संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब गांधी को फर्जी डिग्री वालों की कतार में खड़ा करने की बेहूदी कोशिश
25-Mar-2023 4:07 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब गांधी को फर्जी डिग्री  वालों की कतार में खड़ा करने की बेहूदी कोशिश

photo : twitter

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का एक वीडियो तैर रहा है जिसमें ग्वालियर की एक निजी यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में भाषण देते हुए उन्होंने कहा कि गांधी के पास कानून की कोई डिग्री नहीं थी, उन्होंने सिर्फ हाईस्कूल डिप्लोमा किया था। उन्होंने यह दावा किया कि वे यह बात सुबूतों के साथ कह रहे हैं। इस बयान पर देश और गांधी के इतिहास के जानकार लोग हॅंस भी रहे हैं, और रो भी रहे हैं। उस वक्त के इंग्लैंड से बैरिस्टर बने मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत करने लगे थे, और वहां पर रंगभेदी, नस्लभेदी भेदभाव से आहत होकर उन्होंने एक आंदोलन छेड़ा था, और हिन्दुस्तान लौटकर स्वतंत्रता की लड़ाई शुरू की थी। गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी का कहना है कि गांधी ने लॉ की डिग्री पाई थी, और यह बात उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी लिखी है। तुषार ने मोदी सरकार के बनाए हुए इस राज्यपाल पर तंज कसते हुए कहा कि जाहिलों को राज्यपाल बना देने का यही नतीजा होता है। गांधी के पास लॉ की डिग्री थी, लेकिन उनके पास एंटायर लॉ डिग्री नहीं थी जैसी कि मोदी के पास एंटायर पोलिटिकल साईंस की डिग्री है। उल्लेखनीय है कि मोदी की डिग्री को लेकर बरसों से यह विवाद चल रहा है कि विश्वविद्यालय उसकी जानकारी क्यों नहीं दे रहा है, और मोदी जिस कोर्स में डिग्री बताते हैं, वह कोर्स तो विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में दिखता भी नहीं है। खैर, वह विवाद एक अलग विवाद है, और मोदी से लेकर स्मृति ईरानी तक बहुत से लोग अपनी डिग्रियों को लेकर खुद जवाबदेह हैं, इसलिए उनके लिए हमें कुछ नहीं कहना है। लेकिन आज जो गांधी नहीं रह गए हैं, और जिनके बारे में इतिहास में दर्ज तथ्यों को भी तोड़-मरोडक़र, या झूठ गढक़र जो अभियान चलाया जा रहा है, उस पर जरूर बात होनी चाहिए। 

हाल के बरसों में देश में जिस रफ्तार से भाजपा और संघ परिवार के बड़े-बड़े नेताओं ने गांधी और नेहरू के खिलाफ एक अभियान छेड़ा है, वह बहुत भयानक है। देश के इतिहास में, स्वतंत्रता संग्राम में, आधुनिक भारत के निर्माण में जिन लोगों का अपार योगदान रहा है, उन्हें भाड़े के भोंपुओं के मार्फत रात-दिन कोसना, हिन्दुस्तान में एक अभूतपूर्व घटना है। और यह सिलसिला देश को एक खरे इतिहास से दूर ले जा रहा है, और एक झूठे इतिहास के गौरव में जीने का मौका दे रहा है। आज सोशल मीडिया पर झूठ फैलाने की आजादी के चलते उस ग्वालियर से गांधी की पढ़ाई के बारे में संवैधानिक कुर्सी पर बैठे एक आदमी ने यह नया झूठ शुरू किया है, जिस ग्वालियर से गांधी की हत्या के लिए हथियार निकला था, और जिसके जंगलों में गांधी के हत्यारों ने गोली चलाने का अभ्यास किया था। इसी ग्वालियर के शासक घराने सिंधिया के बारे में सुभद्रा कुमारी चौहान ने देशप्रेम की एक सबसे महान कविता में लिखा है कि किस तरह सिंधिया घराने ने अंग्रेजों का साथ दिया था। अब जहां से गई पिस्तौल ने गांधी की हत्या की थी, आज उसी जगह गांधी पर एक नई गोली दागी जा रही है, ताकि फर्जी डिग्री, या डिग्री के झूठे दावे वाले लोगों की फेहरिस्त में गांधी का भी नाम जोड़ा जा सके, और इस पूरी लिस्ट को एक अलग विश्वसनीयता दिलाई जा सके। 

लोकतंत्र में जब मूर्तिभंजन होता है, तो वह मासूम नहीं होता, उसे सोच-समझकर किया जाता है। नेहरू के खिलाफ चल रहा अभियान अपने दम पर एक सीमा तक ही चल सकता था, उसके बाद अब उसे गांधी विरोधी एक अभियान की जरूरत और पड़ेगी, क्योंकि गांधी को बदनाम करने से भी नेहरू की बदनामी कुछ और हद तक बढ़ाई जा सकेगी। इस देश में गोडसे की विचारधारा से उपजी नस्लें लगातार इस अभियान में लगी रहती हैं कि गोडसे को भारत-पाक विभाजन से विचलित एक देशभक्त साबित किया जा सके, और ये लोग गांधी की तस्वीर पर गोलियां दागते हुए अपनी तस्वीर और वीडियो पोस्ट करते रहते हैं। भाजपा की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सार्वजनिक रूप से खुलेआम गांधी को कोसती हैं, और गोडसे की स्तुति करती हैं, और संसद में बनी रहती हैं, भाजपा में भी। इसलिए भाजपा के नेताओं के कुछ खास मौकों पर राजघाट जाने को इसी संदर्भ में देखना चाहिए कि अपनी पार्टी के भीतर गांधी के हत्यारों के पूजकों के लिए उसके मन में कितना सम्मान है, और कैसे ओहदे उसने इन्हें दे रखे हैं। ऐसे ही एक बहुत बड़े ओहदे पर बैठे हुए मनोज सिन्हा ने बेमौके पर एक बेतुकी बात छेडक़र गांधी पर जो हमला किया है, उसे इस पूरे अभियान के एक हिस्से के रूप में देखना चाहिए। हिन्दुस्तान की आज की जिस पीढ़ी ने गांधी को न देखा है, न आजादी की लड़ाई को भुगता है, उस पीढ़ी को नेहरू और गांधी के खिलाफ बरगलाना कुछ मुश्किल नहीं है। यह पीढ़ी भाड़े के झूठे भोंपुओं की सोशल मीडिया पर कही गई बातों को ज्यों की त्यों मान लेने का सहूलियत का काम करने की आदी है, और इसके बीच देश के इतिहास के सबसे महान लोगों का मूर्तिभंजन करना, और सबसे खराब लोगों को महिमामंडित करना बहुत ही आसान बात है। मनोज सिन्हा गए तो एक निजी यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में थे, लेकिन वहां उन्होंने वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी के दर्जे का भाषण दिया। कोई हैरानी नहीं है कि वे उस जंगल में भी श्रद्धासुमन अर्पित करने गए हों जहां पर गांधी पर गोली चलाने के पहले अभ्यास किया गया था। 

देश में नफरत के लिए एक बड़ा बर्दाश्त पैदा किया जा चुका है। और जिस तरह एक धीमा जहर देकर एक वक्त विषकन्याएं तैयार करने की कहानी रहती थी, आज उसी तरह ये नफरतपुरूष तैयार किए गए हैं। नई पीढ़ी नफरतजीवी हो जाए, तो गांधी-नेहरू की विचारधारा के खिलाफ लोगों का चुनाव जीतना एक आसान काम हो जाएगा, और आज उसी इरादे से लगातार तरह-तरह की कोशिशें चल रही हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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