विचार / लेख

राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने का कांग्रेस पर क्या होगा असर?
25-Mar-2023 4:38 PM
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने का कांग्रेस पर क्या होगा असर?

मयूरेश कोन्नूर

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द होने की खबर से राजनीतिक गलियारों की हवा तेज हो गई है।

अदालत के इस फैसले के बाद ये चर्चा शुरू हो गई है कि दिल्ली से लेकर देशभर की राजनीति आगे कैसे बदलेगी।

इस निर्णय के राहुल गांधी के लिए क्या मायने हैं? अपने हाथ से निकल चुकी प्रतिष्ठा हासिल करने में जुटी कांग्रेस के लिए इसके क्या मायने हैं? इसे देखते हुए विपक्षी दलों के इक_ा आने का जो सपना है, क्या वह अब पूरा होगा? ऐसे कई सवाल उठने शुरू हो गए हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव होने में अभी एक साल से ज्यादा का समय है पर उससे पहले कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं।

इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की टक्कर सीधे-सीधे भाजपा के साथ होनी है। ऐसे में ये सवाल भी उठ रहा है कि राहुल गांधी की सदस्यता जाने से क्या कांग्रेस यहां चुनावी माहौल अपने पक्ष में बना पाएगी?

क्या राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से हासिल राजनीतिक प्रतिष्ठा को आगे बढ़ा पाएंगे या फिर ये माना जाए कि बीजेपी ने अपने प्रतिस्पर्धी को इस मौक़े पर मात दे दी है?

हमने देश के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से पूछा कि इस पूरे मामले के राजनीतिक मायने क्या हो सकते हैं।

‘राहुल को फायदा होने की संभावना ज़्यादा’

वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव का मानना है की राहुल गांधी समेत सभी विरोधी दलों के लिए अब जनता को ये बताने का एक मौका है कि उनको कैसे निशाने पर लिया जा रहा है।

वो कहते हैं, ‘अब यह कांग्रेस पर निर्भर रहेगा कि वह किस तरह राहुल गांधी की सदस्यता जाने पर ‘जन आंदोलन’ खड़ा करती है। लेकिन, एक बात तो साफ है कि सारे विरोधी दल इस मामले में राहुल गांधी के साथ खड़े हैं।’

‘यह राय बनती जा रही है कि यह लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है और विरोधी दलों के नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। इस पर सर्वसम्मति कैसे होती है, सारे दल इक_ा कैसे रह पाते हैं, किन मुद्दों पर और एकता बढ़ती है या बिखरती है, कांग्रेस अपने कैडर को किस तरह जोश दे पाती है, ये सब देखने वाली बात होगी।’

हालांकि, वो ये भी कहते हैं कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल अभी तक मतदाताओं को बीजेपी के खिलाफ खड़ा नहीं कर पाए हैं।

संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, ‘इसकी वजह ये है कि विपक्षी दल अभी तक लोगों को प्रेरित नहीं कर सके हैं। हम उनके बारे मे विश्वास से कुछ नहीं कह सकते। हालांकि, एक चीज तो साफ दिख रही है कि इस फैसले से राहुल गांधी को फायदा होने की संभावना ज़्यादा है।’

लखनऊ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान को लगता है कि जैसे आपातकाल के बाद जेल जाना इंदिरा गांधी ने एक मौके में बदला था, कुछ वैसा ही अवसर राहुल गांधी को मिला है। मगर क्या वह वैसा कर पाएंगे?

वो कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि इस निर्णय ने कांग्रेस में नई ऊर्जा डाल दी है। राहुल गांधी को एक तरीके का बूस्ट मिला है। सबको पता है कितने गलत तरीके से यह निर्णय हुआ है। जब बाबरी मस्जिद का फैसला आता है तो कहते हैं कि यह मोदीजी ने कराया है और जब ये फैसला आया है तो कह रहे हैं कि कोर्ट ने किया है, हमसे क्या मतलब है?’

‘यह कुछ ऐसा ही है जैसे इंदिरा गांधी को इमरजेंसी के बाद सताया गया था। इंदिरा गांधी ने आपातकाल लाकर ग़लती की थी। लेकिन बाद में जब उन्हें जेल भेज दिया गया तो उन्होंने सत्ता में वापसी की। मुझे लगता है कि राहुल गांधी के लिए यह ‘ब्लेसिंग इन डिसगाइज’  होगा। इससे पहले किसी को डिफेमेशन केस में दो साल की सज़ा नहीं हुई। तो यह सब ‘बाइ डिजाइन’ किया गया है।’

‘कांग्रेस को नया चेहरा सामने लाने का भी एक मौका’

महाराष्ट्र में ‘लोकसत्ता’ अखबार के संपादक गिरीश कुबेर को लगता है कि अब कांग्रेस के लिए ये नया चेहरा सामने लाने का भी एक मौका है।

वो कहते हैं, ‘यह कांग्रेस के लिए एक बढिय़ा अवसर है। अगर राहुल गांधी सामने नहीं है तो बीजेपी कैसे खड़ी रहेगी। राहुल हमेशा उनके लिए ‘पंचिंग बैग’ रहे हैं। भाजपा के ‘यश’ में हमेशा राहुल गांधी का ‘अपयश’ भी एक हिस्सा रहा है। अब वही दूर हो गया। इसलिए अगर कांग्रेस सोच-समझकर आगे जाती है और नया चेहरा सामने लाती है, तो भाजपा के सामने भी चुनौती खड़ी हो सकती है। उन्हें सहानुभूति भी मिलेगी।’

एक तरफ राहुल गांधी के लिए यह एक अच्छा मौक़ा हो सकता है पर लोग सोच रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी को कैसे फायदा होगा?

