर पता किया तो पता चला कि सब अफ़वाह है.

उन्होंने बताया, "कोई कहता उन्होंने उन्हें बताया और उन्हें किसी और ने. किसी ने अपनी आंखों से कहीं कोई हिंसा नहीं देखी थी."

मीडिया की भूमिका

इस तरह की ख़बरों को प्रसारित करने में सोशल मीडिया के अलावा कुछ प्रमुख अख़बारों ने भी भूमिका निभाई और मार्च के पहले सप्ताह में इस कथित हिंसा को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा होने लगी.

अख़बारों में ऐसी ख़बरों के पढ़कर ही 2 मार्च को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्य सचिव और डीजीपी को निर्देश दिया था कि वो तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों से बात कर बिहारी मज़दूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करें.

बीजेपी ने इस ख़बर की सच्चाई जाने बग़ैर बिहार विधानसभा के बजट सत्र में काफ़ी विरोध जताया और बिहार सरकार को अपनी टीम भेजकर तमिलनाडु से बिहारी मज़दूरों को सुरक्षित वापस लाने की मांग की.

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और बीजेपी विधायक विजय कुमार सिन्हा ने यह भी दावा कर दिया कि तमिलनाडु हिंसा के पीड़ित का फ़ोन उनके पास आया था.

इस बीच 2 मार्च को ही तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक ने ट्वीट कर बताया कि वहाँ बिहारी मज़दूरों के साथ कोई हिंसा नहीं हुई है.

डीजीपी ने बताया कि सोशल मीडिया पर कुछ पुराने वीडियो पोस्ट कर ग़लत और भ्रामक जानकारी शेयर की जा रही है.

स्पष्टीकरण

तमिलनाडु पुलिस के दावे के आधार पर उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर झूठ फ़ैलाने का आरोप भी लगाया.

इसी दौरान एलजेपी नेता और सांसद चिराग पासवान ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ ही बिहार और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों को इस मुद्दे पर चिट्ठी भी लिख दी.

आख़िरकार 4 मार्च को बिहार सरकार ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम सच्चाई जानने के लिए तमिलनाडु भेज दी.

इस टीम ने भी जाँच के बाद कहा कि तमिलनाडु में काम कर रहे सभी बिहार के लोग सुरक्षित हैं और हिंसा की जिन ख़बरों का दावा किया जा रहा है, सब ग़लत हैं.

दो मार्च को तमिलनाडु के डीजीपी के बयान के बाद भी मामला शांत नहीं हुआ, तो तीन मार्च को पुलिस ने फिर से इसे अफ़वाह बताया और ट्वीट किया.

क्या भारतीय जनता पार्टी आगामी आम चुनाव, कांग्रेस के नेता 'राहुल के ख़िलाफ़ एक जनमत संग्रह' या 'रेफ़रेंडम" के तौर पर लड़ना चाहती है?

इस सवाल पर राजनीतिक हलकों में बहस भी चल रही है और कई विश्लेषक मानते हैं कि ये आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर बीजेपी की बनाई रणनीति भी हो सकती है.

सियासी हलकों में ये सवाल भी उठ रहे हैं कि ऐसे में दूसरे विपक्षी दलों का क्या होगा?

राजनीति पर नज़र रखने वाले कई जानकारों को लगता है कि भारतीय जनता पार्टी 'विपक्ष में फूट' डालने की अपनी रणनीति में कामयाब होती नज़र आ रही है.

सोशल मीडिया और राजनीति के मैदान में ख़बरें नहीं रुकीं, तो पहले तमिलनाडु पुलिस और फिर बिहार पुलिस ने हेल्पलाइन नंबर जारी कर किसी भी परेशानी के लिए पुलिस से संपर्क करने की अपील भी की.

सोशल मीडिया पर इस कथित हिंसा को लेकर जिस तरह की तस्वीरें, वीडियो और पोस्ट शेयर किए जा रहे थे, उससे पुलिस भी परेशान हो चुकी थी.

ऐसा लग रहा था कि वीडियो कुछ बता रहा है और पुलिस उसे ख़ारिज़ कर रही है.

इस मामले में खौफ़ की वजह से फ़रवरी और मार्च के महीने में क़रीब 15 दिनों तक तमिलनाडु में बिहार के मज़दूर तनाव और भय के माहौल से गुज़र रहे थे.

इसी दौरान पुलिस ने दावा किया कि पुराने वीडियो के अलावा ग़लत इरादे के साथ कुछ नए वीडियो बनाए गए और इसे सोशल मीडिया पर डाला गया.

इसने तमिलनाडु में बिहार के मज़दूरों पर हिंसा की अफ़वाह को और हवा दी.

इस तरह के पोस्ट करने के आरोप में बिहार पुलिस ने सबसे पहले जमुई से एक शख़्स को गिरफ़्तार किया. जबकि कुछ और लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया.

इस मामले में सबसे गंभीर आरोप मनीष कश्यप पर लगा है.

मनीष कश्यप साल 2020 में पश्चिमी चंपारण के चनपटिया सीट से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके है, जिसमें उन्हें 9239 वोट मिले थे और वे हार गए थे.

बिहार पुलिस की ईओयू ने बुधवार को मनीष कश्यप से रिमांड में पूछताछ भी की. इसमें तमिलनाडु की पुलिस भी शामिल थी.

पुलिस इस मामले की जाँच भी कर रही है कि उन्होंने किस मक़सद से तमिलनाडु से जुड़ी भ्रामक ख़बरें प्रसारित की थीं.

बिहार पुलिस ने फ़ेसबुक के 9, ट्वीटर के 15, यू-ट्यूब के 15 पोस्ट को अगले तीन महीनों के लिए संभालकर रखने को कहा है.

इसके अलावा जी-मेल की भी तीन सामग्री को संभालने को कहा गया है ताकि ज़रूरत पड़ने पर उनकी जाँच की जा सके. (bbc.com/hindi)

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