गिरीश कहते हैं कि कांग्रेस के साथ एक बुनियादी समस्या है। कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, अडानी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठा रही है और उन्हें लोगों से प्रतिक्रिया मिल रही है। लेकिन कांग्रेस उस गति को बरकरार नहीं रख पा रही है और उस आंदोलन को जिंदा नहीं रख पा रही है।

संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, ‘इसकी बड़ी वजह है कांग्रेस में संगठनात्मक खामियां। कांग्रेस ऐसी पार्टी भी रही है कि जन आंदोलन या जन भावनाओं के सैलाब पर सवार होकर सत्ता में आ जाए। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ऐसा माहौल बना था और राजीव गांधी 400 से ज़्यादा सीटें लेकर जीते थे। मगर फिलहाल लोगों का गुस्सा, भावनाएं और जनसैलाब जैसा माहौल तो नहीं दिख रहा है।’

संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, ‘जो फैसला हुआ है उसे कांग्रेस के अलावा और कौन आंदोलन में बदल सकता है, जमीन से आवाज उठाकर आंदोलन को ईवीएम तक ले जाया जा सकता है, ये देखना होगा। ऐसी व्यवस्था फिलहाल कांग्रेस के पास नहीं दिखती इसलिए जहां उनकी भाजपा के साथ सीधी टक्कर है वहीं कांग्रेस सीटें हारती है।’

वो कहते हैं, ‘क्या ये परिस्थिति राहुल गांधी की सदस्यता जाने से एक दिन में बदल जाएगी? मुझे नहीं लगता वैसा होगा। मगर ऐसी स्थिति बनाने की कोशिश तो हो सकती है। यह एक अवसर है। अब तक कांग्रेस वह नहीं कर पाई है क्योंकि उनके पास संगठन नहीं है।’

वहीं शरत प्रधान को लगता है कि कांग्रेस आम लोगों से सीधी बात कर उनके साथ हुए अन्याय के बारे में बताए तो पार्टी को फायदा हो सकता है।

वो कहते हैं, ‘कांग्रेस अगर इस मामले को अच्छे तरीक़े से आम लोगों को बताए कि क्या हुआ है, तो उसे फायदा हो सकता है। पार्टी ने अब तक वापसी का कोई भी प्रयास नहीं किया है।

लोगों को ‘अन्याय’ के बारे में बताने में विपक्षी दलों की भी अहम भूमिका होगी। वो लोगों को बताएं कि आज राहुल गांधी के साथ जो हुआ है वह कल किसी के भी साथ हो सकता है।’

‘कर्नाटक चुनाव में इसकाकुछ असर नहीं होगा’

राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी पहले अगले दो महीनों मे कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं। वहां फिलहाल भाजपा की सत्ता है, जो कांग्रेस से कुछ विधायक बाहर निकल जाने के बाद बनी है।

अब वहां कांग्रेस भाजपा को चुनौती दे रही है। लेकिन सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने का असर वहां के चुनाव पर पड़ सकता है?

प्रोफेसर मुजफ़्फ़ऱ असादी मैसुरू युनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं। उनका कहना है कि इस मुद्दे का असर नहीं पड़ेगा क्योंकि कर्नाटक की राजनीति स्थानीय नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती है।

वो कहते हैं, ‘राहुल गांधी की सदस्यता जाने का जो फ़ैसला हुआ है वह बहुत ही अप्रत्याशित है। लेकिन कर्नाटक में चुनाव पर इसका कुछ अधिक असर होगा ऐसा मुझे नहीं लगता। क्योंकि, कर्नाटक में आप कांग्रेस की राजनीति देखें तो वो राहुल गांधी पर निर्भर नहीं है।’

वो कहते हैं, ‘यहां पर जो स्थानीय नेता हैं और वही पार्टी के लिए वोट जुटाते हैं। जैसे कि यहां सिद्धारमैया राहुल गांधी से ज़्यादा लोकप्रिय हैं। ख़ास तौर पर ओबीसी समुदायों से आने वाले नेता यहां पर पार्टी की ताक़त हैं।’

वो कहते हैं ‘इस बार चुनाव में यहां एंटी इंकम्बेंसी का मुद्दा है। यह मुद्दा जब हावी हो जाता है तो राहुल गांधी की सदस्यता जाने जैसे राष्ट्रीय मुद्दे यहां प्रभाव नहीं डालते। एक चीज़ हो सकती है कि यहां बीजेपी और कांग्रेस की विचारधाराओं की टक्कर हो। लेकिन राष्ट्रीय मुद्दे कर्नाटकचुनाव में कोई मायने नहीं रखते।’ (bbc.com)

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